ये ग़ज़ल दुष्यंत जी के लाजवाब शेर
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में
हम कहाँ हैं आदमी हम झुनझुने हैं
से प्रभावित हो कर लिखी है...लेकिन बहर और कथ्य अलग हैं, गुरुदेव पंकज सुबीर का आर्शीवाद मिले बिना मेरी ये रचना बेमानी ही रहती.
ये कैसे रहनुमा तुमने चुने हैं
किसी के हाथ के जो झुनझुने हैं
तलाशो मत तपिश रिश्तों में यारों
शुकर करिये अगर वो गुनगुने हैं
बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग रस्ते ये जो तुमने चुने हैं
'दया' 'ममता' 'भलाई' और 'नेकी'
ये सारे शब्द किस्सों में सुने हैं
रिआया का सुनाओ दुख अभी मत,
अभी मदिरा है और काजू भुने हैं
यहाँ जीने के दिन हैं चार केवल
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं
परिंदे प्यार के उड़ने दे 'नीरज'
हटा जो जाल नफरत के बुने हैं
परिंदों पर आपकी रचना बहुत सुन्दर है और पोस्ट के साथ लगे चित्र ने मन मोह लिया . आभार.
ReplyDeleteतलाशो मत रिश्तों मे तपन यारो
ReplyDeleteशुकर करिये अगर वो गुन्गुने हैं
और
यहाँ जीने के दिन हैं चार केवल
मगर मरने के मौके सौ गुने हैम
बहुत ही लाजवाब शे-ार हैं आपको और आपके गुरू जी को oबहुत बहुत बधाई
लिखने को तो चार शब्द कोई भी लिख ले
मगर ऊँचा वो जो अच्छी गज़ल बुने है
"तलाशो मत तपिश रिश्तों में यारों
ReplyDeleteशुकर करिये अगर वो गुनगुने हैं"
बहुत खुब... बहुत अच्छी गजल..
नीरज जी
ReplyDeleteआपकी हर ग़ज़ल कुछ न कुछ पैगाम लिए हुवे होती है.......... कोई नया प्रयोग होता है जो नया करने की प्रेरणा देता है.
रिआया का सुनाओ दुख अभी मत,
अभी मदिरा है और काजू भुने हैं
ये बात आज के दौर में नेताओं पर हूबहू लागू होती है ............
यहाँ जीने के दिन हैं चार केवल
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं
आधुनिक युग में इंसान ज्यादा मौत के करीब हो गया है............ तरक्की ने ये मुकाम जरूर दिखाया है
परिंदे प्यार के उड़ने दे 'नीरज'
हटा जो जाल नफरत के बुने हैं
इस शेर में आपने जीवन का फलसफा कहा है.............लाजवाब है पूरी ग़ज़ल....शुक्रिया
ग़ज़ल पूरी तरह से रंग ए नीरज लिये हुए है । मेरे विचार में आपके ब्लाग की अपार लोकप्रियता में मिष्टी का बड़ा हाथ है । मिष्टी बिटिया के लिये अपनी अगली पोस्ट में एक गीत लगाऊंगा याद से उसे सुनवाइयेगा । आज सोमवार की सुबह काफी दुखद समाचारों के साथ हुई विदिशा के कवि सम्मेलन से लौटते हुए देश के वरिष्ठतम कवि श्री ओमप्रकाश आदित्य जी, श्री नीरज पुरी और श्री लाड़ सिंह गुर्जर का दुर्घटना में निधन हो गया और मेरे अभिन्न मित्र श्री ओम व्यास ओम गंभीर अवस्था में अस्पताल में हैं साथ ही धार के कवि श्री जानी बैरागी भी गंभीर अवस्था में हैं । साथ ही आज ही सुबह ये समाचार मिला के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री हबीब तनवीर का भोपाल में निधन हो गया । इन सब के साथ समय गुजारा है सो मन दुखी है
ReplyDelete। ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूं कि ओम जी और जानी भाई स्वस्थ हो जायें ।
रिआया का सुनाओ दुख अभी मत,
ReplyDeleteअभी मदिरा है और काजू भुने हैं ...
