tag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post6333832575286037612..comments2024-02-28T15:39:34.085+05:30Comments on नीरज: कोयले की आंच पे रोटीनीरज गोस्वामीhttp://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comBlogger75125tag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-5859094351668675972011-06-18T08:37:59.527+05:302011-06-18T08:37:59.527+05:30बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी,
तुम कोयले क...बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी,<br />तुम कोयले की आंच पे रोटी तो पकाओ.<br /><br />एकदम ज़मीन से जुड़ा हुआ ये शेर कोई मंजा हुआ कलमकार ही कह सकता है.आपको इस शेर की बल्कि यूँ कहूं की पूरी ग़ज़ल की दिल से बधाई देता हूँ.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-28456868950505503662010-12-12T00:18:55.313+05:302010-12-12T00:18:55.313+05:30बहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" ...बहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवादEr. सत्यम शिवमhttps://www.blogger.com/profile/07411604332624090694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-37461335350720627362010-08-05T07:59:58.381+05:302010-08-05T07:59:58.381+05:30नीरज जी,
१९ जुलाई की गज़ल और मैं अभी तक पढ़ी नहीं? ऐ...नीरज जी,<br />१९ जुलाई की गज़ल और मैं अभी तक पढ़ी नहीं? ऐसा कैसे हो सकता है? फिर याद आया की उन दिनों मैं भारत में था, इन्टरनेट कभी कभी देखता था, और फिर गर्मी से भी जूझ रहा था..<br /><br /><br />यह गज़ल बहुत अच्छी लगी.<br />ये दो शेर तो दिमाग में गूँज रहे हैं.<br /><br />"बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी<br />तुम कोयले की आंच पे रोटी तो पकाओ<br /><br />पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज'<br />गर लौटने का मन है तो मत पाँव बढ़ाओ"Rajeev Bharolhttps://www.blogger.com/profile/03264770372242389777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-39176666807258656702010-08-02T15:46:17.692+05:302010-08-02T15:46:17.692+05:30E-mail received from Sh: Om Sapra Ji
shri neeraj ...E-mail received from Sh: Om Sapra Ji<br /><br />shri neeraj ji<br />good gazal<br />really very good, especially follwoing lines:-<br /><br />ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है<br />आगे जो बढे सारे उसे मिल के गिराओ<br /><br />बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी<br />तुम कोयले की आंच पे रोटी तो पकाओ<br />regd.<br />-om sapra, delhi-9नीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-1306316191031914872010-07-26T23:15:38.924+05:302010-07-26T23:15:38.924+05:30wah !wah !ankur goswamyhttps://www.blogger.com/profile/07828533038278800237noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-32216292947266313232010-07-23T18:53:07.362+05:302010-07-23T18:53:07.362+05:30ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है
आगे जो बढे सा...ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है<br />आगे जो बढे सारे उसे मिल के गिराओ<br /><br />आज की ग़ज़ल के शिल्प में आधुनिकता के <br />सारे नियमों को सफलतापूर्वक निभाती हुई <br />आपकी ये कामयाब ग़ज़ल पढ़ कर <br />मन आंदोलित हो उठा है <br />भाषा के रख-रखाव का निर्वहन भी <br />खूब झलक रहा है <br />बचपन की यादों को <br />कोयले की आंच से बाँधने के लिए <br />ग़ज़ल-सम्राट 'नीरज' को हज़ारों सलाम !!daanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-82274619572365524802010-07-23T18:23:57.496+05:302010-07-23T18:23:57.496+05:30तुम राख करो नफरतें जो दिल में बसी हैं
इस आग से बस्...तुम राख करो नफरतें जो दिल में बसी हैं<br />इस आग से बस्ती के घरों को न जलाओ<br />बाज़ार के भावों पे नज़र जिसकी टिकी है<br />चांदी में नहाया न उसे ताज दिखाओ<br /><br />ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है<br />आगे जो बढे सारे उसे मिल के गिराओ<br /><br /><br />बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी <br />तुम कोयले की आंच पे रोटी तो पकाओ<br /><br />नीरज भाई, आपकी ग़ज़ल का हर शेर तराशा हुआ है । हर शेर अपनी जगह ठोस है मगर इन अशआर ने तो सचमुच गजब किया हैR.Venukumarhttps://www.blogger.com/profile/17501996519970954554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-52348005148215765872010-07-23T16:11:40.468+05:302010-07-23T16:11:40.468+05:30sir ji , namaskar;
deri se aane ke liye maafi ..
