दोस्तों एक मुद्दत के बाद दिल की ये हसरत की अपने ब्लॉग पर गुरुदेव पंकज सुबीर जी की ग़ज़ल लगाऊँ, अब जा कर पूरी हुई है. उनसे ग़ज़ल निकलवाने में जो पापड़ बेलने पड़े उसकी दास्तां फिर कभी...पर ये जरूर है की अगर फरहाद को शीरीं के लिए पहाड़ खोद कर नदी लाने की जगह पंकज जी की ग़ज़ल लाने के लिए कह दिया जाता तो उनके प्रेम की कहानी कुछ और ही होती , फरहाद महाशय शीरीं का ख्याल भूल कहीं चल दिए होते....
आज के माहोल पर एक दम माकूल इस ग़ज़ल का आप सभी गुणी जन आनंद लें...साथ ही पंकज जी को लिखने और मुझे पेश करने पर धन्यवाद दें...
कह रहा हूं फैंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
इस बग़ावत ने कहां बदला हर इक मंज़र अभी
जो तुम्हारा हक़ है उसकी मांगते हो भीख़ क्यों
गिड़गिड़ाओ मत, उसे तुम छीन लो उठकर अभी
सह रहें हैं हर सितम बस आसमां को देखकर
जाने किसने कह दिया था आएगा ईश्वर अभी
ग़ैर के जलते मकां का आप जानें दर्द क्या
बिजलियां टूटी कहां हैं आपके घर पर अभी
मुट्ठियां तनती हों गर जो आपकी तो जान लो
रीढ़ की हड्डी बची है आपके अंदर अभी
ख़ून कितना बह चुका है आज तक इन्सान का
और उनके हाथ का प्यासा ही है ख़ंजर अभी
एक ही नारा लगा और कुर्सियां थर्रा गईं
फैलने तो दो ज़रा विद्रोह को घर घर अभी
बज गया फिर से चुनावों का बिगुल अब देखना
सांप सारे बांबियों से आयेंगें बाहर अभी
कह रहा हूं फैंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
इस बग़ावत ने कहां बदला हर इक मंज़र अभी
जो तुम्हारा हक़ है उसकी मांगते हो भीख़ क्यों
गिड़गिड़ाओ मत, उसे तुम छीन लो उठकर अभी
सह रहें हैं हर सितम बस आसमां को देखकर
जाने किसने कह दिया था आएगा ईश्वर अभी
ग़ैर के जलते मकां का आप जानें दर्द क्या
बिजलियां टूटी कहां हैं आपके घर पर अभी
मुट्ठियां तनती हों गर जो आपकी तो जान लो
रीढ़ की हड्डी बची है आपके अंदर अभी
ख़ून कितना बह चुका है आज तक इन्सान का
और उनके हाथ का प्यासा ही है ख़ंजर अभी
एक ही नारा लगा और कुर्सियां थर्रा गईं
फैलने तो दो ज़रा विद्रोह को घर घर अभी
बज गया फिर से चुनावों का बिगुल अब देखना
सांप सारे बांबियों से आयेंगें बाहर अभी
नीरज जी....लाज़वाब !
ReplyDeleteये तो ग़ज़ल में हौसला
और हौसले की ग़ज़ल का
दमदार उदाहरण है...हर शब्द
रीड़ की हड्डी की तरह है इसमें.
आपको और सबीर साहब को साधुवाद.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
पंकज जी की गजल पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. एक-एक शेर जीवन की सच्चाई बतला रहा है.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुति.
sabse pahle to neeraj ji aapka dhanyavaad itni badhiya gazal padhwane ke liye.
ReplyDeletepankaj ji aapne to is gazal mein har sher aisa likha hai jaise moti jad diye hon..........aaj ka katu satya.
कह रहा हूँ फेंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
ReplyDeleteइस बगावत ने कहाँ बदला हर इक मंज़रअभी .
वाह....बहुत खूब .... दुष्यंत कुमार जी के तेवर याद आते है .पंकज सुबीर जी व नीरज जी ,धन्यवाद .
