tag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post7950265698240019285..comments2024-02-28T15:39:34.085+05:30Comments on नीरज: किताबों की दुनिया - 177नीरज गोस्वामीhttp://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-14375883778602477882018-05-24T20:07:12.543+05:302018-05-24T20:07:12.543+05:30मैं जब भी नीरज जी की किसी भी प्रविष्ठी पे टिप्पणी ...मैं जब भी नीरज जी की किसी भी प्रविष्ठी पे टिप्पणी करता हूँ तो ज्यादातर उनकी शुरुवाती बातों से ही अपनी बात शुरू करता हूँ पर आज उनकी आखिरी लिखी हुई बात से अपनी बात शुरू कर रहा हूँ। अलोक जी,जो की इस बार किताबों की दुनिया के मेहमान है, ने ज्यादा ग़ज़लें नहीं लिखी है पर जो भी लिखी है वो वास्तव में पुख्ता है तो इस बात में कोई शक नहीं है।<br /><br />मौन के ये आवरण मुझको बचा ले जायेंगे <br />वरना बातों के कई मतलब निकले जायेंगे<br /><br />ग़ज़ल के व्याकरण की बहुत ज्यादा समझ तो नहीं है पर हर्फ़ों में छुपी हुई बात को समझना आता है। ये शेर अपने आप में मुक़्क़मल है और अपनी बात भी पूरी तरीके से कहता है और इसे पढ़ते हुए मुझे ऐसे ही एक शेर और याद आ गया जो कभी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने किसी सवाल के जवाब में सुनाया था <br /><br />हज़ारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, <br />न जाने कितने सवालों की आबरू रखी<br /><br />खामोश रह पाना भी एक कला जो हर किसी को नहीं आती है। <br /><br />मेरे लब सी दिए उसने क़लम है फिर भी हाथों में <br />ये हाकिम से कहो जाकर तेरी बंदिश अधूरी है<br /><br />ये शेर तो लाजवाब है क्योकि सरकार हर असरकार चीज़ को दबा देती है और एक शायर और उसकी शायरी अवाम पे असर तो डालते ही है। इस शेर के टक्कर में मुझे हिंदी ग़ज़ल के पुरोधा दुष्यंत कुमार जी का शेर याद आता है <br /><br />तिरा निज़ाम है सिल दे ज़बान-ए-शायर को <br />ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए<br /><br />अलोक जी ने भी आज के दौर में अपने हर्फों में वो ही बात समेटी है जो इंदिरा जी के समय में दुष्यंत जी ने सरकार का विरोध करते हुए कही थी। <br /><br />है क़लम तलवार से भी तेज़तर 'आलोक' तो फिर <br />मैं किसी मजबूर की शमशीर होना चाहता हूँ<br /><br />कलम की ताक़त को बताता ये शेर और साथ में ही कलम पे ये दूसरा शेर <br /><br />नयी नस्लों के हाथों में भी ताबिन्दा रहेगा <br />मैं मिल जाऊंगा मिटटी में क़लम ज़िंदा रहेगा<br /><br />दोनों ही अश’आर कलम की उस ताक़त का वर्णन कर रहे है जिस से हम बड़े से बड़े हथियार से लड़ सकते है <br /><br />ग़ज़ल कोई लिखे कैसे लबो-रुख़्सार पे अब <br />समय से अपने कब तक कोई शर्मिंदा रहेगा<br /><br />आज के दौर में गजल सिर्फ प्रेमिका की जुल्फों तक ही सीमित हो कर नहीं रह गयी है अब गजल एक हथियार बन चुकी है जैसे भारत में कही भी कोई भी आन्दोलन हो दुष्यंत जी के कुछ अश’आरजरूर सुनाये जाते है <br /><br />सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, <br />सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।<br /><br />मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, <br />हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।<br /><br />कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ हो नही सकता, <br />एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों |<br /><br /><br />आलोक जी की इस गजल को वो ही समझ सकता है जिसके बेटी हो <br /><br />घर में बेटी जो जनम ले तो ग़ज़ल होती है <br />दाई बाहों में जो रख दे तो ग़ज़ल होती है<br /><br />नन्हे हाथों से पकड़ती है वो उंगली मेरी <br />साथ मेरे जो वो चल दे तो ग़ज़ल होती है<br /><br />उसकी किलकारियों से घर जो चहकता है मेरा <br />सोते सोते जो वो हँस दे तो ग़ज़ल होती है<br /><br />थक के आता हूँ मैं जब चूर चूर घर अपने <br />वो जो हाथों में सहेजे तो ग़ज़ल होती है<br /><br />छोड़कर मुझको वो एक रोज़ चली जाएगी <br />सोचकर मन जो ये सिहरे तो ग़ज़ल होती<br /><br />इस गजल ने मुझे अपने साढ़े पाँच साल के हर उस पल को याद दिला दिया जो मैंने अपनी गुड़िया के साथ जिया है; आलोक जी आपने ये बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है |<br /><br />अब आज के दौर पे तब्सिरा करती ये ग़ज़ल आज के आम आदमी के अंतर्मन की आवाज़ है <br /><br />ऐसे सिस्टम की अहमियत क्या है <br />इसमें इन्सां की हैसियत क्या है<br /><br />नौकरी जब मिले सिफ़ारिश पर <br />कौन पूछे सलाहियत क्या है <br /><br />फूल से जिस्म बोझ बस्तों का <br />क्या है तालीम तरबियत क्या है <br /><br /><br />बेहतरीन शायरी का परिचय कराने के लिए नीरज जी का धन्यवाद और अलोक जी को उनकी शायरी के लिए साधुवाद <br /><br /> Amit Thapahttps://www.blogger.com/profile/03325771976660801450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-45803954161012124272018-05-21T19:14:21.651+05:302018-05-21T19:14:21.651+05:30भाई नीरज जी, अब मै क्या कहूं । बस सुधि पाठकों से म...