बन में जुगनू जग मग जग मग
सपनों में तू जग मग जग मग
जब से दिल में आग लगी है
हर दम हर सू जग मग जग मग
रैन अँधेरी यादें तेरी
आंसू आंसू जग मग जग मग
काले गेसू बादल बादल
आँखें जादू जग मग जग मग
मेरी ग़ज़लें गहरी नदिया
मोती सा तू जग मग जग मग
मेरे साथ बहुत कम ऐसा हुआ है कि किसी किताब पर लिखते वक्त मेरी कलम ठिठक जाए। जब दिल की बात कह सकने में लफ्ज़ कामयाब होते नज़र नहीं आते तब ऐसी हालत होती है। आज हम जिस किताब और शायर का जिक्र किताबों की दुनिया श्रृंखला में करने जा रहे हैं उसके बारे में लिखते वक्त कलम ठिठका हुआ है। आप ही ऊपर दी गयी ग़ज़ल के शेर पढ़ कर बताएं कि जिस किताब में ऐसे अनूठे ढंग से काफिये और रदीफ़ पिरोये गए हों उसकी तारीफ़ के लिए लफ्ज़ कहाँ से जुटाएँ जाएँ ?
शेर हमारे नश्तर जैसे अपना फन है मरहम रखना
क्या ग़ज़लों में ढोल बजाना, शाने पर क्यों परचम रखना
उन पेड़ों के फल मत खाना जिनको तुमने ही बोया हो
जिन पर हों अहसान तुम्हारे उनसे आशाएं कम रखना
लुत्फ़ उसी से बातों में है, तेज उसी का रातों में है
खुशियां चाहे जितनी बांटो घर में थोड़ा सा ग़म रखना
जी तो ये कर रहा है की मैं हमारे आज के शायर जनाब '
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी ' साहब और उनकी किताब '
मुज़फ़्फ़र की ग़ज़लें ' के बीच से हट जाऊं लेकिन क्या करूँ अगर मैंने ऐसा किया तो ये उर्दू शायरी के दीवाने हिंदी पाठकों के साथ अन्याय होगा। दरअसल मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब जैसे कद्दावर शायर के नाम से हिंदी का पाठक अधिक परिचित नहीं है। उर्दू भाषा में 90 से अधिक विभिन्न विषयों पर लिखी किताबों के लेखक की सिर्फ ये एक किताब ही ,जिसकी हम चर्चा करेंगे ,देवनागरी में उपलब्ध है।
हमें वो ढूंढता फिरता है सातों आसमानों में
उसे हम आँख से मिटटी लगाकर देख लेते हैं
ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे इस मोहल्ले को तअस्सुब से
यहाँ हमसाए मुझको मुस्कुरा कर देख लेते हैं
तअस्सुब= सम्प्रदायिकता
मियाँ बेवज्ह तुम क्यों डूब जाते हो पसीने में
अगर कुछ लोग तुमको तीर खा कर देख लेते हैं
इस किताब पर आगे बात करने से पहले मेरा ये फ़र्ज़ बनता है कि मैं जनाब मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब के साहबज़ादे जनाब
फ़िरोज़ हनफ़ी साहब का तहे दिल से शुक्रिया अदा करूँ जिन्होंने ये किताब मुझे भेजी वरना सच बात तो ये है कि मैं शायद ही इस किताब तक पहुँच पाता। फ़िरोज़ साहब से भी थोड़ी बहुत गुफ़्तगू व्हाट्स एप के उस ग्रुप के माध्यम से हुई जिसे मुंबई निवासी शायर मेरे अज़ीज़, छोटे भाई नवीन चतुर्वेदी चलाते हैं।
वो हमारे मकान पर आया
तीर आखिर कमान पर आया
रह गए दंग हाँकने वाले
शेर सीधा मचान पर आया
दोस्तों ने चलाये थे नेज़े
और दोष आसमान पर आया
मेज़ पर गेंद खेलता बच्चा
धूप निकली तो लान पर आया
अपना पहला शेर मात्र 9 साल की कच्ची उम्र में कहने वाले मुज़फ़्फ़र साहब का जन्म एक अप्रैल 1936 को खंडवा मध्य प्रदेश में हुआ। उनका असली वतन हस्वा फतेहपुर उत्तर प्रदेश है। प्रारम्भिक शिक्षा मध्य प्रदेश से पूरी करने के बाद उन्होंने बी.ऐ , एम. ऐ, एल. एल. बी , और पी एच डी की डिग्रियां क्रमश; अलीगढ और बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी भोपाल से हासिल कीं। चौदह वर्षों तक मध्य प्रदेश के फारेस्ट विभाग में काम करने के बाद हनफ़ी साहब दिल्ली आ गए। बहुत कम लोग जानते होंगे कि फारेस्ट विभाग में काम करने के दौरान हनफ़ी साहब की पहचान काव्य गोष्ठियों में दुष्यंत कुमार से हुई और उन्हें ग़ज़ल लेखन के लिए प्रोत्साहित किया।
