उस ज़माने में भी ,जब मोबाइल नहीं हुआ करता था, चैट की सुविधा नहीं थी और तो और टेलीफोन भी नहीं था , लोग एक दूसरे से खूब बातें किया करते थे. अब जब बात करने की बहुत सी सुविधाएँ हो गयीं हैं जैसे मोबाइल आदि तो लोग हर जगह हर समय बात करते दिखाई देते हैं लेकिन अब की और तब की बातचीत में फर्क है . अब लोगों का मुंह बात करता है जिसे कान सुनते हैं जबकि तब लोग दिल से बात करते थे जिसे दिल सुनता था. बात करने से ज्यादा समझी जाती थी. ऐसी आत्मीय बातचीत जिसे उर्दू में गुफतगू कहते हैं अब बहुत कम होती है.
ऐसे माहौल में शायरी की वो किताब जिसकी टैग लाइन "बात करती हुई ग़ज़लों की किताब" हो आपका ध्यान खींचने में जरूर कामयाब होगी.बात करती हुई ग़ज़लों की इस किताब का शीर्षक है " मिजाज़ कैसा है " और मिजाज़ पूछने वाले शायर हैं जनाब "अनवारे इस्लाम ". आज हम इसी किताब का जिक्र अपनी " किताबों की दुनिया " श्रृंखला में करेंगे. उस की आँखों में आ गए आंसू
मैंने पूछा मिजाज़ कैसा है
दूर तक रेत ही चमकती है
कोई पानी नहीं है धोका है
किसके काँधे पे रखके सर रोऊँ
हाल सबका ही मेरे जैसा है
मेरे ब्लॉग के नियमित पाठक " अनवारे इस्लाम " के कलाम और और उनकी शायरी से रूबरू हो चुके हैं लेकिन जो अनियमित हैं उनसे गुज़ारिश है कि वो "सुखनवर" पर चटखा लगायें. सुखनवर उस साहित्यिक पत्रिका का नाम है जिसे अनवारे इस्लाम साहब भोपाल से नियमित रूप से प्रकाशित करते हैं. सच कहूँ तो साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं की जो आज दशा है उसे देखते हुए अनवारे इस्लाम भाई को इस जोखिम भरे काम के लिए बधाई दी जानी चाहिए. तुम अपनी रोशनियों पर गुरूर मत करना
चराग सबके बुझेंगे हवा किसी की नहीं
वो होंट सी के मेरे पूछता है चुप क्यूँ हो
किताबे जुर्म में ऐसी सजा किसी की नहीं
चराग़ जलने से पहले ही घर को लौट सकें
हमारे वास्ते इतनी सी दुआ किसी की नहीं
मिजाज़ कैसा है की ग़ज़लें बहुत सादा ज़बान में आपसे बात करती चलती हैं. सीधी सच्ची बातें हैं जो बहुत सरलता से ग़ज़ल के शेरों में पिरोई गयी हैं. वो अपने बारे में भी इस किताब में कुछ नहीं कहते जो कुछ कहती हैं उनकी ग़ज़लें कहती हैं. खास बात तो ये है के उनकी शान में, जैसा की अब हर किताब के शुरूआती पन्नों में इक रिवाज़ सा बन गया है, किसी बड़े शायर, नेता या फिर उनके यार दोस्तों ने कसीदे नहीं पढ़े.है मुश्किल पिताजी के घर को बचाना
मिरे भाई अपना मकाँ चाहते हैं
मिरे हिस्से में तो लहू भी नहीं है
वो हाथों को रंगे हिना चाहते हैं
है बाकी ज़मीं पर बहुत काम फिर भी
सितारों से आगे जहाँ चाहते हैं
आकर्षक आवरण में लिपटी इस किताब में अनवारे इस्लाम साहब की अस्सी ग़ज़लें अपनी सादगी से पाठकों का मन मोह लेती हैं. ज़िन्दगी को खुशगवार बनाने वाली बातों को बहुत ख़ूबसूरती से अशआरों में पिरोया गया है. इन छोटी छोटी बातों का अपना महत्व है अगर हम इन्हें अपने जीवन में उतार लें तो बहुत सी अनचाही तकलीफों से निजात पा सकते हैं. ये बातें बिना लाग लपेट के अनवारे साहब अपने दिलकश अंदाज़ में हमें बतातें हैं.गुम न हो जाय साझी विरासत कहीं
