परिचय: अनीता जी ने मनो विज्ञानं में एम् ऐ किया है और नवी मुंबई के एक कालेज में लेक्चरार हैं...इनका एक ब्लॉग भी है जो बहुत सम्मान के साथ पढ़ा जाता है. लजीज खाना पकाने की विधियां सिखाने के अलावा ये बहुत खूबसूरत कविता भी लिखती हैं...
मुस्कुराते हुए अनीता जी मंच पर आयीं, उनके पुष्प गुच्छ दिया गया जिसे देख वो बोली की शायद इस फूल पर मेरा नाम लिखा था इसलिए मैं मंच पर हूँ जबकि वो ये सोच कर बिल्कुल नहीं आयीं थीं यहाँ की उनको अपनी कोई रचना भी सुनानी पड़ेगी...वो सिर्फ़ श्रोता बन कर आयीं हैं और श्रोता ही बने रहना चाहती हैं...देवमणि जी के आग्रह पर की आप कुछ तो कहें तो उन्होंने जो कहा उसे लिखते हुए मेरे हाथ काँप रहे हैं...उन्होंने गुरुदेव पंकज सुबीर जी(http://subeerin.blogspot.com/2008/09/blog-post.html) के ब्लॉग में छपी एक पोस्ट के हवाले से जिसमें उन्होंने मेरे बारे में कुछ आवश्यकता से अधिक प्रशंशनीय शब्दों का उदारता से प्रयोग किया है, कहा की....छोडिये....नहीं बता सकता क्यूँ की....मैं उनकी बातें सुन कर गर्म तवे पर रख्खे बर्फ के टुकड़े की मानिंद पानी पानी हो गया. इतनी भरी सभा में अपनी प्रशंशा सुनने का ये मेरा पहला अनुभव था. आसपास बैठे लोग मुझे शंकालु नजरों से घूरने लगे, बहुत सो ने अपनी गर्दन दूसरी और घुमा ली जैसे की जिसके बारे में कहा जा रहा है वो कोई और हो. कुछ एक ने बाद में कहा की नीरज जी आप तो ऐसे ना थे.हमने आपको क्या समझा...लेकिन आप तो शायर निकले च च च च....मेरा बैंड बजा कर अनीता जी मुस्कुराती हुई वापस अपनी जगह पर बैठ गयीं.
देवमणि जी भी शायद अनीता जी से सिर्फ़ मेरी प्रशंशा सुन कर कुछ निराश से लगे लेकिन उन्होंने अपने भाव छुपाते हुए निमंत्रित किया रेखा रौशनी जी को.
परिचय: रेखा जी वकील हैं, हाई कोर्ट की क्रिमिनल लायर और दिल से शायरी करती हैं...आपने देश भर में बहुत से मुशायरों में शिरकत की है और अपने कलाम से वाह वाही लूटी है. गुजरात के कच्छ की रेखा जी "रौशनी" के उप-नाम से लिखती हैं.
बहुत ठहरी हुई आवाज में इत्मीनान से उन्होंने ये ग़ज़लें सुनाई...
जहाँ में मुस्कुराना सीख लो तुम
दिलों से दिल मिलाना सीख लो तुम
न जाने कब कटे साँसों की डोरी
किसी के काम आना सीख लो तुम
दुआ बन कर के गूंजे हर जुबां से
कोई ऐसा तराना सीख लो तुम
सफर में काम आए वक्ते मुश्किल
हुनर कोई सुहाना सीख लो तुम
जहाँ में कोई भी दुश्मन नहीं हो
सभी से दोस्ताना सीख लो तुम
******
दिल का आना दिल का जाना दिल दीवाना, जाने भी दो
जान के भी है धोखा खाना फ़िर पछताना, जाने भी दो
जिसको तुमने अपना जाना उसने तो है दिल को तोडा
अपना है या वो बेगाना बन अनजाना, जाने भी दो
शम्मा की मानिंद है जलना शम्मा की मानिंद पिघलना
इश्क में पड़ता है मिट जाना ये अफसाना, जाने भी दो
तुम जो बिछुडे जान लिया है अपनों को पहचान लिया है
क्या है हकीकत क्या है फ़साना और जमाना, जाने भी दो
नजराना है उसकी चाहत "रौशनी" अपनी अपनी किस्मत
नसीब है बस फ़र्ज़ निभाना ये टकराना ,जाने भी दो
तालियों के शोर से इस बात का अंदाजा हो गया की उनकी रचनाएँ कितनी पसंद की गयीं हैं. हैरानी ये सोच के हुई की कैसे इतने मासूम ख्यालों की मलिका खूंखार अपराधियों से कटघरे में जिरह करती होंगी.
