सब से पहले तो इस ब्लॉग पर पधारे सभी पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएं.
बड़ी दुविधा में था की नए साल की पहली पोस्ट क्या हो? मेरी कोई ग़ज़ल या फ़िर किसी पुस्तक की चर्चा. मित्रो कुछ ऐसा हुआ की इस दुविधा से मेरे गुरुदेव ने साफ़ निकाल लिया...हुआ यूँ की मैंने अपनी एक ग़ज़ल गुरुदेव पंकज सुबीर जी के पास दिसम्बर के अंत में इस्लाह के लिए भेजी थी. बढती सर्दी की वजह से वे बीमार पड़ गए और ग़ज़ल अब मिली. मेरी ग़ज़ल मिली सो मिली साथ में उन्होंने उसी बहर में अपने कुछ ऐसे नायब शेर भेज दिए जिन्हें पढ़ कर मैं अपनी ग़ज़ल भूल गया और तुंरत ये विचार कौंधा की क्यूँ ना इसे ही नव वर्ष की पहली पोस्ट बना कर पेश करूँ.( गुरुदेव पंकज सुबीर जी मेरी ग़ज़ल ठीक करने के बाद आई निश्चिंत मुद्रा में )
मैं शिष्टाचार की सीमाओं का उलंघन करते हुए बिना उनसे पूछे उनके ये शेर नए वर्ष की पहली पोस्ट के रूप में आप सब के सामने रख रहा हूँ. मेरे विचार से गुरु वो होता है जो आपके द्वारा दिए गए काँटों को, खूबसूरत फूलों में परिवर्तित कर, फ़िर से आप को लौटाने का गुर जानता है. आदरणीय पंकज जी ने न सिर्फ़ मेरे काँटों जैसे शेरों को फूलों में परिवर्तित किया बल्कि अपनी और से एक गुलदस्ता भी भेंट में भेज दिया...जो आप के सामने है. मेरी ग़ज़ल फ़िर कभी...
(इस ग़ज़ल में मतला और मकता नहीं है सिर्फ़ शेर ही हैं....)
बांसुरी की तान से
क्या तुम्हें शब्दों में हम बतलायें, हमको क्या मिला
ग्रंथ साहब, बाइबल, गीता से और कुरआन से
चाहता और पूजता जिनको रहा मैं उम्र भर
आज मेरे पास से गुजरे वही अन्जान से
दोस्ती हरगिज न करिये ऐसे लोगों से कभी
आंख से सुनते हैं जो और देखते हैं कान से
कल तलक खूंखार डाकू और हत्यारा था जो
देखिये बैठा है वो संसद में कितनी शान से
धर्म से करते हो जैसे, ज़ात से, परिवार से
वैसे थोड़ा प्यार करिये अपने हिन्दुस्तान से
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
राधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से
पूछिये मत चांद सूरज छुप गये जाकर कहां
डर गये हैं जुगनुओं के तुगलकी फरमान से
दिल का टुकड़ा दे रहा है शुक्र उसका कीजिये
दान कोई भी बड़ा होता न कन्यादान से
ग्रंथ साहब, बाइबल, गीता से और कुरआन से
चाहता और पूजता जिनको रहा मैं उम्र भर
आज मेरे पास से गुजरे वही अन्जान से
दोस्ती हरगिज न करिये ऐसे लोगों से कभी
आंख से सुनते हैं जो और देखते हैं कान से
कल तलक खूंखार डाकू और हत्यारा था जो
देखिये बैठा है वो संसद में कितनी शान से
धर्म से करते हो जैसे, ज़ात से, परिवार से
वैसे थोड़ा प्यार करिये अपने हिन्दुस्तान से
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
राधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से
पूछिये मत चांद सूरज छुप गये जाकर कहां
डर गये हैं जुगनुओं के तुगलकी फरमान से
दिल का टुकड़ा दे रहा है शुक्र उसका कीजिये
दान कोई भी बड़ा होता न कन्यादान से
नीरज जी सबसे पहले तो गुरुदेव पंकज सुबीर जी को मेरा सादर प्रणाम,आप सबको नव वर्ष की बधाई ... बहोत ही भक्ति मय ग़ज़ल से नए साल की शुरुयात करी है आपने ढेरो बधाई साहब आपको........ आप धन्य है के आपको इसे गुरूजी से आशीर्वाद मिला है .... मैं एक्लाब्या भी नही बन पा रहा हूँ .....
ReplyDeleteढेरो बधाई आपको
अर्श
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
ReplyDeleteराधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से
नीरज जी
बहुत बहुत शुक्रिया ऐसे खूबसूरत और लाजवाब शेरों का.
