सुधि पाठको प्रस्तुत है इस वर्ष की अंतिम ग़ज़ल "नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाओं सहित"
उलझनें उलझनें उलझनें उलझनें
कुछ वो चुनती हमें,कुछ को हम खुद चुनें
जो नचाती हमें थीं भुला सारे ग़म
याद करते ही तुझको बजी वो धुनें
पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
जिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
वक्त ने जो उधेड़े हसीं ख्वाब वो
आओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
सिर्फ पढने से होगा क्या हासिल भला
ज़िन्दगी में न जब तक पढ़े को गुनें
जो भी सच है कहो वो बिना खौफ के
तन रहीं है निगाहें तो बेशक तनें
अब रिआया समझदार 'नीरज' हुई
हुक्मरां बंद वादों के कर झुनझुनें
(गुरुदेव पंकज सुबीर जी द्वारा दुलारी गयी ग़ज़ल)
पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
ReplyDeleteजिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
.... bahut sundar !!!!
हमेशा की तरह एक और सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeletewah bhai g subah subah aapki shaandaar GAZAL pad kar man MOGAMBO ho gaya ........
ReplyDeletesaadhuwad.....
पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
ReplyDeleteजिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
.........
ना पूछिये हमसे हमारी ख़ुशी
जिसको पढ़ने को ऐसी ग़ज़लें मिले
वक्त ने जो उधेड़े हंसी ख्वाब वो
ReplyDeleteआओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
वर्ष का अंत बहुत ही धमाकेदार ग़ज़ल से किया है नीरज जी आपने ..........
नव वर्ष की बहुत बहुत मंगलकांनाएँ ...........
har sher bade pyare hai....badhai.
ReplyDeleteनीरज जी
ReplyDeleteगजल के भाव बेहद अच्छे लगे ..नववर्ष की शुभकामना के साथ ...आभार
जाते जाते वो मुझे सच्ची/अच्छी निशानी दे गया...
ReplyDeleteआनंद आ गया.
ReplyDeleteमतले का मिसरा उला ही अपने आप में ग़ज़ल की पूरी कहानी कह रहा है । और फिर मिसरा सानी भी उसका पूरक हो रहा है । पूरी ग़ज़ल पर भारी है मतला । अहा आनंद का मतला है ।
ReplyDeleteपूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
ReplyDeleteजिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
बहुत सुंदर रचना
नीरज जी नमस्कार,
ReplyDeleteअहा क्या मतला है मजा आगया मैं तो वहाँ से निचे उतर ही नहीं रहा क्या करूँ, सच में पूरी ग़ज़ल पर मतला भारी है, शब्द नहीं मिल रहे हैं उसके बारे में कुछ कहने केलिए और फिर निचे का हर शे'र अपने आप में मुकम्मल बातें कर रही हैं, शाख वाला शे'र तश्वीर के मेल खा रहा है पहले तो ब्लॉग पर यह तस्वीर देख कर ही चौक गया था मगर वो शे'र पढ़ दि्ली सुकून बेकरारी में बदल गयी , , बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल , नव वर्ष की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं..
अर्श
सुन्दर रचना है. कुछ शे'रो में आपने जिस प्रकार अपने अन्दर के दर्द को बयान किया है. वो लाजवाब है.
ReplyDeleteजो भी सच है कहो वो बिना खौफ के
ReplyDeleteतन रहीं है निगाहें तो बेशक तनें
बहुत खूबसूरत है साल का यह आखिरी तोहफा.
वक्त ने जो उधेड़े हंसी ख्वाब वो
ReplyDeleteआओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
सिर्फ पढने से होगा क्या हासिल भला
ज़िन्दगी में न जब तक पढ़े को गुनें
वाह बहुत खूब । बाकी सब तो सुबीर जी ने कह दिया। फोर आपकी गज़ल और सुबीर जी की तारीफ के बाद भी कुछ कहूँ तो इतनी हिम्मत नहीं है। लाजवाब नये साल की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें
पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
ReplyDeleteजिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
Ati Sundar !