सबकी आवाज़ में आवाज़ मिला दी अपनी
इस तरह आप ने पहचान मिटा दी अपनी
लोग शोहरत के लिए जान दिया करते हैं
और इक हम है कि मिट्टी भी उड़ा दी अपनी
देखिये, खुद पे तरस खाने का अंजाम है ये
इस तरह आप ने सब आग बुझा दी अपनी
1974 में जनाब मुज़फ्फ़र हनफ़ी साहब देहली गये और नेशनल कौंसिल ऑफ़ रिसर्च एंड ट्रैनिंग में असिस्टेंट प्रोडक्शन ऑफ़िसर पद पर 2 साल तक काम किया। फरवरी 1978 में जामिया मिलिआ यूनिवर्सिटी में उर्दू के अध्यापक नियुक्त हुऐ और 1989 तक जामिआ में रीडर के पद पर काम किया।
आग लगाने वालों में थे मेरे भाई भी
जलने वाली बस्ती में था मेरा भी घर एक
सोने की हर लंका उनकी और मुझे बनवास
चतुर सयाने दस दस सर के मुझ मूरख सर एक
गुलशन पर दोनों का हक़ है काँटा हो या फूल
टकराने की शर्त न हो तो शीशा पत्थर एक
ऐसे में भी कायम रक्खी लहज़े की पहचान
ग़ज़लों के नक़्क़ाल बहुत हैं और मुज़फ़्फ़र एक
1989 में कलकता यूनिवर्सिटी ने उन्हे इक़बाल चेयर प्रोफेसेर के पद पर नियुक्त किया और जून 1989 में वह यह पद क़बूल कर के कलकता पहुँचे। इक़बाल चेयर 1977 में स्थापित की गयी थी और इस पर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का चयन होगया था और वो यह पद स्वीकार करने को तैयार थे मगर ऑफिशियल करवाई में कुछ देरी हुई और वो लोटस के संपादक /एडिटर हो कर बैरूत चले गए। इक़बाल चेयर 12 साल तक खाली रही फिर 1989 में पहली बार मुज़फ्फर हनफी का चयन हुआ। मुज़फ्फर हनफी कलकता यूनिवर्सिटी के पहले इक़बाल चेयर प्रोफेसर हुऐ।
बहुत अच्छा अगर जम्हूरियत ये है तो हाज़िर है
उन्हें आबाद कर देना, हमारे घर जला देना
बुलंदी से हमेशा एक ही फ़रमान आता है
शगूफ़े नोच लेना, तितलियों के पर जला देना
वो हाथों हाथ लेना डाकिये को राह में बढ़ कर
लिफ़ाफ़ा चूम लेना फिर उसे पढ़ कर जला देना
हनफ़ी साहब के बारे में कहने के लिए एक पोस्ट काफी नहीं है , अभी तो बहुत सारी बातें बतानी हैं उनके ढेर सारे मकबूल शेर पढ़ने हैं लिहाज़ा हमें इस किताब का जिक्र अपनी अगली पोस्ट में भी करना होगा तभी कुछ बात बनेगी। आप तब तक इस पोस्ट को दुबारा तिबारा चौबारा पढ़िए, पढ़ते रहिये हम जल्द फिर हाज़िर होते हैं इस किताब की कुछ ग़ज़लों के शेर और हनफ़ी साहब के बारे में अधिक जानकारी लेकर।
आईये चलते चलते हम आप को उनकी एक ग़ज़ल के ये शेर भी पढ़वाते चलते हैं :
फूल की आँख में लहू कैसे
ओस ने कह दिया है कान में क्या
पूछना चाहता हूँ बेटों से
मैं भी शामिल हूँ खानदान में क्या
मौज, खुशबू, सबा, किरण, शबनम
ये क़सीदे हैं तेरी शान में क्या
जनाब मुज़फ्फ़र हनफ़ी साहब
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 04 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteऔर दिखाओ और दिखाओ। यही कहने का मन कर रहा है जनाब मुज़फ्फ़र साहब को पढ़कर। :)
ReplyDeleteअगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा...!!!
