तीर खंजर की ना अब, तलवार की बातें करें
ज़िंदगी में आईये बस प्यार की बातें करें
टूटते रिश्तों के कारण जो बिखरता जा रहा
अब बचाने को उसी घर बार की बातें करें
थक चुके हैं हम बढ़ा कर यार दिल की दूरियाँ
छोड़ कर तकरार अब मनुहार की बातें करें
दौड़ते फिरते रहें, पर ये जरूरी है कभी
बैठ कर कुछ गीत की झंकार की बातें करें
तितलियों की बात हो या फ़िर गुलों की बात हो
क्या ज़रूरी है की हरदम खार की बातें करें
कोई समझा ही नहीं फितरत यहाँ इंसान की
घाव जो देते वोही उपचार की बातें करें
काश "नीरज" हो हमारा भी जिगर इतना बड़ा
जेब खाली हो मगर सत्कार की बातें करें
(प्राण शर्मा जी और पंकज जी का एहसानमंद हूँ जिन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया)
नीरज जी.
ReplyDeleteतितली और गुलों की
बात हो तो इस तरह !
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प्यार......घर बार
मनुहार...झंकार
के दम पर
खार के उपचार
और
सत्कार के संस्कार का
मुक़म्मल बयान है आपकी ये पेशकश.
हर शेर पूरी ग़ज़ल है.
और ग़ज़ल है पूरी ज़िंदगी.
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जी भर के बधाई !
आपका
डा.चंद्रकुमार जैन
थक चुके हैं हम बढ़ा कर यार दिल की दूरियाँ
ReplyDeleteछोड़ कर तकरार अब मनुहार की बातें करें
दौड़ते फिरते रहें, पर ये जरूरी है कभी
बैठ कर कुछ गीत की झंकार की बातें करें
बहुत ही सुंदर नीरज जी ..सरल लफ्जों में दिल की बात लिखी है आपने .बहुत सुंदर लगी यह गजल भी आपकी ..
नीरज जी,
ReplyDeleteतितलियों की बात हो या फ़िर गुलों की बात हो
क्या ज़रूरी है की हरदम खार की बातें करें
कोई समझा ही नहीं फितरत यहाँ इंसान की
घाव जो देते वोही उपचार की बातें करें
आपकी यह बेहद उम्दा रचना काश हर किसी की समझ का सच हो जाये..
***राजीव रंजन प्रसाद
वाह! क्या बात है
ReplyDeleteनीरज जी इतनी सुन्दर रचनाओ मे कुछ सर्वाधिकार सुरक्षित जैसा निशान लगाये। ये आसानी से चोरी हो सकती है। मेरे ब्लाग पर पर्यावरण पर कविता की तलाश मे लोग आते है और फिर खबर आती है कि अमुक स्थानीय अखबार मे यह किसी और के नाम से छपी है। दिनेश जी बेहतर मार्गदर्शन कर सकते है।
नीरज जी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गज़ल लिखी है-
तितलियों की बात हो या फ़िर गुलों की बात हो
क्या ज़रूरी है की हरदम खार की बातें करें
कोई समझा ही नहीं फितरत यहाँ इंसान की
घाव जो देते वोही उपचार की बातें करें
वाह़ सही खयाल है।
जेब खाली हो मगर सत्कार की बातें करें
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यह तो भारत की सांस्कृतिक विरासत में विश्वास की सशक्त अभिव्यक्ति हो गयी। बहुत जमी यह बात।
जेब खाली हो मगर सत्कार की बातें करें.
ReplyDeleteबहुत खूब !
बहुत खूब !
ReplyDeleteअद्भुत!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल...बहुत अच्छी बातें.
दौड़ते फिरते रहें, पर ये जरूरी है कभी
ReplyDeleteबैठ कर कुछ गीत की झंकार की बातें करें
ये शेर बहुत पसंद आया.....
