तुम नहीं साथ तो फिर याद भी आते क्यूँ हो
इस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यूँ हो
डर जमाने का नहीं दिल में तुम्हारे तो फिर
रेत पर लिखके मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो
दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आयेगा
अपनी पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यूँ हो
हमपे उपकार बहुत से हैं तुम्हारे,माना
उँगलियों पर उसे हर बार गिनाते क्यूँ हो
जाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्हें
यूं ही अश्कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो
ज़िन्दगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग ये इश्क की सरकार लगाते क्यूँ हो
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
अपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
प्यार मरता नहीं "नीरज" है पता तुमको भी
फिर भी मीरा को सदा ज़हर पिलाते क्यूँ हो
( गुरुदेव पंकज सुबीर जी की भट्टी में तप कर कुंदन बनी ग़ज़ल )
(गुरुदेव प्राण साहब ने भी अपने आशीर्वाद से इसे संवारा है)
दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आयेगा
ReplyDeleteअपनी पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यूँ हो
वाह वाह नीरज जी
कमाल का शेर है
पलकें बिछाते क्यूँ हो
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
अपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
पंकज जी की शागिर्दी रंग ला रही है
आपकी ग़ज़लें तो हमेशा से ही मुझे बहुत पसंद रही हैं
डर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
ReplyDeleteरेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो
कमाल का शेर है नीरज जी ........ गुरुदेव ने आपको पूरा उस्ताद बना दिया है ..... आपकी ग़ज़लों में भी बहुत कुछ होता है हम जैसों के लिए ........
जाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्हें
यूं ही अश्कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो
सच कहा है आँसुओं को संभाल कर रखना चाहिए ...... बेवजह बर्बाद नही करना चाहिए ......
आपकी पूरी ग़ज़ल हक़ीकत के शेरों से लदी हुई है .........
नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत शेरों से सजी हुई गजल है..
किसी एक को भी छोडना नाइन्साफ़ी होगी इसलिये किसी एक पर खास जोर नहीं दे रहा हूं
लिखते रहिये.
मुझे तो यह पंक्तियाँ रुचीं ---
ReplyDelete'' प्यार मरता नहीं 'नीरज' है पता सदियों से
फिर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यूँ हो''
........ आभार ,,,
आपके हम पे हैं उपकार बहुत ये माना
ReplyDeleteबारहा उनको मगर आप गिनाते क्यूँ हो
ज़िन्दगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग ये इश्क की सरकार लगाते क्यूँ हो
नीरज जी
शब्द तो बड़े सीधे सादे रहे मगर असर देर तक रहा.......यही हुनर आपका मुझे कायल करता है आपका //////////
बहुत खूबसूरत लिखा आपने .दिल को छू गया ।
ReplyDeleteदिल में चाहत है तो काँटों पे चला आयेगा
ReplyDeleteअपनी पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यूँ हो
प्यार मरता नहीं 'नीरज' है पता सदियों से
फिर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यूँ हो
hamesha ki tarah har sher lajawaab.......aur in dono sheron mein to gazab ke bhav hain..........bahut hi umda.
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
ReplyDeleteअपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
अपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
वाह धमकी का नया अंदाज
मुबारकां
डर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
ReplyDeleteरेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो
.........waah
बहुत बढ़िया प्रस्तुती एक एक शब्द एक एक शेर मुखर हो उठा है आपकी कलम का साथ पा कर
ReplyDeleteसर्वश्रेष्ठ पंक्तियाँ :
ReplyDelete"डर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
रेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो"
ज़बर्दस्त रचना..
आभार
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteमतला बहुत खूबसूरत बना है, जितनी तारीफ करू कम होगी.....
"दिल में चाहत है.......' वाला शेर बेहद पसंद आया
सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं ...बेहद खुबसूरत अंदाजमें आपने लिखा है ..शुक्रिया
ReplyDeleteबेहतरीन गजल
ReplyDeleteडर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
रेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो
आपके हम पे हैं उपकार बहुत ये माना
बारहा उनको मगर आप गिनाते क्यूँ हो
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
अपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
प्यार मरता नहीं 'नीरज' है पता सदियों से
फिर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यूँ हो
पूरी गजल अपनी परिपूर्ण परिपक्वता से प्रभावित करती है.इन चार शेरों ने बहुत प्रभावित किया है आपकी गजल की उस्तादी को सलाम.
वाह नीरज भाई , एक से बढ़कर एक शेर लिखे हैं।
ReplyDeleteग़ज़ल और शायरी में आपका ज़वाब नहीं।
चित्र और ग़ज़ल दोनों ही बहुत अच्छे लगे... ...
ReplyDeleteaabhar
जाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्हें
ReplyDeleteयूं ही अश्कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो..
कमाल की लाइनें हैं,धन्यवाद.
नीरज जी नमस्कार,
ReplyDeleteनयी बोतल में पुरानी शराब परोसना कोई आप से सीखे , हर शे'र तारो
ताज़ा हैं,.. खास कर इस शे'र ने चौंका दिया मगर फिर सोचा ये आप भी कर सकते हैं..
ज़िन्दगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग ये इश्क की सरकार लगाते क्यूँ हो
बहुत बहुत बधाई खुबसूरत ग़ज़ल के लिए ...
अर्श
शुक्र है इस बार कमेंट्स की इतनी लंबी रेल में धकम्मपेल नहीं करनी पड़ी वरना आपके यहाँ तो इंतजार में ही जो कुछ मन में आया होता है निकल भागता है .. बहुत प्यारे शेर पढ़ने को मिले ..शायरी में जीवन के गहरे अनुभवों का अंतर्गुम्फन और अभिव्यक्ति में सरलता उसमें जादू भर देती है .. आपके शेर बार बार पढ़े जाने के लायक होते हैं कुछ एक तो याद रखने के लायक ..
ReplyDeletecomment ke roop mein jo aapka aashirwad mila ......tahe dil se shukriya....आपके हम पे हैं उपकार बहुत ये माना
ReplyDeleteबारहा उनको मगर आप गिनाते क्यूँ हो
bahut khoob
"डर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
ReplyDeleteरेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो"
बहुत ही काबिले तारीफ रचना!
नीरज जी, आदाब.
ReplyDeleteदिल में चाहत है तो काँटों पे चला आयेगा
अपनी पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यूँ हो
नये अंदाज में कहा गया शेर..
आपके हम पे हैं उपकार बहुत ये माना
बारहा उनको मगर आप गिनाते क्यूँ हो
वाह, क्या बात है,
अपना एक शेर याद आ गया-
तूफान से तो बच गया लेकिन ये खौफ है
अहसां जता के मार न दे नाखुदा मुझे
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
जब मिल बैठेंगे दो महारथी तो कुछ ऐसा ही होगा
ReplyDeleteजाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्हें
ReplyDeleteयूं ही अश्कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो
आज दिन भर पानी का इंतजार करने के बाद यही शेर मन को भाया। अश्क बहाओ तो नीचे बाल्टी लगा लेना…॥:)
खैर वो तो मजाक की बात थी, सच में कुन्दन बन के निकली है गजल
बहुत सुंदर लगी आप की कविता
ReplyDeleteतुम नहीं साथ तो फिर याद भी आते क्यूँ हो
ReplyDeleteइस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यूँ हो (उत्तम)
डर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
रेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो(उत्तम+उत्तम)
दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आयेगा
अपनी पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यूँ हो (उत्तम+उत्तम)
आपके हम पे हैं उपकार बहुत ये माना
बारहा उनको मगर आप गिनाते क्यूँ हो (उत्तम)
जाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्हें
यूं ही अश्कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो (उत्तम+उत्तम)
वाह, वाह, वाह, वाह और वाह। अच्छी बॉंधने वाली ग़ज़ल।
अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
ReplyDeleteवाह भाई जी वाह खूबसूरत गजल है...
ReplyDeleteकिस शेर की तारीफ करुँ-किसे छोडूँ??
ReplyDeleteमुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
अपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
-छा गये...बहुत उम्दा!!
'दिल में चाहत है तो…'
ReplyDelete'आपके हम पे हैं उपकार…'
क्या बात है! शानदार।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल. हमेशा की तरह.
ReplyDeleteमुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
ReplyDeleteअपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
बहुत ही उम्दा , अति सुन्दर !
वाह सर जी वाह!
ReplyDeleteये तो बहुत खास है..
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
अपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
तुम नहीं साथ तो फिर याद भी आते क्यूँ हो
ReplyDeleteइस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यूँ हो
wahwa!!
वाह !! सारे के सारे शेर एक से बढ़कर एक हैं !!
ReplyDeleteNeeraj Bhai,
ReplyDeleteBahut khoob.
Apki rachna se prabhavit hua hoon.
paas aana nahin chaahte ho to yaad mujhe aate kyun ho.
Apni us khoobsoorat kami ka ahsaas mujhe dilate kyun ho.