पंकज की की लेखनी से निकलें हुवे शेर तो ऐसे होने ही हैं. साथ साथ अगर आपकी ग़ज़ल भी पढने को मिल जाती तो सोने पर सुहागा हो जाता. चलो फ़िर कभी. आपकी ग़ज़ल का भी इंतजार रहेगा
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत उम्दा शेर हैं, ये शेर मुझे बहुत ज़्यादा पसंद आया
दिल का टुकड़ा दे रहा है शुक्र उसका कीजिये
दान कोई भी बड़ा होता न कन्यादान से
बहुत उम्दा साहब, आपको एवं आपके परम गुरुदेव को मेरा प्रणाम और नववर्ष की हार्दिक बधाई!
ReplyDelete---
विनय प्रजापति/तख़लीक़-ए-नज़र
http://vinayaprajapati.wordpress.com
Bahut badiya.
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब !
ReplyDeleteग्रंथ साहब, बाइबल, गीता से और कुरआन से
ReplyDeleteचाहता और पूजता जिनको रहा मैं उम्र भर
आज मेरे पास से गुजरे वही अन्जान से
bahut sundar..shubhkaamnaaon ke saath
प्रेम इतना दीजिये मत, हमको है आदत नहीं
ReplyDeleteमर न जायें हम कहीं इस मान और सम्मान से
साल नूतन लाये खुशियां जिंदगी में आपकी
बस यही हम मांगते हैं इक दुआ भगवान से
दूर मुंबइ की खपौली में हमारा मीत है
जो है प्रिय हमको बहुत ज्यादा हमारी जान से
वाह वाह वाह नीरज भाई क्या ग़ज़ल है, आपको मेरी ओर से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनीरज जी आप को भी नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं।
ReplyDeleteयकीनन नये साल की शुरुवात करने के लिए इससे अच्छी पोस्ट हो ही नहीं सकती थी।
एक ही गजल में इतने अलग अलग रंग भर दिये हैं कि पूरा इंद्रधनुष है।
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
राधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से
बदनाम तो राधा हुई थी न सिर्फ़ बांसुरी की तान से प्यार करने के जुर्म में? कृष्ण तो सिर्फ़ मुस्कुराए भर थे और अपनी धुन में मगन बांसुरी की तान लगाते चले गये। है न?
बहुत लाजवाब नीरज जी. नमन आपको व गुरुजी को.
ReplyDeleteरामराम.
नीरज जी नए साल की मुबारकवाद के साथ गुरुदेव पंकज सुबीर जी को सदर प्रणाम ,आप धन्य है के आपको इनका आशीर्वाद प्राप्त है मैं तो एक्लाब्या भी नही बन पा रहा .......बहोत खूब लिखा है आपने...........ढेरो बधाई कुबूल करें साहब,.....
ReplyDeleteअर्श
wah wah . dil khjush ho gaya itne sundar she'ro ko padkar .. wah subhah ki shuruwat ho gayi ..
ReplyDeleteye ...
दिल का टुकड़ा दे रहा है शुक्र उसका कीजिये
दान कोई भी बड़ा होता न कन्यादान से
aur ye ...
धर्म से करते हो जैसे, ज़ात से, परिवार से
वैसे थोड़ा प्यार करिये अपने हिन्दुस्तान से
aur ye bhi ..
चाहता और पूजता जिनको रहा मैं उम्र भर
आज मेरे पास से गुजरे वही अन्जान से
bus , agar behtareen se badkar koi lafz hote to de deta..
congrets to you and pankaj ji ..
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
आँखों से छलक गए कुछ मोती ऐसा लिख दिया
ReplyDeleteवही मोती समर्पित हैं....उनके चरणों में ..
अक्षय-मन
नीरज जी, बहुत बहुत शुक्रिया पंकज जी के लाजवाब शेर पढ़वाने के लिए. निसंदेह ऐसे शेर किसी उस्ताद की कलम से ही निकल सकते हैं...आप खुश किस्मत हैं जो ऐसे गुरु आप को मिले...उनके यूँ तो सारे के सारे शेर बेमिसाल है लेकिन ये मुझे बरसों तक याद रहेंगे....
ReplyDelete1.
धर्म से करते हो जैसे, ज़ात से, परिवार से
वैसे थोड़ा प्यार करिये अपने हिन्दुस्तान से
2.
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
राधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से
वाह वाह वा....अद्भुत भाव...मेरा नमन पंकज जी को.
