tag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post7908380120393465121..comments2024-02-28T15:39:34.085+05:30Comments on नीरज: मेरा जूता है जापानी!नीरज गोस्वामीhttp://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-8939335621703147922007-09-28T08:00:00.000+05:302007-09-28T08:00:00.000+05:30अच्छा लिखा संस्मरण। और लिखिये जापान के बारे में। ज...अच्छा लिखा संस्मरण। और लिखिये जापान के बारे में। जमने की चिंता मत करिये। ऐसे ही लिखते रहिये फिर आपको उखड़ने के लिये मेहनत करनी पड़ेगी।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-87320813653497266102007-09-27T23:24:00.000+05:302007-09-27T23:24:00.000+05:30चलिये, यह भी बढ़िया रहा गजल से जानकारी पूर्ण पोस्ट ...चलिये, यह भी बढ़िया रहा गजल से जानकारी पूर्ण पोस्ट की तरफ रुख.<BR/><BR/>कनाडा में भी एक्सेलेटर पर यही नियम सब फालो करते हैं.<BR/><BR/>ब्लाईन्ड रुट का कान्सेप्ट एक जानकारी है नई.<BR/><BR/>आभार इस पोस्ट के लिये.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-29240789441272625442007-09-27T22:23:00.000+05:302007-09-27T22:23:00.000+05:30नीरज साहिब ,वैसे तो में आपकी कविता का लोहा मानता ह...नीरज साहिब ,<BR/>वैसे तो में आपकी कविता का लोहा मानता हूँ वोह इस लिए के साधारण शब्दों से आप बहुत अच्छे शेर ढाल देते हो. कई बार तो यकीन नही होता के लोहे का कारोबार करने वाला इन्सान अपने भीतर दिल में कितना मोम रखता है यानी कितना मर्मस्पर्शी है कितना चिन्तक है. कवि अब "सफ़रनामे" भी लिखने लगा है यह जान कर बहुत ही अछा लगा "भगवान करे ज़ोरे कलम और ज्यादा" <BR/><BR/>गया हूँ लंदन भी <BR/>गया हूँ पेरिस भी गया हूँ बर्मा तुर्की टर्की वा रंगून में <BR/>के हिरणी जैसी आँखें देखी देहरादून में <BR/>चाँद शुक्ला डेनमार्क <BR/>फुरसित में आपके लिएhaidabadihttps://www.blogger.com/profile/00389775957099138608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-32733062514571717492007-09-27T21:24:00.000+05:302007-09-27T21:24:00.000+05:30आपको जापान अच्छा लगा ये ठीक है। पर सारे जहाँ से अच...आपको जापान अच्छा लगा ये ठीक है। पर सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा। जैसा भी है, है तो अपना ही। फिर यहाँ हम आप जैसे लोग है जो हर विपरीत परिस्थितियो मे मुस्कुरा रहे है। आपने ऐसे अनोखे लोग दुनिया मे कही नही देखे होंगे।Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-3857712667704141482007-09-27T19:43:00.000+05:302007-09-27T19:43:00.000+05:30शुक्रिया इस विवरण के लिए!! अच्छा लगा आपका यह विवरण...शुक्रिया इस विवरण के लिए!! अच्छा लगा आपका यह विवरण!!<BR/><BR/>जापानी तरक्की के पीछे वहां के नागरिकों में राष्ट्रीय स्वाभिमान और सामुदायिकता की भावना का बहुतायत मे होना भी एक प्रमुख कारण है जबकि हमारे यहां इन्ही दो बातों की मुख्य रुप से कमी दिखती है, हमारा राष्ट्रीय स्वाभिमान तभी जागृत होता सा लगता है जब हम पाकिस्तान या आस्ट्रेलिया से कोई मैच हार या जीत जाएं या फ़िर तो कोई बड़ा विदेशी नेता हमारे देश की तारीफ़ या बुराई कर दे!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-49112059086334217982007-09-27T13:12:00.000+05:302007-09-27T13:12:00.000+05:30प्रिये शिव क्या बात है...वाह.कई बार यौं भी देखा है...प्रिये शिव <BR/>क्या बात है...वाह.<BR/><BR/>कई बार यौं भी देखा है <BR/>ये जो बंधु तेरा लेखा है<BR/>एक पोस्ट सा लगता है .....<BR/><BR/>इस ब्लॉग को हमारे<BR/>कितना भी हम सवारें <BR/>सब तुमको ही पढता है ....<BR/>(मुकेश के एक पुराने गाने की परोडी....फ़िल्म आनंद) <BR/><BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-71184853140679678542007-09-27T12:00:00.000+05:302007-09-27T12:00:00.000+05:30एक ही पोस्ट में दोनों को देखाजापानी जूते और;मुम्बई...