नीरज जी गज़ल लिखने का क ख ग हमें भी सीखा दीजिए। बताए कब से आपकी क्लास में हाजिरी लगाऊँ। सच कमाल का लिखते है आप।
ReplyDeleteतुम नहीं साथ तो फिर याद भी आते क्यूँ हो
इस कमी का मुझे एहसास दिलाते क्यूँ हो
वाह।
जाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्हें
ReplyDeleteयूं ही अश्कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो
:)
ये मंडॆ के मंडॆ की ग़ज़ल हमारी जान लेकर ठहरेंगी...कभी हमने भी सोचा था कि हर मंडे ग़ज़ल लेकर उतरेंगे, लेकिन वो ख्वाब ही रह गया तो आजकल कुछ से कुछ उल-जलूल लगाते रहते हैं अपने ब्लौग पर मंडे के मंडे।
ReplyDeleteकिंतु आप हर हफ़्ते की शुरुआत चौंकाते रहते हैं अपनी ग़ज़लों की खुश्बू से। "जाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्हें/यूं ही अश्कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो" लाजवाब शेर...
डर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
ReplyDeleteरेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
अपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
वाह नीरज जी इन शेरों ने तो कमाल कर दिया। क्या कमाल की गज़ल लिखी है हो भी क्यों न जब जडों मे पंकज जी ने खाद डाली हो तो पेड भी शानदार होगा और फल भी जानदार होगा। लाजवाब है बधाई
आदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteआपकी गज़ल पर टिप्पणी करना संसार का सबसे कठिन कार्य है। पहले तो किस शेर की तारीफ़ करूं और दूसरे तारीफ़ के लिये शब्द कहां से लाऊं और तीसरे आपकी गज़ल पढ़ने के बाद होश ही कहां सलामत रहता है जो टिप्पणी करना भी याद रहे।
ज़िन्दगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
ReplyDeleteआग ये इश्क की सरकार लगाते क्यूँ हो !
नीरज जी ,
बहुत सुन्दर शेर हैं ....बेहतरीन शेरों की झड़ी ही कहा जाये इसे!!
जाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्हें
यूं ही अश्कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो
आज बहुत दिन बाद समय मिला तो इस ग़ज़ल ने समाँ बाँध दिया !
सच में!
कुंदन ही है ये ग़ज़ल !
कई दिन बाद ब्लोग पर आया और तड्कती फ़डकती गजल पढने को मिली कि दिल खुश हो गया और सब्से अच्छा वही होता है जिसे पढ कर दिल खुश हो
ReplyDeleteइसलिये आपकी पुरानी पोस्ट पढ कर और खुश होता हू:)
वैसे इस गजल की बहर निकालने मे दिमाग का मुरब्बा बन गया और पल्ले कुछ नही पडा गुरु जी की क्लास मे और मेह्नत कर्नी पडेगी :)
- वीनस
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteज़िन्दगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग ये इश्क की सरकार लगाते क्यूँ हो
ये आग न लगे तो जिन्दगी क्या जिन्दगी!
नीरज जी,
ReplyDeleteकई दिनों बाद चिठ्ठे पढने बैठा हूँ. बड़ा आनद आया आपकी ग़ज़ल पढ़कर विशेष रूप से ये शेर -
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दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आयेगा
अपनी पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यूँ हो
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आपके हम पे हैं उपकार बहुत ये माना
बारहा उनको मगर आप गिनाते क्यूँ हो
*****
प्यार मरता नहीं 'नीरज' है पता सदियों से
फिर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यूँ हो
vaah
डर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
ReplyDeleteरेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो
Sadaiv kee bhati is var bhee dhuadhar gazal .mazaa aa gaya . Bahut bahut BADHAI
सचमुच , कुन्दन जैसी ग़ज़ल , दिल के तारों को झंकारती हुई ये ग़ज़ल |
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर सी टिप्पणी दी है मेरे गीत पर , कोई जब हिन्दी का टूल खोल कर दो शब्द लिखने की जहमत उठाता है , तो टिप्पणी लिखने से पहले ही सार्थक हो उठती है |
अजीब शख्स था वो....जाते जाते भीड़ में तन्हाईया दे गया
ReplyDeleteबाप रे बाप!!! ऐसे ऐसे अशआर!! दहशत में आ गया हूँ भाई, आपके अशआर से एक तरफ खौफ महसूस हो रहा है तो दूसरी तरफ जलन. आज समझ आया उस उस मिसरे का अर्थ- "रेख्ती के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब". कमाल की गजल है, मुबारकबाद इस हुस्न के लिए.
ReplyDeleteआपने शागिर्दी का हक अदा कर दिया. ऐसे ही शागिर्द, उस्ताद का परचम बुलंद रखते हैं. एक सवाल पूछना चाहता हूँ-- १० की रात क्या खाया था?