रेखा जी के बाद आवाज दे रहा हूँ अपनी कविताओं के माध्यम से झकझोर कर जगाने वाले श्री किरण कान्त वर्मा जी को
परिचय: पटना के रंग मंच से बरसों जुड़े किरण जी आजकल मुंबई में भोजपुरी फिल्मों के निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं. आपने लगभग आधा दर्जन फिल्मों का सफल निर्देशन किया है, निर्देशन से समय मिलते ही लिखने और काव्य श्रवण का आनंद लेते हैं.
व्यक्तित्व
मेरा व्यक्तित्व टुकड़े टुकड़े बंधक है
किसी आस्था
किसी संस्था
किसी व्यक्ति के पास
मुझसे किरणे फूटती हैं कभी कभी
अँधेरा छटने को होता है
तभी जिस तरह बड़ी मछली निगल जाती है
छोटी मछली को
मेरे मैं को लील लेता है
उसी तरह
कभी कोई व्यक्ति
कभी कोई आस्था
कभी कोई संस्था
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भूख
गली के उस मोड़ पर पड़ा
बंद मुठ्ठियों वाला वो मुर्दा आदमी
मुझे डरा गया
भूख का इतिहास
कुछ और गहरा गया
जी में आया कुछ पैसे जोड़ दूँ
शवदाह के लिए
डरा
कहीं मार ना बैठे
अपनी बंद भिंची मुठ्ठियों से
क्यूँ की उसकी पथरायी आँखों
और जड़ होते होठों के कोने में लिखा था
भूख का इतिहास
आदमी के द्वारा आदमी का सर्वनाश
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राजनीती
हैंगर पर टंगी कमीजों में
एक भी तो ऐसी नहीं
जिसे पहन कर हम अपना नंगा पन ढक सकते
रंग जरूर इनके अलग अलग हैं
फर्क सिलाई में भी है
परन्तु छेद सभी में हैं
कोई पेट के पास फटी है
किसी का दिल गायब है
और कुछ पैबंद लगे हैं
जिन पर रंगों का बेमेल होना
बार बार खटकता है
फ़िर भी इन्हीं में से किसी एक को
लगातार पॉँच वर्षों तक
अपने ऊपर लादे रहने की हमारी मजबूरी
रह रह कर अन्दर से कोंचती है
दोस्तों किरण जी ने इस काव्य संध्या को नई ऊँचाई दी है, इसे बरक़रार रखते हुए अब बुलाते हैं मलिकाए ग़ज़ल सादिका नवाब साहिबा को
परिचय: सादिका नवाब साहिबा ने हिन्दी, उर्दू और इंग्लिश में एम्.ऐ. की हुई हैं और साथ ही पी.ऐच.डी भी ,आप खोपोली के के.एम्.सी कालेज के हिन्दी विभाग में रीडर हैं. इनकी बहुत सी किताबें शाया हो चुकी हैं, बरसों से अलग अलग मंचों से शायरी करते हुए इन्होने अपना एक् खास मुकाम हासिल किया है. आप "सहर" तखल्लुस से लिखती हैं.
