जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्ता रहा मैदान से
उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर
आज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से
आग में नफरत की जलने से भला क्या फ़ायदा
शौक जलने का अगर है तो जलो लोबान से
शानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्मान से
हार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
हौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान से
तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्मनी तो खत्म होगी सिर्फ इक मुस्कान से
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्लमंदों की,मिले नादान से
( वो खुशनसीब हैं जिन्हें गुरु की डांट मिलती है...क्यूँ की डांटता वो ही है जो अपना समझता है... ये ग़ज़ल उसी का नतीजा है. शुक्रिया गुरुवर पंकज जी )
What a pretty little Lady & a pretty Pink car !!
ReplyDeleteBoth r adorable ...:-)
&
सुँदर शिल्प और कथ्य दोनोँ ही -
स्नेह सहित,
-लावण्या
वाह साहब, लाजवाब, हर शे'र में अपनी ख़ूबसूरती, पढ़के मज़ा आ गया!
ReplyDelete---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर
ReplyDeleteआज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से
नीरज जी बहुत बढ़िया रचना है आभार
नीरज जी आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ReplyDeleteब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
आपकी गज़ल बहुत सरल और असरदार होती है।
ReplyDeleteबहोत खूब लिखा है आपने नीरज जी ढेरो बधाई आप पे तो गुरु देव का आशीर्वाद बना रहे क्रमशः यही उम्मीद करता हूँ ... बहोत बधाई और गुरु देव को मेरा सादर प्रणाम .....
ReplyDeleteअर्श
अब क्या कहें...पहले गुरू जी के वो तमाम शेर और फिर ये आपकी गज़ल
ReplyDeleteइस एक शेर ने तो जान ही निकाल दी है "उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर / आज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से"
पढ़ के तेरी ये गज़ल तारीफ में हम क्या कहें
खुल के देते दाद हैं,करते दुआ ईमान से
आग में नफरत की जलने से भला क्या फ़ायदा
ReplyDeleteशौक जलने का अगर है तो जलो लोबान से
वाह!
बहुत खूब नीरज जी !
बहुत ही बढ़िया गजल लिखी है.
बहुत सुंदर!
तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
ReplyDeleteदुश्मनी तो खत्म होगी सिर्फ इक मुस्कान से
क्या बात कही नीरज जी आपने. बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही. सुबीर गुरू को प्रणाम. मेरे दिल की बात बतलाऊँ ? मेरे फ़ेवरेट तो आप ही हैं.तमाम सार भर देते हैं ग़ज़ल में आप और वो भी सहज सुलभ ज़बान में.
सदा आपके आशीर्वाद की चाह में.
--- आपका बवाल
लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
ReplyDeleteभीड़ में जो अक्लमंदों की,मिले नादान से
और इस मक्ते के शेर ने बेहतरीन बात अदा कर दी.
तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
ReplyDeleteदुश्मनी तो खत्म होगी सिर्फ इक मुस्कान से
" ग़ज़ल का तो जवाब ही नही ...एक एक शेर बेमिसाल और नन्ही मिष्टी की भोली और मासूम मुस्कान ने सच मे सुबह सुबह मन मोह लिया "
regards
वाह नीरज जी क्या खूब लिखा हैं। एक बात कहूँ आप हमें भी सिखा दो ये हुनर लिखने का। सच बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप।
ReplyDeleteहार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
हौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान से
बहुत ही उम्दा।
और हाँ एक बात तो कहना ही भूल गया मिष्टी की हँसी देखकर हम भी मुस्करा दिए। जब बच्चें मुस्कराते है तो अतिरिक्त जान सी आ जाती है। मिष्टी को बहुत प्यार और आशीर्वाद हमारी तरफ से और नैना की तरफ से हेल्लो।
ReplyDeleteबाकी तो सब ठीक है पर ये 'लोबान' क्या होता है . कृपया हमारा ज्ञान बढाएं !
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteबेहद अक्लमंद अशआर
नितांत भोलेपन के साथ
साझा करने का हुनर कोई
आप से सीखे....आपकी ये ग़ज़ल
इसकी मिसाल जो है !
=================
शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
kya khoob likha hai aapne.......hosla deti kavita,zindagi kaise jini chahiye........yeh batati hai.
ReplyDeleteनमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल है.
मतला बहुत खूबसूरत है, हर शेर अपने हिस्से की कहानी बयां कर रहा है, मुझे "सिर्फ़ इक मुस्कान से", "ज़िन्दगी की रस में..", और "शानो शौकत......" बहुत ज्यादा अच्छे लगे.
bahut hi acchi kavita hai..accha laga padh kar...
ReplyDeleteaap ne bahut sundar gajal likha hai,aap aisi hi sundar gajal likhte rahe,aisi meri subhkamna hai,aap kabhi mere blog ke follower baniye,aap ka swagat hai.
ReplyDeletehttp://meridrishtise.blogspot.com
खुदा कसम दो बातें तय है की अगर मै मार्च में जयपुर गया तो इस नन्ही परी से मिलकर आयूंगा......या बॉम्बे आया तो आपको इसे बुलाना पड़ेगा......
ReplyDeleteलोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमे
भीड़ में जो अक्लमंदों की,मिले नादान से
आप बस ये शेर भी लिख देते नीरज जी.......तो ये गजल मुकम्मल हो जाती......subhanallah......
उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर
ReplyDeleteआज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से
कितनी छोटी सी बात और कितना बड़ा एहसास...!
आग में नफरत की जलने से भला क्या फ़ायदा
शौक जलने का अगर है तो जलो लोबान से
कितनी सात्विकता...!
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
कितनी बड़ी सीख...!
लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्लमंदों की,मिले नादान से
कितनी सच्ची बात...
आप क़त्ल करते हैं अपनी कलम से। आसान शब्दों में बड़ी अभिव्यक्ति। खूब, बहुत खूब।
ReplyDeleteजिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
ReplyDeleteपर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
......... कितनी सही बात है,बहुत ही बढिया
जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
ReplyDeleteदूर तक जिनका नहीं रिश्ता रहा मैदान से
---------
हमें अपनी बगलें झांकने को मजबूर करती पंक्तियां।
हमेशा की तरह शानदार।
तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
ReplyDeleteदुश्मनी तो खत्म होगी सिर्फ इक मुस्कान से
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्लमंदों की,मिले नादान से
bahoot accha likha h aapne or muskan agar asi ho to sach m sab dushmani kahtm ho jay.
'ज़िन्दगी की दौड़ में…'
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
बहुत सुंदर गज़ल है बहुत-२ बधाई...
ReplyDeleteलाजवाब ! अनमोल रचना.
ReplyDeleteलाजवाब रचना. बहुत बधाई.
ReplyDeleteराम्राम.
ये ग़ज़ल बताती है कि उस कहावत का अर्थ क्या है जिसमें कहा गया है कि ''गुरू तो गुड़ ही रहा और चेला शक्कर हो गया '' सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं ।
ReplyDeleteहार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
ReplyDeleteहौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान से
बहुत खूब ..बहुत बढ़िया लिखते हैं आप
चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्मान से
ReplyDeletebahut khub
aur naanhi pari ko pyaar
बहुत ही सुंदर भाव, सुंदर कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद
जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
ReplyDeleteदूर तक जिनका नहीं रिश्ता रहा मैदान से
वाह नीरज जी! गज़ब की बात कही है, चंद अल्फाज़ में!
जबतक आपकी लिखी गजलों से सीख लेते रहेंगे, ज़िन्दगी ठीक चलेगी.
ReplyDeleteअद्भुत गजल है.
मिष्टी के तो क्या कहने. उसे देखकर जो सुकून मिलता है वो कहीं और नहीं मिलेगा.
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
ReplyDeleteपर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
bahut umda
हार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
ReplyDeleteहौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान सेनीरज जी
आपकी shayeri बहुत खूबसूरत है, हर शेर तराशा हुवा हीरा है. हमेशा नयापन लिए, ताज़ापन लिए होती है आपकी ग़ज़ल,
बहुत बहुत बधाई
बहुत ही मुश्किल चीज की गुजारिश है-
ReplyDeleteसिर्फ इक मुस्कान,
(कहॉ मिलती है इतनी आसानी से)
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
ReplyDeleteपर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
हार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
हौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान से
तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्मनी तो खत्म होगी सिर्फ इक मुस्कान से
बहुत ही अच्छा लिखा है.....
