मौत को, शायद समझता दूर है
मुस्कुराकर देखते हैं, फिर नया
हो गया ग़र ख्वाब, चकनाचूर है
आलमे तन्हाई का दोज़ख है क्या
पूछ उस से, जो बहुत मशहूर है
जो उसूलों पर टिका, उसके लिए
बस यही समझे सभी, मजबूर है
धूल झोंकी है उसी ने, आँख में
हम जिसे कहते थे, इनका नूर है
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
क्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
जो मिले अपनो से 'नीरज', उम्र भर
दर्द वो होता नहीं काफूर है
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
ReplyDeleteक्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
बहुत ख़ूब !
ख़ूबसूरत मतला !
छोटी बहर की ख़ूबसूरत और मुकम्मल ग़ज़ल
छोटे बहर की अच्छी गज़ल।
ReplyDeleteजो मिले अपनो से 'नीरज', उम्र भर
ReplyDeleteदर्द वो होता नहीं काफूर है
jai baba banaras........
देखिये जिसको, वही मगरूर है
ReplyDeleteमौत को, शायद समझता दूर है
और ये
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
क्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
बहुत खूबसूरत शेर
धूल झोंकी है उसी ने, आँख में
ReplyDeleteहम जिसे कहते थे, इनका नूर है
waah kamaal hai
मुस्कुराकर देखते हैं, फिर नया
ReplyDeleteहो गया ग़र ख्वाब, चकनाचूर है
vaah!
Neeraj jee aakhiri dono sher lajawab ban pade hai.Vaise to puri ghazal hi achhi hai.
ReplyDeleteआलमे तन्हाई का दोज़ख है क्या...
ReplyDeleteबढ़िया
नीरज जी,
ReplyDeleteसुभानाल्लाह........ये बंद इस पोस्ट के लिए आपको सलाम करता है.....हर शेर उम्दा....एक से बढकर एक......सबमे गहराई है ......वाह.....वाह.....
धूल झोंकी है उसी ने, आँख में
ReplyDeleteहम जिसे कहते थे, इनका नूर है
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
क्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
बहुत खूब ...खूबसूरत गज़ल
जो उसूलों पर टिका, उसके लिए
ReplyDeleteबस यही समझे सभी, मजबूर है
वाह,नीरज जी! हर शेर यथार्थ के भावों से तराशे हैं आपने !
शुक्रिया !
धूल झोंकी है उसी ने, आँख में
ReplyDeleteहम जिसे कहते थे, इनका नूर है
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
क्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
वाह ....बहुत खूब ।
वाह रे वाह, क्या खूब है?
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत खूब!
बेहद खूबसूरत गज़ल ,आभार ..
ReplyDeleteमनमोहक! बेमिसाल!! लाजवाब!!!
ReplyDeleteजो मिले अपनो से 'नीरज', उम्र भर
ReplyDeleteदर्द वो होता नहीं काफूर है
नीरज जी, बस एक शब्द........... लाजवाब.
निशब्द कर दिया.
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
ReplyDeleteक्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है।
अब हुजूर अश्क तो अश्क है इसकी सल्तनत में कोई भेदभाव नहीं होता।
ऑंख से टपका तो मोती बन गया
अश्क के बारे में ये मशहूर है।
धूल झोंकी है उसी ने, आँख में
ReplyDeleteहम जिसे कहते थे, इनका नूर है
हर शेर पर दाद देने को जी चाहता है, आप की गजलों की किताब कब तक छप कर आयेगी? अगर ऑलरेडी मार्केट में है तो बताइए कहां से ली जा सकती है?
क्या बात है नीरज जी! पूरी ग़ज़ल फलसफे के रंग में रंगी हुई है. अभी तो होली का रंग भी नहीं उतरा कि ख़्वाब, तन्हाई, मजबूरी, धोका, ग़म और दर्द सब समेट लाये है अपने शेरो में. और
ReplyDelete"गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
क्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है"
.....आसान लफ्जों में बड़ी गहरी बात कह दी है.
"दर्द हो काफूर जल्दी आपका",
ये दुआए दे रहा मंसूर है.
-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com
धूल झोंकी है उसी ने, आँख में
ReplyDeleteहम जिसे कहते थे, इनका नूर है....
....
har sher mukkmala... behatreen gazal
आलमे तन्हाई का दोज़ख है क्या
ReplyDeleteपूछ उस से, जो बहुत मशहूर है
यह भी एक यथार्थ है ।
सुन्दर अश` आर से सुशोभित बढ़िया ग़ज़ल ।
वाह भई नीरज जी बहुत सुंदर
ReplyDeleteधूल झोंकी है उसी ने, आँख में
ReplyDeleteहम जिसे कहते थे, इनका नूर है
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
क्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
वाह वाह! नीरज जी, क्या शेर निकले हैं !
बेहतरीन ग़ज़ल
जो उसूलों पर टिका, उसके लिए
ReplyDeleteबस यही समझे सभी, मजबूर है
...बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल...हरेक शेर बहुत सार्थक और उम्दा..
जो मिले अपनो से 'नीरज', उम्र भर
ReplyDeleteदर्द वो होता नहीं काफूर है
बेहतरीन, लाजवाब!!