गजल-वाजल तो अपने को बहुत समझ में नहीं आती है. पर ये तो बहुत बढ़िया लगी !
ReplyDeleteकह रहा हूँ फेंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
ReplyDeleteइस बगावत ने कहाँ बदला हर इक मंज़रअभी .
ye sher achha laga ji......
पंकज जी की इतनी अच्छी ग़ज़ल का रसास्वादन करवाने के लिए बधाई......
ReplyDeleteसुन्दर गजल लगी यह ..शुक्रिया
ReplyDeleteपंकज जी की शानदार गजल पढ़कर बहुत अच्छा लगा ,एक एक शेर लाजवाब और जीवन की सच्चाई से भरपूर
ReplyDeleteregards
हर लाइन शानदार, हर शेर लाजवाब।
ReplyDelete-----------
खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्ट का दुखद अंत
एक एक शेर ज़िन्दगी का सच दिखाता हुआ.. हमेशा की तरह असरदार भाव...
ReplyDeleteनीरज जी
ReplyDeleteगुरुदेव की ग़ज़ल और लाजवाब न हो............और आपके ब्लॉग पर तो और भी फब रही है.............इतने प्यार से, इतने मनुवार से आपने कहा होगा........गुरु जी मन भी करते तो कैसे.
पूरी ग़ज़ल मस्त, तेवर से भरी है, होंसले बुलंदियों तक, चुन चुन कर मोतियों की तरह है सब की सब शेर........खूबसूरत शेर..........सारे शेर लाजवाब है........पूरी ग़ज़ल मस्ती भरी.........मज़ा आ गया
kuchh karne ka hausla pradan kar rahi hai aapki yeh ghazal.
ReplyDelete'जाने किसने कह दिया था…'
ReplyDelete'बिजलियां टूटी कहां हैं…'
बहुत, बहुत ख़ूब!
बहुत लाजवाब गजल. अब हम जैसे नौसिखिये पंकल जी और आपकी रचना पर क्या कमेंट करें? हमें तो यह दुष्यन्त कुमार जी जैसी ही रचना लगी.
ReplyDeleteआपको बहुत धन्यवाद पढवाने के लिये और गुरुजी को प्रणाम.
रामराम.
बिलकुल दुष्यंत जी की रचनाओ की याद दिला रही है यह रचना . सच मे गुरूजी कमाल है .
ReplyDeleteपंकज जी की तारीफ़ करना तो सूरज को चिराग दिखाना है…। यूं तो पूरी की पूरी गजल ही कमाल है लेकिन ये शेर
ReplyDeleteबज गया फिर से चुनावों का बिगुल अब देखना
सांप सारे बांबियों से आयेंगें बाहर अभी
भई धमाल है।
आप की भी तारीफ़ करनी होगी कि क्या जौहरी की नजर पायी है। एक एक नगीना अपने ब्लोग पर टांका है।
ग़ज़ल की समझ तो नही है मुझे पर दिल तक पहुँचने वाली प्रस्तुति है.
ReplyDeletesahi kaha chunav ka mausam ho to kide to bahar ayenge hi...
ReplyDeleteबहुत उम्दा गजल . बधाई नीरज जी.
ReplyDeleteभाई श्री पँकज जी सिध्ध हस्त साहित्यकार हैँ "गज़ल गुरु देव" को
ReplyDeleteआपने
आज आपके जाल घर पे
प्रस्तुत कर ही दिया नीरज भाई !
बधाई !!
आप दोनोँ मेँ स्नेह यूँ ही बना रहे,
ताकि हम ऐसा ही पढते रहेँ ...
