झूठ को ये सच कभी कहते नहीं
टूट कर भी आइने डरते नहीं
हो गुलों की रंगो खुशबू अलहदा
पर जड़ों में फ़र्क तो दिखते नहीं
जिनके पहलू में धरी तलवार हो
फूल उनके हाथ में जँचते नहीं
अब शहर में घूमते हैं शान से
जंगलों में भेड़िये मिलते नहीं
साँप से तुलना ना कर इंसान की
बिन सताए वो कभी डसते नहीं
कुछ की होंगी तूने भी ग़ुस्ताखियाँ
खार अपने आप तो चुभते नहीं
बस खिलौने की तरह हैं हम सभी
अपनी मर्ज़ी से कभी चलते नहीं
फल लगी सब डालियाँ बेकार हैं
गर परिंदे इन पे आ बसते नहीं
ख़्वाहिशें नीरज बहुत सी दिल में हैं
ये अलग है बात कि कहते नहीं
गुरुदेव - पिछली बार समय का संकोच था सो पहले पन्ने पर ही रह गया - इस बार सफर यहाँ तक चला - सच कहूं तो उद्गम की इस टीस में बहुत ज़्यादा ठहराव है - या लगाव है और ..इसमें ..और कुछ ज़र्द पत्तों की आँधियों से जद्दोजहद में ; या बडबडाने से दुनिया का बदलना ; और .. गुमनाम करने वाला भी सुना सुना सा है, आपको पढ़ना आसान नहीं है - समझने में लुत्फ़ है - सर्दी की धूप सा
ReplyDelete(आपकी ही तर्ज़ में - डरते डरते
.. आपकी अमराईयों की शाख में
झूल कर भूलों में दम भरते नहीं ..).. मेरी मंद बुद्धि का मानना है कि अच्छी ग़ज़ल/ कविता बार बार पढी जाती है , शागिर्दों की बिरादरी में गिनती जुड़वा के , तो आना जाना लगा रहेगा
.. आदाब/ सलाम
Hi Uncle,
ReplyDeleteThis is really one of the best poems I have ever read. You are amazing with the words. And what we call in hindi "sahaj rup se aapno mann ki baat ko shabdon mein utaarana...". Its an amazing thing.
Thanks,
Ratan. 2006.ratan@gmail.com
ये ग़ज़ल बहुत ख़ास लगी मुझे.. अपनी सी लगी...
ReplyDeleteफल लगी सब डालियाँ बेकार हैं
गर परिंदे इन पे आ बसते नहीं
और ये शे'र तो.. वो क्या कहते हैं... हासिले-ग़ज़ल है.
ati sundar shabd sanrachana
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है !!! बहुत ही बढ़िया...
ReplyDeleteसाँप से तुलना ना कर इंसान की
बिन सताए वो कभी डसते नहीं
वाह................
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ...........
कुछ की होंगी तूने भी ग़ुस्ताखियाँ
खार अपने आप तो चुभते नहीं
लाजवाब गज़ल.
अनु
वाह................
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ...........
कुछ की होंगी तूने भी ग़ुस्ताखियाँ
खार अपने आप तो चुभते नहीं
लाजवाब गज़ल.
अनु
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
कुछ की होंगी तूने भी ग़ुस्ताखियाँ
ReplyDeleteखार अपने आप तो चुभते नहीं
बस खिलौने की तरह हैं हम सभी
अपनी मर्ज़ी से कभी चलते नहीं
बहुत खूबसूरत गजल