...sir ji , namaskar;<br />deri se aane ke liye maafi .. <br /><br />gazal ko kayi baar padh chuka hoon , tasweer ne beeti hui zindagi ke kuch lamhe yaad dila diye hai.. aankhe geeli ho gayi hai ek jagah ..jahan aapne likha hai :<br /><br />बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी<br />तुम कोयले की आंच पे रोटी तो पकाओ<br /><br />sach kahun to maa ki yaad aa gayiu hai ..<br /><br />ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है<br />आगे जो बढे सारे उसे मिल के गिराओ<br /><br />ye sher to aaj ke rat race ka jeeti jaagti misaal hai .. <br /><br />aur ye :<br />पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज'<br />गर लौटने का मन है तो मत पाँव बढ़ाओ<br />this is ultimate neeraj ji .. waah waah .. dil ki duniya kitni khatarnaak hai , iska ishara aapne de diya hai .. <br /><br />poori gazal hi shaandar bani hui hai .. kya kahun. aapki lekni ko naman hai ..<br /><br />aapka<br />vijayvijay kumar sappattihttps://www.blogger.com/profile/06924893340980797554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-8493475848439633422010-07-23T15:28:28.497+05:302010-07-23T15:28:28.497+05:30नीरज जी वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही बहुत ही प्रभावी है म...नीरज जी वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही बहुत ही प्रभावी है मगर हमें यह शेर बहुत पसंद आया...<br />ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है<br />आगे जो बढे सारे उसे मिल के गिराओ<br />आज की सच्चाई को शेर के दो मिसरों में कैसे उतरा जा सकता है आपसे सीखना होगा.Pawan Kumarhttps://www.blogger.com/profile/08513723264371221324noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-3271490621578293592010-07-22T22:26:06.316+05:302010-07-22T22:26:06.316+05:30है तो पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब नीरज जी मगर इस शेर ने &qu...है तो पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब नीरज जी मगर इस शेर ने "किलकारियां दबती हैं कभी गौर से देखो<br />बस्तों से किताबों का ज़रा बोझ घटाओ" और मक्ते ने जैसे कयामत उठा दी है।<br /><br />एक बेमिसाल ग़ज़ल बुनने पर करोड़ों बधाईयां...!गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-88659582414425817732010-07-22T21:04:56.047+05:302010-07-22T21:04:56.047+05:30पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज'
ग...पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज'<br />गर लौटने का मन है तो मत पाँव बढ़ाओ<br />...वाह. क्या मक्ता तलाशा है. <br /><br />ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है<br />आगे जो बढे सारे उसे मिल के गिराओ<br /><br />इस शेर से भी कुछ याद आ गया...<br /><br />यहाँ किसी का कोई साथ नहीं देता<br />मुझे गिराके अगर तुम संभल सको तो चलो<br />...............................<br />बहुत कठिन है सफर जो चल सको तो चलो.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-42861310119056200572010-07-22T20:16:16.930+05:302010-07-22T20:16:16.930+05:30किलकारियां दबती हैं कभी गौर से देखो
बस्तों से किता...किलकारियां दबती हैं कभी गौर से देखो<br />बस्तों से किताबों का ज़रा बोझ घटाओ<br /><br />यूँ तो कई शेर अच्छे हैं लेकिन यह इसलिए भाया कि रोज़ बच्चे को स्कूल छोड़ने जाता हूँ.इसमें शिक्षकों और vyavastha का भी dosh है.شہروزhttps://www.blogger.com/profile/02215125834694758270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-9703859424245277482010-07-22T19:50:37.767+05:302010-07-22T19:50:37.767+05:30पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज'
ग...पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज'<br />गर लौटने का मन है तो मत पाँव बढ़ाओ<br /><br />subhanallah!!<br /><br />ek roj kal ke blogger aapki kitab ka bhi jikr karege sarkaar.......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-7626409477457067922010-07-22T15:46:21.381+05:302010-07-22T15:46:21.381+05:30"पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज&..."पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज'<br />गर लौटने का मन है तो मत पाँव बढ़ाओ"<br /><br />-सुन्दर.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-36185544155833819192010-07-22T15:06:37.189+05:302010-07-22T15:06:37.189+05:30बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी
तुम कोयले की...बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी<br />तुम कोयले की आंच पे रोटी तो पकाओ<br />क्या खूब कहा आपने,<br />अति सुन्दर,<br />आभार...।SATYAhttps://www.blogger.com/profile/17480899272176053407noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-65430026879497351162010-07-21T22:10:26.524+05:302010-07-21T22:10:26.524+05:30कमाल की गजल, नीरज भाई..
