चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
खार के बदले में यारो खार देना सीख लो
गुल दिया करते हैं जो, वो लोग हैं नादान से
जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
गर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से
खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
प्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
खार के बदले में यारो खार देना सीख लो
गुल दिया करते हैं जो, वो लोग हैं नादान से
जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
गर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से
खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
बेहद प्रभावशाली गज़ल है।
ReplyDeleteक्या बात है………॥
ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
ReplyDeleteसांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
बहुत खूब .... सभी शेर कमाल के हैं....
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
ReplyDeleteसांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
गज़ल का हर शेर बहुत खूब ..इंसानी फितरत को कहता हुआ ....
चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
ReplyDeleteप्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
शानदार गज़ल ……………हर शेर बेहतरीन्।
आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
ReplyDeleteगर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से
हर पंक्ति लाजवाब ..इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
ReplyDeleteसांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
नीरज जी इनको मैं जानती हूँ जीरो फिगर वाले हैं.... हा हा हा
बेमिसाल ग़ज़ल है. हर एक शेर तराशा हुआ नगीना सा है.
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
ReplyDeleteलोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
waah... bahut badhiyaa
neeraj ji , anurodh hai , ye gazal vatvriksh ke liye bhejiye rasprabha@gmail.com per parichay tasweer blog link ke saath ...
क्या कहूँ, सहज सरल भाषा पर बेहतरीन ग़ज़ल ... बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनीरज जी, हर शेर लाजवाब करने वाला है। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDelete---------
ज्योतिष:पैरों के नीचे से खिसकी जमीन।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
ReplyDeleteप्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
वाह नीरज जी...कितना बड़ा पैग़ाम दिया है
जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से
यही होता है...इसीलिए तो कहा है ’नेकी कर दरिया में डाल’
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
तादाद बहुत कम हो गई न, हैरानी की बात तो है ही :)
बहुत अच्छी ग़ज़ल है नीरज जी...शिक्षाप्रद.
वाह! नीरज जी,
ReplyDeleteचाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
ग़ज़ल के मतले ने ही बता दिया कि पूरी ग़ज़ल कितनी ज़ोरदार है !
हर शेर लाजवाब !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteमक्ता क्या खूब कहा है,
"खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से "
एक आम और बेहद अहम बात को, बहुत अच्छे से आप ने शेर में पिरो दिया है.
नीरज जी,
ReplyDeleteक्या कहूँ....पहले शेर से समां बांध दिया इस ग़ज़ल ने.....कोई शेर किसी क़दर भी किसी से कम नहीं.....गुनगुनाने लायक ग़ज़ल है ये......आपकी ग़ज़ल की सरलता ही उसको ऊँचे मुकाम तक ले आती है|
इस पोस्ट के लिए हैट्स ऑफ टू यू.....
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
ReplyDeleteलोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
यही ज़माना आ गया है..
उम्दा गज़ल.
आपकी इस ग़ज़ल के नौ रत्नों में से कौनसा छोड़ा जाये और कौनसा टिप्पणी के लिये पकड़ा जाये। पूरी की पूरी ग़ज़ल तर-ब-तर है खुश्बुओं से।
ReplyDeleteखुश्बुओं से तरबतर हैं शेर सारे आपके
रंगे महफि़ल पूछिये मत आप इस मेहमान से।
AAPKEE LEKHNI KAA KAMAAL HAI KI
ReplyDeleteHAR SHER GULAAB KEE SEE KHUSHBOO
LUTAA RAHAA HAI .
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
ReplyDeleteसांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
किस किस की तारीफ़ करें तारीफ
हर शेर की तारीफ़ निकलती है जुबान से ।
बेहतरीन ग़ज़ल नीरज जी ।
ReplyDeleteमारना ही है बड़े भाई, तो ख़ंजर भोंक दो,
ऐसी ग़ज़लें मत सुनाओ आप इतनी शान से!
मैं अभी डूबा हुआ हूँ आपके अशआर में
टिप्पणी मैं फिर कभी दूँगा बड़े आराम से!
बेहद प्रभावशाली.
ReplyDeleteneeraj ji
ReplyDeletemanviya bhavnao ka sajeev chitran hai apki ye gajal..ak ke bad ak sher jindagi ke alag alag pahlu ki sachchayi ujagar karne ke sath hi sachet bhi karta hai.............
khar ke badle main yaro khar dena sikh lo, gul diya karte jo vo log hai nadan se...khub
It has been always pleasure to read your Ghazals and Shayri, one awesome creation!
ReplyDeleteRegards
Fani Raj
वाह नीरज साहब !
ReplyDeleteएक और खूबसूरत ग़ज़ल ...
बहुत ही खूबसूरत अश`आर से सजी-सँवरी
हर क़ाफ़िया बड़े सलीक़े से निभाया गया है
आपकी गज़लें पढ़ कर
लुत्फ़ तो हासिल होता ही है
कुछ सीखने को भी मिल जाता है जनाब !!