सादिका जी ने एक् छोटी सी नज़्म से अपनी शायरी के सफर को शुरू किया:
आग की गाड़ी
रुकते चलते मुझ तक पहुँची
तुम तक पहुँची
तुमने दामन अपना बचाया
छोड़ के आग की गाड़ी का
वो तपिश का साया
कूलर की ठंडी छावं में
मन भरमाया
आग की गाड़ी से
मैंने कुछ अंगारे ले
अपने दामन को सजाया.
******
जो मुश्किलात में हंस कर यहाँ निभा लेगा
मुझे यकीं है वो मंजिल जरूर पा लेगा
मुझे ना ढूंढ तुझे अब न मिल सकूँगी मैं
इस आरजू में कहीं ख़ुद को तू गवां लेगा
जूनून-ऐ-इश्क को क्यूँ रहनुमा ही हाज़त* हो
ये बहता पानी है ख़ुद रास्ता बना लेगा
मैं अपनी शायरी क़दमों में तेरे रख दूँगी
मुझे यकीन है पलकों से तू उठा लेगा
तू हमसफ़र है मेरा मुझको कोई फ़िक्र नहीं
मैं लड़खड़ाउं तो अब तू मुझे संभालेगा
खिरद** के साये से मुझको खुदा बचाए "सहर"
नहीं तो राहे जुनूं से मुझे हटा लेगा
* हाजत: जरुरत, **खिरद: अक्ल
********
उनका एक् शेर सुनिए:
मेरे खिलाफ अगर तू जबान खोलेगा
मेरी सफाई में तेरा ज़मीर बोलेगा
*******
और आख़िर में एक् ग़ज़ल के चंद शेर:
अब भी आंखों में ख्वाब बाकी है
मयकदे में शराब बाकी है
हमने पूछा था तुमसे एक् सवाल
अब भी उसका जवाब बाकी है
आए इन्किलाब कई ऐ "सहर"
आखरी इन्किलाब बाकी है
********
श्रोताओं की और और की फरमाईश पर उन्होंने कहा की वो खोपोली की ही हैं कभी भी आ जाएँगी...इस वक्त इजाजत चाहेंगी क्यूँ की उन्हें रोजा खोलने के लिए जल्द घर पहुंचना है. क्या करते सभी श्रोता मन मसोस कर रह गए.
दोस्तों ये थी एक कड़वी खुराक , अब हमारे पास आखरी कुछ शायर ,कवि बचे हैं जिन्हें आप की और हमारी सेहत का ध्यान रखते हुए अभी बुलाना ठीक नहीं है, इसलिए मजबूरी वश ले रहे हैं एक छोटा सा कमर्सिअल ब्रेक...आप इस बीच कहीं भी जाईये लेकिन लौट जरूर आयीयेगा...
"वज्र दंती...वज्र दंती..वीको वज्र दंती...टूथ पाउडर टूथ पेस्ट...आर्युवैदिक जडी बूटियों से बनाई पूर्ण स्वदेशी...टूथ पाउडर टूथ पेस्ट...वीको वज्र दंती...टन्न..."
"न जाने कब कटे साँसों की डोरी
ReplyDeleteकिसी के काम आना सीख लो तुम"
ये बहुत पसंद आई ओर कवि सम्मेलन भी..
कैसे रखूं मै सब हिसाब...
ReplyDeleteअभी तो ओर कितनी शाम बाकी है....
नीरज जी खुराक कड़वी नही है..मीठी है....सचमुच आप मेहनत कर रहे है ,बधाई के पात्र है
जो मुश्किलात में हंस कर यहाँ निभा लेगा
ReplyDeleteमुझे यकीं है वो मंजिल जरूर पा लेगा
मुझे ना ढूंढ तुझे अब न मिल सकूँगी मैं
इस आरजू में कहीं ख़ुद को तू गवां लेगा
जूनून-ऐ-इश्क को क्यूँ रहनुमा ही हाज़त* हो
ये बहता पानी है ख़ुद रास्ता बना लेगा
मैं अपनी शायरी क़दमों में तेरे रख दूँगी
मुझे यकीन है पलकों से तू उठा लेगा
शानदार...
