हाथ में फूल दिल में गाली है
ये सियासत बड़ी निराली है
छीन लेती है नींद आंखों से
याद तेरी सनम मवाली है
भूलता है इमानदारी को
पेट जिसका जनाब खाली है
तोडिये मोह का जरा बंधन
फ़िर दिवाले में भी दिवाली है
आप की चाह आप की बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है
भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है
ये सियासत बड़ी निराली है
छीन लेती है नींद आंखों से
याद तेरी सनम मवाली है
भूलता है इमानदारी को
पेट जिसका जनाब खाली है
तोडिये मोह का जरा बंधन
फ़िर दिवाले में भी दिवाली है
आप की चाह आप की बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है
भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल है वाह-वाह.
ये दो शेर मुझे बहुत अच्छे लगे..............
आप की चाह आप की बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है
भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है
मुंह में राम बगल में छूरी के टक्कर की पंक्ति है हाथ में फूल और दिल में गाली!
ReplyDeleteऔर दोनो कहावतें राजनीति पर सटीक हैं!
kis sher kee tareef karu.n....! sabhi ek se badh kar ek...!
ReplyDeleteएक बार फिर आपने कमाल कर दिया, क्या लिखा है वाह!
ReplyDelete----------------------
http://prajapativinay.blogspot.com/
हूं नीरज जी ये तो ग़लत बात है ऊंट की चोरी न्योरे न्योरे .... हा हा हा ।
ReplyDeleteअपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है
बढि़या ग़ज़ल है । आप को एक काम दे रखा है उसका याद रखें । तरही मुशायरा आज पूरा हो चका है अब आपके निर्णय की प्रतिक्षा चल रही है ।
सही है जब तक बात मानो तब तक ही अपना है ! बेहद खूबसुरत अल्फ़ाज ! बधाई !
ReplyDeleteरामराम !
हाथ में फूल दिल में गाली है
ReplyDeleteये सियासत बड़ी निराली है
bahut khoob, bahut badhia.
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
ReplyDeleteबात जब तक न उसकी टाली है
जिंदगी से उठाये गए लम्हे है....अब इन्हे शेर कहे या कुछ ओर....
भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
ReplyDeleteहो गयी हर नज़र सवाली है
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है
नीरज जी
सारे के सारे शेर लाजवाब हैं, इन दो शेरों ने तो दिल छीन लिया है
क्या गज़ब ढाते हैं आप
apna ban kar raha hai vo neeraj baat jab tak na uski tali hai ---kya khoob kaha hai
ReplyDeleteहाथ में फूल दिल में गाली है
ReplyDeleteये सियासत बड़ी निराली है
........
neerajji ki yah baat bhi niraali hai,
bahut jabardast andaaje bayaan hai
lajvab likhte hain aap
ReplyDeleteआज की हकीकत कह दी जी। हर शेर मेरी पसंद का है।बहुत खूब। पर ये दौर बदलना चाहिए जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteभीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
ReplyDeleteहो गयी हर नज़र सवाली है
वाह!
हाथ में फूल दिल में गाली है
ReplyDeleteये सियासत बड़ी निराली है
बहुत सुंदर।
वाह नीरज जी...ये तो जुदा ही अंदाज था
ReplyDeleteछीन लेती है नींद आंखों से
याद तेरी सनम मवाली है
बहुत खूब सर..बहुत खूब
बहुत सुंदर है नीरज भाई...बेहतरीन गजल।
ReplyDeleteबेहद उम्दा ख्याल लिए सभी शेर बहुत सुंदर हैं..
ReplyDeleteहाथ में फूल दिल में गाली है
ReplyDeleteये सियासत बड़ी निराली है
वाह नीरज जी क्या बात है मजा आ गया आप की कविता पढ कर, बिलकुल सही लिखा आप ने मने देखा है अकसर ऎसे हालात.... मुस्कुरा कर फ़ुल देते है..... ओर मन ही मन...
धन्यवाद
" नीरज
ReplyDeleteबात जब तक न उसकी टाली है"
अरे आपकी बात कौन टालेगा जी ? :)
बहुत खूब
लिखते रहेँ इसी भाँति ~~~`
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बहुत ही सुंदर - मगर नीचे की दो लाइनें ख़ास अच्छी लगीं:
ReplyDeleteआप की चाह आप की बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है
और यह दो लाइनें तो जैसे मेरे दिल की ही बात हैं:
भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है
'आपकी चाह,आपकी बातें
ReplyDeleteज़िन्दगी इसमें ही निकाली है।'
बहुत ख़ूब। शक़ील की याद ताज़ा कर दी आपने।
बधाई।
भूलता है इमानदारी को
ReplyDeleteपेट जिसका जनाब खाली है
Ye pakka nahin hai!!
