गीत बचपन के वे सुहाने से
गुनगुनाओ किसी बहाने से
बातें सच्ची कभी -कभी यारो
झूठ लगती हैं फुसफुसाने से
हौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
बाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से
याद एहसान कौन रखता है
फायदा भूल जा गिनाने से
मायने ही न जो समझ पाए
बात बचिए उसे सुनाने से
इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
हर घडी यार को मनाने से
{"आदरणीय गुरु देव प्राण शर्मा जी का आर्शीवाद प्राप्त ग़ज़ल "}
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
ReplyDeleteरात-दिन घंटियाँ बजाने से
ye baat ekdam sahi hai,bachpan ko gungunana bhi bahut khub raha.sunder gazal.badhai
याद एहसान कौन रखता है
ReplyDeleteफायदा भूल जा गिनाने से
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के लिये आभार्
बहुत दिनों से मैं 'सोने पर सुहागा' इसको वाक्य में प्रयोग करना चाह रहा था किन्तु उचित स्थान नहीं मिल पा रहा था । आज मिल गया । नीरज जी की ग़ज़ल और उस पर आदरणीय प्राण शर्मा जी की इस्लाह मानो सोने पर सुहागा । पूरी ग़ज़ल जिस सादगी की भाषा में बात कर रही है वो अद्भुत है । रब कभी कुछ दिया नहीं करता और हौसले कातिलों के बढ़ते हैं ये तो बहुत ही सुंदर बन पड़े हैं । और मकता तो मानो स्वयं ही बोल रहा है । पूरी ग़ज़ल ही उस्तादाना रंग लिये हुए है । और हो भी क्यों न जब एक उस्ताद ने लिखी हो और दूजे ने जांची हो । मतला डाउन मेमोरी लेन की आहट लिये है । कल ही श्री रमेश हठीला जी कह रहे थे कि पंकज सावन के बादलों के घिरते ही बचपन के दिन क्यों याद आते हैं । आपका मतला भी कुछ वैसा ही है । झूठ को चिल्ला कर बोला जाये तो वो सच लगता है इस बात का उल्टा प्रयोग बहुत खूब किया गया है । ये शेर मुहावरा बन जाने वाला शेर है । हौसले कातिलों के बढ़ते हैं में अहिंसा के नये रूप को परिभाषित किया गया है । ये ही आज की अहिंसा होनी चाहिये कि हम तब तक ही अहिंसक रहें जब तक उसे कायरता नही समझा जाये । रब कभी कुछ नहीं दिया करता । ये शेर तो आप जानते ही होंगें कि मुझे क्यों पसंद आया होगा । मंदिरों से चिड़ के चलते मुझ जैसे हर शख्स को ये शेर पसंद आयेगा । उम्दा तरीके से बात कही है । याद एहसान कौन रखता है आज के दौर की कड़वी सचाई है नेकी कर दरिया में डाल । मायने वाला शेर पुरानी कहावत भैंस के आगे बीन बजाने का एक अलग प्रयोग है । पूरी की पूरी ग़ज़ल अनोखी है । प्राण जी जैसे उस्ताद की कलम की धार से तेज होकर निकली हुई ग़ज़ल ऐसी न होगी तो कैसी होगी । प्रणाम आपको भी और आदरणीय प्राण साहब को भी ।
ReplyDeletesampoorn ghazal sarahneey hai.har sher apneaapmein khas hai.tareef jitni ki jaye kam hai.bahut hi sundar!badhai!
ReplyDelete"रब कभी कुछ नहीं दिया करता
ReplyDeleteरात - दिन घंटियाँ बजाने से
यदि यह व्यंग नहीं तो प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि घंटियाँ किन भावनाओं से बजायी जा रही है. जिन्हें धन दौलत चाहिए उनके लिए ये भावनाएं सच हो सकती हैं, पर जिनमें भगवन के प्रति सच्ची आस्था, विश्वास एवं श्रद्धा है, उनके सकून को धन- लोभी तो समझ ही नहीं सकता. किसी के भाव को समझने के लिए वैसे माहौल में जा कर सीखना होता है.
जब तक धन का साथ, विपदाओं ने न किया हताश, तब तक तो सारे कम धन से हो ही जाते हैं, पर जिन्हें ऐसे हालातों से गुजरना पड़ता है, तब न धन कम आता है, न कोई संपर्क, तब शायद दुवाओं कि घंटियाँ बजने पर ही रब बख्शता है............