- लावण्या
नीरज जी आप मुझे कहते है के मैं भाग्यशाली हूँ के मैं गुरु जी से मिल सका अहो धन्यभाग हमारे ... मगर ये क्या है आपको तो गुरु देव का आशीर्वाद खुल के मिल रहा है है... जय हो... इस बात के लिए ... मैं तो आखिर एक्लाब्या ही हूँ...क्या कहूँ... इस ग़ज़ल के बारे में अब अगर मैं कुछ कहूँ तो पाप कर बैठूँगा ... बस यही के गुरु देव को सादर चरण स्पर्श जरुर कह दें आप... और आपको भी ढेरो बधाई इस पे बहोत इंतज़ार किया है आपने और इंतज़ार का फल तो मीठा होता ही है आपने तो आज ये स्वाद चखा ही है ... बहोत बहोत शुभकामनाएं आपको साहिब....
ReplyDeleteअर्श
नीरज-पंकज में नहीं, सलिल देखता फर्क.
ReplyDeleteजो देखे उसका खुदा, करदे बेडा गर्क.
करदे बेडा गर्क, गजल यह शानदार है.
मुर्दों को जिंदा करदे, यह जानदार है.
'सलिल' सुन रहा गज़ल, गूँजती हर सरसिज में.
फर्क देखता नहीं तनिक नीरज-पंकज में.
-divyanarmada.blogspot.com
-sanjivsalil.blpgspot.com
नीरज जी आज तो न जाने क्या बात है एक से एक बढ़ कर पोस्ट पढने को मिल रही है ....उधर गौतम जी की पोस्ट...और इधर अब ये आपकी.... सुबीर जी आप तो बस लाजवाब ही कर देते हो....अब आपकी गज़लों की तारीफ तो हमारे बस की नहीं है.......!
ReplyDeleteजो तुम्हारा हक है उसकी मांगते हो भीख क्या ...
वाह....!!
सह रहे हैं हर सितम बस आसमां को देखकर
जाने किसने कह दिया था आएगा ईश्वर अभी
सुभानाल्लाल.......!!
गैर के जलते मकां का आप जाने दर्द क्या
बिजलियाँ टूटी कहाँ है आपके घर पर अभी
लाजवाब....!!
इसे कहते हैं गज़ल्।सलाम पंकज गुरूजी को और आभार आपका एक दमदार गज़ल पढने का मौका देने के लिये॥
ReplyDeleteअभी कल ही तो चर्चा चली थी गुरूजी से मोबाइल पर इस गज़ल की...
ReplyDeleteतारीफ़ में कुछ कह सकूँ, ये तो हिमाकत के बराबर होगी। कापी कर ले जा रहा हूँ ग़ज़ल को
एक ही नारा लगा और कुर्सियां थरा गईं---उफ़्फ़्फ़
वाह जी वाह हर शेर पसंद आया।
ReplyDeleteसह रहे हैं हर सितम बस आसमां को देखकर
जाने किसने कह दिया था आएगा ईश्वर अभी
वाह दिल खुश हो गया पढकर।
अल्टीमेट!!!
ReplyDeleteगुरुजी..याने मास्साब को सुनना अपने आप में एक उपलब्धी है..आपने सुनाया..आपका साधुवाद. मास्साब के तो क्या कहने!!
यहाँ तंज भी है और रंज भी है क्या खूब कहन है वाह वाह वाह
ReplyDeleteतीर ऐ जुबां खामोश भी है तलवार भी है ये वाह वाह वाह
वो रोज़ बयान बदलने को कहते हैं सियासत ,मजबूरी
बे खौफ ऐ खुदा ,बन्दा ऐ खुदा करते हैं इबादत वाह वाह वाह
कोई झल्लाए तो धमकी है , कोई धमकाए तो पागलपन
ये कातिल मौज निजामत की क्या खूब अदा है वाह वाह वाह
तलवों पे सितमगर के मालिश भलमनसाहत के घर नालिश
आफत में आब ओ ताब मिले ये अपनी जम्हूर्त वाह वाह वाह
मस्ती में दहशत गर्द यहां दहशत में देश के वाशिंदे
मुजरिम की अदालत में मुंसिफ खैर मनाता वाह वाह वाह
... वाह-वाह ...बहुत खूब ..... सोने पे सुहागा .... चमचमाता मोती .... बधाईयाँ।
ReplyDeleteजिन्दगी की असलियत के बहुत करीब की रचना.. हर शेर खास बन पडा है... पढवाने के लिये आभार
ReplyDeletebahut khoob neeraj ji ek behatareen gazal se parichay ke liye aapko aur lajawaab lafzon se madhi gazal ke liye pankaj ji ko badhai/dhanyawaad.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteऔर ईश्वर न करे कि किसी पर बिजलियॉं टूटें भी। शानदार गजल, बधाई।
ReplyDelete-----------
खुशियों का विज्ञान-3
ऊँट का क्लोन
बहुत बढिया गज़ल है।हर शेर लाजवाब!!
