समझौते पहने मिले रेशम का परिधान
बे-लिबास पाए गए सारी उम्र उसूल 
जबसे खिली पड़ौस में सोनजुही उद्दाम 
रातें नागफनी हुईं दिन हो गए बबूल 
हर क्यारी में है यहाँ क्षुद्र स्वार्थ की बेल 
मूल्य सर्वथा हो गए उपवन से निर्मूल 
आरसी जब भी शरीफों को दिखाई है 
अक्षरों के वंशजों ने चोट खाई है 
आरसी= दर्पण 
संग्रहालय में रखो इस शख़्स को यारों 
आज भी कम्बख्त के स्वर में सचाई है 
एक मुद्दत से तिमिर की बंद मुठ्ठी में 
रौशनी की कंज कलिका की कलाई है 
कंज कलिका =कमल के फूल की कलि 
लेखनी होगी तुम्हारी दृष्टि में मित्रो 
हाथ में गंगाजली हमने उठाई है 
दीमकों के नाम हैं बन्सीवटों की डालियाँ 
नागफनियों की कनीजें हैं यहाँ शेफालियाँ 
शेफालियाँ=चमेली के फूल 
छोड़कर सर के दुपट्टे को किसी दरगाह में 
आ गयी हैं बदचलन बाज़ार में कव्वालियां 
घोंप ली भूखे जमूरे ने छुरी ही पेट में 
भीड़ खुश हो कर बजाये जा रही हैं तालियां 
हमारे समाज की बुराइयों और विडंबनाओं को निर्ममता से उधेड़ने वाले आज के रचनाकार हैं 23 सितम्बर 1952 को नुनहाई, फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश में जन्में श्री " शिव ओम अम्बर" साहब जिनकी किताब "विष पीना विस्मय मत करना" की आज हम बात करेंगे। शिव ओम अम्बर साहब बहुमुखी प्रतिभा के धनि हैं। माँ सरस्वती का वरद हस्त उनके सर पर है। उन्होंने आत्मकथात्मक डायरियां लिखी हैं , कविताओं और दोहों के अलावा उनकी गद्य रचनाएँ हिंदी साहित्य में विशेष स्थान रखती हैं। ग़ज़ल उनके लिए सबसे पहले अन्याय के प्रति आक्रोश प्रकट करने का माध्यम रही और उसके बाद गृहस्त जीवन में प्रेम की प्रस्तावना बनी सामाजिक जीवन की मंगल कामना बनी और अब ये उनके आराध्य की उपासना का माध्यम है।
 वेशभूषा पहन पुजारी की 
 है खड़ी शख़्सियत शिकारी की 
 इन दिनों है घिरी बबूलों से 
 पाटली नायिका बिहारी की 
 भोर से साँझ तक नचाती है 
 भूख है डुगडुगी मदारी की 
 शिकारी की शख़्सियत वाले शेर में शिव साहब ने देखिये किस ख़ूबसूरती से हमारे समाज में फ़ैल रही विकृति और कुरीति के खिलाफ खरी-खरी बात की है..आज यही खरा-खरा कहने की प्रवृति ही उनकी पहचान बन गयी है। पिछले चार दशकों से वाचक कविता -ग़ज़ल के मंच पर उनकी सक्रिय सहभागिता इस बात का प्रमाण है। वो मंच से अपनी कविताओं और ग़ज़लों से ऐसा सम्मोहन पैदा करते हैं कि श्रोता वाह वाह करता नहीं थकता। उनका कुशल मंच सञ्चालन अधिकतर कार्यक्रमों की सफलता का राज़ है। ये लोकप्रियता उन्होंने यूँ ही अर्जित नहीं की इसके पीछे बरसों की साहित्य सेवा और परिश्रम है। वो न गलत कहना पसंद करते हैं और न ही सुनना। जो बात उन्हें अच्छी नहीं लगती उसे सार्वजानिक रूप में स्वीकार करने में उन्हें डर नहीं लगता। 
घाट पे घर नहीं बना लेना 
हाट में आ उधार मत करना 
 चंद लम्हें जुनूं को भी देना 
 हर क़दम पे विचार मत करना 
 लफ़्ज़ मत घोलना इबादत में 
 इश्क को इश्तहार मत करना 
 लेखन उन्होंने बारहवीं कक्षा पास करने के बाद याने 15 वर्ष की आयु से प्रारम्भ किया। वो एक पारिवारिक विवाह समारोह में अल्मोड़ा गए। शादी के तुरंत बाद नवदम्पति के साथ उन्हें एक स्थानीय मंदिर में जाने का मौका मिला। वो दिन मंगलवार का था और उस दिन मंदिर में बकरों की बलि देने का रिवाज़ था जिसे देख कर युवा शिव का मन खिन्न हो गया। वो देवता को बिना प्रणाम किये ही गुस्से में घर लौट आये। वहां से लौट कर उन्होंने पहली बार अपने आक्रोश को व्यक्त करने के लिए शब्दों का लिबास पहनाया और पहली कविता लिखी । उसी शाम घर में हुए रंगारंग कार्यक्रम में उन्हें भी कुछ सुनाने को कहा तो उन्होंने उसी रचना को पढ़ कर सुनाया जिसमें उन्होंने इस कर्मकांड के जायज़ होने पर सवाल किया था , उनके विचार की सबने प्रशंसा की और स्थानीय कवि ने अपने पास बुला कर पीठ थपथपा कर कहा की तुम कवि हो कवितायेँ लिखा करो। बस उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। 
 सुविधा से परिणय मत करना 