अपने बच्चों को किस्से सुनाया करो
भीग जाने का अपना अलग लुत्फ़ है
बारिशों में निकलकर नहाया करो
तुम जो रूठो तो कोई मनाये तुम्हें
कोई रूठे तो तुम भी मनाया करो
अनवारे इस्लाम जी ने अपने उस्ताद शायर पिता स्व. सलाम सागरी से मिली शायरी की इस विरासत को जिंदा रखा है. मध्य प्रदेश के शहर सागर में एक अक्तूबर सन 1947 को जन्मे अनवारे साहब ने पूरा जीवन लेखन को ही समर्पित कर दिया है. उन्होंने साक्षरता पर साठ और बाल साहित्य पर अठ्ठारह से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है. उन्हें साहित्य अकादमी म.प. और राष्ट्र भाषा प्रचार समिति म.प. द्वारा सम्मानित किया गया है. लगभग फकीराना अंदाज़ में ज़िन्दगी बसर करते हुए ज़मीन से जुड़े इस शायर ने उर्दू की महत्वपूर्ण कृतियों तथा प्रतिष्ठित शायरों की सत्ताईस से अधिक पुस्तकों का संपादन भी किया है. अनवरत लिखते हुए ना उनका कलम थकता है और ना वो खुद.तू है मेरा के तेरे सिवा कौन है
मैं हूँ तेरा तो मुझसे जुदा कौन है
क्यूँ परेशां हूँ तेरे होते हुए
तू जो खुश है तो मुझसे ख़फ़ा कौन है
फूल कागज़ के हैं देखने के लिए
घर सजा लीजिये सूँघता कौन है
अनवारे साहब की रचनाएँ सी.बी.एस.इ , महाराष्ट्र राज्य के हिंदी पाठ्यक्रम सहित विदेशों के हिंदी पाठ्यक्रमों में भी शामिल हैं. भारी भरकम शब्द और अलंकृत भाषा के बिना भी अच्छा और सार्थक साहित्य रचा जा सकता है ये अनवारे साहब को कलाम को पढ़ कर सिद्ध हो जाता है. दुनिया, कलिष्ट भाषा और गूढ़ संकेतों में लिखी, आपकी रचनाओं के लिए भले आपको ज्ञानी या पंडित कहने लगे लेकिन कबीर नहीं कहेगी,कबीर कहलवाने के लिए आपकी रचना आम ज़बान और फक्कड़ अंदाज़ में ही होनी चाहिए जैसी की अनवारे साहब की हैं:तिरी बातें समझ पाता नहीं मैं
तिरी बातों में आसानी बहुत है
परों को चौंच से नोचा है अक्सर
क़फ़स के नाम कुर्बानी बहुत है
क़फ़स: पिंजरा
यहाँ पर भीड़ में सब अजनबी हैं
मिरे शहरों में वीरानी बहुत है
आलेख प्रकाशन वी-8, नवीन शाहदरा दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस किताब को खरीदने के लिए आपको अनवारे इस्लाम साहब से संपर्क करना चाहिए. किताब प्राप्ति के आसान रास्ते को बताते हुए अनवारे साहब आपको, अपनी दिलकश ज़बान और पुर खुलूस बातों से, अपना बना लेंगे. उनसे संपर्क करने के लिए आप उन्हें उनके मोबाइल 9893663536 पर फोन करें या फिर उन्हें sukhanvar12@gmail.com पते पर इ-मेल करें. आप ये सब करें तब तक हम आपसे, उनके ये शेर सुना कर, विदा लेते हैं और निकलते हैं एक और शायरी की किताब की तलाश में.कौन पोंछेगा आँख के आंसू
अपनी बारिश में आप भीगा कर
रेशमी तार थे जो जीवन के
रख दिए आज हमने उलझा कर
छाँव का जिक्र ठीक है लेकिन
तू कभी धूप में भी निकला कर