शायद इन्ही हालातों में ऐसे लोग मजबूरीवश विभिन्न ढोंगी, लोभी बाबाओं के द्वार पर घंटियाँ बजा कर मत्था टेकने पर मजबूर होते हैं और काम न होने पर बाबाओं को नहीं ईश्वर को दोष देते है.
यदि कर्म कुछ पूर्व जन्म के अच्छे हैं तो ऐसे लोग गलती से पहुंचे हुए निर्लोभी और गुमनाम बाबा के पास अनायास ही पहुँच जाते है, जहाँ पर घंटियाँ बजाने पर रब कुछ नहीं बहुत कुछ देता है........., बदले में ऐसे बाबा कुछ मांगते भी नहीं................
इन्सान ,तो सामान्य प्राणी ही बने रहना चाहता है, उसके ज्ञान का विस्तार सीमित है, ठोकरें ही हैं कि यदा-कदा
थोडा-बहुत अनुभव ज्ञान द्वारा सिखा देती हैं, इसीलिए तो ऐसे लोगों को लगता है कि धन प्राप्ति ही उन्नति है, जीवन की सार्थकता है.
और मानवता, संस्कार भलाई, सदाचार, स्व-अनुशाशन, बड़ों का आदर-सत्कार जैसे उच्च आदर्शों को अवनति का मार्ग तक कहने लग गया है.
अब तो यह भी कहा जाने लगा है
रूल नंबर-१ बॉस इस आलवेज राइट ........
रूल नंबर-२ इफ ही इज राँग, शी रूल नंबर-१.
मन ही मन ये भी फुसफुसाते हैं कि
बॉस सब कुछ दिया करता
रात-दिन बस चमचियाने से
वैसे कबीर दास जी जीवन में वास्तविक सफलता का मूलमंत्र निम्न पंक्तियों में दे ही गए हैं..........
एक ही साधे, सब सधे, सब साधे सब जाये
भाई जी उपरोक्त विचार नितांत अपने हैं और इसे किसी भी प्रकार अपनी ग़ज़ल की आलोचना की प्रष्टिभूमि में न देखें. बस मन ने जैसा अनुभव किया, और लिखवाता गया, मैं टिपियाता गया.
आपने ही लिखा है कि
मायने ही न जो समझ पाए
बात बचिए उसे सुनाने से
और मैं व्यक्तिगत रूप से जनता हूँ कि आप मायने खूब अच्छी तरह समझते हैं इसी लिए ऐसी टिपण्णी कर पा रहा हूँ, वर्ना, "वाह, बहुत खूब" से मैं भी, काम चला लेता.
कुल मिला कर ग़ज़ल बहुत ही अच्छी बन पड़ी है.
बधाई स्वीकार करें.
इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
ReplyDeleteहर घडी यार को मनाने से
बढि़या !
Behad sundar!
ReplyDelete'ham kabhee roothte na the,
jaante the,unhen manana aataa nahee..'
http://shamasansmaran.blogspot.com
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http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
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इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
ReplyDeleteहर घडी यार को मनाने से
==
behatareen ghazal
मायने ही न जो समझ पाए
ReplyDeleteबात बचिए उसे सुनाने से
........
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से
.........
हौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
बाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
........
ज़िन्दगी की सच्चाई
याद एहसान कौन रखता है
ReplyDeleteफायदा भूल जा गिनाने से
dhanywaad..neeraj ji bahut badhiya geet....bhav se paripurn..
badhayi..
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteवाह-वाह क्या कहने............
इतना सरल लिखते हुए इतनी गहरी बात कह जाने का हुनर एक उस्ताद शायर की निशानी है.
किस शेर की तारीफ करू पूरी ग़ज़ल ही उम्दा और बेहतरीन है, मज़ा आ गया.
सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं। आज का दिन सार्थक हुआ।
ReplyDeleteहौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
ReplyDeleteबाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से
वाह नीरज जी........... कितने लाजवाब शेर निकाले हैं आपने........सार्थक, समय नुसार, कोई उस्ताद ही इतना लाजवाब सीधे शब्दों में कह सकता है...........
