जड़ जिसने भी काटी प्यारे
अपना ही था साथी प्यारे
सच्चा तो सूली पे लटके
लुच्चे को है माफ़ी प्यारे
उलटी सीधी सब मनवा ले
रख हाथों में लाठी प्यारे
सोचो क्या होगा गुलशन का
माली रखता आरी प्यारे
इक तो राहें काटों वाली
दूजे दुश्मन राही प्यारे
भोला कहने से अच्छा है
देदो मुझको गाली प्यारे
मन अमराई यादें कोयल
जब जी चाहे गाती प्यारे
तेरी पीड़ा से वो तड़पे
समझो सच्ची यारी प्यारे
तन्हा जीना ऐसे नीरज
ज्यूँ बादल बिन पानी प्यारे
वाह! वाह! बहुत खूब!
ReplyDeleteजनाबे नीरज साहिब
ReplyDeleteहोली के बाद आपकी शायरी में निखार आया है
दोनों गज़लें देखीं एक खूबसूरत एक खूबसीरत
ख़याल की पाकीज़गी ज़बान की दिलकशी
शगुफ्तगी और ताजगी. आपका कलाम
आपके दिल की आवाज़ है
दर्द है गुदाज़ है
सोज़ है साज़ है
दिल से निकले और दिल में पहुंचे
की खूबसूरत मिसाल है
उसकी गली से गुज़रा तो "चाँद" यह लगा है
वोह ओट से परदे सरका रहा है शायद
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क
तन्हा जीना ऐसे नीरज
ReplyDeleteज्यूँ बादल बिन पानी प्यारे
--वाह जी वाह!! बहुत खूब...
२३/२४/२५ को मुम्बई में हूँ..२६ को फ्लाईट है.
फोन जो अभी और उस वक्त मेरे पास ही रहेगा:
९८ २६१ २१४३१
सादर
समीर
तन्हा जीना ऐसे नीरज
ReplyDeleteज्यूँ बादल बिन पानी प्यारे
bahut khuub!
मन अमराई यादें कोयल
ReplyDeleteजब जी चाहे गाती प्यारे
बहुत सुंदर !
नीरज जी आपके धुंआधार फैनों में एक मेरा नाम भ्ीा शामिल कर लें । आप तो ऐसा लगता है कि सारे काफिये निबटा कर ही छोड़ेंगें कि किसी और के लिये कुछ बचे ही नहीं । इस बार भी आपने अच्छे प्रयोग किये हैं । अभी कुछ स्तंभित हूं अत: कुछ कर नहीं रहा हूं पर शीघ्र ही ब्लागिंग में लौटूंगा
ReplyDeleteऐसे सरल तरीके से शब्दों को गूंथ कर तिलस्म पैदा कर देते है आप। किन शब्दों में अपना विस्मय व्यक्त करें!
ReplyDeleteमन अमराई यादें कोयल
ReplyDeleteखूबसूरत बिम्ब है.
नव संवत की शुभकामनायें
झील की लहरों पर बिखरता है स्वर्ण
पत्तों पर छा रहा नया नया वर्ण
अँगड़ाई लेते हैं कोयल के गीत
अलगोजे छेड़ रहे मधुरिम संगीत
आँगन में उतर रही सोनहली धूप
संध्या के दर्पण में नया नया रूप
पुरबा की चूनर में मलयज की शान
कलियों के चेहरों पर आई मुस्कान
पगडंडी है लदी हुई गाड़ियों भरी
सरसों की दुल्हन अब पालकी चढ़ी
निशिगंधा खोल रही महकों के द्वार
खुनक भरे मौसम में डूबा घरबार
भरा प्रेम पत्रों से मेंहदी ने हाथ
छत ने की आँगन से मीठी सी बात
ठिठुरन पर आज चढ़ा देखिये बुखार
चैती इस पड़वा ने खड़काया द्वार.