कवि सम्मलेन की रिपोर्ट ब्लॉग पर देने की बेहतर कोशिश है...
न जाने कब कटे साँसों की डोरी
ReplyDeleteकिसी के काम आना सीख लो तुम
दुआ बन कर के गूंजे हर जुबां से
कोई ऐसा तराना सीख लो तुम
तीसरी खुराक और भी जबरदस्त है ..बहुत बढ़िया पेशकश है यह नीरज जी ..
जहाँ में मुस्कुराना सीख लो तुम
ReplyDeleteदिलों से दिल मिलाना सीख लो तुम
न जाने कब कटे साँसों की डोरी
किसी के काम आना सीख लो तुम
" very beautiful words, full of love and life. great and nice experience by reading all three epesode of this ocassion"
Regards
मेरे खिलाफ अगर तू जबान खोलेगा
ReplyDeleteमेरी सफाई में तेरा ज़मीर बोलेगा
ye sher bahut umda laga....aur itne naye naye shaayron ka parichay paakar bahut achcha laga.shama jalaye rakhiye.
मैं अधिकतर लंबी पोस्ट में से चुनिंदा हिस्से ही पढ़ता हूं पर आज की पोस्ट पढ़ने में मजा आगया। और कुछ शेर और नज्म तो बेहतरीन थे
ReplyDeleteजो मुझे अच्छा लगा वो ये---
मेरे खिलाफ अगर तू जबान खोलेगा
मेरी सफाई में तेरा ज़मीर बोलेगा
दो लाइनें ही काफी हैं गुल को गुलिस्तां बताने के लिए।
खुराक कड़वी थी.. पर अब थोड़ी राहत है... अजी राहत फ़तेह अली ख़ान नही..
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद इस तीसरी कड़वी नही, मीठी खुराक के लिए ! बहुत
ReplyDeleteआनंद आया !
गलत! यह पोस्ट तो शूगर कोटेड शूगर है जी। और आपके लेखन स्टाइल पर पुन: साधुवाद।
ReplyDeleteअनीता जी ने कविता न पढ़ निराश किया। आपकी प्रशंसा में ही पढ़ देतीं कविता!
कवि सम्मेलन में शामिल करने का शुक्रिया।
ReplyDeleteएक से बढाकर एक शायर, शायरा और कवि. इतनी बढ़िया प्रस्तुति के लिए आपको क्या दूँ भैया? हाँ, एक बात कहूँगा कि खोपोली महाराष्ट्र का काव्यस्थान है.
ReplyDeleteहम सम्पूर्ण स्वदेशी वीको बज्रदंती से दांत साफकर के आते हैं. (दांत ही साफ़ करना पड़ेगा...आख़िर दिल साफ़ करने वाला स्वदेशी तो क्या विदेशी 'बज्रदिल्ली' अभी तक नहीं बना. वैसे बनेगा भी तो भाई लोग उसमें भी ऐसी मिलावट कर देंगे कि दिल और कचड़ा हो जायेगा.)
तो हम दांत साफ़ करके आते हैं. (ये न समझें कि कविता खाने के लिए दांत साफ़ कर रहे हैं)....आप अगली खुराक का इंताम कीजिये.
तीसरा डोज़ भी जबरदस्त है
ReplyDeleteनीरज जी.....तबीयत दुरुस्त
करके ही छोडेंगे आप !...
गनीमत है ब्रेक दे दिया
लेकिन हम तो कहीं जाने से रहे.
जमे हैं अगली खुराक के
इंतज़ार में......
सच बहुत अच्छा लग रहा है
आपका काव्य प्रेम और उसकी
यह साझा प्रस्तुति.
========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
क्या कहने ..