जो मिले अपनो से 'नीरज', उम्र भर
ReplyDeleteदर्द वो होता नहीं काफूर है
Behad khoobsurat gajal.
फलों से लदा होने पर भी जो झुका रहे,
ReplyDeleteकरे न कभी खुद पर गुरूर है,
हम है मुरीद दिल से उस शख्स के,
नाम उसका नीरज गोस्वामी हुज़ूर है...
जय हिंद...
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
ReplyDeleteक्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
बहुत ख़ूब !
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ReplyDeleteWonderful, anubhavon ka nayab khazana.
thanks..............
CM Gupta
आलमे तन्हाई का दोज़ख है क्या
ReplyDeleteपूछ उस से, जो बहुत मशहूर है
waah sir , kya baat likhi hai ,,seedhe dil me utar gayi
aabhar
नीरज जी ,
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल है ..हर शेर बहुत गहन और सहज भाषा में लिखा हुआ ...बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें.. इसे मैंने चुरा लिया है :) :) बांटने के लिए
सुन्दर रचना.
ReplyDeleteजो मिले अपनो से 'नीरज', उम्र भर
दर्द वो होता नहीं काफूर है
आरम्भ से अंत तक बाँधकर रख दिया.
एक-एक शेर दमदार.
छोटी बहर की बेहतरीन गज़ल..वाह!! आनन्द आ गया.
ReplyDeleteComment received on e-mail:-
ReplyDeleteNeera bhai kiya ghazal hai masha aalah kiya kikhte hein aap
Chaand
Denmark
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
ReplyDeleteक्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
तभी तो ख़ुशी और ग़म दोनों मौक़ों पर आँखें भर आती हैं. प्यारा शेर.
पूरी ग़ज़ल लाजवाब.
देखिये जिसको, वही मगरूर है
ReplyDeleteमौत को, शायद समझता दूर है
आइना दिखाता शे'र .....
मुस्कुराकर देखते हैं, फिर नया
हो गया ग़र ख्वाब, चकनाचूर है
चलने का नाम ही है ज़िन्दगी .....
जो उसूलों पर टिका, उसके लिए
बस यही समझे सभी, मजबूर है
कहाँ से लाते हैं ऐसी सोच ....?
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
क्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
नमन इस शे'र के लिए .......
जो मिले अपनो से 'नीरज', उम्र भर
दर्द वो होता नहीं काफूर है
सुभानाल्लाह .......!!
Aapki puri profile dekhi bahut achha lgaa !
ReplyDeleteमुस्कुराकर देखते हैं, फिर नया
ReplyDeleteहो गया ग़र ख्वाब, चकनाचूर है
बहुत खूबसूरत बेहतरीन गज़ल...हरेक शेर बहुत सार्थक और उम्दा...हर एक लाईन तराशी हुई सी लगती हैं..
धूल झोंकी है उसी ने, आँख में
ReplyDeleteहम जिसे कहते थे, इनका नूर है
वैसे तो पूरी ग़ज़ल लाजवाब है ... पर मुझे ये शेर गजब का लगा ...
धूल झोंकी है उसी ने, आँख में
ReplyDeleteहम जिसे कहते थे, इनका नूर है
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
क्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है..
बेहद शानदार अशआर.....
बहुत अच्छी ग़ज़ल ...
अश्क और इश्क का बस यही दस्तूर है।
ReplyDeleteआलमे तन्हाई का दोज़ख है क्या
ReplyDeleteपूछ उस से, जो बहुत मशहूर है
गम ख़ुशी में फर्क ही करता नहीं
क्या अजब, ये अश्क का दस्तूर है
kya baat hai bahut khoob janab.
भाई नीरज बधाई सुंदर गज़ल |
ReplyDeleteमुस्कुराकर देखते हैं, फिर नया
ReplyDeleteहो गया ग़र ख्वाब, चकनाचूर है
बहुत उम्दा नीरज जी, वाह
जो उसूलों पर टिका, उसके लिए
बस यही समझे सभी, मजबूर है
आज के दौर की हक़ीक़त बयान करता शेर.
umda!!! mubarakbad lijiye dil se!!
ReplyDeleteआदरणीय नीरज जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
स्वास्थ्य संबंधी गड़बड़ियों के चलते पिछले दिनों कम सक्रिय रह पाया … आगे भी उलझे रहने की संभावना है …
आशा है , क्षमा कर देंगे …
पूरी ग़ज़ल हमेशा की तरह नायाब ! बेमिसाल !
जो उसूलों पर टिका, उसके लिए
बस यही समझे सभी, मजबूर है
दिल से दाद है … तमाम अश्'आर के लिए …
गणगौर और नवरात्रि की शुभकामनाएं !
साथ ही…
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*
- राजेन्द्र स्वर्णकार
कितनी दीवारें उठी हैं एक घर के दर्मियां
ReplyDeleteघर कहीं ग़ुम हो गया दीवारो-दर के दर्मिया
isi ehsaas se zindagi shuru hoti hai subah se ... phir raat aa jati hai
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
ReplyDelete...प्रशंसनीय रचना