गीत तेरे जब से हम गाने लगे
तब जुदा सबसे नज़र आने लगे
आईने में खास ही कुछ बात थी
आप जिसको देख शरमाने लगे
सोच को अपनी बदल के देखिये
मन तुम्हारा जबभी मुरझाने लगे
खोलने से फायदा क्या खिड़कियाँ
जब चले तूफ़ान घबराने लगे
बिन तुम्हारे खैरियत की बात भी
पूछते जब लोग तो ताने लगे
अजनबी जो लग रहे थे रास्ते
तुम मिले तो जाने पहचाने लगे
ये तरीका भी है इक इनाम का
जिसको देदो उसको हरजाने लगे
साँस का चलना थी "नीरज" ज़िंदगी
तुम मिले तो मायने पाने लगे
क्या खूब कहा है....
ReplyDeleteवाह् वा.....
जय हो
हम तो बस आपका ही इंतज़ार कर रहे थे. एक और अच्छी ग़ज़ल के लिए धन्यवाद.
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"सोच को अपनी बदल के देखिये
मन तुम्हारा जबभी मुरझाने लगे"
"अजनबी जो लग रहे थे रास्ते
तुम मिले तो जाने पहचाने लगे"
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आनंद की वृष्टि हो रही है. मन करता है पढता की रंहू.
एक तेरा ही सहारा है भगवन बाकी सब
तो इस फानी दुनिया मे बेगाने लगे.
वाह!! बहुत खूब कहा!! बधाई.
ReplyDeleteअजनबी जो लग रहे थे रास्ते
ReplyDeleteतुम मिले तो जाने पहचाने लगे
लेकिन ऐसा मिलना कितनों को नसीब हो पाता है?
आप तो अब ब्लॉग पर आने लगे
ReplyDeleteहम भी खुश हो गीत अब गाने लगे
लिख गये फिर से गजल इक बेहतरीन
टीप कर हम भी तो अब जाने लगे.
गोस्वामी के भजन गाने लगी
ReplyDeleteगुनगुना के मन को बहलाने लगी
मेरी नीरज से जान पहचान है
बात यह सुन कर वोह इतराने लगी
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क
मैं काकेश को मॉडीफाई कर लिखूंगा -
ReplyDeleteआप तो अब ब्लॉग पर आने लगे
आप तो अब ब्लॉग पर छाने लगे
बहुत खूब
ReplyDeletesajeev sarathie
http://merekavimitra.blogspot.com/2007/10/blog-post_9334.html
वाह! ये रचना जानदार रही ।
ReplyDeleteपढकर मन प्रसन्न हो गया,
हम समझ बैठे थे जिसको ब्लॉग, बस
ReplyDeleteअसल में गजलों की एक सौगात थी
गजब लिखे हैं, भैया.....
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआज 05/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
वाह सर वाह...
ReplyDeleteसादर.
bahut hu khubsurat likha hai sir....
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