ReplyDeletesah rahe ho har sitam.....
ReplyDeletebahut hi umda she'r!
muthiaN tantee ho to....
lajwab!
ghair ke jalte..
wah wa !
ye pahli ghazal paRee hai Pankaj ji ki umeed karta hoon ki phir se jald doosree ghazal bhi isee manch se aaye.
regards
khyaal
कह रहा हूँ फेंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
ReplyDeleteइस बगावत ने कहाँ बदला हर इक मंज़र अभी .
वाह! बहुत उम्दा!
सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं.
लाजवाब ग़ज़ल नीरज जी!
बधाई!
neeraj ji neta sanp nahi ajgar hai.
ReplyDeleteकह रहा हूँ फेंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
ReplyDeleteइस बगावत ने कहाँ बदला हर इक मंज़रअभी .
बहुत खूब .
नीरज जी,
ReplyDeleteगुरु जी की गजल पढ़ कर दिल खुश हो गया आज गुरु जी ने भी नई पोस्ट ब्लॉग पर लगाईं बस वहां से ही आपके पास पंहुचा हूँ और यहाँ आ का तो ऐसा गजब नजारा हुआ की अब क्या कहूं मैं मैं खुद गुरु जी से कई बार कह चूका हूँ मगर हम पर नजरे इनायत न हुई कोई बात नहीं आप ने जो म्हणत की उसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद
गजल का मतला तो ऐसा है की दिल पर किसी ने खंजर उतर दिया हो और आह आह की जगह मुह से वाह वाह निकल रहा हो
वीनस केसरी
Gazal ho to aesee ho. Badhaaee.
ReplyDeleteभाई नीरज जी,
ReplyDeleteभाई पंकज जी के ग़ज़ल, शेर, जो सहज ही उपलब्ध नहीं होते, उस असहजता को भी लगता है कि आपने मुठ्ठियाँ तान कर ही निकलवाया है, तभी तो गुरुवर भी पहचान गए कि अभी भी आपमें रीढ़ की हड्डी बची है, अतः उनको भी कहना ही पड़ा कि
मुट्ठियां तनती हों गर जो आपकी तो जान लो
रीढ़ की हड्डी बची है आपके अंदर अभी
उन्हें लगा होगा कि भाई नीरज जी भी एक मजे हुए शायर हैं तो कहीं उनकी शायर आत्मा भीख में ग़ज़ल मँगाने के बजाय ताल ठोंककर ग़ज़ल छीनने ही यह कहते हुए आ गए तो, .......
जो तुम्हारा हक़ है उसकी मांगते हो भीख़ क्यों
गिड़गिड़ाओ मत, उसे तुम छीन लो उठकर अभी
अब तो लगता है कि चुनाव नहीं , बल्कि ग़ज़ल पेशी का बिगुल बज़ गया है और सभी सांप (अर्थात गजल) हम सभी क्षुधी पाठकों तक आप जरूर पहुंचायेगें. शायद इसी की हामी भरते हुए गुरुवर समीर जी को कहना ही पड़ा
बज गया फिर से चुनावों का बिगुल अब देखना
सांप सारे बांबियों से आयेंगें बाहर अभी
ऐसा लगता है कि गुरुवर समीर जी की ग़ज़लों में ज्यादातर विद्रोह ही अधिक देखने को मिलेगा, कहीं मेरा आकलन गलत तो नहीं....................