वाह! किस शेर पर दाद दें और किस पर नहीं............तमाम शेर दिल को छू गए.
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल!
बहुत खूब ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना जी
ReplyDeleteनीरज जी ,
ReplyDeleteबहुत सहज शब्दों के साथ गहन बातें कहना आपकी गज़लगोई की खासियत ही ... हर शेर बहुत कुछ कहता हुआ.. जीवन के हर पहलू को छुआ आपने .. एक सशक्त गज़ल देने के लिए बहुत बधाई
सारे के सारे सूत्र उपयोगी।
ReplyDeleteखेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
ReplyDeleteजब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
पढने के बाद मुंह से यही निकला कि भैया आप कमाल कर देते हैं. बार-बार लगातार. हमेशा की तरह शब्द कम पद जाते हैं.
अद्भुत!
"आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
ReplyDeleteगर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से"
एक एक शेर जबरदस्त है, ये वाला तो जी कलेजा निकालकर ले गया।
नीरज भा जी, ओही गल्ल है, ".... जवाब नहीं"
बहुत पसंद आए।
उम्दा शेरो से सजी सुंदर गजल ,आभार
ReplyDeleteएक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
आसान अल्फ़ाज़ में बड़ी बातें कह जाना और पैग़ाम दे देना आप की शायरी की ख़ुसूसियत है ,
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
वाक़ई हमारे मूल्य कहां खोते जा रहे हैं??
खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
बिल्कुल सच है !
बहुत सहज और ख़ूबसूरत शायरी
आदरणीय नीरज जी... आपके ग़ज़ल का हर शेर जीवन के एक आयाम को छु रहा है.. कविता जिस बात को कहने में पूरा समय लेती है.. आपके एक शेर ही उसे मुक्कमल रूप में कहता है... वैसे तो सारे शेर बढ़िया है.. मुझे यह शेर सबसे पसंद आया...
ReplyDelete"एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से"... आज के बदलते मूल्य पर सच्ची टिप्पणी है...
हर शेर प्यारा.
ReplyDeleteखेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
मक्ता तो बहुत ही प्यारा है
.
ReplyDeleteचाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से.
@ इंसान की ही खाल में कोई वहशी हो अगर
प्यार करने का नतीजा पाओगे प्री-प्लान से.
.
.
ReplyDeleteखार के बदले में यारो खार देना सीख लो
गुल दिया करते जो, वो लोग हैं नादान से
@ इक (हर) तरफ इंसान से तुम प्यार की बातें करो
फिर खार बदले खार बाहर आ रहा क्यों म्यान से.
@ कृपया ऐसे करें ... गुल दिया करते हैं जो, वो लोग हैं नादान से. [बेशक 'है' दो बार आ रहा है...लेकिन मुखसुख इसी में है.]
.
प्रतुल जी
ReplyDeleteआप बिलकुल सही हैं...दरअसल इस मिसरे में हैं टाइप होना छूट गया था...गज़ल में ठीक वो ही मिसरा था जैसा आपने बताया है...गलती की और ध्यान दिलाने का तहे दिल से शुक्रिया...
नीरज
E-mail received from Ratan- newzealand
ReplyDeleteWahhh Ustaad wahh!!
Bahut khub.. maja aa gaya Neeraj uncle..
Kaise ho aap lo .. How is Aunty Ji..
Wish you a very very happy new year.
We missed you all so much when I went to Jaipur this time.
Had great time with everyone and especially Ammi ji..
With love.
Ratan & Deepika
E-mail received from Dr.Bhupendra Singh:-
ReplyDeleteहमेशा की तरह आपके मानकों पर खरी उतरती ,अनुभवों से भारी एक मुकम्मल ग़ज़ल /नीरज भाई ,कुछ तो बहुत है खास तुम्हारी कलम में दम,
सौ बार सोचते है कि क्यों न नीरज हुए हैं हम ?
आभार ,
Dr.Bhoopendra Singh
T.R.S.College,REWA 486001
Madhya Pradesh INDIA
.
ReplyDeleteजब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से.
@ मोह के कारण विकसता है नहीं बच्चा कोई
गुड्डे-गुड़िया छोड़ना पड़ता उसे संज्ञान से.
.
अति सुन्दर , लाजबाब रचना !
ReplyDeleteवाह! क्या बात है! बेहतरीन रचना, शब्दों का बहुत सुन्दर प्रयोग !
ReplyDeleteआजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
ReplyDeleteसांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
बिलकुल सही बात है शायद पैसे की दौड से परेशान हैं
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
बदलते समय मे सिकुडते रिश्ते। बाद मेरिश्तों की एहमियत का पता चलता है जब जीवन की आपा धापी से फ्री होते हैं।
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
आज जिस तरह बडों के प्रति सम्मान की भावना तिरोहित हो रही है उस पर सुन्दर शेर। कमाल की लगी गज़ल। बधाई आपको।
badh ke koi panv chhoota hai buzurgon ke agar
ReplyDeletelog rah jate hain usko dekhkar hairan se
umda sher.
behtareen gazal.