धन्यवाद्
-रतन
न्यूजी लैण्ड से एक प्रशंशक
धर्म से करते हो जैसे, ज़ात से, परिवार से
ReplyDeleteवैसे थोड़ा प्यार करिये अपने हिन्दुस्तान से
बहुत अच्छा और आज की पुकार भी!
नर्व की हार्दिक शुभकामनाऍं।
ReplyDeleteइसे पढ़कर यही इक्षा हुई कहने को,
ReplyDeleteये बांसुरी की मीठी तान कहाँ से आई.....
बहुत सुन्दर।
ReplyDeletewah...wah...
ReplyDeletekhoobsurat evm lajawaab prastuti
subeer g ko pranam
aapko badhaiiiiiii
नीरज जी का ब्लौग,गुरू जी की गज़ल और नया साल...इसे कहते हैं सोने पे सुहागा उअर हीरा-मोती भी...
ReplyDeleteगूरू जी के शेरों की तारीफ ये अदना-सा शिष्य क्या करे.....हम तो बस गुनते हैं,हां कृष्ण-राधा प्रेम का ये अनूठा बखान तो तमाम तारिफों से परे है,बस
धर्म से करते हो जैसे, ज़ात से, परिवार से
ReplyDeleteवैसे थोड़ा प्यार करिये अपने हिन्दुस्तान से
बहुत खूब। नए साल में इतनी बेहतरीन शुरुआत। वाह।
नववर्ष की आपको और पकंज जी को हार्दिक शुभकामनाएं।
ab to ek hi baat ki itne sarvsheshd duvidha sabhi ko ho
ReplyDeleteबहूत सुंदर
ReplyDeleteगुरुदेव पंकज सुबीर जी की कृपा बनी रहे और हमें ऐसी ही शानदार गजलें पढऩे को मिलें।
ReplyDeleteदेरी के लिए मुआफी नीरज जी......
ReplyDeleteआखिरी शेर जैसे किसी पिता के सीने से निकला है ......
ओर अब बात आपकी पिछली post की जिस पर मिष्टी की तस्वीर आपने लगाई है
नीरज जी ऊपर इस नन्हे फ़रिश्ते की तस्वीर ......पता नही इत्तिफकान एक बार जयपुर से शदाब्दी एक्सप्रेस से दिल्ली लौटे वक़्त ऐसी ही एक नन्ही गुडिया मिली थी मुझे .....हम सभी डॉ एक कांफ्रेस से लौट रहे थे पर वो मेरी दोस्त हो गई ओर फ़िर पुरे रास्ते मेरे साथ रही.......
आपका ये शेर कातिलाना है.....कसम से
तनहा काटो तब पूछेंगे
होती है कितनी लम्बी शब
सभी का आभार और धन्यवाद । मुझे भी नहीं पता था कि बस यूं ही आउटलुक के आउटबाक्स में टाइप कर के बनाये गये ये शेर कहां से कहां पहुंच जायेंगं । दरअस्ल में लिखने के मामले में मैं बहुत ही आलसी हूं । नीरज जी के ब्लाग पर ऐसा लगता है कि यशराज फिल्म्स का कान्ट्रेक्ट है यहां पर भी जो भी चीज आती है वो हिट हो जाती है । दरअस्ल में ये स्थान का प्रभाव होता है । फिर भी सभीने जो मान सम्मान दिया है उसके लिये आभार । कोशिश करूंगा कि कुछ बेहतर लिखने की कोशिश कर सकूं । नीरज जी की अपनी ग़ज़ल भी बहुत बेहतर है पर जाने क्यों उन्होंने उसे न लगा कर इन शेरों को लगा दिया । शायद नीरज जी उन लोगों में हैं जो दूसरों को खुशी देंकर खुशी मेहसूस करते हैं । वैसे तो इस प्रकार के प्राणी अब विलुप्त की श्रेणी में आ चुके हैं लेकिन फिर भी कुछ नीरज जी सरीखे हैं जो अब भी हमारी उम्म्ीदों को जिंदा रखे हैं । पुन: सबका धन्यवाद । नीरज जी को मैंने कहा है कि ये धुन मेरी पसंदीदा धुनों में हैं और मैंने उनको कहा है कि इस ग़ज़ल को अपनी आवाज़ में रिकार्ड्र करके मैं उनको भेजूंगा ।
ReplyDeleteदिल का टुकड़ा दे रहा है शुक्र उसका कीजिये
ReplyDeleteदान कोई भी बड़ा होता न कन्यादान से
बहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
धन्यवाद
नीरज जी !मैं कान से देखता तो नहीं लेकिन आँख से सुनता ज़रूर हूँ ,इसका मतलब आपकी आधी दोस्ती के लायक तो हूँ !मेरे ब्लॉग पर आने और शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद,साथ ही नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteनये साल मेँ, दोस्ती की ऐसी मिसाल , उम्दा शेर देशभक्ति, प्रेम,अलौकिक आनँद और कर्तव्यपरायणता की चरम सीमा "कन्यादान" की छवि लिये
ReplyDeleteइतने सुँदर शेर पँकज भाई और नीरज जी की दोस्ती के जरीये हम तक पहुँचे तो नया साल रँगीन हो गया !