Chhoti baher men bhi kamaal.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
आप जैसे गुरूओँ की गज़ल के बारे मे कुछ कहूँ ये तो आपकी गज़ल की बेकदरी होगी मगर पढ कर बार बार पढने को मन करता है फिर आपके साथ प्राण जी का नाम आने से् तो इस्मे वैसे ही जान पड गयी और ये जानदार और शानदार गज़ल हमे पढवाने के लिये धन्यवाद और बधाई
ReplyDeleteमायने ही न जो समझ पाए
ReplyDeleteबात बचिए उसे सुनाने से
बहुत ही सच्ची बातो को इअतनी सहजता से पिरो दिया है जिसका कोई जबाव नही है .......आपके भाव और विचार बहुत ही सुन्दर है ..........बहुत ही सहजता से असिमित बातो को व्यक्त कर दिया है आपने ......बहुत बहुत शुक्रिया .......बधाई
बहुत ही लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
वाह क्या बात है। ग़जल का हर शेर बहुत ही उम्दा।
ReplyDeleteरब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से
याद एहसान कौन रखता है
फायदा भूल जा गिनाने से
ये ज्यादा ही अच्छे लगे।
बडे दिनों के बाद नजर आए नीरज जी।
बातें सच्ची कभी -कभी यारो
ReplyDeleteझूठ लगती हैं फुसफुसाने से
ahaaaaaaaaaahhhhhhhhaaaaaaa kya baat kah di
हौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
बाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
kya baat hai kya baat hai
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से
hmmm magar maine to yahi suna hai logon se ki milta hai agar mangon khuda se
याद एहसान कौन रखता है
फायदा भूल जा गिनाने से
मायने ही न जो समझ पाए
बात बचिए उसे सुनाने से
wah bahut khoob
इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
हर घडी यार को मनाने से
wahhhhhhhhh gazab maqta kaha hai
Neeraj ji ek baar phir bahut kamyaab gazal aapki kalam se
aapke khyaal hamesha dil tak dastak dete hain
गीत बचपन के वे सुहाने से
ReplyDeleteगुनगुनाओ किसी बहाने से
बातें सच्ची कभी -कभी यारो
झूठ लगती हैं फुसफुसाने से
हौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
बाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
samajh nahi paa rahi huN ki kis sher ko chunu behatar kahane ko......! sab to best haiN...! aap ki prashansa ham jaise log kar bhi nahi sakte
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
ReplyDeleteरात-दिन घंटियाँ बजाने से
-लाजवाब रचना.बधाई.
जय हो! शानदार!
ReplyDeleteबेहतरीन गजल. बहार छोटी हो या बड़ी, गजल हमेशा बड़ी ही होती है.
ReplyDeleteहौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
बाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
क्या बात है भाई लोगों ने कुछ नहीं छोडा ख़ैर-
ReplyDeleteगीत बचपन के वे सुहाने से
गुनगुनाओ किसी बहाने से
बातें सच्ची कभी -कभी यारो
झूठ लगती हैं फुसफुसाने से
हौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
बाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से
इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
हर घडी यार को मनाने से
ये शेर मुझे अपने मन के ज़्यादा नज़दीक लगे
समझ नहीं आता आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं:)
ReplyDeleteशब्दों को इतनी सुघड़ता से कैसे संयोजित करते हैं।
नोट:ये सवाल नहीं है:)
क्या गजब! -
ReplyDeleteरब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से!
बहुत सुन्दर।
नीरज जी नमस्कार,
ReplyDeleteसच में सोने पे सुहागा वाली बात चरितार्थ हो रही है एक तो उस्ताद शाईर आप और उस पर से ग़ज़ल पितामह का इस्लाह उफ्फ्फ्फ़ ये तो जैसे गंगा और सरस्वती का मिलन है जिससे पवन और तो कुछ हो ही नहीं सकता ... और वहाँ कुम्भ का मेला ऐसे शे'रों के जन्म की तरह होता है ... क्या खूब कही है आपने ... जिस सरलता से आप आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते है शाएरी में वो एक मिशल है हम जैसे नवसिखियों के लिए... बह्होत कुछ मिलता है सिखने को आपकी ग़ज़लों से ....ग़ज़ल के बारे में कुछ भी कहना तो हाय तौबा है हमारे लिए...मगर इस एक शे'र जो मिशाल है गज़ल्कारी में आपकी...