क्या लिखा है भाई जी ,वाह-वाह
dilkash gazal....
ReplyDeleteगज़ल के तेवर तो बहुत सही हैं। बार-बार पढ़ने लायक।
ReplyDeleteयहाँ जीने के दिन हैं चार केवल
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं
आज की सुबह तो यही कहती है। तीन वरिष्ठ कवियों की मौत......परमात्मा उन्हे शांति दे।
भईया प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिख दिए हैं.
तीन- चार बार पढ़ चूका हूँ.
यह दो गजल मुझे बहुत अच्छा लग.
तलाशो मत रिश्तों......वो गुन्गुने हैं
ये कैसे रहनुमा.......जो झुनझुने हैं
बेहद सुंदरतम रचना. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
हर शेर पे जितनी वाह वाह की जाये कम...!
ReplyDeleteतलाशो मततपिश रिशतों में यारों,
शुकर करिये अगर वो गुनगुने है।
सही कहा..!
विदिशा वाली घटना से हम भी अवगत हुए और मन बहुत खराब हुआ..!
एक से बढ़कर एक शेर है. अद्भुत गजल है.
ReplyDeleteगजल को शराब, जुल्फ, हिज्र, इश्क वगैरह वगैरह से निकालने में किये गए आपके योगदान की जितनी भी सराहना की जाय, कम होगी.
लाजवाब , किस किस शेर की तारीफ़ की जाये , सारी ग़ज़ल रट लेने का मन कर रहा है |
ReplyDeleteबहुत खुब आप की कविता बहुत ही सुंदर लगी.
ReplyDeleteधन्यवाद
दुष्यंत जी के तेवर इसमें भी कायम हैं।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
"तलाशो मत तपिश रिश्तों में यारों
ReplyDeleteशुकर करिये अगर वो गुनगुने हैं"
परिंदे प्यार के उड़ने दे 'नीरज'
हटा जो जाल नफरत के बुने हैं
क्या कहने हैं जी क्या कहने हैं.....
गुरुदेव जी को आप पर बहुत गर्व और नाज़ होता होगा.......
आप बहुत ही अच्छा लिखते हैं...........
अक्षय-मन
बहुत ही सुन्दर! दुश्यन्त कुमार ही नहीं अदम गोन्डवी की भी याद दिला दी आपने:-
ReplyDelete'काजू भुने हैं प्लेट में ह्विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में'
हार्दिक बधाई!
NEERAJ JEE,
ReplyDeleteACHCHHEE GAZAL HAI.MATLAA
APNE SHABAAB PAR HAI--
YE KAESE RAHNUMAA TUMNE CHUNE HAIN
KISEE KE HAATH KE JO JHUNJHUNE HAIN
MEREE BADHAAEE SWEEKAR
KIJIYE.
बहुत बढि़या नीरज जी। कमाल की रचना है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है नीरज जी।
ReplyDeleteअभी मदिरा है ओर काजू भुने है..
ReplyDeleteये शेर अच्छा लगा....\
चार अच्छे लोगो का जाना समाज का नुक्सान है .इश्वर उन्हें श्रदांजलि दे....
neeraj ji, bahut behatareen gazal likhi hai, man moh liya, badhai sweekaren.
ReplyDeletetalaasho mat tapish rishton
ReplyDeleteshukr kariye agar wo gungune hain
riyaya ka sunao dukh abhi mat
abhi madira hai aur kajoo bhune hain
bhai waah Neeraj bhai..aapki lekhni ka qayal kar diya in ashaaron ne.
यहाँ जीने के दिन हैं चार केवल
ReplyDeleteमगर मरने के मौके सौ गुने हैं
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यह तो पंक्तियां बहुत ही पसन्द आईं नीरज जी।
एक हीरा और जो हमने सहेज लिया ऐसे ही हीरे अपने चाहने वालो पर लुटाते रहे
ReplyDeleteदया'ममता 'भलाई और नेकी
ReplyDeleteये सरे शब्द किस्सों में सुने है ...