लहूलुहान मंजर हों,शाम को लौट कर घर वापिस पहुँचेंगे या नहीं की फिक्र आम हो चली हो ऐसे दौर में आप तितलियों और गुलों पर महरबां हैं जनाब.
ReplyDeleteलगता है आपको गुलों के दंश और तितलियों की फितरत का इल्म नहीं .
राजस्थान में हाल में ही एक तितली ने अपनी मासूम अदा से कइयों की जान ले ली और कई अभी अस्पताल में कराह रहे हैं.
और हमारे देश के कर्णधार गुलों की खुश्बू में मधुहोश पड़े हैं .तितलियों और गुलों ने ही तो देश की मिट्टी खराब कर रखी है.
बिल्कुल करें, बेशक करें, बेबाक की बातें करें
ReplyDeleteइस पार बैठे रिंद से, उस पार की बातें करें ?- rgds - manish
'bhut sunder bhavnatmk kaveeta ek sunder pic ke sath"
ReplyDeleteRegards
जयपुर के हवाले से
ReplyDeleteएक चिता की आग में साजिश का घी डाला गया
वोह गुलाबी शहर तेरा करबला लगता रहा
लग गईं उनको गुलों की बद दुआएं देख लो
तित्लिओं का कतल जिनको खेल सा लगता रहा
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
badhaiii, manyawar badhai
ReplyDeletesunder rachna
भाई नीरज जी,
ReplyDeleteआपके ग़ज़ल के निम्न शेर पर
काश "नीरज" हो हमारा भी जिगर इतना बड़ा
जेब खाली हो मगर सत्कार की बातें करें
हमें वह बात याद आ गई, जो शायद आप सब ने भी सुन ही रक्खी होगी.......
" अरे भाई दो चाय लाना , मलाई मार के " और फिर चाहे बाते करते एक घंटा भले ही बीत जाय पर चाय नही आती .शायद जेब खाली थी, पर सत्कार की अदा तो निभानी थी.
..........शायद यही वह अदा है जिसे कहीं न कहीं झेलने के बाद आपने अपने संस्कारित दिल को वैसा ही बड़ा बनाने की ख्वाहिश तो कर डाली पर वर्षों से आप में रचा-बसा संस्कार आपको ऐसा करने देगा क्या?
शेष फिर ,
आपका अनुज
चंद्र मोहन गुप्ता "मुमुक्ष"
जयपुर
चित्र देखकर गाँव के मेलो की याद तरोताजा हो गई . कविता मनभावन लगी धन्यवाद
ReplyDeleteनीरज जी
ReplyDeleteपंकज अवधिया जी की राय से मैं बिल्कुल सहमत हूं। आप कॉपी राइट वगैरह के चिन्ह अवश्य लगाएं। आपकी रचनाएं स्तरीय हैं, चोरों को ललचाने के लिए काफ़ी हैं। यही ग़ज़ल देख लीजिए, इतनी टिप्पणियां आप को केवल प्रसन्न करने के लिए नहीं हैं। पढ़ कर पाठकों के मस्तिष्क और हृदय में एक गहरी छाप छप जाती है और उनका अक्स टिप्पणियों के रूप में नज़र आता है।
यह ग़ज़ल बहुत पसंद आई, नज़र न लगे।
यहां मेरी कुछ अशिष्टता लगे तो क्षमा करना।
शुभकामनाओं सहित
महावीर
Priy Neerajjee,
ReplyDeleteKya zarooree hai ke hardum khar kee batain karain.yahee kah sakta hoon ke main kayal ho gaya. Bahut khoob gazal kahee saheb.
neeraj aaj aapka blog dekh rahi thi, aap k samose sab par bhari pade.sach me, bhai! kavitao, gagal or lekho me v swad hai par pal bhar ko to jeev par samosa hi smosa taira,aaj inhen banana hi hoga. dusre jayak v ache hain. antar aatma ki aawaj pasand aai.
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