कहना तो बहुत कुछ चाह रहा था लेकिन यकीन करें, अलफ़ाज़ नहीं मिल रहे हैं. आपको इल्म है, मैं किसी एक या एकाध को कोट नहीं करता, पूरी रचना पर तब्सिरा ज्यादा अच्छा लगता है. और यहाँ तो पूरी गजल खुद बोल रही है, मैं क्या बोलूँ!
Happy makar sankranti !
ReplyDeleteक्या कहा है नीरज भाई ...................
ReplyDeleteतो समेटिये अपनी शान में मेरी तरफ से ......
बुझ चुके कब के हम शोला हैं न चिंगारी हैं
फिर सुनी ऐसी ग़ज़ल .......आग लगाते क्यूं हो ??
संक्रांति की बधाईयाँ !!
... गुरु और शिष्य दोनों मिलकर भट्टी में तपा-तपा कर कुंदन बना रहे हैं,बेहतरीन गजल, बधाई !!!!
ReplyDeleteE-mail received from OM Prakash Sapra Ji:-
ReplyDeleteshri neeraj ji
namastey,
again a very good gazal from you, congrats,
especialy the following lines are very good and touching:-
जाने कब इनकी ज़ुरूरत कहीं पड़ जाए तुम्हें
यूं ही अश्कों को बिना बात बहाते क्यूँ हो
ज़िन्दगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग ये इश्क की सरकार लगाते क्यूँ हो
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
अपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
drop in some time in delhi, when ever you get some time,
Happy Lohri festival,
-om sapra, delhi-9
जनाबे नीरज साहिब
ReplyDeleteखुबसूरत सुलझी निखरी ख़ूबसूरत ग़ज़ल
देखी पढ़ी और महसूस हुआ के जैसे कोई खुबसूरत
तस्वीर दिल में उत्तर गई माशा अल्लाह ख़ूब लिखते हो
जिस तरीके से ग़ज़ल नें महफ़िल में अपनी चुनर लहराई है
मुझे ऐसा लगता है के बारिश की आमद आमद है
अपना एक शेर अपनी नज़र करता हूँ
रेत पे लिख के मेरा नाम अक्सर
बार बार इसको न मिटाया कर
दोस्त होते हैं चाँद नीरज से
दोस्तों को न आजमाया कर
आदाब
मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना !
डर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
ReplyDeleteरेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो
waah!
behad khubsurat gazal!
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
ReplyDeleteअपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
बहुत खूब..
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
ReplyDeleteअपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
क्या बात है नीरज सर.. बहुत बढ़िया गज़ल हुई है.. :)
दिल में चाहत है तो काँटों पे चला आयेगा
ReplyDeleteअपनी पलकों को गलीचे सा बिछाते क्यूँ हो
...उम्दा शेर.
Hamesha kee tarah nistabdh hun!
ReplyDeleteडर जमाने का नहीं आपके दिल में तो फिर
ReplyDeleteरेत पर लिख के मेरा नाम मिटाते क्यूँ हो
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
नीरज भाई , देर से पहुँची हूँ
पर क्या गज़ब के शेर लिखे हैं आपने
वाह वाह .........
बस !!!
यूं ही लिखा करीए
तिल गुड , चिक्की ,
लोनावाला से लाकर
खाईं या नहीं ? :)
स स्नेह,
- लावण्या
बस ठीक सी है, आपकी सबसे बेहतर रचना नहीं ये.
ReplyDeleteइस गज़ल के हर शेर बेहतरीन. मुबा़रक हो.
ReplyDeleteनीरज जी बहुत दिनों के बाद यहां आई और इतनी खूबसूरत गज़ल ।
ReplyDeleteज़िन्दगी फूस का इक ढेर है इसमें आकर
आग ये इश्क की सरकार लगाते क्यूँ हो
मुझको मालूम है तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो
अपने खंजर को भला मुझसे छिपाते क्यूँ हो
प्यार मरता नहीं 'नीरज' है पता सदियों से
फिर भी मीरा को ज़हर आप पिलाते क्यूँ हो
वाह वाह इतने खूबसूरत इलज़ाम और ये स्टाइल ।
Finally, chacha jaan.......i visited your blog and spent sometime.......its a pleasuere to read this stuff....and u r a true genius........
ReplyDeletemaloom hai be intehaah talent hai aap mein........yun blogs pe ginaate kyun ho ?
jokes apart.......amzing stuff out here...
बहुत बढ़िया प्रस्तुती एक एक शब्द एक एक शेर मुखर हो उठा है आपकी कलम का साथ पा कर
ReplyDeleteहर एक शेर पर दाद देने को जी चाहता है | बहुत बेहतरीन ग़ज़ल | बधाई
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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