गर हिम्मत हो तो बदलो
मत कोसो यूं किस्मत को
प्यार वफ़ा इन्साफ दया
किस दुनिया में रहते हो
छोडो मज़हब की बातें
तुम भूखे को रोटी दो
देश जले नेता खेलें
अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो
देखो हाल सियासत का
लगती है सर्कस का शो
उसको बरकत मिलती है
बिन मांगे ही देता जो
''नीरज' नश्वर जीवन में
क्या तेरा 'ये' मेरा 'वो'
(गुरु पंकज सुबीर जी का आर्शीवाद प्राप्त किये बिना, इस ग़ज़ल का रूप निखारना संभव नहीं था)
aadarniya neeraj ji ,
ReplyDeletenamaskar
main kya kahun .. gazal ne to bheetar tak jhakjhor diya hai .. aaj ke samajik parivesh par kya khoob likha hai aapne .. pahla sher to jaandar hai aur hausla paida karta hai ..
aapki lekhni ko naman. bus aur kuch nahi kah paane ki himmat hai ..
vijay
लगता है कलम की धार लगवाई है आपने.. बड़ी धारधार गजल लिख मारी है... एक एक शेर बड़ा ही मारक है..
ReplyDeleteउसको बरकत मिलती है
ReplyDeleteबिन मांगे देता जो
नीरज जी
आपकी यह रचना मन को छू गई है . बहुत ही उम्दा . आभार
बहुत बढ़िया गजल. कुछ अलग-अलग सी लगी आज. गुरुदेव का आर्शीवाद मिलता रहे, यही कामना है.
ReplyDeleteविजय जी से सहमत हूँ. गजल ने भीतर तक झकझोर दिया. आपकी लिखनी को मेरा भी नमन, भैया.
बहुत खूब। रचना सुंदर भी है, सामयिक भी।
ReplyDeleteBahut hi sarthak panktiyan!
ReplyDeletePYAR WAFAA INSAAF DAYAA..
ReplyDeleteKIS DUNIYAA ME RAHTE HO...
NEERAJ JI IS SHE'R PE TO NICHHAWAR HUYE HAM... HAALAAKI PURI GAZAL HI AAPNE KAMAAL LIKHI HAI AB AAPKE BAARE ME MERE JAISAA NAACHIJ KYA KAHE.. APNI DUYAAYEN HI DE PAUNGAAA AAPKO... CHHOTI BAH'R ME AAPKI LEKHANI JAADUEE HOTI HAI... GURU DEV KO SAADAR CHARAN SPARSH... AAPKO TATHAA AAPKE LEKHANI KO SALAAM..
ARSH
बहुत खुब...
ReplyDeleteवाह नीरज जी..............लाजवाब, तेज और व्यंग की तीखी धार चलाई है आपने आज........
ReplyDeleteअलग अंदाज नज़र आ रहा है आपका
प्यार वफ़ा......इस शेर में आज की हकीकत
छोडो मजहब की बातें.........इस में ऐसा सन्देश दिया है..जो मजहब सिखाता है
सियासत का सही लेखा जोखा........
वैसे तो सभी शेर कुछ न कुछ कह रहे हैं..............अब क्या बताऊँ
kyaa haal hai janaab ke? aaj kal kavitaayein kam paDhwa rahein hai, baDe din baad koi rachana paDHne ko mili hai, shukriya
ReplyDeleteबहुत ही सरलता से गहरे विचार रखे हैं,
ReplyDeleteवाह
एक शब्द होता है टटकापन । उसका अर्थ होता है जस का तस बिना किसी श्रंगार के । आपका एक शेर जिसमें अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो आया है वो कुछ इसी प्रकार का शेर है । उसमें एक प्रकार का निर्मल आनंद है । जिसे सुन कर एक बारगी तो मुंह से निकल ही जाता है अहा ।
ReplyDeleteभैया प्रणाम
ReplyDeleteआपकी लेखनी को भी मेरा नमन.
क्या लिख देते हैं, बहुते उतेजित टाइप हो गया हूँ.
नीरज जी, बहुत सहजता से आपने आज का सच व जीवन से शाश्वत मूल्यों की बात की है। यह कहने के लिए तो न जाने कितना कहना पड़ता।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
उसको बरकत मिलती है
ReplyDeleteबिन मांगे ही देता जो
वाह ...नीरज जी ,कितनी खरी पर सीधी बात .
