गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरा हुआ था जो बहुत चर्चित और लोकप्रिय रहा. उसी तरही में मैंने भी अपनी एक ग़ज़ल भेजी थी जिसे वहां पाठकों ने पढ़ कर अपना प्यार दिया. उसी ग़ज़ल को आज अपने ब्लॉग पाठकों के लिए फिर से पोस्ट कर रहा हूँ.
सितम जब ज़माने ने जी भर के ढाये
भरी सांस गहरी बहुत खिलखिलाये
कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
खिली चाँदनी या बरसती घटा में
तुझे सोच कर ये बदन थरथराये
बनेगा सफल देश का वो ही नेता
सुनें गालियाँ पर सदा मुसकुराये
बहाने बहाने बहाने बहाने
न आना था फिर भी हजारों बनाये
गया साल 'नीरज' तो था हादसों का
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये
वाह वाह बहुत ही लाजवाब रचना. आनंद आगया नीरज जी.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत बढ़िया गजल है.
ReplyDeleteये शेर सबसे अलग हैं;
कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये
गज़ल की एक खास बात है.. टिपण्णी करने के लिए कोई कुछ सोचता नहीं है. बस एक शेर उठाकर डाल देता है..
ReplyDeleteवैसे मुझे तो नहाने बहाने वाला शेर ही पसंद आया.. :)
सोरी! बहाने बहाने वाला
ReplyDeleteएक बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
ReplyDeleteसितम जब ज़माने ने जी भर के ढाये
भरी सांस गहरी बहुत खिलखिलाये
कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
*** *** ***
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
vaise sacchee to ye hai ki har sher ek se bad kar ek hai.
mubarakho !
बनेगा सफल देश का वो ही नेता
ReplyDeleteसुनें गालियाँ पर सदा मुसकुराये
---------
बिल्कुल सिद्धू समझ शास्त्री कह गये हैं मुंह पे हमेशा स्माइलिंग फेस रखो! :)
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
Bahut khoob neeraj ji ! Laajabaab !!
बहाने बहाने बहाने बहाने
ReplyDeleteन आना था फिर भी हजारों बनाये
vaaaaaah
हर शेर लाजवाब है बहुत सुन्दर पसंद आई आपकी यह गजल शुक्रिया नीरज जी
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबेहतरीन
लीजिये आज हमने भी अपनी वही तरही लगायी है पोस्ट पर आपके संग-संग....
ReplyDeleteअभी अपकी होली वाली तरही का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं।
वाह नीरज जी , आनन्द आया ग़ज़ल गुनगुना के
ReplyDeleteभलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
सुखी जीवन का फलसफा है शेर ....... धन्यवाद नीरज जी दुबारा पढ़वाने का .... कमाल का लिखते हैं आप ........
वाह मै भी लगाती हूँ अभी कहानी चल रही है आपकी हर गज़ल लाजवाब होती है
ReplyDeleteकसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये --- वाह वाह क्या शेर कहे हैं । अब होली के तरही मे आपका इन्तज़ार है धन्यवाद और शुभकामनायें
आदरणीय नीरज जी, आदाब
ReplyDeleteवहां भी..और यहां भी....
ये ग़ज़ल जहां भी होगी
अपनी खुशबू हर जगह बिखेरेगी
कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
हर एक शेर...नसीहत हैं समाज के लिये
वाह जी वाह वाह वाह वाह.. । वैसे हम बडे दिनों बाद आए है और एक बेहतरीन गजल पढने को मिल गई।
ReplyDeleteभलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
.......
is ibadat me hi khuda ka didar hai
'बहाने बहाने बहाने बहाने
ReplyDeleteन आना था फिर भी हजारों बनाये '
वाह! वाह! वाह !
बहुत सुन्दर!
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
waah kya baat kahi hai ...MASHAALLAH..
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
वाह बहुत खुब कहा आप ने
सितम जब ज़माने ने जी भर के ढाये
ReplyDeleteभरी सांस गहरी बहुत खिलखिलाये
सितम सहने का यह अन्दाज़ वाह क्या कहने
बहुत खूब्
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
Pooree rachanake liye ek hee shabd..waah!
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
...
कितनी उत्साहवर्धक पंक्तियां
vaah sir jee,behtreen.
ReplyDeleteBhai Neeraj ji
ReplyDeletePoori ghazal ka har sher apne aap men purna hai.Is sunder ghazal ke liye badhai sweekaren.
Chandrabhan Bhardwaj
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
वाह नीरज जी , कितने सुन्दर भाव हैं।
पूरी ग़ज़ल आनंदमयी ।
ek ek ashaar dil ko chhoota hua. behatareen. neeraj ji, badhaai.
ReplyDeleteफिर से पढ़ी..उतनी ही ताजा!! आनन्द आया.
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना......पढने के बाद दिल से बेसाख्ता निकल गया........सुभानाल्लाह
ReplyDelete===========
"हमारा हिन्दुस्तान"
"इस्लाम और कुरआन"
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vaah vaahh!!!
ReplyDeletesahaj aur sundar !
ReplyDeleteचली एक बार फिर सही...मोहन भोग मिले तो बार-बार सही..
ReplyDeleteकसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
..अच्छी गज़ल का यह शेर कुछ ज्यादा अच्छा लगा.
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये..
हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! बेहद ख़ूबसूरत रचना! बधाई!
वाह साहब वाह। अशआर तो आपके एक से बढ़कर एक हैं बस एक बात समझ नहीं आई कि ये किस के साथ निसबत हो गई आपकी कि खिली चॉदनी और बरसती घटा में सोचने मात्र से थरथराने की नौबत आ गई। अय-हय बड़ा जीना दुश्वार हो गया होगा।
ReplyDeleteवाह!क्या बात है.... बहुत ही लाजवाब रचना!!
