Monday, October 25, 2010
किताबों की दुनिया - 40
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चल दिए हम उन्हें मनाने को हो के मायूस लौट आने को अब कोई आँख नम नहीं होती क्या नज़र लग गयी ज़माने को कोई बैसाखियाँ नहीं बनता टोकते सब हैं लड़...
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