पोस्ट इतनी अच्छी लगी कि
ReplyDeleteइसे चर्चा मंच मे लेना पड़ा!
आदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteडाल दिया न फ़िर आपने मुश्किल में! अब तारीफ़ के लिये शब्द कहां से ढूंढूं?? इतना जानलेवा मतला!!! और फ़िर कयामत ढाते शेर!!!सुभान अल्लाह! आपके ब्लाग पर हमेंशा कुछ सीखने को मिलता है।
बहुत खूब साहब.
ReplyDeleteहर शेर पढ़कर गुनता भी रहा
....और गुन रहा हूँ.
=========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
behatreen gazal..sachi baton aur sundar bhav se saji gazal..bahut badhiya laga..badhai neeraj ji
ReplyDeleteनीरज जी, आदाब
ReplyDeleteग़ज़ल का मतला वाकई तमाम शेरों पर भारी है
और ये शेर-
जो भी सच है कहो वो बिना खौफ के
तन रहीं है निगाहें तो बेशक तनें
जाने कितनों को प्रेरणा देने वाला है
जब खुलें लब तो अलफ़ाज़ सच हों सभी
जब बढ़ें यें क़दम राह हक़ की चुनें
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
वाह क्या बात है ! बेहतरीन !
ReplyDeleteउलझनें उलझनें उलझनें उलझनें
कुछ वो चुनती हमें,कुछ को हम खुद चुनें
पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
जिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
आप ने एक ऐसी ही बात इस ग़ज़ल के जरिए
ReplyDeleteआज सुना दी नीरज भाई
जिसे ये दुनिया भी अगर माने तब क्या बात है ,
सब बढ़िया हो जाए
नव - वर्ष की अनेक शुबकामनाएं
स्नेह,
- लावण्या
E-mail received from sh.Om Sapra Ji:-
ReplyDeleteShri neeraj ji
good gazal
this may be last gazal of the year, but it is new beginning of the year ahead, awaiting for thousands of aspiratons and dreams for us. these lines are more imprssive:-
पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
जिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
वक्त ने जो उधेड़े हंसी ख्वाब वो
आओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
सिर्फ पढने से होगा क्या हासिल भला
ज़िन्दगी में न जब तक पढ़े को गुनें
HAPPY NEW YEAR - SHRI NEERAJ AND FAMILY
with regards,
-om sapra, delhi-9
Saal ke jate jate itni saralta se aapne in seekhon ko samet diya apni ghazal mein.
ReplyDeleteHumesha ki tarah ek behtareen prayas. Naye saal mein bhi ghazlon aur kitabon se roobaru karane ka aapka silsila chalta rahe isi ummed ke sath.
वक्त ने जो उधेड़े हंसी ख्वाब वो
ReplyDeleteआओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
फिर जी में है कि दर पे किसी के पड़े रहें
सर ज़ेर बार-ए-मिन्नत-ए-दर्बाँ किये हुए
जी ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए
"ग़ालिब" हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ाँ किये हुए -Galib
इतनी अच्छी ग़ज़ल पेश करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
ReplyDeleteजिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
वक्त ने जो उधेड़े हंसी ख्वाब वो
आओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
behad khoobsoorat ahsason se labrej........shukriya .
navvarsh ki hardik shubhkamnayein.
'पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
ReplyDeleteजिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें '
बेहद उम्दा शेर!
''''रोशनी की अहमियत भी वही जाने जिसने देखे हों आँधियारे!'''
बेहतरीन ग़ज़ल!
नूतन वर्ष की आप को भी अग्रिम शुभकामनाएँ.
