इस दिवाली पर गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर हुए कामयाब तरही मुशायरे में खाकसार ने भी शिरकत की, तरही मिसरा था 'उजाले के दरीचे खुल रहे हैं'. आप सब के लिए यहाँ पेशे खिदमत है वो ही सीधी-सादी सी ग़ज़ल थोड़ी सी तब्दीली के साथ। सीधी-सादी ग़ज़ल माने ऐसी ग़ज़ल जिसे कहने में शायर को और पढ़ने में पाठक को दिमाग न लगाना पड़े. पढ़ लें पसंद करें न करें आपकी मर्ज़ी.
अहा ! कदमों की आहट आ रही है
बहुत दिलकश है गुलशन ज़िन्दगी का
सभी दावे दियों के खोखले हैं
अँधेरे जब तलक दिल में बसे हैं
पुकारो तो सही तुम नाम लेकर
तुम्हारे घर के बाहर ही खड़े हैं
तुम्हारे घर के बाहर ही खड़े हैं
अहा ! कदमों की आहट आ रही है
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
है आदत में हमारी झुक के मिलना
तभी तो आप से हम कुछ बड़े हैं
तभी तो आप से हम कुछ बड़े हैं
बहुत दिलकश है गुलशन ज़िन्दगी का
कहीं कांटे कहीं पर मोगरे हैं
जिन्हें मैं ढूढता फिरता हूँ बाहर
वो दुश्मन तो मेरे भीतर छुपे हैं
ग़मों के बंद कमरे खोलने को
तुम्हारे पास 'नीरज' कहकहे हैं