ReplyDeleteआभार
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
बहुत सुंदर इबादत
धन्यवद
बहाने बहाने बहाने बहाने
ReplyDeleteन आना था फिर भी हजारों बनाये
हमेशा की तरह दिलकश .....................बहाने !
ReplyDeleteमन लुभाने के :)
नीरज जी हर शेर लाजवाब है बस मकता से शिकायत है जो आखिर में हादसों की याद दिला देता है इस शेर को बीच में कही डालिए
ReplyDelete-वीनस
न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
ReplyDeleteवही देख शीशा बड़े सकपकाये :)
E-mail received from Om Sapra Ji:-
ReplyDeleteShri neeraj ji
namastey
Really a good gazal, especially the following lines:-
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
खिली चाँदनी या बरसती घटा में
तुझे सोच कर ये बदन थरथराये
congrats for such a beautiful gazal,
i told you few months ago about "mushaira" in delhi university where munnavar rana and prof kuldip salil were among the speakers and a large audience enjoyed it.
Now a similar mushaira is going to be organised on 25th feb 2009 in delhi unversity. i will try to send you a brief report to you.
kindly send some of your collection by post, if possible.
-regards,
-om sapra,
delhi-9
बेहतरीन ग़ज़ल ... हमेशा की तरह ........... वाह !
ReplyDeletebahut sundar gajal
ReplyDeleteabhar..........
वाह नीरज जी वाह क्या कमाल की ग़ज़ल कही, उस्तादी शायद इसी को कहते हैं......
ReplyDeleteलाजवाब!!!!!!!!!!!!!! और अब क्या कहूँ हर एक शेर बेमिसाल
ReplyDeleteभलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
सचमुच बार बार पढने लायक शेर है. ये तो ख़ास है भलाई किये जा...
ReplyDeleteकसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
ReplyDeleteखरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं ने ऐसा कभी चाहा ही नहीं. दरअसल इन दिनों काम इतना ज्यादा है कि फुर्सत नहीं मिल रही है. लगातार एक शहर से दूसरे शहर भागना पड़ रहा है. मुझे खुद इस बात का अफ़सोस है कि मैं कहीं कमेन्ट तक नहीं पहुंचा पा रहा हूँ. लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं कि मैं आप सब के प्यार को भूल बैठा हूँ. यकीन कीजिए, शायद होली के बाद एक बार फिर मैं थोड़ी फुर्सत निकाल लूँगा. आपकी शिकायत अच्छी लगी.
जब तक आप, अच्छे लिखने वाले मौजूद हैं, किसी सर्वत की क्या मजाल कि गजल की कमी महसूस हो. इतनी उम्दा गजल पेश करने के बाद ये खाकसारी, यही इन्किसारी तो नीरज भाई बांधे रखती है आपसे. हाँ वो बरसात और चांदनी में मन थरथराने की बजाय बदन थरथराने वाला मामला जरा हजम नहीं हुआ.
कुछ दिन मेरी गैर हाजिरी पर मुझे माफ़ करें और बकिया मित्रों को भी इस मजबूरी से अवगत करा दें. हम एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे.
कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
ReplyDeleteखरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
bahut sachcha sher hai
न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये
ahaaaaaa kya baat kah di
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
hmm bahut mushkil hai ye
गया साल 'नीरज' तो था हादसों का
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये
bahut sach kaha hai
Neeraj ji
kamaal gazal ek baar phir
नीरज जी नमस्कार ,
ReplyDeleteजीतनी बार इस बहाने को पढता हूँ दिल झुमने लगता है ... फिर से इस ग़ज़ल को पढवाने के लिए शुक्रिया नीरज जी .........
अर्श
जनाबे मन
ReplyDeleteआज एक मुद्दत के बाद आपके यहाँ
गशत करने का मौका मिला ग़ज़ल से रूबरू
हुए दिल को तस्कीन मिली जेहन को सकूँ नसीब हुआ
किबला तहरीर जारी सारी रखें
आदाब
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क
वाह नीरज जी ,
ReplyDeleteअब इतनी तारीफ़ के बाद मैं क्या कहूँ .......लाज़वाब हैं आपके सारे शेर !!
भलाई किये जा इबादत समझ कर
ReplyDeleteभले पीठ कोई नहीं थपथपाये
लिखकर आप ग़ज़ल पे ग़ज़ल ज़माने का कर रहे भला
हमको फुर्सत भी नहीं कि थपथपाते पीठ तो रहते भला
सच कहूँ तो आपने मुझे आइना भी निम्न शेर में दिखा दिया और तदनुसार बहुत ही सकपका रहा हूँ ,,,,,
न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये
सच को स्वीकार करने कि हिमाकत कर रहा हूँ............
होली की हार्दिक बधाई, वैसे इस होली पर आपका जयपुर में इंतजार कर रहा हूँ .......
चन्द्र मोहन गुप्त
Holi kee anek shubhkamnayen!
ReplyDeleteHappy holi......
ReplyDeleteआपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteइस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ReplyDeleteना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)
होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...
होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
ReplyDeleteआपके आने से होली का आनंद दोगुना हुआ , आभारी हूँ ! स्नेह के लिए धन्यवाद ! ईश्वर से आपके लिए प्रार्थना होगी !
ReplyDeleteसादर
बढ़िया गज़ल है और बढ़िया चित्र भी ।
ReplyDeleteE-Mail received from Respected C.Bhardwaj Ji:-
ReplyDeleteBhai Neeraj ji
Poori ghazal ka har sher apne aap men purna hai.Is sunder ghazal ke liye badhai sweekaren.
Chandrabhan Bhardwaj