और आखिरी शेर का तो क्या कह...कमाल की गजल, नीरज भाई..<br />और आखिरी शेर का तो क्या कहना..<br /><br />पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज'<br />गर लौटने का मन है तो मत पाँव बढ़ाओ <br /><br />डायरी में नोट कर लिया हैओम आर्यhttps://www.blogger.com/profile/05608555899968867999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-71503304190347810062010-07-21T22:01:03.482+05:302010-07-21T22:01:03.482+05:30बहुत सुंदर ग़ज़ल....बहुत सुंदर ग़ज़ल....अर्चना तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04130609634674211033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-12503921691006406092010-07-21T18:52:14.223+05:302010-07-21T18:52:14.223+05:30वाह नीरज भाई वाह! गजल कही या सारा हिंदुस्तान दिखा ...वाह नीरज भाई वाह! गजल कही या सारा हिंदुस्तान दिखा दिया. सभी विसंगतियों को तो आप ने एक ही गजल के खूंटे से बाँध लिया, अब प्रार्थी क्या करे!<br />मैं शायद बहुत... बहुत.... बहुत ही ज्यादा दिनों के बाद आ सका हूँ. आप तो मुस्कुरा के माफ़ कर देने में माहिर हैं ही. <br />फिलहाल, फिर लौटते हैं इस गजल पर. ये अच्छा भला, हंसमुख, रोमांटिक, प्रकृति प्रेमी, छायाकार/शायर अचानक उबल क्यों पड़ा इन अशआर में, चिंता का विषय है. क्या मुंबई का तापमान ज्यादा बढ़ गया है या मानसून अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा? या किसी स्टील मिल ने प्लास्टिक का उत्पादन शुरू कर दिया स्टील के नाम पर! नीरज भाई, आप माशा अल्लाह अच्छे खासे हैंडसम, स्मार्ट, खूबसूरत नौजवान हैं, कहीं किसी ने दिल लेने इंकार तो नहीं कर दिया? वरना आप और ऐसी गजल?<br />कुछ है तो जरूर.<br />मुझे लखनऊ आ कर तलाश करने की कोशिश मत कीजिएगा, मिलूंगा नहीं. मुझे पता है यह पढने के बाद आप मुंबई में रुक नहीं सकते. और...यह आश्चर्य तो आपको भी हो रहा होगा कि मुझे इतनी सच्ची खबर कहाँ से मिली.सर्वत एम०https://www.blogger.com/profile/15168187397740783566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-87027408334936031462010-07-21T18:38:19.788+05:302010-07-21T18:38:19.788+05:30ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है
आगे जो बढे सा...ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है<br />आगे जो बढे सारे उसे मिल के गिराओ<br />.... umda rachna...<br />aajkal ka jamane mein kuch aisa hi ghatit ho raha hai...<br />Badhaiकविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-78595674606936543622010-07-21T15:10:41.118+05:302010-07-21T15:10:41.118+05:30बड़ी सोंधी खुशबू है....पसंद आयी आपकी ग़ज़ल.बड़ी सोंधी खुशबू है....पसंद आयी आपकी ग़ज़ल.Akanksha Yadavhttps://www.blogger.com/profile/10606407864354423112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-18589986933902553052010-07-21T14:42:01.380+05:302010-07-21T14:42:01.380+05:30बाज़ार के भावों पे नज़र जिसकी टिकी है
चांदी में नह...बाज़ार के भावों पे नज़र जिसकी टिकी है<br />चांदी में नहाया न उसे ताज दिखाओ<br /><br />किलकारियां दबती हैं कभी गौर से देखो<br />बस्तों से किताबों का ज़रा बोझ घटाओ<br /><br />बेहतरीन रचना दिल छू गयी.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-35582862482138352202010-07-21T13:10:10.352+05:302010-07-21T13:10:10.352+05:30बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी
तुम कोयले क...बचपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी <br />तुम कोयले की आंच पे रोटी तो पकाओ<br />पुरपेच मुहब्बत की हैं गलियां बड़ी 'नीरज'<br />गर लौटने का मन है तो मत पाँव बढ़ाओ<br />....अद्भुत...मन प्रसन्न हो गया पढ़कर.KK Yadavhttps://www.blogger.com/profile/05702409969031147177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-61199856781050369822010-07-21T12:11:26.318+05:302010-07-21T12:11:26.318+05:30बाज़ार के भावों पे नज़र जिसकी टिकी है
चांदी में नह...बाज़ार के भावों पे नज़र जिसकी टिकी है<br />चांदी में नहाया न उसे ताज दिखाओ<br /><br />किलकारियां दबती हैं कभी गौर से देखो<br />बस्तों से किताबों का ज़रा बोझ घटाओ<br /><br />चपन की तुम्हे फिर से बड़ी याद आयेगी<br />तुम कोयले की आंच पे रोटी तो पकाओ<br />एक से एक बढ कर शेर निकाले हैं पूरी गज़ल बहुत अच्छे4ए लागी। बधाईनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-92226881210371990892010-07-21T08:19:15.024+05:302010-07-21T08:19:15.024+05:30किलकारियां दबती हैं कभी गौर से देखो
बस्तों से किता...किलकारियां दबती हैं कभी गौर से देखो<br />बस्तों से किताबों का ज़रा बोझ घटाओ<br /><br />बहुत खूब कही नीरज जी....हम तो आपके फ़ैन हुए..बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाईविनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-31706666460057030222010-07-21T05:08:59.199+05:302010-07-21T05:08:59.199+05:30बेहतरीन रचना... लाजवाबबेहतरीन रचना... लाजवाबOmnivocal Loserhttps://www.blogger.com/profile/01131775695250814996noreply@blogger.com