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
गहरी बातें कहती एक सरल ग़ज़ल..
बहुत ही प्यारी और प्रभावशाली गजल है ।
ReplyDeleteप्रत्येक शेर लाजबाव ।
बहुत बहुत आभार नीरज जी ।
"गजल................है जान से प्यारा ये दर्दे मुहब्बत"
खूबसूरती से सच्ची बात लिखी है -
ReplyDeleteशुभकामनायें
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं.. सारी की सारी..
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ के..
आभार
चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
ReplyDeleteप्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
bahut khoob.......
चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से,
ReplyDeleteप्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से।
इस बेहतरीन मतले से शुरू की गई ग़ज़ल का हर एक शे‘र शानदार है।
पूरी ग़ज़ल बार-बार पढ़ने और याद रखने लायक है।
जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
ReplyDeleteऔर उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से
bemisaal.isse zyada kuch nahin soojh raha.
E-mail received from Navniit- Ahmedabaad:--
ReplyDeleteवाह वाह ! मजे आ गए ! सच है एकदम
Navneet Goswamy
सुर्खियों में है शहर के आतिशबाज़
ReplyDeleteजानते है खेलना भी बाहर मैदान के
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
waah...waah..Neeraj bhai...sambhavtah aaj pahli baar aapko padhne ka saubhagya le paya hun..bahut bahut khoobsurat gazal..khas taur par ye sher...
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
wah..daad kabool karen..!!
जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
ReplyDeleteऔर उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से ...
नीरज जी ... हर शेर कमाल है ... पहला, फिर दूसरा और फिर तो कमाल ही होता गया ...वह वाह अपने आप ही निकल जाता है मुँह से ... जमाने बात कह रहा है हर शेर ...
ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
ReplyDeleteजो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से
.......
बहुत ही खूबसूरत गजल है. हमेशा आपसे कुछ सीखने को मिलता है . आभार
चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
ReplyDeleteप्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
वाह ....मतला तो सौ पर भारी है ....
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
क्या कहूँ ....?
आप तो प्रश्न पूछ और भी मौन कर देते हैं ...
ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से
आसन सवालों में ही अक्सर ज़िन्दगी उलझ जाती है ....
क्या कहें? हैं मौन से खड़े हम यहाँ ,बस
नमन है लेखनी को आपकी हमारा मान से
ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
ReplyDeleteजो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से
bahut bahut bahut khoobsoorat..........
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
ReplyDeleteतौलते रिश्तों को हैं जो फायदे नुकसान से
सच कहा है
हमेशा की तरह उन्दा गज़ल
koi sani nahi aapka gajal lekhan me.
ReplyDeleteReceived from Sh.Sushiil Baklivaal Ji:-
ReplyDeleteआप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
गर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से
शब्द-शब्द अनमोल
सुशील बाकलीवाल
आदरणीय नीरज जी
ReplyDeleteनमस्कार !
हर शेर कमाल है
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
बहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ........माफी चाहता हूँ..
gazab.....gazab.....gazab....gazab niraj ji....sach.....
ReplyDeleteखेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
ReplyDeleteजब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
sahi baat hai! bahot khoob!
बेहद प्रभावशाली गज़ल है। आभार|
ReplyDeleteमक्ते पे करोड़ों दाद नीरज जी....लाजवाब हो गया मैं पढ़कर!
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक बेहतरीन गज़ल. आप हर गज़ल में कमाल करते हैं. कैसे करते हैं?
ReplyDeleteमतला और मकता लाजवाब हैं. साथ में ये शेर भी पसंद आये:
"खार के बदले..",
"जब तलक उनको..",
"आजकल हैं लोग ऐसे..",
"एक दिन तनहा..",
"आप बेहतर है कि..",
"बढ़ के कोई पांव..",
"दूंढते ही हल.."
"कोई होता जिसको हम अपना कह लेते यारों..."
ReplyDeleteआपसे मिलकर कुछ ऐसा ही फीलगुड हो रहा है.साहित्य की सेवा ऐसे ही करते रहें,हमारा क्या है,हम न सही और सही !
आदरणीय भाई साहब
ReplyDeleteप्रणाम !
एक और ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई !
चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
क्या बात कही है … सुब्हानल्लाह !
खार के बदले में यारों खार देना सीख लो
गुल दिया करते हैं जो, वो लोग हैं नादान से
बस, यही सीखने की ज़रूरत है मुझ जैसे अनाड़ियों को …
सब कुछ सीखा हमने , न सीखी …
जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से
दुनिया ओ दुनिया ! तेरा जवाब नहीं …
बहुत अच्छे तरीके से कहा है … वाह वाऽऽह !
खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
सही कहा , पर उपदेश कुशल बहुतेरे …
पूरी ग़ज़ल रवां-दवां है … जैसे कि हमेशा होती है हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
kamaal hai sahab. bohot khoob. banaaye rakhiye.
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