नीरज जी ये आपने क्या लिख दिया है ,कितनी बारीकी से आपने ये बात कही है पूरी जिन्दगी को मुकमाल करती है ये सारे शब्द.... बहोत ही खुबसूरत अश'आर नीरज जी ढेरो बधाई और इस भोलीभाली मिष्टी को मेरे तरफ से बहोत बहोत बधाई जितने भोलेपन से बैठी है पीछे शैतानीया ही नजर आरही है.... बहोत बहोत प्यार मिष्टी को....
अर्श
aapke blog par aana achcha lagta hain..... bahut achchi lagi ye gazal
ReplyDeleteआप प्रणम्य हैं ! प्रणाम !! बार बार .. हर बार ये ही करता रहूँगा .....
ReplyDeleteनीरज जी की लेखनी का एक और चमत्कार....
ReplyDeleteआहा!!!!!!
लाजवाब काफ़िये....और सारे-के-सारे शेर बेहतरीन
खास कर ये तपिश रिश्तों वाला और रिआया वाला तो उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़!!!!
bahut badhiyaa!!
ReplyDelete... अब तारीफ क्या करें, बस मजा आ गया !!
ReplyDeletebehtreen gazal...mujhe bahut achchhi lagi
ReplyDeleteआपकी गजल वाकई... दिल को छू जाती है...
ReplyDeleteबहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई...
परिंदे प्यार के...................
बहुत सुन्दर मक्ता कहाँ आपने
वीनस केसरी
मानव मन की सँवेदनाओँ के प्रति आस्था और दुनिया की निर्ममता क बयान लिये आपका
ReplyDeleteये प्रयास बहुत अच्छा लगा नीरज भाई
- लावण्या
bahut hi badhiya gazal hai..dushyant ji ka sher sach mein bahut hi umda hai!
ReplyDeleteek bahut badi sachchayee!
-aap ki gazal mein rishtey gungune hain wala sher bahut achcha lga.
-vidisha wali ghtna sun kar behad afsos hua aur jo manniy kavivar divangat hue hain unhen vinmr shraddhanajali.
Bahut khub Neeraj uncle.. maja aa gaya.
ReplyDeleteI dont know how do you find all these amazing photographs to put with your poems. Really good.
Mishti ki bhi pic bahut pyari lagi..
Bilkul sahi kaha hai Dushyant ji ne.
"hum kahan hain aadmi hum jhunjhune hain..."
Dil ko chu gaye shabd
"Talasho mat tapis rishto mein yaaron.. "
Bahut khub..
Jai ho... sada aapki.. :-)
Regards,
-R
झुनझुना भी बज तो धुन में रहा है.. :)
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन!!! एक के बाद एक उम्दा शेर!! छा गये जी!!
बहुत सुन्दर, नीरज जी!
ReplyDeleteरिआया का सुनाओ दुख अभी मत,
ReplyDeleteअभी मदिरा है और काजू भुने हैं
बहुत खूब !! पूरी ग़ज़ल एक विशिष्ट अंदाज़ लिये हुए है. बधाई
ek sher itana khubsurat hai kahane ko shabda nahi hai
ReplyDeleteaadarniya neeraj ji
ReplyDeletenamaskar
deri se aane ke liye maafi chahunga .. tour par tha ...........
gazal ki tareef karna sirf sooraj ko diya diklaana honga... aapke saroor ab shabaab par hai sir ji , har ek sher apne aap me ek daastan hai..
"yahan jeene ke din hai chaar " bahut hi philosphical thought liye hue hai .. padhkar man ruk gaya ...
sir , main agli baar jab milunga aapse , to ; gale milne ke badle me aapke pair choo lunga ...yahi ek choti si " neg " hongi meri taraf se aapke is sher ke liye ....
aapko pranaam aur aapki lekhni ko naman ...
aapka
vijay
talasho mat tapish....