प्रोत्साहित करती हुई बेहतरीन प्रस्तुति \
आप कभी कभी मुझे भी डांट दिया करें.....)
अक्षय-मन
Bahut hinn alag tarike se likha hai aapne iss baar. Har ek pankti mein Josh hai, ek pukaar hai, ek chunauti aur lalkaar hai..
ReplyDeleteAap se gujarish hai aap aise hinn likhte rahein, aur ham jaise naw yuvakon mein josh laate rahein..
Mishti hamesha ki tarah bahut hin pyari lag rahi hai..
Regards,
Ratan
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
ReplyDeleteपर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
--क्या बात कह गये हमारे नीरज बाबू-देखते देखते कहाँ चले जा रहे हो??
और ’नीरज’ लिख गया आज फिर ऊँची गज़ल
रह गये हम ताकते, इस आखिरी पायदान से.
मिष्टी बिटिया बहुत ही प्यारी है. हमारा शुभाषिश उसको दिजिये.
इधर परिवारिक कारण कुछ ज्यादा समय ब्लॉग को देने की राह में सुखद अडंगा बन खड़े है. :)
शानदार। मिष्टी के खुले मुंह में मानो दुनिया समाई है। हम सब अर्जुन हैं और वो कृष्ण की तरह दुनिया की असलियत दिखा रही हैं, मुस्करा रही है। मनमोहनी!
ReplyDeletesaare ashaar sundar hai, khaskar yeh:
ReplyDeleteआग में नफरत की जलने से भला क्या फ़ायदा
शौक जलने का अगर है तो जलो लोबान से
शानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्मान से
m.h.
बाद मुद्दत के जो देखा मैँने नीरज का ब्लाग
ReplyDeleteउनकी ग़ज़लोँ मेँ नज़र आया मुझे सोज़े दुरूं
उनके एक एक शेर मेँ है ज़िंदगी की आबो ताब
जिस से मिलता है मुझे अहमद अली बर्क़ी सुकूँ
डा. अहमद अली बर्की आज़मी
जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
ReplyDeleteदूर तक जिनका नहीं रिश्ता रहा मैदान से
शानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्मान से
तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्मनी तो खत्म होगी सिर्फ इक मुस्कान से
बहुत प्यारे शेर कहे हैं, मुबारकबाद कुबूल फरमाऍं।
आपके ब्लोग पर आकर संतोष हुआ कि लिखने वाले भी है ओउर पढ़ने वाले भी . आपकी गजल के मुखड़े के अर्थों के समानान्तर अर्थों से भरा मेरा गीत भी देखें ओउर कृतार्थ करें.
ReplyDeleteआपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
ReplyDeleteneeraj ji !! bahut hi lajavaab likha hai , aapaki jindgi bhi behad khoobsurat hai .
ReplyDeletemakar sankrati ki shubhkamnayen .
kuch to hamare liye labz chode hote Nirajaji!
ReplyDeleteHairan hun kaise taarif ho apane
jubanse !
Bas yahi aas rakhate hai yunhi aap likha kijiye!
Hum hai kiaas lagaye baithe hai sirf
"Aapase"!
Aab aur intazar ke siva kuch bhi nahin!!
जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
ReplyDeleteजो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्ता रहा मैदान से
तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्मनी तो खत्म होगी सिर्फ इक मुस्कान से
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
इस शानदार गजल के लिए साधुवाद. ऐसी ही रचनाओं को पढ़ कर ब्लॉग-जगत से जुड़ना सार्थक हो जाता है.
