Monday, June 2, 2008

मत डरो तूफ़ान से





बांधती जो दायरों में काट डालें रस्सियाँ
दूर करदें अब दिलों में बस गयी जो तल्खियां

मत डरो तूफ़ान से ये बात रखना याद तुम
डूब जाती हैं किनारों पर खड़ी भी कश्तियाँ

इक सुकूँ मिलता है दिल को आज़मा कर देखिये
जब अजां के साथ बजती मंदिरों की घंटियाँ

मत बढाओ इस कदर आपस में यारों फासले
आग नफरत की करे है राख दिल की बस्तियां

अनसुनी करके बशर पछता रहा इस बात को
चार दिन की ज़िंदगी में खूब कर लो मस्तियां

तुम जिसे थे कोख ही में मारने की सोचते
कल बनेगीं वो सहारा देख लेना बच्चियां

पूछता है कौन "नीरज" गुलशनो के हाल को
छोड़ जाती हैं शजर को जब खिजां की पत्तियां
(ये ग़ज़ल प्राण शर्मा जी की इस्लाह के बिना कहना ना मुमकिन था। मैं उनका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.)

11 comments:

  1. मत डरो तूफ़ान से ये बात रखना याद तुम
    डूब जाती हैं किनारों पर खड़ी भी कश्तियाँ

    bahut hi sundar trike se kahi gyi gazal.

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  2. बहुत खूब!
    हमेशा की तरह...आपकी गजल जब पढता हूँ तो लगता है जैसे जीवन जीने का तरीका सीखने के लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं. बस यहीं आने से सारे तरीके मिल जायेंगे.

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  3. अनसुनी करके बशर पछता रहा इस बात को
    चार दिन की ज़िंदगी में खूब कर लो मस्तियां


    पूछता है कौन "नीरज" गुलशनो के हाल को
    छोड़ कर जाती शजर को जब खिजाँ में पत्तियां

    वह नीरज जी ....एक बार फ़िर आप छा गये .....ये शेर बेहद पसंद आये......

    एक बात ओर अपनी नन्ही गुडिया पर काला टीका लगा कर रखिये ,जब भी आपके ब्लॉग पर आता हूँ....उस पर नजर जाती है....

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  4. एक और कमाल !
    नीरज जी, इसे सिर्फ़ ग़ज़ल कहना मुनासिब नहीं.
    जो सुन सके वो पाएगा कि ये तो अज़ां के साथ
    बजती मंदिरों की घंटियों की तरह ही है.
    रहीम और राम साथ-साथ मौज़ूद हैं हर शेर में.
    ===============================
    शुक्रिया...धन्यवाद !
    आपका
    चंद्रकुमार

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  5. वाह वड्डे पप्पाजी.
    बहुत खूब.
    शिव की बात का दिल से समर्थन करता हूँ.
    और क्या कहूँ?

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  6. मत डरो तूफ़ान से ये बात रखना याद तुम
    डूब जाती हैं किनारों पर खड़ी भी कश्तियाँ

    अनसुनी करके बशर पछता रहा इस बात को
    चार दिन की ज़िंदगी में खूब कर लो मस्तियां

    पूछता है कौन "नीरज" गुलशनो के हाल को
    छोड़ कर जाती शजर को जब खिजाँ में पत्तियां

    हर शेर बेहतरीन है। जो खास अच्छे लगे उपर उद्धरित कर रहा हूँ।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  7. मत डरो तूफ़ान से ये बात रखना याद तुम
    डूब जाती हैं किनारों पर खड़ी भी कश्तियाँ


    -सभी शेर उम्दा हैं, बहुत खूब, बेहतरीन.

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  8. बहुत प्रेरक लगती है यह कविता नीरज जी। बहुत धन्यवाद। और आपके लेखन से बहुत ईर्ष्या भी!

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  9. भाई नीरज जी,
    आपकी गजल के हर शेर काबिले-तारीफ है. निम्न शेर पर
    बांधती जो दायरों में काट डालें रस्सियाँ
    दूर करदें अब दिलों में बस गयी जो तल्खियां

    हमारी बयाने- अदा कुछ यूँ है :

    अगर बंधोंगे माया - मोहों में
    बन्धन से तो विस्तार रुकेगा
    अगर डरोगे तुम गिरने से तो
    डर से रह-रह हर बार गिरेगा
    "जीना" दुनियाँ में व्यापार बना है
    "सब देना" कुछ पाने का द्वार बना है
    पर बंधने पर श्रद्धा के बन्धन में
    न खोने-पाने का संस्कार बनेगा

    प्रतिक्रिया से अवगत करायें

    आप का अनुज,
    चंद्र मोहन गुप्ता "मुमुक्षु"
    जयपुर

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  10. नीरज जी
    बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है-
    मत बढाओ इस कदर आपस में यारों फासले
    आग नफरत की करे है राख दिल की बस्तियां

    अनसुनी करके बशर पछता रहा इस बात को
    चार दिन की ज़िंदगी में खूब कर लो मस्तियां
    बधाई स्वीकारें।

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे