एक निहायत सीधी सादी मासूम सी ग़ज़ल जिसके हुस्न को संवारा है गुरुदेव पंकज सुबीर जी ने
आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्मनी हुई तब से
आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
जो न समझे नज़र की भाषा को
क्या कहा जाये फिर उसे लब से
शाम होते ही जाम ढलने लगे
होश में भी मिला करो शब से
हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?
शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से
तुम अकेले तो हो नहीं 'नीरज'
ज़िन्दगी किसकी कट सकी ढब से ?
पहले लगता था वो भी औरों सा
ReplyDeleteदिल मिला तो लगा जुदा सब से
जो न समझे नज़र की भाषा को
क्या कहा जाये फिर उसे लब से ...
आँखों की जुबां वो समझ नहीं पाते ...
लब खामोश है कुछ कह नहीं पाते ...!
बहुत खूबसूरत गज़ल....
ReplyDeleteIs sadagi bhari khoobsoortee ne phir ekbaar nishabd kar diya!
ReplyDeleteपारम्परिक ग़ज़ल के तक़ाज़ों को पूरा करती हुई ग़ज़ल
ReplyDeleteआदरणीय भाई साहब नीरज जी
ReplyDeleteसबसे पहले तो कबरी आंखों वाली ख़ूबसूरत हसीना की फोटो के लिए शुक्रिया कहूं , बधाई दूं … समझ नहीं आता !
हा हा हा …
आपकी बड़प्पन की प्रवृति पर बहुत प्यार आता है ।
एक से एक प्यारे शे'र लिखे हैं आपने
हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?
पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
वल्लाह ! क्या शे'र निकाले हैं !
देखिए , कुछ कु्छ होने लग जाएगा , तो फिर मत कहिएगा ।
आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्मनी हुई तब से
शुरू से ले'कर आख़िर तक ग़ज़ल दिलो - दिमाग पर छा गई है …
वाह !
वाह !!
वाह !!!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
आपकी ग़ज़ल ... हमेशा मन मोह लेती है.... बहुत अच्छा लगता है आपको पढना.... हर शे' र मन को भाते हैं...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और नायाब ग़ज़ल...
वाह सुन्दर ग़ज़ल , डुबकियाँ लगा के आना पड़ता है , तब कहीं ऐसे अशआर निकलते हैं लब से ...
ReplyDeleteनीरज जी इसमें कोई शक नहीं कि सचमुच सीधी और सादी ग़ज़ल है। पर प्रभावशाली भी। क्या ही अच्छा होता कि आप अपनी मूल रचना भी साथ में देते ताकि समझ आता कि पंकज जी ने कहां उसे तराशा है। कभी एक ऐसा प्रयोग करके भी देखें। हम सीखने वालों को मदद मिलेगी।
ReplyDeleteहो गया इश्क आप से जानम
ReplyDeleteजब कहा, पूछने लगे कब से ?
उफ ! क्या कहूँ ये हुआ कब से ?
वाह नीरज जी...वाह
ReplyDeleteसच कितनी ’सादा और मासूम’ ग़ज़ल कही है..
सुबहान अल्लाह
आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
.......कितना मासूम सा सवाल है...
पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
..............क्या सादगी है जनाब.....
जो न समझे नज़र की भाषा को
क्या कहा जाये फिर उसे लब से
.......बिल्कुल सही कहा...
शाम होते ही जाम ढलने लगे
होश में भी मिला करो शब से
........हासिले-ग़ज़ल शेर
हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?
...ये हुई मासूमियत की हद.
नीरज जी...
भा गई आपकी ये सादगी.
ReplyDeleteनीरज जी, बहुत दिनों के बाद एक अच्छी गजल पढ रहा हूँ। बधाई स्वीकारें।
…………..
स्टोनहेंज के रहस्यमय पत्थर।
क्या यह एक मुश्किल पहेली है?
बहुत खुब सुरत गजल जी धन्यवाद
ReplyDeleteमंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
E-mail received from Kanchan Chauhan:-
ReplyDeleteपहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
ये शेर लग रहा जुदा सबसे
पढ़े जाती हूँ मैं इसे कब से
:)
सादर
कंचन
हो गया इश्क आप से जानम
ReplyDeleteजब कहा, पूछने लगे कब से ?
क्या बात है!ये तो बेरुखी की इन्तहा हो गयी!
बहुत खूब कही है गज़ल आप ने..
किशोर दा को सौरभ श्रीवास्तव की स्वरांजलि
हो गया इश्क आप से जानम
ReplyDeleteजब कहा, पूछने लगे कब से ?