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
ReplyDeleteपर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्लमंदों की,मिले नादान से
बहुत ही असर दायक रचना है |
नीरज जी,
ReplyDeleteएक अच्छा शिष्य वो होता है जो गुरु के सानिध्य का भरपूर लाभ उठा सके यह आपको देख कर जन जा सकता है
बहुत ही अच्छी गजल कही है आपने
मझे तो ये आश्चर्य होता है की आप इतनी जल्दी जल्दी इतनी अच्छी गजल कैसे लिख लेते हैं हम तो वो ही पढ़ पते हैं जो आप पोस्ट करते हैं मगर आप तो पता नही कितनी likhte होंगे
शब्दों पर आपकी पकड़ बहुत ही बेहतरीन है जो गजल की kahan में चार चाँद लगा देते हैं
आपका वीनस केसरी
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
ReplyDeleteशानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
ReplyDeleteचाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्मान से
बेबाक कविता है. बधाई.
bhai ghazal to aap achchi likhte hain par bitiya ki muskuraht ke aage to aapki ghazal bhi pheeki pad gayi :)
ReplyDeleteWah Niraj ji ek ek she'r umda...kiski tarif karu our kiski na karu.....sach me ye she'r padh kr to mza aa gya.....
ReplyDeleteतीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्मनी तो खत्म होगी सिर्फ इक मुस्कान से
WAH.....!!
"hai ghazal naheed.si tamheed
ReplyDeletepaighamaat ki ,
hr bashar parh kr isse
ooncha utha abhimaan se"
Neeraj ji ! bahot hi umda aur meaari ghazal kahi hai aapne..
ek.ek sher nafees aur asardaar bn parha hai hmesha hi ki tarah...
mubarakbaad qubool farmaaeiN.
---MUFLIS---
उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर
ReplyDeleteआज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से
जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्ता रहा मैदान से
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
काश यह कृतज्ञता प्रत्येक भारतवासी के हृदय में हो.हर समय जेह्नो-दिल पर अंकित रहने वाला मतला...
बहुत दिनों बाद आया हूँ. यहाँ तो अशआर के खूबसूरत फूल खिले हुए हैं.
वाह-वाह -वाह...
बहुत- बहुत बधाई.
शानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
ReplyDeleteचाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्मान से
neeraj jii
..
aapko padh ke zehan mai kuch lafz takrane lage hai..jaise ki
vo taroN mein rahne vale kya unki tariif kareN !
Zarre the hum Zarre hai bas Zarre jaisi baat kareN !!
vaise aapka hosla_afzaaii ka andaaj bhi nirala hai.aapne mere likhe lafzoN ko padha or saraha ye mere liye fakr ki baat hai.
जनाबे नीरज साहिब
ReplyDeleteआज एक मुद्दत के बाद आपके कलाम को देखना नसीब हुया
आपकी तखलीक एक दर्पण है जिसमें वर्तमान की तस्वीरें
झलकती हैं साफ सुथरी ज़बान का इस्तेमाल आपकी खासीयत है
आपकी शायरी में भारत के ज़ख्म हुस्न और हुनर दिखते हैं और
प्रवास में मुकीम एक अदना दोस्त को रुला भी जाते हैं
जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
और हौसला भी दे जाते है ख़ुश रहो आबाद रहो
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
gazab!
ReplyDeleteNeeraj ji ,
ReplyDeletesorry for late arrival , iwas on tour ...
lekin aaj ye gazal padhkar manki ki pyaas bhuj gayi , sir ji , aapki lekhni ko salaam , aapko salaam ..
kya gazab likha hai ,,,,
लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमे
भीड़ में जो अक्लमंदों की,मिले नादान से
poona men mile to , jarur apna hunar hame sikha dijiyega..
wah ji wah
aapka
vijay
Utsah badhane wali sarthak rachna.
ReplyDeleteBadhai.
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
ReplyDeleteपर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
... अत्यंत प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।
sab kuch to sab ne kahaa hee hai .fir bhee tareef kam hee padegee koyee.main to tastaree se bhee nichlee paidan pe hoon.shukriya !
ReplyDeleteशब्दों से बनती तस्वीरों को आंखों में उतार लेता हूँ....
ReplyDeleteअय नीरज मैं तुझे अपने दिल का प्यार देता हूँ...!!
कुछ हर्फ़ मेरी भी गज़लों को जिंदा कर के जाएँ
कुछ हर्फ़ मैं गाफिल आज तुझसे उधार लेता हूँ !!
wah neeraj jee ! wah !!
ReplyDeleteapnee kisee bhee tippanee se apna sara aanand bayan naheen kar paoonga .sambhav naheen hoga........fir bhee.
haunsalon kee teg lekar ladenge toofan se .
haar kaisee ? jeetna hai, yuddha har, armaan se .
shukria !