ReplyDeleteइतने उमदा रचनाकारोँ से मिलवा रहे हैँ आप और इतनी विनम्रता से !
अब अनीता जी की सारी प्रशँशा सही लग रहीँ हैँ :)
ऐसी ही कड़वी खुराक खिलाया कीजिये... सबको डायबिटीज हो जायेगा :-)
ReplyDeleteआपकी कड़वी खुराक में मेरे मतलब की एक जरुरी दवा मिल गई-
ReplyDeleteजहाँ में मुस्कुराना सीख लो तुम
दिलों से दिल मिलाना सीख लो तुम
न जाने कब कटे साँसों की डोरी
किसी के काम आना सीख लो तुम
दुआ बन कर के गूंजे हर जुबां से
कोई ऐसा तराना सीख लो तुम
सफर में काम आए वक्ते मुश्किल
हुनर कोई सुहाना सीख लो तुम
जहाँ में कोई भी दुश्मन नहीं हो
सभी से दोस्ताना सीख लो तुम
आम तौर पे मुशायरे में पेट खराब होने का खतरा रहता है, इस बहाने लोग कुर्सी छोड़कर बाहर निकल जाते हैं, पर आपकी खुराक ने हाजमा बिगड़ने नहीं दिया। (बहुत अच्छा आयोजन रहा।)
मैं अपनी शायरी क़दमों में तेरे रख दूँगी
ReplyDeleteमुझे यकीन है पलकों से तू उठा लेगा
-क्या क्या रह गया सुनने से..क्या कुछ टेप भी किया है?? अगर हाँ तो पॉडकास्ट करें. गज़ब आयोजन रहा भई!!
आप तो देते रहिये...
ReplyDeleteकड़वी या मीठी इसका फैसला तो हमने करना है दादा..
तीसरी खुराक और भी जबरदस्त है
ReplyDeleteबेहद सटीक प्रस्तुति है आपकी पढ़ कर आनंद आनंद हो गए
होता अक्सर ये है की किसी को अगर कही अपना नाम लिखा दिख जाता है तो उसको बड़ी प्रसन्नता होती है
जैसे कही वीनस लिखा हो तो हमें बड़ा बचकाना सा मज़ा आता है
चाहे उस नाम के साथ कुछ भी जुदा हो
जैसे वीनस चप्पल और जूते ( मज़बूत टिकाऊ और सुंदर )
मगर आज तो बड़ी प्रसन्नता हुई जब आपने पोस्ट में शुरुआत ही मेरे नाम के साथ की (नीरज जी धन्यवाद )
तो अब हम क्या कहे आपको हम तो रोज़ आते थे खुराक लेने क्योकि आपने ही कहा था की चार खुराक नियमित चलेगी तो मर्ज़ से छुटकारा मिएगा सो हम बाल सुलभ मन से सोंच बैट की नियमित का मतलब प्रतिदिन होता है
जरा सा भी बुद्धि न लगाये की नियमित का मतलब होता है नियम से
और नियम क्या है हमको इ तो पता ही न था सो रोजे चक्कर पे चाकर लगावत रहे
चलिए अच्छा हुआ इस्सी बहने हमारा नाम आपके श्री मुख से सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हम तो एक सेकेण्ड में हिसाब लगे लिए की अगर ३०-४० टिप्पडी आपकी पोस्टों में आती है तो कम से कम ३००-४०० लोग तो हमारा नाम हमारे सन्दर्भ में पढेगे ही
पहली खुराक पहले दिन मिली
दूसरी खुराक दूसरे दिन और तीसरी खुराक पांचवे दिन
चौथी खुराक का दिन भी मुकर्रर होगा सो बताने का कास्ट करें जिससे समय से रोगी को खुराक मिल सके
आपका वीनस केसरी
सबसे अच्छी कविता लगी
ReplyDeleteवज्रदंती वज्रदंती वीको वज्रदंती
आपने शासर का नाम नहीं लिखा
हा हा हा
neeraj bhaiya,,,,aap itni mehnat se post likhte hai ki....par bahut hi meethi lagi , kadwi nahi
ReplyDeleteभाई नीरज जी,
ReplyDeleteतीसरी जबरदस्त खुराक ने बन्दे को इसलायक बना दिया की अब मजाक कर हँसाने-हँसाने की हालत में आ गया है, सो आप झेलने के लिए तैयार हो जाय. आपकी प्रस्तुति के कुछ अंशों को काट कर और नए अंदाज में जोड़ कर प्रस्तुत कर रहा हूँ,
श्रोताओं की और-और की फरमाईश पर उन्होंने कहा की वो खोपोली की ही हैं कभी भी आ जाएँगी...