वाह कितनी सादगी से कत्ल किया है।
जो न समझे नज़र की भाषा को
क्या कहा जाये फिर उसे लब से
सही तो कहा है नज़रें तो बिन कहे भी बतिया लेती हैं और कहना पड जाये तो ये तो मोहब्बत की तौहीन हुयी।
आपका तो हमेशा ही अन्दाज़ ज़ुदा होता है और गज़ल मे तो महारत हासिल है ।
नीरज भी अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ने को मिली....
ReplyDeleteआप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्मनी हुई तब से
अच्छा ख्याल है....छोटे बहार में कमाल किया है आपने !
पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
और ये है वाकई शेर (बब्बर शेर....)
जो न समझे नज़र की भाषा को
क्या कहा जाये फिर उसे लब से
आहा ....क्या खूब कहा..!
शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से
ये है हासिले ग़ज़ल शेर.....वाह वाह !
SUNDAR GAZAL
ReplyDeletehttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
जो न समझे नज़र की भाषा को
ReplyDeleteक्या कहा जाये फिर उसे लब से
पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
वाह!! वाह!! क्या बात है..छा गये. बेहतरीन शेर लगे!!
आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
ReplyDeleteऔर क्या चाहिए बता रब से
..सबकुछ तो दे दिया रब ने..!..वाह! क्या बात है. शेष तो हमें खुद ही जुटाना पड़ेगा.
बहुत सादा पर बहुत ही ख़ूबसूरत...खासकर ये दोनों, कमाल!
ReplyDeleteआग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से
जो न समझे नज़र की भाषा को
ReplyDeleteक्या कहा जाये फिर उसे लब से
लब तो दिख नहीं रहे , किन्तु आँखें तो रानी मुखर्जी की लगती हैं ।
जितनी खूसूरत आँखें , उतनी खूबसूरत रचना ।
बहुत खूब ।
बस
ReplyDeleteगजब से।
बहुत ही बढ़िया गजल है!
ReplyDelete--
इसके अल्फ़ाज़ बहुत ही खूबसूरत हैं!
ईद की रात किसी ने ग़ालिब साहब से पूछा कि मियॉं रोज़े रखे, उन्होंने कहा 'एक नहीं'। लोगों ने सोचा कि चलो बाकी तो रखे, एक नहीं भी रखा तो क्या हुआ। कफछ ऐसा ही आपकी ग़ज़ल पर है कि कोई पूछे कि इस ग़ज़ल में कितने शेर कमज़ोर हैं तो मैं कहूँगा कि 'एक नहीं'। अब समझने वाले समझा करें अपनी तो टिप्पणी हो गयी।
ReplyDeleteशुभ मुहूरत की राह मत देखो
ReplyDeleteमन में ठानी है तो करो अब से
बहुत ही सुंदरतम.
रामराम
आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
ReplyDeleteऔर क्या चाहिए बता रब से
कुछ नहीं चाहिए रब से गुरुदेव... हमरा त रब से एक्के बातचीत होता है
जानकर ये ख़ुदा से कुछ न कहा
वो मिरा हाल जानता होगा.
बाकि त आपका गज़ल के बरे में हम पहिलहिं कह दिए हैं ई गजल खाली सब्द बइठाने से नहीं आता है..जीने से आता है... अऊर हर सेर हमरा बात का सचाई का गवाह है!
आप आंखों में बस गए जब से
ReplyDeleteनींद से दुश्मनी हुई तब से
हमारे तो मन में बस गया है ये शेर अबसे |
बहुत बहुत अच्छी रचना |
पहले लगता था वो भी औरों सा
ReplyDeleteदिल मिला तो लगा जुदा सब से
क्या खूब बनाया.. आपको और गुरुदेव दोनों को नमन.. और इन मैडम ने क्या सनसिल्क शैम्पू किया है क्या बालों में? :P
नीरज जी , बहुत बढ़िया गजल प्रस्तुत की है आपने
ReplyDeleteगजल के साथ साथ इस बार फोटू भी चकाचक है :)
ReplyDeleteसजीव चित्र और अल्फाज की जुगलबंदी मन मोह गयी
ReplyDeleteओह ! निहायत ही सीधी सादी और मासूम सी ग़ज़ल !!
ReplyDeleteकि बेहद मुश्किल और कातिल ग़ज़ल ?
जो न समझे नज़र की भाषा को
ReplyDeleteक्या कहा जाये फिर उसे लब से
एक सुंदर एहसास भरी ग़ज़ल..प्रेम में तो आँखो की भाषा चलती है..जो वो समझ ना पाए उसे क्या समझाएँ..नीरज जी धन्यवाद बढ़िया ग़ज़ल पढ़वायी आपने...आभार
बहुत ही सुंदर और बेहतरीन ग़ज़ल हैं भाईसाहब...!!
