Monday, July 1, 2013

अलग राहों में कितनी दिलकशी है



ज़ेहन में आपके गर खलबली है 
बड़ी पुर-लुत्फ़ फिर ये ज़िन्दगी है 
पुर लुत्फ़ : आनंद दायक 

अजब ये दौर आया है कि जिसमें 
गलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है 

मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं 
ये कैसी रौशनी हमको मिली है 
मुसलसल :लगातार : तीरगी : अँधेरा 

मुकम्मल खुद को जो भी मानता है 
यकीं मानें बहुत उसमें कमी है 

जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो 
अलग राहों में कितनी दिलकशी है

समंदर पी रहा है हर नदी को 
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है 
तिश्नगी : प्यास 

नहीं आती है 'नीरज' हाथ जो भी 
हरिक वो चीज़ लगती कीमती है

38 comments:

Anupama Tripathi said...

मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं
ये कैसी रौशनी हमको मिली है

सुंदर शायरी ...
हर एक शेर उम्दा ....मन को छूता हुआ ...!!
शुभकामनायें ।

अरुन अनन्त said...

अहा !!!! मस्त मस्त मस्त जानदार शानदार लाजवाब दिल को छू लिए आपने आदरणीय दिल से ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.

Dr. Shorya said...

लाजवाब , बहुत सुंदर , दिल को सुकून मिला पढ़ कर ,

रविकर said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-

Parul Singh said...

ज़ेहन में आपके गर खलबली है
बड़ी पुर-लुत्फ़ फिर ये ज़िन्दगी है
नहीं आती है 'नीरज' हाथ जो भी
हरिक वो चीज़ लगती कीमती है
वाह कमाल के शेर अच्छी गजल
बहुत शुभकामनाये आप ऐसी ही दिल छूने
वाली गजले कहते रहे ..

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही गहन अर्थपूर्ण शेर, समंदर की तिश्नगी शायद प्राकृतिक है पर मनुष्य की तिश्नगी को क्या कहें?

रामराम.

Ranjana verma said...

बहुत सुंदर ग़ज़ल की अभिव्यक्ति .......!!

Madan Mohan Saxena said...

मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं
ये कैसी रौशनी हमको मिली है

हर एक शेर उम्दा , बहुत सुंदर ग़ज़ल
शुभकामनायें ।

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार।

अरुन अनन्त said...

आपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें

shalini rastogi said...

बहुत खूब नीरज जी

नीरज गोस्वामी said...

Received on mail:-

dear neeraj ji

namsty

ur gazal is really very nice,

especially these lines:-


जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो

अलग राहों में कितनी दिलकशी है




समंदर पी रहा है हर नदी को

हवस बोलें इसे या तिश्नगी है

तिश्नगी : प्यास




congrats for such a gud writing,

also say congrats to Shri pankaj subeer ji for getting indu sharama award last week

regd,

-om sapra, delhi-9

9818180932

प्रवीण पाण्डेय said...

यह चुलबुली खलबली बनी रहे।

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार८ /१ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है।

तिलक राज कपूर said...

बाकमाल भाई बाकमाल।
अब आपको अंर्तराष्‍ट्रीय मुशायरे से बुलावा न आये तो वही कुछ खो रहे हैं।

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

main tilak sahab ki bat ka samarthan karta hun........... aaj main ne ek alag neeraj bhai ko padha hai..... badhai....

ashokkhachar56@gmail.com said...

बहुत सुंदर
गलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है

बहुत सुंदर

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन खास है १ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Murari Pareek said...

वाह नीरज जी आपके यहाँ तो आम के आम और गुठली के दाम मिलते है | सुन्दर रचना के साथु उर्दू फारसी भी अच्छी खासी सिख जायेंगे ...

Vandana Ramasingh said...


मुकम्मल खुद को जो भी मानता है
यकीं मानें बहुत उसमें कमी है

जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है

समंदर पी रहा है हर नदी को
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है

लाजवाब गज़ल

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

;-)

कालीपद "प्रसाद" said...

गजल के हर शेर ने दिल को छू लिया !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )

Mansoor ali Hashmi said...

अजब अंदाज़ का शाईर है 'नीरज'
अजब अंदाज़ की ये शायरी है.
http://mansooralihashmi.blogspot.in

Aruna P Khot said...

मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं

ये कैसी रौशनी हमको मिली है

I love these lines, it seems that they are written for me.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर
बहुत सुंदर


उत्तराखंड त्रासदी : TVस्टेशन ब्लाग पर जरूर पढ़िए " जल समाधि दो ऐसे मुख्यमंत्री को"
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372748900818#c4686152787921745134

अशोक सलूजा said...

मुकम्मल खुद को जो भी मानता है
यकीं मानें बहुत उसमें कमी है

बहुत खूब कहा....जो भी कहा!

नीरज गोस्वामी said...


मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं

ये कैसी रौशनी हमको मिली है



Mataphor



Chaand

विभूति" said...

भावो को संजोये रचना......

Unknown said...

wah-wah...kya baat hai...

मुदिता said...

जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है

सटीक शे'र... बहुत दिलकशी है सच में... एक मुकम्मल गज़ल के लिए आपको बधाई नीरज जी

Asha Joglekar said...

समंदर पी रहा है हर नदी को
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है
जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है
वाह क्या बात कही है ।

Ankit said...

नमस्कार सर
सच कहूँ तो बहुत दिनों बाद इधर आया हूँ और क्या खूब शेर पढ़ने को मिले हैं।

इस शेर की बानगी देखिये,
अजब ये दौर आया है कि जिसमें
गलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है
वाकई आज ये हालात आ चुके हैं, जिसमें हम अपनी ख़ुशी और ज़िदों की खातिर हर गलत को सही बनाने और मनवाने पर तुले हैं।

"मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं ..........", वाह वाह

मेरे लिए हासिल-ऐ-ग़ज़ल शेर है
समंदर पी रहा है हर नदी को
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है

आपने क्या खूबी से मंज़र निकला है इस शेर में। लाजवाब शेर है।

इस्मत ज़ैदी said...

जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है

क्या करूँ मुझे आप की तरह टिप्पणी करना नहीं आता ,,शब्द ही जैसे ग़ायब हो जाते हैं :)
बस यही कह सकती हूँ कि बहुत बहुत अच्छी लगी ग़ज़ल !

PRAN SHARMA said...

ACHCHHEE GAZAL KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN .

Onkar said...

बहुत सुन्दर शेर

नीरज गोस्वामी said...

Received on mail:-

अजब ये दौर आया है कि जिसमें
गलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है
वाह ! अब तक आप की जितनी भी ग़जलें पढ़ी ! उनमें सब से अच्छी ग़ज़ल है भाई ! तमाम अशआर बहुत सलीके से कहे गये हैं और ढेरों दाद के लायक है !
बधाई .....................!

Aalam Khursheed

सीमा रानी said...

जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है

बहुत बढ़िया ......हर शेर मुकम्मल है अपने आप मे।

Shiv said...

अजब ये दौर आया है कि जिसमें
गलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है

शानदार ग़ज़ल. जीवन के सच को देखने के आपके अंदाज़ के साथ.