दोस्तों ये थी एक कड़वी खुराक...........
आर्युवैदिक जडी बूटियों से बनाई पूर्ण स्वदेशी
अगर बुरा लगा हो तो मेरी हालत पतली कर दें, चिंता नही क्योंकि आपकी चौथी जबरदस्त खुराक मुझे फिर से स्वस्थ बना देगी....
शानदार प्रस्तुतिकरण के लिए आप निःसंदेह हार्दिक बधाइयों के पात्र हैं.
चन्द्र मोहन गुप्त
प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteहमको तो लगा वैध जी हमारे घर तक आए है तो चौथी खुराक भी दे जायेगे नही तो ख़बर तो कर ही जायेगे की बेटा फलानी तारिख को दवाई बटेगी सो आकर ले जाना
एक विशेष बात चिटठा चर्चा में कहा गया है की आप तीन खुराक ही देने वाले थे और अब खुराकी बंद
शायद उन्होंने तीसरी कड़वी खुराक की जगह तीसरी आख़िरी खुराक पढ़ लिया है :) :)
शंका समाधान करिए
वीनस केसरी
जूनून-ऐ-इश्क को क्यूँ रहनुमा ही हाज़त* हो
ReplyDeleteये बहता पानी है ख़ुद रास्ता बना लेगा
....मजा आ गया नीरज जी.मेहरबानी आपकी इन तमाम खुराकों की प्रस्तुती के लिये.
Aadarniya Neeraj saheb,
ReplyDeleteaapkee in pichhlee sabhi poston ka bahtareen sankalan hona chahiye jee . Ye dharohar se kam nazar nahin aaee mujhko. Palkon se utha loongee aur zameer bolega bahut gahree aur khoobsoorat batain hain. Aindaa zaroor padhee, dekhee, samjhee aur manan kee jani chahiye. Bahut aabhar jee aapka in poston ke liye. Phir milenge.
अनीता जी की टिपण्णी जो उन्होंने मेल से भेजी.....
ReplyDelete"नीरज जी
मेरी टिप्पणी पब्लिश नही हो पा रही प्लीज आप कर दें:
"नीरज जी बैंड तो मेरा बज गया था और ऐसा बजा कि मुझे ताउम्र याद रहेगा अपनी कम अक्ली का एक नमूना। लेकिन जो मैं ने कहा वो एक एक शब्द सच था और दिल से था, हम सुबीर जी से एक्दम सहमत हैं । समय मिलते ही सुबीर जी की पुरानी पोस्ट्स पढ़ेगें समझने के लिए कि क्लास में क्या चल रहा है अभी तो कुछ समझ नहीं आता।
सिर्फ़ एक करेक्शन करना चाहूंगीं , मेरा कॉलेज चेम्बूर में है,नवी मुंबई में नहीं। मुझ नाचीज को इतनी इज्जत बख्शने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
अनीता."
बहुत खूब बहुत खूब।
ReplyDeleteजितनी प्यारी कविताएं, उसी टक्कर कर संचालन। पढकर लगा जैसे साक्षात कवि सम्मेलन में पहुंच गया हूं।
kavi sammelan bahut achcha laga......
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