ReplyDeletesahi baat kahi aapne .bahut naye andaz aur gungune lahze me kahi gayee khubsurat ghazal.
behtreen.......adbhut
ReplyDelete"तलाशो मत तपिश रिश्तों में यारों
ReplyDeleteशुकर करिये अगर वो गुनगुने हैं"
यह सबसे अधिक पसंद आया ..बहुत बढ़ियाकहते हैं है आप नीरज जी ..
वाह नीरज जी बहुत ही बेहतरीन कहा है आपने बहुत बधाई..
ReplyDeleteपहला श'एर याने मतला तो दुष्यंत कुमार जी का ही है,,दया ममता वाला श'एर भी मुझे आप का नहीं मालूम होता,,इख़लास,वफ़ा,फ़र्ज़ ओ मुहब्बत ये वे अल्फाज़ हैं जो सिर्फ किताबों में मिलें,,इस तरह या कुछ ऐसे ही श'एर से सम्बद्ध मालूम होता है,,मु'आफ़ करियेगा नीरज जी ये थोडी कड़वी बात है मगर मुझे आज तक समझ नहीं आया की लोग बिना सोचे समझे पढ़े टिप्पणी देदेते हैं,,और टिप्पणी क्या चापलूसी और अन्धानुकरण का नाम बस है,, जी,आपका एक श'एर तलाशो मत तपिश रिश्तों में यारों,बहुत अच्छा है,,
ReplyDeleteनिशांत कौशिक
महेंद्र मिश्र जी भी मुझे बहुत अद्भुत मालूम होते हैं,,उन्हों ने टिप्पणी दी है,,परिंदों पर आपकी ये रचना बहुत अच्छी मालूम होती है..लगता है,,तखलीक को उन्हों ने पढ़ा तो है नहीं और टिप्पणी भी नादानी में दे डाली, वाह.
ReplyDeleteनिशांत कौशिक
नीरज जी,
ReplyDeleteआप सचमुच जब भी आते हैं
प्यार, दुलार और मनुहार का
मौसम दे जाते हैं...इस ग़ज़ल
का हर शेर मुझे प्यार के
उड़ते हुए बेखौफ परिंदे के
सामान ही लग रहे हैं...सच ऐसी
दुनिया ही तो आज का सपना
और ज़रुरत भी है.....आभार
===========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
hum jaiso ke liye to aap bhi guru samaan hi hai...seekhne ko mila bahut kuch ghazal se...behtareen
ReplyDeleteया इलाही क्या यही है तकदीरे इंसानी!!
ReplyDeleteजिधर देखो परेशानी परेशानी!!
नीरज जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
रचना मुझे बहुत बहुत अच्छी लगी....वाह...
मैने एक छोटा सा प्रयास किया है ग़ज़ल पर..।मैं आप से यह अपेक्षा अवश्य रखूंगा कि आप इसे जरूर देखेंगे....एक पत्रिका-समकालीन ग़ज़ल और बनारस के कवि/शायर
रियाया का सुनाओ दुःख अभी मत
ReplyDeleteअभी मदिरा है और काजू भुने हैं .
बहुत खूब ,बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने .और क्या तारीफ करूँ सचमुच छोटा मुंह और बड़ी बात होगी पर ग़ज़ल का हर शेर लाजवाब है .
नीरज जी,
ReplyDeleteइतनी तारीफ़ के बाद , मैं अब और क्या नया कहूं.
हर्फ़ मोती से लिखे आपने अशआर हार बन गए है.
पाखी
"तलाशो मत तपिश रिश्तों में यारों
ReplyDeleteशुकर करिये अगर वो गुनगुने हैं"
अति सुन्दर
वाह!कितनी अच्छी अभिव्यक्ति दी है आप ने....
ReplyDelete.......कंचनलता चतुर्वेदी
वाह वाह वाह...
ReplyDeleteयहाँ जीने के दिन हैं चार केवल
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं
क्या बात कही है जनाब, बहुत ही शानदार
http://rohitler.wordpress.com