छोडो मजहब की बातें
ReplyDeleteतुम भूखे को रोटी दो ....
... अच्छा दर्शन
गर हिम्मत हो तो बदलो
ReplyDeleteमत कोसो यूँ किस्मत को
नीरज जी ये हुई न एक अनुभवी मर्दों वाली बात ....बहुत खूब....!!
उसको बरकत मिलती है
बिन मांगे ही देता जो
वाह ...वाह.....हमने तो ताऊ जी द्वारा लिए गए साक्षात्कार में नीरज जी को कुछ ऐसा ही पाया है ....!!
उसको बरकत मिलती है
ReplyDeleteबिन मांगे ही देता जो इससे असहमति का तो प्रश्न ही नहीं। बहुत मनभावन लिखा नीरज जी।
बहुत ही शानदार, ऐसी रचनाधर्मिता आपके ही वश में है और जिन पर गुरुओं का आशिर्वाद हो उनकी लेखनी तो जादूई हो जाती है.
ReplyDeleteशुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही सुन्दर और सच्चाई को बंया करती रचना है आपकी नीरज जी। बधाई ।
ReplyDeletewah neeraj ji, akkad bakkad bambe bon,,,,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteaur last ki char panktian to kamaal kar rahi hain. dheron badhai sweekaren.
dil ko chhoo gayi ye rachna
ReplyDeletebilkul sahi baat kahi aapne
दिल को झकजोरती सी है यह ग़ज़ल
ReplyDelete.बहुत खूबसूरत ..ruk नहीं sakee लिख dala isse prerit hokar
ReplyDelete..मेरे लिए कुछ बन पाओ न पाओ
बस तुम भूखे की रोटी बन जाओ ...
छोडो मज़हब की बातें
ReplyDeleteतुम भूखे को रोटी दो
देखो हल सियसत का
लगती है सर्कस का शो
क्या खूब कहा है
चित्र और रचना दोनो ने मर्म छू लिया..
ReplyDeleteछोडो मज़हब की बातें
ReplyDeleteतुम भूखे को रोटी दो
...behad khoobasoorat abhivyakti !!
बड़े जबरदस्त शेर कहे-सर्कस का शो तो मानो आज ही लिखा होगा!! :) बधाई.
ReplyDeleteदेश जले नेता खेलें
ReplyDeleteअक्कड़ बक्कड़ बाम्बे बो
इस शेर की क्या बात करून जो कहूँगा कम होगा
बहुत सुन्दर और ख़ास कर समय के अनुरूप गजल
वीनस केसरी
गुरूजी की "अहा" के बाद सब बेमानी है नीरज जी।
ReplyDeleteएक लंबे अर्से के बाद एक नयी सी ग़ज़ल देख्नने को मिली है।
एकदम अनूठी और बेमिसाल गज़ल।
Bahut khub..
ReplyDeleteAnother good one!
I wish sooner you gonna get an award for your great contribution to the world of Hindi Literature.
Regards,
Ratan
क्या कस के खीँचा है शेर का कान ! वाह ! :)
ReplyDeleteसर्कस तो होते रहेँगेँ ,
भूखे को खाना पहले मिले
कितना सही कहा नीरज भाई
स स्नेह,
- लावण्या
e-mail received from Om Prakash Sapra ji:
ReplyDeletedear neeraj ji
namastey
after a gap of so many days i am writing to yo.
your poem is very good and heart touching, especially the following lines:
''नीरज' नश्वर जीवन में
क्या तेरा 'ये' मेरा 'वो'
again congratulations.
regards,
om sapra, delhi-9
9818180932
Desh jale
ReplyDeletewala sher wah kamaal kaha hai
aur bhukhe ko roti do bhi bahut khoob raha
Aapki kalam ki dhaar aur taazgi se hamesha se prabhavit hoti rahi hoon
आप उन्हें शेर कहते है .हम जिंदगी.....बस यही फर्क है........
ReplyDeleteअल्फाजों में बाध दिया है,
ReplyDeleteआपने जिंदगी की असलियत को।
बेमिसाल नगमा...वाह।
आपने बहुत सही बात कही है .........कमाल की रचना है.
ReplyDeleteकुछ भी टिप्पणि करूं तो इससे सिर्फ़ मेरी अज्ञअनता ही सिद्ध होगी...आखिर अब ऐसे सुंदर गज़ल का बार-बार पढ़कर आनंद लूं या टिपियाऊं...आप ही बताइये?