जनाबे नीरज साहिब
ReplyDeleteखुबसूरत ग़ज़ल खुश बियानी से भरपूर
हिन्दवी अंदाज़ में आपकी इस ग़ज़ल पे
आबूर का टीका लगा लगता है
मेरा सारा दीवान आपकी इस ग़ज़ल पर कुर्बान
क़िबला अल्फाज़ नहीं मिल रहें हैं क्या कहूँ
आपकी ग़ज़ल में नफासत है हकीकत है
अल्फाजों को ऐसे तराशा है आपने के ग़ज़ल ख़ुब से ख़ूबसूरत
बन पाई है आपकी कलम ने जो हुस्न ग़ज़ल को दिया है
संग तराश भी देखे तो शर्मिन्दा हो जाये
इस साल की आखिरी ग़ज़ल ने अपने नकूश छोड़ दिए हैं
आदाब
चाँद शुक्ला हदियाबादी
नीरज भाई ....
ReplyDeleteएक बार फिर
आपकी उम्दा ग़ज़ल से मुलाक़ात
एक बार फिर
मेरी ज़ियारत हो गयी ...
जनाब हदियाबादी जी के तब्सिरे से
इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ ....
इल्हाम की शाईरी इसी को कहते हैं
माना !
कि मतला ग़ज़ल की जान बन पडा है
लेकिन ये शेर.......
"पूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
जिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें "
जनाब ये शेर तो
जाने कितनी ही उलझनों की
पीड़ा को हर ले गया जान पड़ता है
आपकी ग़ज़लों को पढ़ना
एक तरह से इबादत ही तो है
सलाम कुबूल फरमाएं हुज़ूर !!
ले खुद के ही नाम, तुझको अल्लाह रक्खे
ReplyDeleteसोचते हैं कभी ख्वाब में आ मिलो
सामने तुमको बैठा के ग़ज़लें सुनें।
रातभर बैठकर, सोचते हम रहे
जिन्दगी फिर से कैसे उधेड़ें बुनें।
तिलक राज कपूर
साल के जाते-जाते क्या ग़ज़ल सुनायी है, नीरज जी। वाह! ये है एकदम नीरज जी की ठप्पा लगी हुई ग़ज़ल....
ReplyDeleteमक्ते ने तो लूट ही लिया, कसम से!
गुरुदेव दुलार चुके हैं..सब सराह चुके हैं...हम...हम निहार चुके हैं. :)
ReplyDeleteभाई, बहुत खूब कहते हो आप!! शानदार.
--
मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
सिर्फ पढने से होगा क्या हासिल भला
ReplyDeleteज़िन्दगी में न जब तक पढ़े को गुनें
bahut khoob aur durust likha hai aapne .
उलझनें उलझनें उलझनें उलझनें
ReplyDeleteकुछ वो चुनती हमें,कुछ को हम खुद चुनें
अहा अहा ! क्या कहना है !
आदरणीय नीरज जी,
आपने हमारी वेडिंग एनिवर्सरी २८ दिसम्बर पर एक बेइंतेहाँ ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही। हम आप पर अपने हक़ से इसे बतौर तोहफ़ा माँग रहे हैं। हमें इस ग़ज़ल को कभी कभार साहित्यिक महफ़िलों (प्रोफ़ेशनल नहीं) में गाने की इजाज़त ज़रूर दीजिएगा। हम अपने बड़े भाई की इस ग़ज़ल को पेश करने में फ़ख़्र महसूस करेंगें। गुरूदेव पंकज जी को हमारा प्रणाम। आपको नव वर्ष पर शुभकामनाएँ।
क्या बात है नीरज जी, उम्दा शेर, बढ़िया ग़ज़ल !
ReplyDeleteनए साल की हार्दिक शुभकामनाएं.
मीत
जो भी सच है कहो वो बिना खौफ के
ReplyDeleteतन रहीं है निगाहें तो बेशक तनें ।
क्या कमाल की गज़ल लिखते हैं आपके ब्लॉग पर आना हमेशा की तरह वसूल ।
वर्ष नव-हर्ष नव-उत्कर्ष नव
ReplyDelete-नव वर्ष, २०१० के लिए अभिमंत्रित शुभकामनाओं सहित ,
डॉ मनोज मिश्र
नीरज जी...
ReplyDeleteनया साल आपके लिए खुशियाँ ही खुशियाँ लाये....