ReplyDeleteहनफ़ी साहब को पढ कर यही कहा जा सकता है कि
ReplyDeleteग़ज़ल सुनते ही दिल बोला उछल कर।
अरे क्या बात है! फिर से अता हो॥
हमारे गिर्द ज़मीं तंग हो रही थी जभी
ReplyDeleteहमारा काम बना आसमाँ गिराने से –मुज़फ्फर हनफी
इस शेर को उर्दू अदब वाले साठेत्तर् के दशक के बाद कहे गये शेरों मे सबसे ऊपर आँकते हैं क्योंकि इसमें मुस्लिम कौम की अवाज़, कर्ब, प्रतिशोध और कुव्वत सभी कुछ इंतेहा पर शुमार है !! दरअस्ल ग़ज़ल का समाज हिन्दुस्तान पाकिस्तान मिडिल ईस्ट और कई यूरोपीय देशों में फैला हुआ है – इस संसार के लोकप्रिय शायरों में बशीर बद्र –निदा गाज़ली –राहत इन्दौरी और मुनव्वर राअना जैसे नाम हैं जब्कि आप उर्दू अदब के किसी भी मोतबर शाइर से पूछिये तो इन के बजाय पहला नाम –हनफी साहब का लिया जायेगा !!कारन बहुत स्पष्ट है !! उन्होने जो ज़मीने ईजाद की हैं उनपर कुछ मुलम्मा चढा कर बशीर बद्र जैसे लोगों ने अपार लोकप्रियता अर्जित की है और ये कम बशीर बद्र जैसों ने बगैर हवाला दिये किया है !! एक प्रकार से ऐसे शायर हनफी साहब के गुनहगार है उन्होने यूँ ही नहीं लिखा है –
ऐसे में भी कायम रक्खी लहज़े की पहचान
ग़ज़लों के नक़्क़ाल बहुत हैं और मुज़फ़्फ़र एक
हनफी साहब शायर ही नहीं कौम के रहबर भी हैं !! सस्ती लोकप्रियता के लिये उन्होने कोई कोशिश नहीं की लेकिन जब ग़ज़ल के मेयार की बात होती है तो उनका नाम अनिवार्य रूप से सबसे पहले लिया जाता है !! इस देवनागरी में प्रकाशित संकलन को उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को समर्पित किया था –लेकिन ये व्यंग्यात्मक समर्पण था !!!
उर्दू अदब में हनफी साहब की किताबों की संख्या अब शायद सौ से अधिक पहुंच गई होगी लेकिन देवनागरी मे उनका शायद यही एक संकलन है !! जो कि इस शायर का बारे में तफ्सील से बहुत कुछ नहीं बता सकता लेकिन इसमें दो राय नहीं कि उनका मर्तबा उर्दू अदब मे सर्वोपरि है –नीरज जी !! आपको इस पोस्ट के लिये बहुत बहुत बधाई !!—मयंक
बहुत उम्दा चयन,बहुत अच्छी बात
DeleteBahut khoob aapka bayan bhi
ReplyDeleteजनाब मुज़फ्फ़र हनफ़ी साहब की गजल दुनिया की नायाब परिचय प्रस्तुति हेतु आभार!
ReplyDeleteWalid sahib ke barey mein ek Acha article shaya karney per Mubarak qabool kijiyee
ReplyDeleteसुन्दर समीक्षा
ReplyDeleteKya kehne waah
ReplyDeleteHai yeh Neeraj Goswami ka bahut umda blog
ReplyDeleteDilnasheeN hai un ka yeh guldasta e sher o sukhan
ShairoN ka hai yeh behad hkoosoorat intekhab
Hai Muzaffar Hanfi ki ghazloN meiN dilkash baankpan
Ahmad Ali Barqi Azmi
behatareen.......
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ReplyDeleteनकुल गौतम
मज़ा आ गया sir
thanks for sharin
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ReplyDeleteAnupama Pathak
Looking forward to the upcoming post...!
Thanks for this post...!
Regards
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ReplyDeleteOm Sapra
Welcome neeraj ji. Bahut umda
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ReplyDeleteDevendra Arya
बहुत शुक्रिया भाई . मुज़फ्फर हनफ़ी साहब की शायरी की गंभीर और गहरी चर्चा आप ने की है . मैं उन चंद सौभाग्यशाली लोगों में हूँ जिन्हें उनकी कृपा प्राप्त हुई है ,मेरे किताब -'उमस ' का ब्लर्ब हनफ़ी साहब ने लिखा था
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ReplyDeleteDwijendra Dwij
कमाल की शायरी और बाकमाल तनक़ीद।
सच नीरज भैया हनफ़ी साहब न ये कि शायर बेहतरीन हैं इन्सान भी बहुत उम्दा हैं
ReplyDeleteमेरी जब उन से मुलाक़ात हुई तो एक लम्हे को भी ऐसा नहीं लगा कि मैं एक ऐसे शायर और तनक़ीद निगार से बात कर रही हूं जिन का दुनिया ए अदब में इतना ऊंचा मुक़ाम है ,,,अल्लाह उन्हें सलामत रक्खे ऐसे बहुत कम लोग रह गए हैं
हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteउत्प्रेरक www.diarytv.in की मानिन्द साहित्य सृजन के प्रोत्साहनार्थ उम्दा पेशकश के साथ-साथ उत्तम सराहनीय प्रयास...
ReplyDeleteसादर साधुवाद सहित हार्दिक अभिनन्दन !!!
कुलदीप सिंह राजपूत
(मीडिया गुरु)
https://www.facebook.com/kuldeepsinghrajputonline
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बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत उम्दा ...शुक्रिया ..
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक मंगलकामनाएं!
ReplyDeleteसादर
एक नायाब हीरे से मुलाकात दिल के सुकून का कारण बनी .....शुक्रिया आपका नीरज जी .
ReplyDeleteबुलंदी से हमेशा एक ही फ़रमान आता है
ReplyDeleteशगूफ़े नोच लेना, तितलियों के पर जला देना
वाह वाह।