नव संवत की शुभकामनायें
कितनी गज़ब ग़ज़ल कह दी है
ReplyDeleteसचमुच न्यारी-न्यारी प्यारे
कितनी सहज-सरल कह दी हैं
बातें प्यारी-प्यारी प्यारे
मन खुलना आसां है कितना
देखे दुनिया सारी प्यारे
नीरज का अंदाज़ निराला
सब पर पड़ती भारी प्यारे!
बढ़ाई....बधाई .....बधाई .
आपका
डा. चंद्रकुमार जैन
very nice !!
ReplyDeleteहाजिर जनाब -
ReplyDeleteप्यारे प्यारे से नजारे प्यारे
काफिले आप के सारे प्यारे
- सादर मनीष
दिव्या माथुर साहिबा का कमेन्ट जो मुझे मेरे ई मेल पर मिला.
ReplyDelete"abhi main aapki - zindagi bhar yaha wahan - mein hi bhatak rahi thi ki aaj ek aur ek naayab tohfa mila
'jad jisne bhi kaati pyaare'
ke roop mein, kitni khari khari baat kartey hain aapbhi ki dil bahalta hi nahin, is duniya mein jeena hai to do hi tareekein ho saktey hain - ek aapka - khara sacha, aur ek mera - bhulaaye apne ko galatfahmiyon mein
shubhkamnayon ke saath
दिव्या"
नीरज जी,
ReplyDeleteऊपर मेरी टिप्पणी की अन्तिम
दो पंक्तियाँ संशोधित करना चाहता हूँ .
वो इस तरह की -
नीरज की हर बात निराली
सब पर पड़ती भारी प्यारे .
मित्र गण कृपया सुधार कर पढ़ें.
धन्यवाद .
तन्हा जीना ऐसे नीरज
ReplyDeleteज्यूँ बादल बिन पानी प्यारे
KAYA BHAI KAST SE MARE JA RAHYEN HAIN??
भोला कहने से अच्छा है
देदो मुझको गाली प्यारे
KHUB KAHI AAPNE GALI TO FIR GALI HIN HAIN
JO SOCHA WO HUA JO DEKHA WO DEKHAI PADA.
SARA KUCH ANDAR HAI BAHAR USKA PRATIBIB DIKHAI PADTA HAI. SAJJAN LOGON KO NA TO BURAI DEKHI DETI HAI AUR NA SUNAI PADTI HAI. AANTERMAN KI SAFAI KIJEYE FLUSH KIJYE AUR KACHDA BAHAR KIJEYE
ज्ञान जी सही कह रहे हैं... सरल सहज ही आप शब्दों को मुग्ध करके अपना बना लेते हैं.. हमारे पास तारीफ के शब्द ही नही बचते.
ReplyDeleteभाई नीरज जी,
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल पेश करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं, पर उए ग़ज़ल आपके मुख्य विचार "जिंदगी जिन्दादिली का नम है" से मेल नही खाती, अतः मेरी निम्न पंकितियों पर गौर फरमाएं:
यूं हो "भोला" तनहा जीने से अच्छा
ले लो इस बंदूक का ही साथ प्यारे
कल तक जो यूं ही थे तड़पा रहे
वे ही घूमेंगे आगे-पीछे सारे के सारे
खौफ से हमारा सरल जीवन बना कठिन
उसे मिटाने किसी को तो राम बना प्यारे
शेष फिर कभी
आपका अनुज
चंद्र मोहन गुप्ता "मुमुक्षु"
भोला कहने से अच्छा है
ReplyDeleteदेदो मुझको गाली प्यारे
क्या बोलूं इन लब्ज़ों में क्या
तूने बात सुना दी प्यारे
लाजवाब......
बहुत प्यारी रचना।
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद आपकी साईट पर देखा तो एक से एक सुंदर रचनाएं मिलीं। इस छोटी बहर का कमाल भी देखा। सरल और थोड़े शब्दों में ही बहुत कुछ लिख दिया।
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें।
very nice man
ReplyDeleteese he galiyan
likhte rahie janabe ali