लाजवाब मतले की तारीफ़ तो करूंगा ही...
उलझनें उलझनें उलझनें उलझनें...
हों नए साल पर ख़त्म ये उलझनें...
घर बैठे पुस्तक पढवाते नीरज जी .
ReplyDeleteदुनिया भर की सैर करते नीरज जी
फोटो हो या रंग -रंगोली ,
या हो पिकनिक का आनंद .
ब्लॉग पे इनके आ भर जाओ ,
सब दिखलाते नीरज जी .
आपके ब्लॉग पर आकर सचमुच बहुत ही अच्छा लगता है .इतने बढ़िया फोटोग्राफ्स दिखने के लिए आभार .
आपको और आपके परिवार जनों को नववर्ष मंगलमय हो .
अब रियाया समझदार ' नीरज ' हुयी ......................
ReplyDeleteक्या बात है नीरज भाई !
भाभी , मिष्ठी सहित सपरिवार स्वजनों को नव वर्ष का हार्दिक अभिनन्दन !
नववर्ष की आप सभी को हार्दिक शुभकामना - महेन्द्र मिश्र
ReplyDeletehappy new year pinnu bhaiya .itni behtareen gazal kahi hai ki har sher par daad dene ko je chahta hai lihaza pehle sher ke liye:-
ReplyDelete1) wah
2)umda
3)lajawab
4)benazeer
5)kya kehne
6)kya baat hai
7)muqarrar, muqarrar
साल के जाते जाते हमने आपकी पोस्ट एक और फोटो मार ली। कितना गलत काम किया। और आपने साल के जाते जाते कितना अच्छा काम किया कि इतनी बेहतरीन, लाजवाब गजल पढवाई है।
ReplyDeleteवक्त ने जो उधेड़े हसीं ख्वाब वो
आओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
वाह क्या बात है दिल चीर दिया जी।
साल के जाते जाते नीरज जी ग़ज़ल के साथ साथ ...एक लड़की की खुबसूरत तस्वीरें भी पहली बार देखी गीत भी सुना .... ..तस्वीरें देखते देखते सोच रही थी ये नीरज जी कितने जिंदादिल इंसान हैं .....!!
ReplyDeleteनया साल मुबारक हो। आपकी गजलें बड़ी चोर टाइप होती हैं। हमारा दिल चुरा के ले जाती हैं। कौन थाने में रपट लिखायें -बतायें।
ReplyDeletenav varsh
ReplyDeleteki
dheroN
shubh kaamnaaeiN
Naye saal ki dher sari shubhkamnaon ke saath sachayi saamne aayi hai
ReplyDelete"Yeh to aagaaz hai Nav Varsha
Ant kisne dekha ant ka"
नीरज जी नव वर्ष में आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें....
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना बहुत अच्छी लगी बधाई ,नव वर्ष आप के लिए मंगलमय हो .आप जीवन में खूब सफलता पायें .परिवार में सबको हमारी शुभकामनायें ।
ReplyDeleteपूछिये मत ख़ुशी आप उस पेड़ की
ReplyDeleteजिसकी शाखें परिंदों के गाने सुनें
waah Neeraj ji kamaal ka sher
जो भी सच है कहो वो बिना खौफ के
तन रहीं है निगाहें तो बेशक तनें
bahut hi khoobsurat gazal
aapko nav varsh ki hardik shubhkamana
नए वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं नीरज जी और साथ में इस बेहद खूबसूरत तोहफे के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteउलझनें उलझनें उलझनें उलझनें
कुछ वो चुनती हमें,कुछ को हम खुद चुनें
जीवन का सार तो आपने इस मतले में ही समझा दिया ! और बाकी शेर उसमें चार और चाँद लगाने जैसा हो गया है...:):)
वक्त ने जो उधेड़े हसीं ख्वाब वो
आओ मिल कर दुबारा से फिर हम बुनें
सिर्फ पढने से होगा क्या हासिल भला
ज़िन्दगी में न जब तक पढ़े को गुनें