चन्द्र मोहन गुप्त
नीरज भाई आपने तो मारने में कसर छोड़ी ही नहीं थी पर सुबीर जी तो जान लेकर ही मानेंगे। बहुत ही खूब। आपकी ये प्रेरणा बहुत ही अच्छी लगी। सुभानअल्लाह।
ReplyDeleteइसे कहते हैं मणिकांचन योग!या कहें सोने पे सुहागा!
ReplyDeleteनीरज जी का कुशल संचालन और गुरूदेव की शानदार गज़ल। किम अधिकं विज्ञेषु?
बज गया फिर से चुनावों का बिगुल अब देखना
ReplyDeleteसांप सारे बांबियों से आयेंगें बाहर अभी
चुनावी जिम्मेदारियों (सरकारी) के बीच यह शेर पढ़कर लगा जैसे अभी-अभी इन साँपों के बीच से होकर आ रहा हूँ। बेहद उम्दा ग़ज़ल पढ़वाने के लिए शुक्रिया।
पंकज जी की इस ग़ज़ल को प्रस्तुत करने का आभार। तमाम अशआर लाजवाब हैं।
ReplyDeleteमेरे उस्ताद कहा करे थे कि एक मंच पर सारे नामचीन कवियों और शायरों को ले आओ और उस मंच का संचालन किसी नौसीखिये को दे दो कार्यक्रम फ्लाप हो जायेगा । और किसी मंच पर कोई नामचीन को मत बुलाओ बस संचालन कियी सिद्धहस्त को दे दो कार्यक्रम सुपरहिट हो जायेगा । इसीलिये तो संचालक को अंग्रेजी में मास्टर आफ द सेरेमनी कहा जाता है । नीरज जी का ब्लाग भी ऐसा ही है जहां पर नीरज जी का संचालन इतना सधा हुआ होता है कि हम जैसे ऐरे गेरे भी हिट हो जाते हैं । खैर ये तो रही मजाक की बात असल में तो बात सही है कि श्री नीरज गोस्वामी जी का प्रस्तुतिकरण का ढंग इतना सधा हुआ होता है कि लोगों में उम्मीद तो जाग ही जाती है । वास्तव में संचालक वही होता है जो श्रोताओं की उम्मीद को जगाए रखता है । आप सभी ने ग़ज़ल को पसंद किया उसके लिये आभार ।
ReplyDeleteneeraj ji
ReplyDeletenamaskar
deri se aane ke liye maafi chahunga , main tour par tha ..
main ab gazal ki kya tareef karun , ye to suraj ko diya dikhlane wali baat hongi ..
pankaj ji bahut sadhe hue gazalkar hai .. wo behatr likhte hai aur wakai guru hai . mera naman unko aur aapko bhi ,itni acchi prastutikaran ke liye ..
neeraj ji , ab to main bhi request karunga ki meri bhi koi poem aapke blog par daal hi de.. hamari bhi jai jai ho jayengi ..aapke blog ke ambiance me..
aako bahut badhai sir ji .
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com
Aadarneey Pankaj ji ka umda aur meaari kalaam....
ReplyDeleteaur Neeraj ji ki shandaar prastuti...
SONE PAR SUHAGA . . .
badhaaaaeeee !!!
---MUFLIS---
laajavab , neeraj ji
ReplyDeleteदेर आये भी तो दुरुस्त आये
ReplyDeleteइतनी अच्छी गज़ल तो पढ पाये
मुझे गज़ल की अधिक समझ तो नही है
मगर आप्की गज़ल पढ कर लगा कि यही होती है गज़ल बहुत खूब्
वाह नीरज जी! आनन्द आ गया राजेश जी और सुबीर जी को आपकी दृष्टि से पढ़कर. राजेश जी का तो मैं भी प्रशंसक हूँ हद से ज़्यादा तक. सुबीर जी का आज और अभी से. उनकी ग़ज़ल पढ़कर बहुत रूह ताज़ा हो गई. तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं. वाकई वे बड़े शाइर हैं. आप सौभाग्यशाली हैं कि एक आपके मित्र हैं और एक गुरूजी. .
ReplyDeleteसंजीव गौतम