बातें सच्ची कभी -कभी यारो
झूठ लगती हैं फुसफुसाने से
यह शे'र वाकई हर एक के जबान पे चढ़ के बोलने वाली है ... और मतला तो जैसे कहर बरपा रहा है ... सलाम आपकी लेखानिको और ग़ज़ल पितामह श्री प्राण शर्मा जी को भी...
अर्श
नीरज जी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ बड़ी जोरदार लगी और पढ़कर अनादित हो गया आभार. शुक्रिया
बहुत सुन्दर रचना है बधाई।
ReplyDeleteहौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
ReplyDeleteबाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से....
वाह-वाह.
बातें सच्ची कभी -कभी यारो
ReplyDeleteझूठ लगती हैं फुसफुसाने से
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से
इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
हर घडी यार को मनाने से
in shron ki jitnee taareef karoon kam hai
aapki behtareen gajlon me se ek gajal lagee hame
venus kesari
सुन्दर ग़ज़ल और सही सलाह!
ReplyDeleteहर शेर हकीक़त ग़ज़ल लाजबाब है
ReplyDeleteनीरज का लिखा कलाम बेमिसाल है
AADARNIYA NEERAJ JI ,
ReplyDeleteNAMASKAR ....
KAL BAHUT DINO BAAD BLOG WORLD ME AAYA TO PAHLE AAPKE BLOG PAR HI AAYA AUR DEKHA TO YE SHAANDAR GAZAL LIKHI HUI THI .. MERE PAAS KOI SHABD NAHIHAI KI , MAIN ISKI TAREEF KARUN... PRAN JI KA AASHIRWAD JINHE MILA HO ,KYA KAHNE...MUJHE YE SHER BAHUT ACCHA LAGA.
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने से...
AAPSE NIVEDAN HAI KI KAVITA BHI LIKH KAR HUMARI PYAAS KO BUJHAYE..
AAPKA
VIJAY
बातें सच्ची कभी -कभी यारो
ReplyDeleteझूठ लगती हैं फुसफुसाने से
बहुत सुन्दर एक एक शेर गुनगुनाने लायक है ...बहुत पसंद आई आपकी यह गजल नीरज जी .
खूब अच्छा मुशाहिदा है।
ReplyDeleteयही कह्ते बन रहा है कि:-
इस्का हर लफ़्ज़ दिल को लग्ता है,
खूब वाक़िफ़ हो इस ज़माने से।
-मन्सूर अली हाश्मी
इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
ReplyDeleteहर घडी यार को मनाने से
bahut sundar Neeraj ji..
आपके लिखे में आपकी शख्सियत दिखती है ...जिस तरह के शख्स आप है ...जिस तरह की दुनिया देखना चाहते है
ReplyDeleteमसलन ये शेर देखिये ....
मायने ही न जो समझ पाए
बात बचिए उसे सुनाने से
ऐसा लगता है तजुर्बा बोल रहा है......
याद एहसान कौन रखता है
ReplyDeleteफायदा भूल जा गिनाने से
हौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
बाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
हर घडी यार को मनाने से
आप सही मायने में जिंदगी की शायरी कहते हैं !
एक से एक उम्दा शेर !
कई शेर का वजन कमाल का है !
जीतनी तारीफ़ करूँ कम ही है !
आज की आवाज
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
ReplyDeleteरात-दिन घंटियाँ बजाने से
याद एहसान कौन रखता है
फायदा भूल जा गिनाने से
shaandaar bhav va sher !!
Yday I just posted u my comments by email.. But this post is such an amazing, that I couldn't stop thinking last night that I have to post my comments on blog..
ReplyDeleteI will say that this is one of the best of piece of your work. Every line says something so deep and yet in such a simple way. Wow!
Beautiful.. I simply loved it.
Jai Ho.. :)
-R
rab kabhi kuch nhi diya karta
ReplyDeleteraat din ghantiyan bajane se
khoobsoorat alfaz............shandaar gazal
Ye rachna to padhi...lekin' kalke bloggers' ye tasveeren aaj dekhee!
ReplyDeleteKitnee maasoom aur aur chulbulee bhaav bhangima camera ne qaid kar lee hai..!
Aapki rachnayon pe tippanee deneki meree qabiliyat nahee..
आदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteकंप्युटर थोड़ा बीमार है आजकल इसलिये टिप्पड़ी देर से कर रहा हूं। पढ़ तो पहले ही ली थी। आपकी कलम का कोई मिशाल नहीं!! क्या शेर कहे हैं-
हौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
बाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
रात-दिन घंटियाँ बजाने स
सुखद एहसास होता है आपको पढ़ते हुये।
dear neeraj ji
ReplyDeletenamastey
iam writing after so many days
i remained busy or you can say the time was very hectic.
thanks for sending such a beautiful gazal, the whole poetry is good especially the following lines:-
गीत बचपन के वे सुहाने से
गुनगुनाओ किसी बहाने से
बातें सच्ची कभी -कभी यारो
झूठ लगती हैं फुसफुसाने से
हौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
बाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
Again congrautlations.
Prof Kuldip Salil also says good wishes for you.
regards,
-om sapra, delhi-9
9818180932
याद एहसान कौन रखता है
ReplyDeleteफायदा भूल जा गिनाने से
इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
हर घडी यार को मनाने से
वाह ! वाह !!
हुज़ूर....
आपने न सिर्फ अपने
बल्कि हजारों-हजारों दिलों की बात कह डाली है अपनी इस नायाब ग़ज़ल में
वैसे तो हर शेर ही बार-बार पढने को मन करता है
लेकिन्ये दो शेर सुरूर बन कर छाए हुए हैं
उस्तादाना लहजा .....
लफ्ज़-लफ्ज़ बेहतरीन तर्जुमानी ....
मुबारकबाद कबूल फरमाएं
---मुफलिस---
रब कभी कुछ नहीं दिया करता
ReplyDeleteरात-दिन घंटियाँ बजाने से....
वाह-वाह.
वैसे पूरी ग़ज़ल ही बेशकीमती है। हर एक शेर लाजवाब है। बधाई।
हौंसले कातिलों के बढ़ते हैं
ReplyDeleteबाँध के हाथ गिड़गिड़ाने से
kitana sahi farmaya hai, hum pakistan ke aage gidgidate hain aur unke hausalon kee bulandee bhee dekh rahe hain.
gazal badhiya hai hee.
बहुत ही लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
बहोत खूब नीरज भाई ...
ReplyDeleteक्या खूब कहे हैं सारे शेर -
और
"मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ी गयो रे "
सुनकर भी आनंदम आनंदम :)
रक्षा बंधन पर
सभी को भरपूर स्नेह मिले
- लावण्या
इतने छोटे-छोटे पंक्तियों ने जीवन के कुछ बेहद संगीन सचों को बखूबी इस ग़ज़ल में समेत लिया है... सरल शब्दों का इतना अच्छा प्रयोग ह्रदय की पाकीज़गी व साहित्यिक श्रेष्टता को बताता है...
ReplyDeleteसुन्दर भावों के लिए धन्यवाद...
रहते महरूम हम,नफ़ासत से
ReplyDeleteजो न आते यहां बहाने से
आपकीब ात असर करतीह
सच में ,थोड़ा सा गुनगुनानेस से
विलंब से आ रहा हूँ नीरज जी, अब सोच रहा हूँ कि एक अलग-सी तारीफ़ कहाँ से लेकर आऊँ नीरज की कलम से उपजी एक और अनूठी ग़ज़ल के लिये...मतला ही इतना प्यारा बना है और फिर नीचे के हर शेर...और फिर कमाल का मक्ता...उधर पहले गुरूदेव के तरही-मुशायरे में आपके शेरों ने चित्त किया और अब इधर रही-सही कसर इस ग़ज़ल ने निकाल दी...
ReplyDeleteमायने ही न जो समझ पाए
ReplyDeleteबात बचिए उसे सुनाने से
इश्क भी बोझ सा लगे 'नीरज'
हर घडी यार को मनाने से
छोटी छोटी पंक्तियाँ , पर लम्बे चौडे अर्थ,
नीरज जी तो कह गए जीवन का भावार्थ .....:)
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है नीरज जी ....
बहुत बहुत बधाई :)
sUNDER BAHAR AUR UMDA BHAV,KYA NAHI HAI IS GHAZAL MEY,BAAT ISLAAH KI NAHI ABHIVYAKTI KI HAI.
ReplyDeleteAAPKI RACHNAYE GAZAB HI KARTI HAI, JEE HOTA HAI DAMAN ME SAMET LOON.
AAPKA HI,
DR.BHOOPENDRA
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