ReplyDeleteशुभ मुहूरत की राह मत देखो
ReplyDeleteमन में ठानी है तो करो अब से
तुम अकेले तो हो नहीं 'नीरज'
ज़िन्दगी किसकी कट सकी ढब से
बहुत खूबसूरत गज़ल
नीरज साहिब
ReplyDeleteआपकी छोटे बहर में ग़ज़ल देखी बहुत अच्छी लगी
मासूम ने मायूस नहीं किया
खास कर यह शेर आप की जात पर ख़ूब उतरता है
पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
वाह नीरज जी। नजर की भाषा को क्या खूब लिखा है।
ReplyDeleteआप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्मनी हुई तब से
अतिसुन्दर।
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteअभी दो चार बार पढ़ लूँ - जी नहीं भर रहा…
पहले लगता था वो भी औरों सा
ReplyDeleteदिल मिला तो लगा जुदा सब से....बहुत खूबसूरत गज़ल
नीरज भाई अच्छा लिखा है पर वो मज़ा नहीं आया जो अक्सर आपकी ग़ज़लों को पढ़ने में आता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गज़ल कही है आपने.
ReplyDeleteबाऊ जी,
ReplyDeleteये बिल्लोरी आँखों वाली मैडम का पता बता दीजिये.....
चलिए, नहीं तो इन्हें मेरा पता बता दीजिये.....
ग़ज़ल उम्दा, कल के ब्लोगर्स लाजवाब, और मधुबाला............ ह्म्म्मम्म्म्म!!!!
सादर
आशीष :)
बहुत सुन्दर गज़ल्। दिल को छू गई।
ReplyDeleteशुक्रिया इस गज़ल को पेश करने के लिए.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल..दिल को छू गई।
ReplyDeleteकभी 'डाकिया डाक लाया' पर भी आयें...
हो गया इश्क आप से जानम
ReplyDeleteजब कहा, पूछने लगे कब से ?
जालिम सवाल है.....ओर कैफियत भी...
नीरज जी,
ReplyDeleteआपकी गज़ल पढ़ कर मन खुश हो जाता है.
"शाम होते ही जाम ढलने लगे
होश में भी मिला करो शब से"
वाह.
हमेशा ही की तरह
ReplyDeleteखूबसूरत , मुरस्सा , और असरदार ग़ज़ल ....
आपके फन को उजागर करती हुई
कामयाब रचना .... वाह !
आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्मनी हुई तब से
मतले के शेर से आगे बढ़ पाऊँ तो कुछ कहूं
और
आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
जीवन-दर्शन से जुदा उम्दा बयान ....
इसके बाद
शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से
एक पैगाम ,,
एक आह्वान की तरह गरजता हुआ शेर
आपकी ग़ज़लों का दीवाना हूँ जनाब !!
मुबारकबाद
टंकण में त्रुटि हुई,,,, सो,,,,
ReplyDeleteऊपर टिप्पणी में .....
जीवन-दर्शन से (जुदा) उम्दा बयान की जगह
जीवन-दर्शन से (जुड़ा) उम्दा बयान पढ़ें ....
गा चुकी मै ------रहा ही नहीं गया-----
ReplyDeleteअर्चना जी ने बड़ी ख़ूबसूरती से इस ग़ज़ल को गाया है आप भी इस लिंक पर जा कर उन्हें सुन सकते हैं...आपकी जानकारी के लिए बता दूं के अर्चना जी शौकिया गायिका हैं ....
ReplyDeletehttp://sanskaardhani.blogspot.com/2010/08/blog-post_5444.html
Her शेर दिल-फरेब है नीरज जी! किस एक की तारीफ करूँ. बस एक लफ्ज़ है कहने को..'लाजवाब'wah aur sirf wah!
ReplyDeleteशाम होते ही जाम ढलने लगे
ReplyDeleteहोश में भी मिला करो शब से
शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से
तुम अकेले तो हो नहीं 'नीरज'
ज़िन्दगी किसकी कट सकी ढब से ?
अद्भुत!
हर एक शेर कुछ न कुछ सिखा देता है.
किस शेर की तारीफ़ की जाये नीरज जी, आप हमेशा ही खूबसूरत लिखते हैं और जब उसपर नज़र सुबीर भाई की पड़ जाये तो क्या कहने! और हाँ केक खाने से अधिक कविता सुन के वाह वाह कहने का शुक्रिया।
ReplyDeleteसुनीता शानू
बहुत सुंदर गज़ल!
ReplyDeleteशुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से
बहुत सुन्दर गज़ल है।
ReplyDeleteहो गया इश्क आप से जानम
ReplyDeleteजब कहा, पूछने लगे कब से...gazab...
'शुभ मुहूरत की राह मत देखो
ReplyDeleteमन में ठानी है तो करो अब से'
- हौसलापरस्त.
"जब कहा, पूछने लगे कब से"...वल्लाह! दुनिया भर की मासूमियत महज दो मिस्रों में???
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