ReplyDeletehamesha ki tarah SHANDAAR GHAZAL.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
’उसको बरकत मिलती है
ReplyDeleteबिन मांगे देता जो”
वाह!बहुत खूब !अच्छी लगी गज़ल.
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteक्या खूब कहा है!!
ReplyDeleteछोडो मज़हब की बातें
तुम भूखे को रोटी दो
विलक्षण, और सुन्दर
ReplyDeleteबधाई
क्या कहें, हर बार वही कहेंगे आप का जवाब नही ।
ReplyDeleteकम शब्दों में गहरी और सपाट बातें.......
ReplyDeleteसमझ -समझ भी हम न समझे
अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो में उलझे
प्यार वफ़ा इंसाफ ,दया, इंसानियत ..... जैसे लफ्ज किस दुनिया के हैं, मालूम हो गया.
फिर भी क्यों रखते इसकी आस...................
छोडो मज़हब की बातें
तुम भूखे को रोटी दो
कहना चाहिए था कि
छोडो भूखों की बातें
अब मज़हब की बोटी दो
और क्यों ये सन्देश
उसको बरकत मिलती है
बिन मांगे ही देता जो
इस कपटी दुनिया के लिए कहना चाहिए था
उसको बरकत मिलती है
बिन मांगे ही छीने जो
मेरी ध्रष्टता को मुआफ करना जो गुरूजी द्वारा संवारी ग़ज़ल से छेड़छाड़ की जुर्रत की ..........
चन्द्र मोहन गुप्त
नीरज जी, आप जैसे महान लेखक का टिपण्णी मिलने पर लिखने का उत्साह और बढ जाता है पर आपके कविता के सामने मेरी शायरी कुछ भी नहीं है! आप एक उम्दा लेखक हैं और आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है!
ReplyDeleteआपका ये रचना बेहद पसंद आया क्यूंकि आपने सच्चाई बयान किया है जो दिल को छू गई!
aapki rachna ko kuch kahna to sooraj ko roshni dikhana hoga.....aapki rachnayein to hamari margdarshika hain.
ReplyDeletebahut hi shandar.
बहुत सुन्दर रचना....सहज भावाभिव्यक्ति.
ReplyDelete===============================
नीरज जी,
लोक सभा चुनाव में महत्वपूर्ण शासकीय
कर्तव्य से जुडे होने के कारण ये अन्तराल रहा.
अब फिर आना-जाना लगा रहेगा....वैसे आपके ब्लाग
पर आता रहा पर दिल की बात न कह पाया इस बीच.
आपका
चन्द्रकुमार
देश जले नेता खेलें,,,,
ReplyDeleteअक्कड़ बक्कड़ बाम्बे बो ,,,,,,,
कमाल,,,,कमाल,,,,कमाल,,,,,
ये नया पण लिए हुए शेर बेहद बेहद पसंद आया,,,,,
दादा प्रणाम
ReplyDeleteएक तो आज सुहावना मौसम फिर ये गज़ल और उसमें ये शेर........
देखो हाल सियासत का
लगती है सर्कस का शो.
और
देश जले नेता खेलें
अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो
शाम को हसीन बनाने के लिये और क्या चाहिये..
कहन का ये अनूठापन ही गज़ल को गज़ल बनाता है जिसे सीखने में जिन्दगियां गुजर जाती हैं और फिर भी हर किसी को ये हासिल नहीं होता.....
ढेरों बधाइयां...........
वाह नीरज जी वाह बधाई स्वीकारें बेहतरीन ग़ज़ल के लिये
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteछोडो मज़हब की बातें
तुम भूखे को रोटी दो
काश ऐसा हो जाए।
बहुत ही खूबसूरत इन्तेख़ाब है हुज़ूर, बेहतरीन...
ReplyDeleteman ko chu lene vale bhav .
ReplyDeleteदेश जले नेता खेलें
ReplyDeleteअक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो
क्या बात है? एकदम नया प्रयोग,नई अर्थवत्ता...
बहुत खूब
Niraj ji aise hi dhute dhudhte ek din mai aapke blog pe aagya aur us din se aapke bloga ka hi ho kar rah gaya . aap kya likhte hai uska jawab nahi. You are great. Mai hamesha aap ki kavito ke khuchch paktiyo ko kahi na kahi quot karta rata hu. you are great.
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