भाई नीरज जी, अब मै क्या कहूं । बस सुधि पाठकों से मेरा परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।<br />यहां अपनी टिप्पणी देने वालों का भी बेहद शुक्रिया।आलोक यादवhttps://www.blogger.com/profile/05611831501665418853noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-80254042601761202792018-05-17T19:17:40.020+05:302018-05-17T19:17:40.020+05:30इस ख़ूबसूरत तब्सिरे के लिए आपको बधाई और प्रिय भाई ...इस ख़ूबसूरत तब्सिरे के लिए आपको बधाई और प्रिय भाई आलोक जी को शुभ कामनाएँ।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13447902109786308657noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-77619192104471883402018-05-15T18:23:25.917+05:302018-05-15T18:23:25.917+05:30बहुत ख़ूबबहुत ख़ूबwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-16662063857896257842018-05-15T12:19:53.004+05:302018-05-15T12:19:53.004+05:30मेरे लिए हैं मुसीबत ये आईनाख़ाने
यहाँ ज़मीर मेरा बेन...मेरे लिए हैं मुसीबत ये आईनाख़ाने<br />यहाँ ज़मीर मेरा बेनक़ाब रहता है <br />----<br />तुम हुए हमसफ़र तो ये जाना<br />रास्ते मुख़्तसर भी होते हैं<br />Waaaaaah waaaaaah kya kahne shukriya Neeraj ji<br />Naman<br />mgtapishhttps://www.blogger.com/profile/05875054316342019400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-14839437214753858472018-05-14T23:51:47.503+05:302018-05-14T23:51:47.503+05:30Bahut khoobsurat shayari Alok je bahut bahut Mubar...Bahut khoobsurat shayari Alok je bahut bahut Mubarak baadSiya - A Writer & Musicianhttps://www.blogger.com/profile/09581105940684378181noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-1460563074881334022018-05-14T18:02:39.832+05:302018-05-14T18:02:39.832+05:30आलोकजी की ग़ज़लों से पहली बार रु बरू हुआ.. बेहतरीन क...आलोकजी की ग़ज़लों से पहली बार रु बरू हुआ.. बेहतरीन कहते हैं .. उनसे मिलवाने का शुक्रिया..kamalbhaihttps://www.blogger.com/profile/11943559416788092655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-80198418435204257302018-05-14T17:35:26.240+05:302018-05-14T17:35:26.240+05:30आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15...आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-05-2017) को <a rel="nofollow"> "रखना सम अनुपात" (चर्चा अंक-2971) </a> पर भी होगी।<br />--<br />चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।<br />जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।<br />--<br />हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।<br />सादर...!<br />डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-87544952321176350492018-05-14T16:30:39.263+05:302018-05-14T16:30:39.263+05:30बहुत ख़ूब!
तुम हुए हमसफ़र तो ये जाना
रास्ते मुख...बहुत ख़ूब! <br /><br />तुम हुए हमसफ़र तो ये जाना <br />रास्ते मुख़्तसर भी होते हैं <br /><br />सुंदर शायरी का सुंदर आकलन। आप दोनों को बधाई। देवमणि पांडेय Devmani Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/09583435334580761206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-91208464386274656032018-05-14T14:36:52.110+05:302018-05-14T14:36:52.110+05:30शानदार, आपकी लेखनी का तज़ुर्बा वास्तव में काबिले-ता...शानदार, आपकी लेखनी का तज़ुर्बा वास्तव में काबिले-तारीफ़ है ।<br />तभी तो सोमवार सार्थक हो पाता है ।Kuldeephttps://www.blogger.com/profile/11593367488346197153noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-34128970318622036222018-05-14T12:26:15.782+05:302018-05-14T12:26:15.782+05:30Achcha tabsara haiAchcha tabsara haiAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/12011172165346402650noreply@blogger.com