ग़ज़ल जंगल की कोयल है सर्कस की नहीं जो ट्रेनर के इशारे पे गाये सो जनाब अरसा गुज़र जाने पे भी जब कोई ग़ज़ल नहीं हुई तो मैं परेशान नहीं हुआ फिर अचानक ज़ेहन कि मुंडेर पे ये कोयल बैठी दिखी जिसने मुश्किल से एक तान लगाईं और फुर्र हो गयी. जैसी भी है, उसी तान को आपके साथ बाँट रहा हूँ बस।
अब रिश्तों में गहराई ?
बहते पानी पर काई ?
तुम कमरों में बंद रहे
धूप नहीं थी हरज़ाई
तुमसे मिल कर देर तलक
अच्छी लगती तन्हाई
बच्चों से घर चहके यूँ
ज्यूँ कोयल से अमराई
लाख बुराई हो जिसमें
ढूंढो उसमें अच्छाई
तन्हा काली रातों की
बढ़ती क्यूँ उफ़ ! लम्बाई
बीती बात उधेड़ो मत
'नीरज' सीखो तुरपाई
छोड़ी बहर में नीरज
ReplyDeleteगहरी बातें भर आई :)
लिखते रहिये। .
तुम कमरों में बंद रहे ,धूप नहीं थी हरज़ाई.... बहुत खूब
ReplyDeleteतन्हा काली रातों की
ReplyDeleteबढ़ती क्यूँ उफ़ ! लम्बाई
वाह बहुत ही खूबसूरत |
बेहतरीन शेरों का गुलदस्ता है ये गज़ल ... फुदकती हुई कोयल की तरह ... लाजवाब नीरज जी ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,लोहड़ी कि हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteज़ेहन की मुंडेर पे बैठ कोयल ने बड़ी सुरीली तान छेड़ी।
ReplyDeleteग़ज़ल हुई और बाकमाल हुई। बधाई हो सर।
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/01/blog-post_13.html
ReplyDeletebahut sundar gazal
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteBahut hee badhiya> Aakhri wala to behad bhaya.
ReplyDeleteसर, इन दिनों कुछ फुर्सत में हूँ सो फिर से ऑनलाइन पठन पाठन टिपियाना तेज हो गया है.…
ReplyDeleteलाख बुराई हो जिसमें
ढूंढो उसमें अच्छाई
तन्हा काली रातों की
बढ़ती क्यूँ उफ़ ! लम्बाई
बीती बात उधेड़ो मत
'नीरज' सीखो तुरपाई
वाह… !! बहुत सुन्दर। । पूरी ग़ज़ल ही कामयाब हुयी है. सभी शे'र जबरदस्त हैं !!
छोटी बह्र पर अच्छा काम है नीरज साहब, बहुत-बहुत बधाई। तुससी ग्रेट हो सर जी।
ReplyDeleteछोटी बहर में शानदार,सुंदर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,
बहुत खूब!
ReplyDeleteहर मिसरे ने 'कूक' सुनाई,
ReplyDelete'नीरजी' रंग में इतराई,
क्या खूब ग़ज़ल है गाई।
लो ! कोयल भी शरमाई।
http://mansooralihashmi.blogspot.com
छोटी है ,नटखट है ,बुलन्द आवाज है |
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
सीखो तुरपाई :-)
ReplyDeleteबहुत खूब ग़ज़ल हुई है .. बधाई ..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteहै
शेर किये ऐसे पैदा
जैसे नीरज हो दाई।
लंबी बातों पर भारी
प्रेम भरे अक्षर ढाई।
तुम कमरों में बंद रहे
ReplyDeleteधूप नहीं थी हरज़ाई
...वाह...क्या बात है...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
कोयल की प्राकृतिक कूक सराहनीय है...बेहद सुंदर ग़ज़ल...
ReplyDeleteतुम कमरों में बंद रहे
ReplyDeleteधूप नहीं थी हरज़ाई
बीती बात उधेड़ो मत
'नीरज' सीखो तुरपाई
वाह आदरणीय नीरज जी बहुत खूब
बीती बात उधेड़ो मत,
ReplyDeleteनीरज सीखो तुरपाई!!
क्या बात कही है.. छोटे बहर में एक बेहतरीन ग़ज़ल!! एक एक शे'र लाजवाब!!
Received on e-mai:-
ReplyDeleteअति सुंदर!
Sarv Jeet Sarv
Delhi
अब जीवन में तुरपाई ही सीख रहे हैं
ReplyDeleteWaaaaah kya kahney bahut khoob Neeraj Ji....
ReplyDelete"लाख बुराई हो जिसमें
ढूंढो उसमें अच्छाई"
Satish Shukla 'Raqeeb'
बढ़िया है बॉस!
ReplyDeleteReceived on e-mail:-
ReplyDeleteWaah
Chha gaye janab.
RAMESH SACHDEVA
(Principal)
HPS SENIOR SECONDARY SCHOOL,
SHERGARH (M.DABWALI)-125104
DIST. SIRSA (HARYANA) - INDIA
Received from mail:-
ReplyDeleteBeautiful...
Rahul
Sent from my iPhone
Newzealand
Received on mail:-
ReplyDeletebhai neeraj ji
namsty
bhut achhi gazal hai
khastor par yeh lines--
तुमसे मिल कर देर तलक
अच्छी लगती तन्हाई
बच्चों से घर चहके यूँ
ज्यूँ कोयल से अमराई
लाख बुराई हो जिसमें
ढूंढो उसमें अच्छाई
badhai-
om sapra
Delhi
वाह, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबीती बात उधेड़ो मत
ReplyDelete'नीरज' सीखो तुरपाई ।
वाह ! क्या बात है!