tag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post6556760606484875741..comments2024-02-28T15:39:34.085+05:30Comments on नीरज: किताबों की दुनिया -163नीरज गोस्वामीhttp://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-64835789974569284422018-03-21T19:28:21.815+05:302018-03-21T19:28:21.815+05:30वाह क्या बात है वाह क्या बात है www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-22151851127891596482018-02-28T20:00:25.697+05:302018-02-28T20:00:25.697+05:30नूर मुहम्मद नूर साहब मेरे बेहद पसंदीदा शाइर हैं। फ...नूर मुहम्मद नूर साहब मेरे बेहद पसंदीदा शाइर हैं। फेस बुक पर उनसे अक़्सर मुलाक़ात होती रहती है। वो एक ऐसे शाइर हैं जो चलत-फिरते, कभी भी, किसी भी वक़्त ज़मीनी हक़ीक़त पर मेयारी शेर कहने का माद्दा रखते हैं। <br />मैं उनकी ग़ज़लगोई के लहजे का बहुत बड़ा फैन हूँ। और ऐसे शाइर की ग़ज़लों को जिस अंदाज़ में आपने पेश किया है वह लहजा भी क़ाबिले-तारीफ़ है। आप इस काम में माहिर हैं यह बात आपकी इस ब्लॉग पर प्रस्तुत तमाम नामचीन शाइरों की शाइरी के तब्सिरों से बख़ूबी ज़ाहिर है।एक और बेहद ख़ूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई और धन्यवाद दोनों साथ- साथ।<br />डॉ.त्रिमोहन तरलhttps://www.blogger.com/profile/05559939505612385680noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-5594702689640458672018-02-08T19:31:43.741+05:302018-02-08T19:31:43.741+05:30Khoobsoorat lekh ljawab ashaar waaaaaah waaaaaahKhoobsoorat lekh ljawab ashaar waaaaaah waaaaaahmgtapishhttps://www.blogger.com/profile/05875054316342019400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-26328127114102057892018-02-06T00:04:56.898+05:302018-02-06T00:04:56.898+05:30उधर इस्लाम ख़तरे में, इधर है राम ख़तरे में
मगर मैं ...<br />उधर इस्लाम ख़तरे में, इधर है राम ख़तरे में <br />मगर मैं क्या करूँ है मेरी सुबहो-शाम खतरे में <br /><br />ये क्या से क्या बना डाला है हमने मुल्क को अपने <br />कहीं हैरी, कहीं हामिद, कहीं हरनाम ख़तरे में<br /><br />न बोलो सच जियादा 'नूर' वर्ना लोग देखेंगे <br />तुम्हारी जान-जोखिम में तुम्हारा नाम खतरे में<br /><br />फिरकापरस्त ताकतों पे लिखे हुए ये शेर, मैंने खुद वो हालात बहुत करीब से देखे है जंहा इंसान ही इंसान के खून का प्यासा हो रहा था पर इन शेरों से हटकर एक उम्मीद फिर भी है की अब भी लोग बिना मजहब देखे एक दुसरे की मदद करते है; हाँ पर ये जरुर है की इन ताकतों की चाल समझते हुए हमे इनसे बचने की जरुरत है। <br /><br />आपको तो आयतें या सिर्फ मंतर चाहिए <br />यानी कि मशहूरियत ज्यादा भयंकर चाहिए <br /><br />रोटियां तालीम बच्चों को मिले या मत मिले <br />उनका कहना है कि मस्जिद और मंदिर चाहिए <br /><br />रूप से व्यवहार से चाहे असुंदर लोग हों <br />ज़ोर है इस बात पे कि शहर सुन्दर चाहिए<br /><br />काश इन अश’आर को देश के सियासतदां भी पढ़े और ना केवल पढ़े बल्कि समझे भी की इस देश और इस देश के लोगो वास्तव में क्या चाहिए और वो क्या दे रहे है।<br /><br />एक बार फिर नीरज जी अपनी पारखी निगाहों से हमारें लिए हीरा खोज कर लाये है। नूर साहब को उनकी बेहतरीन गजलों के सलाम करते हुए नीरज का तहेदिल शुक्रिया।Amit Thapahttps://www.blogger.com/profile/03325771976660801450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-10034855787154709982018-02-06T00:04:23.761+05:302018-02-06T00:04:23.761+05:30मतला, मक़ता, काफ़िया और रदीफ़, बहर ये सब एक गजल कह...मतला, मक़ता, काफ़िया और रदीफ़, बहर ये सब एक गजल कहने और समझने वाले के लिए बहुत ही आसान शब्द है पर एक आम श्रोता के लिए ग़ज़ल का मतलब वो शब्द है जिसमे उसकी खुद की भावनाओं का समावेश होता है।<br /><br />ग़ज़ल कहनी है बस इस वास्ते कहना नहीं ग़ज़लें <br />कोई इक बात कहनी हो अगर साथी ग़ज़ल कहना <br /><br />जुबां ऐसी कि जैसे बोलते हैं बोलने वाले <br />अदा ऐसी कि जैसे वो चले, वैसी ग़ज़ल कहना<br /><br />ये दोनों शेर ही शायद इस बात को समझा देते है की गजल क्यों, किस लिए और किस के लिए लिखी जानी चाहिए गर एक शायर का शेर, ग़ज़ल या नज़्म एक आम आदमी ना समझ सके तो शायद उसका गजल या शेर कहना बेकार है। ग़ालिब जैसे शायर की भी वो ही गजलें और शेर मशहूर हो सके है जों उन्होंने बहुत ही आसान जुबान में पेश किये । <br /><br />नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का <br />काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का<br /><br />काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ <br />सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का<br /><br />ग़ालिब की ये गजल अपने तौर पे एक शानदार गजल कही जा सकती है पर ग़ालिब के कुछ ही शेर और गजलें ऐसी है जो आम लोगों की जुबान पे चढ़े है । <br /><br />आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक <br />कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक<br /><br />बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे <br />होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे (मेरा मनपसंद शेर)<br /><br />दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है <br />आख़िर इस दर्द की दवा क्या है<br /><br />हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले <br />बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले<br /><br />शायद इसलिए ही जॉन एलिया जैसे मशहूर शायर ग़ालिब को महज २५ शेरों का शायर कह कर खारिज कर देते है पर मुद्दा यहाँ पे ये नहीं है की ग़ालिब बड़े शायर थे या नहीं; बस हमे तो बात करनी है नीरज जी द्वारा प्रस्तुत जमीन से जुड़े और बहुत ही आसान हर्फों में शेर और गजल कहने वाले नूर मुहम्मद 'नूर' साहब की। <br /><br />उग रहे हैं सिर्फ़ कांटे, सिर्फ कांटे शाख में <br />आंय ! कैसी हो रही है बागवानी हर तरफ<br /> बहुत ही आसान शब्दों में समाज में फैलते हुए जहर को कह दिया गया है; आजकल के माहौल पे ये शेर बहुत सटीक बैठता है। नूर साहब की ये गजल बताती है वो किस तरह से अपने देश समाज के घटनाक्रम जुड़े है और उन पे कितनी पैनी निगाह रखते है। <br /><br />भूख जब वे गाँव की पूरे वतन तक ले गए <br />मामला हम भी ये फिर शेरो-सुखन तक ले गए<br /><br />इस गजल का ये मतला अहसास करा देता है की एक शायर, कवि, साहित्यकार के शब्दों में कितनी ताकत होती है गर उनका सही इस्तेमाल किया जाये तो वो बड़ी से बड़ी सत्ता को भी हिला सकती है।<br />************************************************* <br />दुष्यंत के ये शेर यहाँ बिलकुल सटीक बैठते है <br /><br />सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, <br />मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। <br /><br />मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,<br /> हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।<br />*************************************************<br />हम इधर उसके दुपट्टे को रफ़ू करते रहे <br />वो, उधर शेरों को उसके तन-बदन तक ले गए<br /> <br />ये शेर आजकल समाज में फैलती अश्लीलता की तरफ इशारा करता है। <br /><br />आग भी हैरान थी शायद ये मंज़र देखकर <br />जब उसे तहज़ीब-दाँ घर की दुल्हन तक ले गए<br /><br />क्या बेहतरीन शेर है की बहुत ही आसान शब्दों में दहेज के लिए दुल्हनों को जलाने वालो पे कैसा तंज़ कस दिया गया है। <br /><br />हम पिलाते रह गए अपना लहू हर लफ़्ज़ को <br />और वे बे-अदबियाँ सत्ता सदन तक ले गए<br /><br />आजकल के नेताओं को समझा दो इस शेर का मतलब और इस से ज्यादा क्या कहा जाए। <br /><br />छेनियाँ, बसुँला, अँगूठे, उँगलियाँ ,ख़्वाबो-ख़याल <br />हम ही तहज़ीबों को उनके बाँकपन तक ले गए<br /><br />जबकि हर तोहमत सही , भूखे रहे ए 'नूर' <br />हम फिर भी अपनी प्यास हम गंगो-जमन तक ले गए<br /><br />मैंने पहली बार इस तरह की ग़ज़ल पढ़ी है जिसके हर शेर में समाज फैली हुई बुराइयों पे तंज़ किये गए हो; वास्तव में ये ही आज की गजल है बेहतरीन गजल।<br />Amit Thapahttps://www.blogger.com/profile/03325771976660801450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-50769043861828925992018-02-05T14:57:17.359+05:302018-02-05T14:57:17.359+05:30Bahut KHub Bahut KHub www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-15012607795765734942018-02-05T14:23:06.851+05:302018-02-05T14:23:06.851+05:30नूर मुहम्मद नूर साहब की शायरी से रूबरू होने पर उनक...नूर मुहम्मद नूर साहब की शायरी से रूबरू होने पर उनका तस्बिरा पढ़ना अपने आप में एक बड़ी दस्तयाबी है। बहुत सटीक बहुत सारगर्भित समीक्षाओं के लिए नीरज गोस्वामी जी को साधुवाद।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02956839090408801759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-9147162800491793762018-02-05T11:21:02.465+05:302018-02-05T11:21:02.465+05:30बहुत ईमानदार,शानदार और जानदार शायर!सबसे ख़ास बात क...बहुत ईमानदार,शानदार और जानदार शायर!सबसे ख़ास बात कि उनकी शायरी कभी ज़मीन नहीं छोड़ती!s.p sharmahttps://www.blogger.com/profile/08046603056640153011noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-54193064806890043222018-02-05T10:56:59.185+05:302018-02-05T10:56:59.185+05:30इस नायाब शायरी के इन चमकीले शेरोन को चुन कर लाने क...इस नायाब शायरी के इन चमकीले शेरोन को चुन कर लाने के लिए बेहद शुक्रिया..सचमुच 'नूर'साहब की कहन अद्भुत है.. इतने सीधे सादे लफ़्ज़ों में इतनी गहरी फिलोसोफी, हम चमत्कृत हुए..जो आखिरी चंद शेर हैं, उनके तो क्या कहने..<br />kamalbhaihttps://www.blogger.com/profile/11943559416788092655noreply@blogger.com