 अपना क्रय-विक्रय मत करना 
 हँसकर सहना आघातों को 
 झुकना मत अनुनय मत करना 
 सुकरातों का भाग्य यही है
 विष पीना विस्मय मत करना 
 जैसा कि मैंने पहले लिखा है शिव ओम जी ने विविध विषयों पर सफलता पूर्वक कलम चलाई है। उनके लेखन का केनवास बहुत बड़ा है। आराधना अग्नि की (ग़ज़ल संग्रह) , शब्दों के माध्यम से अशब्द तक (गीत संग्रह),अंतर्ध्वनियाँ (लघु कवितायेँ),  दोहा द्विशती, अक्षर मालिका आदि काव्य रचनाओं की किताबें बहुत चर्चित हुई हैं इसके अलावा उनकी गद्य रचनाएँ गवाक्ष दृष्टि , परिदृश्य ,आलोक अभ्यर्चन,सत्य कहूं लिखी कागद कोरे   ,आस्वाद के आवर्त और साहित्य कोना -सात खंड आदि प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। वो बरसों से फर्रुखाबाद से प्रकाशित राष्ट्रीय सहारा अखबार में नियमित रूप से " साहित्य कोना " के अंतर्गत लेख लिखते आ रहे हैं। इसके अलावा कलकत्ता से प्रकाशित हिंदी पत्रिका "द वेक" में भी वो नियमित रूप से छपते रहे हैं  . उनकी रचनाएँ इंटरनेट की सभी कविता के लिए प्रसिद्ध वेब साइट जैसे 'कविता कोष' , अनुभूती आदि पर उपलब्ब्ध हैं। 
 यहाँ से है शुरू सीमा नगर की 
 यहाँ से हमसफ़र तन्हाईयाँ हैं 
 हुईं किलकारियां जब से सयानी 
 बहुत सहमी हुई अँगनाइयाँ हैं 
 हमारी हर बिवाई एक साखी 
 बदन की झुर्रियां चौपाइयाँ हैं 
 चालीस वर्ष के लेखकीय जीवन में अपने इलाके की मशहूर हस्ती के रूप में विख्यात प्रयोगधर्मी रचनाकार डा. शिव ओम यूँ तो अनेको बार विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित होते रहे हैं लेकिन उनमें " उप्र हिंदी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान ","श्री भानुप्रताप शुक्ल स्मृति राष्ट्र धर्म सम्मान, पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरूस्कार , कौस्तुभ सम्मान -उत्तराखंड , गैंग-देव सम्मान -इटावा , हेडगवार प्रज्ञा सम्मान -कोलकाता उल्लेखनीय हैं। तड़क भड़क से दूर अत्यंत सादगी से जीवन यापन करने वाले मृदु भाषी लेकिन खुद्दार डा. शिव ओम जमीन से जुड़े साहित्यकार हैं।उनका कहना है कि "कवि को अपनी कविता से ज्यादा महत्वपूर्ण होना चाहिए। कवि हिमालय हो कविता गंगा। दोनों अपनी अपनी जगह पूज्य हैं। आपने स्त्रियों को स्वेटर बुनते देखा होगा , घर के कामकाज के बीच अवसर मिलते ही वो कुछ सलाइयां बन लेती हैं और धीरे धीरे स्वेटर तैयार हो जाता है। मेरी ग़ज़लें भी ऐसे ही बुनी जाती हैं। " 
 जुलाहे तक रसाई चाहता हूँ 
 समझना हर्फ़ ढाई चाहता हूँ 
 नहीं मंज़ूर है खैरात मुझको 
 पसीने की कमाई चाहता हूँ 
 सजे जिसपर महादेवी की राखी 
 निराला-सी कलाई चाहता हूँ 
 सभा में गूंजती हों तालियां जब 
 सभागृह से विदाई चाहता हूँ
 "विष पीना विस्मय मत करना" को पांचाल प्रकाशन फर्रुखाबाद ने कॉफ़ी टेबल साइज़ में बहुत ही आकर्षक आवरण के साथ प्रकाशित किया है।  इस किताब की प्राप्ति के लिए या तो आप पांचाल प्रकाशन को 9452012631 पर संपर्क करें या श्री अम्बर को उनके घर के पते 4/10, नुनहाई ,फर्रुखाबाद -209625 पर पत्र लिखें। मेरी आपसे गुज़ारिश है कि इन अद्भुत ग़ज़लों से सजी किताब के लिए जो हिंदी ग़ज़ल के पुरोधा कवि दुष्यंत कुमार को समर्पित की गयी है श्री शिव ओम जी को उनके मोबाईल न 9415333059 पर संपर्क कर बधाई दें। मुझे ये किताब उनके होनहार शिष्य श्री चिरंजीव उत्कर्ष जो स्वयं भी उभरते हुए ग़ज़लकार हैं ,के माध्यम से प्राप्त हुई।  मैं श्री उत्कर्ष जी का दिल से आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे एक विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति की रचनओं से रूबरू होने का मौका दिया।    
चलते चलते लीजिये प्रस्तुत हैं शिव जी की एक ग़ज़ल के ये लाजवाब छोटी बहर के शेर : 
 जीने की ख़्वाहिश है तो 
 मरने की तैयारी रख 
 सबके सुख में शामिल हो 
 दुःख में साझेदारी रख 
 दरबारों से रख दूरी 
 फुटपाथों से यारी रख 
 श्रीमद्भगवद गीता पढ़ 
 युद्ध निरंतर जारी रख 