एक ही पोस्ट में <BR/>दोनों को देखा<BR/>जापानी जूते और;<BR/>मुम्बई की सड़क<BR/>सड़क के गड्ढे और; <BR/>जूते की तड़क-भड़क<BR/><BR/>लेकिन शिकायत के लिए<BR/>जगह है कहाँ?<BR/>सड़क पर हैं गड्ढे<BR/>तो गड्ढे में <BR/>सारा जहाँ<BR/><BR/>अब गड्ढे में रहनेवाले<BR/>क्यों भला शिकायत करें?<BR/>जूता अगर जापानी है<BR/>तो मुम्बई के सड़क की<BR/>अपनी भी कहानी है<BR/><BR/>यही सड़क हमें <BR/>रास्ता बताती है<BR/>थोड़ी दिक्कत होगी <BR/>अगर मौसम <BR/>'बरसाती' है<BR/><BR/>हम सभी की सड़कें<BR/>अलग-अलग हैं<BR/>यही वजह है कि; <BR/>हम एक दूसरे से<BR/>अलग-थलग हैं<BR/><BR/>हमसे अच्छे तो;<BR/>जापानी जूते हैं<BR/>जहाँ भी जायेंगे<BR/>रहेंगे साथ-साथ<BR/>कभी नहीं करते<BR/>एक-दूसरे से<BR/>दो-दो हाथ<BR/><BR/>जापानी जूतों से भी<BR/>कुछ सीख सकते हैं<BR/>उनकी तरह रहें<BR/>तो इंसान दिख सकते हैंShivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-21533875818525433982007-09-27T10:30:00.000+05:302007-09-27T10:30:00.000+05:30किसी भी दुकानदारी में ब्रेक-इवन के लिए कम से कम दो...किसी भी दुकानदारी में ब्रेक-इवन के लिए कम से कम दो-तीन साल का समय तो चाहिए ही... अभी तो मैं भी अपनी दुकान पर इनवेस्टमेंट ही किए जा रहा हूँ. रिटर्न (पाठकों) की उम्मीद बांधे....:)<BR/><BR/>और, क्या विरोधाभास है कि हम न्यूयॉर्क में इनक्रिडिबल इंडिया मना रहे हैं... :(रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-73653943235866048792007-09-27T09:35:00.000+05:302007-09-27T09:35:00.000+05:30अच्छा लगा आपका जापानी वर्णन.ज्ञान जी आपके ब्लॉग सल...अच्छा लगा आपका जापानी वर्णन.ज्ञान जी आपके ब्लॉग सलाहकार हैं तो समझिये जम ही जायेगी आपकी शॉपिंग माल.अपन तो अपना खोमचा से ग्राहकों को ताक रहे हैं. ना बिक्री है ना आवक.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-19385090311166933302007-09-27T09:00:00.001+05:302007-09-27T09:00:00.001+05:30नीरजजी, कई लोग शॉपिंग मॉल सजा कर बैठे हैं. अपने ब्...नीरजजी, कई लोग शॉपिंग मॉल सजा कर बैठे हैं. अपने ब्लॉग के वस्त्र नित नवीन करते फिरते हैं. पर ग्राहक के लिये हमारी तरह टकटकी बांधे रहते है. <BR/>कई लोगों के पास ग्राहक आते हैं चुपचाप सामान ले जाते हैं पर विजिटर बुक में हस्ताक्षर नहीं करते. उनका काउण्ट स्टैटकाउण्टर ही बताता है. <BR/>मुझे विश्वास है कि नये आये के हिसाब से आपका स्टैटकाउण्ट कई जमे जमाये को ईर्ष्या करा सकता है. <BR/>बाकी पाठक को क्या पसन्द आता है - यह तो मैं आज तक नहीं समझ पाया. इतना जरूर समझ में आया कि अगर कन्सिस्टेण्टली लिखा जाये और लेख में पाठक से संवाद कायम करने का सहज प्रयास हो तो देर सबेर बैटिन्ग जम जाती है. <BR/>----------<BR/>आपने जापान का बड़ा अच्छा प्रतिमान रखा. मुझे जापान बहुत फैसिनेट करता है. एक युद्ध से तबाह राष्ट्र कैसे इतनी जल्दी शिखर पर पंहुच जाता है - वह जानने के लिये जापान और जर्मनी का अध्ययन बहुत अच्छा रहेगा. आप आगे और भी बतायेंगे जापान पर!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6207361069321453067.post-20254128523644894442007-09-27T09:00:00.000+05:302007-09-27T09:00:00.000+05:30अन्तिम फोटो देखकर एक बार लगा कि आपने ये दिखाने की ...अन्तिम फोटो देखकर एक बार लगा कि आपने ये दिखाने की कोशिश की है कि महासागर के बीच जापान कैसा दिखाई देता है.लेकिन ध्यान से देखने पर एक कार भी दिखाई दी, तब जाकर समझ में आया कि ये मुम्बई की किसी सड़क का मन मोहने वाला दृश्य है.<BR/><BR/>हाँ, हम तो 'वादा निभाऊंगी सायोनारा' और 'मेरा जूता है जापानी' ही सुनते रह गए.....लेकिन क्या पता, हो सकता है कि जापानी भी 'बीडे जलैले' सुनकर खुश हो रहे हैं...Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com