बहुत सुँदर रहा ये प्रयास
"यशराज" बैनर ओफ नीरज जी"
यूँही हीट देता रहे :)
शुभकामना सहित,
- लावण्या
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
ReplyDeleteराधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से'
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है...
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है...नए साल का आगाज़ इतनी सुंदर ग़ज़ल से कराया इस के लिए धन्यवाद
-नीरज जी और पंकज जी ,आप और आपके परिवार को नव वर्ष की शुभकामनाएं।
bahut khoob neeraj ji.
ReplyDeleteदिल का टुकड़ा दे रहा है शुक्र उसका कीजिये
ReplyDeleteदान कोई भी बड़ा होता न कन्यादान से
बहुत ही मार्मिक शेर
बहुत ख़ूब
नीरज भाई,
ReplyDeleteआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए, आप मुझसे न जाने क्यों रूठ गए हैं लेकिन आपको मैं अक्सर याद करता हूं। आपको नए साल की बधाई, भगवान करे आपको स्वस्थ और ख़ुशहाल माहौल मिले और आपकी ग़ज़लें इसी तरह ख़िले।
सब अच्छा लगा, सिर्फ वो कन्यादान वाला छोड़कर। कन्या कोई वस्तु नहीं दान के लिए। क्या करें मतलब आड़े आ ही जता है।
ReplyDeleteदिल का टुकड़ा दे रहा है शुक्र उसका कीजिये
ReplyDeleteदान कोई भी बड़ा होता न कन्यादान से....बहुत सुन्दर. दिल को छूने वाली पंक्तियां !! कभी हमारे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com) पर भी आयें.
नव वर्ष की बहुत शुभ कामनाएं....और पंकज जी की ये रचना बहुत पसंद आई.
ReplyDeletevaah vaah karne ko mazboor hain ham
ReplyDeletevenus kesari
पूछिये मत चांद सूरज छुप गये जाकर कहां
ReplyDeleteडर गये हैं जुगनुओं के तुगलकी फरमान से
दिल का टुकड़ा दे रहा है शुक्र उसका कीजिये
दान कोई भी बड़ा होता न कन्यादान से
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नीरज जी,
ये शेर तो ...क्या कहूं ?
कमाल से भी बड़ी बात की मानिंद हैं.
सच...बेहद उम्दा...लाजवाब !
आप शायरी को जीती-जागती चेतना की
मिसाल बना देते हैं !...और सोच-समझ को
दुरुस्त करने वाला औजार भी !
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
ReplyDeleteराधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से
बहुत खूब ..
चाहता और पूजता जिनको रहा मैं उम्र भर
ReplyDeleteआज मेरे पास से गुजरे वही अन्जान से
दोस्ती हरगिज न करिये ऐसे लोगों से कभी
आंख से सुनते हैं जो और देखते हैं कान से
waah waah
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
राधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से
mere liye sher poori gazal par bhari hai....!lekin Anita Di ki baat se bhi sahamat ki badnaam krishna kaha hue vo to radha bechari ne odhi apne upar badanaami ki choonar
har sher itna khoobsoorat hai ki kehna hi kya..........itne achche sher padhwane ke liye shukriya.........
ReplyDeletechahta aur poojta jinko raha mein umra bhar
aaj mere pass se gujre wahi anjan se
kya khoob likha hai....haqeeqat bayan kar di
भइया, आने में देर हुई. इसके लिए क्षमा करें. पूरी गजल में एक से एक बढ़िया शेर हैं. आपके गुरुदेव पंकज सुबीर जी को मेरा प्रणाम.
ReplyDeleteधर्म से करते हो जैसे, जात से, परिवार से
वैसे थोड़ा प्यार करिए, अपने हिन्दुस्तान से
शानदार!
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
ReplyDeleteराधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से'
वाह जी, एक नया आयाम दे डाला ..हर शेर अपने आप में जबरदस्त. गुरु जी के तो क्या कहने.