:)
neeraji smaaj ki sachi tasbeer dikhai hai is tasveer ko badalne ke nuskhe bhe sujhaeye bahut 2 bdhaai
ReplyDeletesir,
ReplyDeleteab kya tareef karun , har sher apne aap mein ek mukkammal kahani hai ...
aapne zindagi ki kahani ko kya alfaaz diye hai ..
bahut bahut badhai ..
vijay
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
ReplyDeleteबात जब तक न उसकी टाली है
आपने तो सच का लिबास फाड़कर रख दिया... धारधार शेर
भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
ReplyDeleteहो गयी हर नज़र सवाली है
"बेहद खूबसुरत , सारे के सारे शेर लाजवाब हैं"
Regards
आप की चाह आप की बातें
ReplyDeleteज़िन्दगी इसमें ही निकाली है..bahut acchhey
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ। आखरी लाइनें जिंदगी के गूढ़ भाव बड़ी सरलता से बताती हैं।
ReplyDeleteहाथ में फूल दिल में गाली है
ReplyDeleteये सियासत बड़ी निराली है
बेहद खूबसूरत ...
Gyan Dutt aur Anurag ji ki bat se sahmat hun.
आप की चाह आप की बातें
ReplyDeleteज़िन्दगी इसमें ही निकाली है
बहुत खूब ..बहुत बढ़िया लिखा है आपने नीरज जी ..
भाई नीरज जी,
ReplyDeleteआपकी उम्दा ग़ज़ल के लगभग सारे शेर तो गज़ब ढा रहे हैं और ज़िंदगी की सच्चाइयों पर प्रकश डाल रहे है, इसकी बधाई स्वीकार करें
पर इस उम्दा ग़ज़ल का निम्न शेर.........
भूलता है इमानदारी को
पेट जिसका जनाब खाली है
कम से कम मुझे न तो उचित प्रतीत होता है और साथ ही हर उस गरीब, भुखमरी के कगार पर भी पहुचने के बाद इमानदारी न त्यागने वालों के मुंह पर तमाचा सा प्रतीत हो रहा है.
वस्तुतः इमानदारी का त्याग कमज़ोर इक्षाशक्ति रखने वाले धन के लोभी ही होते है.
आज इमानदारी कहाँ दृष्टिगत हो रही है, इसका मतलब ये नही की सब के पेट खाली है.
बईमानी करने को कौन प्रेरित करता है ?
अहम् प्रश्न यह है.
इसके जवाब में जो भी उत्तर है उनसे हार स्वीकार करने वाला ही बईमानी को उद्धत होता है.
यदि मेरे विचार आप को आघात पहुँचा रहे है तो क्षमा प्रार्थी हूँ.
वैसे आपको बता दूँ की प्रसिद्ध साहित्यकार माननीय अमरकांत जी इन दिनों गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं और धनाभाव से पुख्ता इलाज भी नही करा पा रहे hain , इन्ही अमर कान्त जी अपनी जवानी के दिनों में कितने लाचार लोगों का इलाज अपने पैसे से करवाया था तो क्या आज अमरकांत जी भी ........................हो गए होंगे. शायद नही, वो उस कमज़ोर मिट्टी के नही बने है.
विचार कटु होने की अनुभूति से एक बार फ़िर से मैं क्षमा याचना करता हूँ. किंतु जैसी अनुभूति हुई उसे बयां करने से भी मैं स्वयं को न रोक सका.
आशा है अन्यथा न लेंगें.
चन्द्र मोहन गुप्त
भूलता है इमानदारी को
ReplyDeleteपेट जिसका जनाब खाली है
तोडिये मोह का जरा बंधन
फ़िर दिवाले में भी दिवाली है
बहोत खूब नीरज जी बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली... ढेरो बधाई स्वीकारें ..
अर्श
जब भी लिखते हैं, खूब लिखते हैं...कैसे तारीफ़ करूं?...एक-एक शेर शानदार.
ReplyDeleteगजनट!
ReplyDeleteभीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
ReplyDeleteहो गयी हर नज़र सवाली है
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है
अतिसुंदर! आपके ब्लाग पर आकर हमेंशा सुखद अनुभूति होती है।
नीरज जी,
ReplyDeleteदुनियादारी की तल्ख़ हक़ीकत
बता दी आपने इस सुलझी हुई
पेशकश में....वरना बात रखने
और उसे टाल देने के बीच बनते-बिगड़ते
रिश्तों की ऐसी खूबसूरत पड़ताल आसान नहीं है !
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शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बेहद सुंदर कविता. आपकी लेखनी में दम है.इस ब्लॉग पर आकर प्रसन्नता का अनुभव हुआ. कभी आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें !!
ReplyDeleteबहुत खूब्!लाजवाब,हर शेर उम्दा
ReplyDeleteसच्चाई को शब्दों में बाखूबी पिरोया आपने.
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
ReplyDeleteबात जब तक न उसकी टाली है|
bahut hi sahi baat kahi hai.
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
ReplyDeleteबात जब तक न उसकी टाली है
क्या बात कहे दी सर जी कमाल का लिखा है बहुत ही गहरा ....
सही बात हैं सभी की सभी सारे के सारे शेर लाजवाब हैं....
अक्षय-मन