Monday, April 2, 2012

बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को

फागुन चला गया, होली चली गयी तो क्या हुआ ? मस्ती तो नहीं नहीं गयी ना? जिस दिन मस्ती चली गयी समझो सब कुछ चला गया. आज पढ़ते हैं गुरुदेव "पंकज सुबीर" जी के ब्लॉग पर होली के अवसर पर हुए मस्ती से भरपूर तरही मुशायरे में भेजी खाकसार की ये ग़ज़ल:



हुआ जो सोच में बूढा उसे फागुन सताता है
मगर जो है जवां दिल वो सदा होली मनाता है

अपुन तो टुन्न हो जाते भिडू जब हाथ से अपने
हमें घर वो बुला कर प्यार से पानी पिलाता है

उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है

गलत बातों को ठहराने सही हर बार संसद में
कोई जूते लगाता है कोई चप्पल चलाता है

सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है

बदल दूंगा मैं इसका रंग, कह कर देखिये नेता
बुरे हालात सी हर भैंस पर उबटन लगाता है

बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
उसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है

सुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
तू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता है

61 comments:

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत सुन्दर ....

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर :)

राजेश उत्‍साही said...

कमर और कमरे की बात हमने भी समझ ली है।

रविकर said...

बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
उसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है

इन पंक्तियों ने तो सचमुच फिर से होली मनवा दी |
जबरदस्त |
हर शेर एक से बढ़ कर एक ||

Pawan Kumar said...

नीरज जी
देर से सही मगर कविता तो नसीब हुयी.................... होली का रंग अभी उतरा नहीं है.... सो यह ग़ज़ल नयी सी ही समझी जाएगी.
अपुन तो टुन्न हो जाते भिडू जब हाथ से अपने
हमें घर वो बुला कर प्यार से पानी पिलाता है
उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है
क्या रंग बरपाया है हुज़ूर..... दाद ढ़ेरों दाद !!!

ANULATA RAJ NAIR said...

हा हा हा....
:-)
बहुत बढ़िया सर...........हास्य रस से भरपूर...........

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है

अरे हाँ श्रृंगार रस भी तो है....

उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है

आनंद आ गया...
सादर.
अनु

ANULATA RAJ NAIR said...

हा हा हा....
:-)
बहुत बढ़िया सर...........हास्य रस से भरपूर...........

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है

अरे हाँ श्रृंगार रस भी तो है....

उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है

आनंद आ गया...
सादर.
अनु

Anupama Tripathi said...

बहुत बढ़िया ...बहुत मजेदार ....
शुभकामनायें .

देवेन्द्र पाण्डेय said...

एक शेर पेट वाला( वह भी खालिस हास्य के लिए लिखा गया है) छोड़ दें तो बाकी गज़ल के शेर बेहतरीन कटाक्ष करते हैं..लाज़वाब हैं।

वर्तमान राजनीति पर इससे तीखा कटाक्ष और क्या हो सकता है...!

सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है।

..बहुत बधाई।

रश्मि प्रभा... said...

mast

Shalini Khanna said...

अति सुन्दर...मजेदार..........

डॉ टी एस दराल said...

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है

हा हा हा ! जाने कितनों की व्यथा कह दी !

करके देखो एक कोशिश सुधरने की भाई
क्यों आज के नेताओं की तरह खाता है . :)

बेहतरीन व्यंग!

Anonymous said...

सुभानाल्लाह........हर शेर बेहतरीन और शानदार...

संध्या शर्मा said...

बहुत बढ़िया...

सदा said...

वाह ...बहुत खूब ।

vandana gupta said...

हुआ जो सोच में बूढा उसे फागुन सताता है
मगर जो है जवां दिल वो सदा होली मनाता है
बेहतरीन शानदार ………बहुत खूब

परमजीत सिहँ बाली said...

कहा तेरा नही नक्कार की तूती सुनों "नीरज"
ये सच है आज का हर शेर यही बताता है।

बहुत बढिया नीरज जी।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

जोरदार हजल...
सचमुच धमाल है आदरणीय नीरज जी...
सादर।

जयकृष्ण राय तुषार said...

नीरज भाई आप सचमुच गज़ल ओढ़ते -बिछाते हैं |बधाई |

Shiv said...

बहुत-बहुत बढ़िया. पढ़कर लगा जैसे होली फिर से आ गई. किस शेर को टिप्पणी में कोट करूं और किसको नहीं?
पूरी की पूरी ग़ज़ल लाजवाब है. ये शेर

बदल दूंगा मैं इसका रंग, कह कर देखिये नेता
बुरे हालात सी हर भैंस पर उबटन लगाता है

और

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है

बहुत-बहुत मस्त हैं.

संतोष त्रिवेदी said...

हँसी के साथ गंभीर सोच भी है,यही असली हास्य है !

Nikhil said...

क्या खूब लिखा है आपने...

मज़ा आ गया पढके, एक-एक पंक्ति में हास्य-व्यंग्य कूट कूट के भरा है...

मुझे जो शेर बहुत अच्छा लगा :-

'सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है

बदल दूंगा मैं इसका रंग, कह कर देखिये नेता
बुरे हालात सी हर भैंस पर उबटन लगाता है'

अनूप शुक्ल said...

अरे वाह! आप तो ऊंचे दर्जे के शायर हो लिये। :)

सुज्ञ said...

ला-जबाव!!
सभी की असीम प्रशंसा जायज है इस श्रेष्ठ रचना के लिए।

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ...

dr.mahendrag said...

सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है

BAHUT SUNDAR RACHNA NEERAJI,
SAB KI HI POL KHOL DI,PAR YEH SAB KAHAN SAMJHNE WALE HAE,
AAPNE THEEK HI KAHA
सुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
तू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता है

PRAN SHARMA said...

GAZAL MEIN CHUTKEELAPAN AUR TAAZGEE
HAI . PADH KAR MAZAA AA GAYAA HAI .

संजय @ मो सम कौन... said...

नीरज भा जी, त्वाडा जवाब नहीं। डायलाग पुराना है, लेकिन और कुछ सूझता ही नहीं यहाँ आने के बाद।

Abhishek Ojha said...

:)

gazalkbahane said...

khoobssorat hai andaje bayan aapke

udaya veer singh said...

सुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
तू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता

गोस्वामी जी बौने हो जाते हैं मेरे शब्द ,कितनी सिद्दत से भावों की तासीर ,शब्दों के माध्यम से उड़ेल देते हैं ,रब दी मेहर हो हम यही कह सकते हैं जी ....

नीरज गोस्वामी said...

Msg received on e-mail:-

bhai neeraj ji
namstey

aapki achi gazal ke liye badhai
om sapra, delhi-9

नीरज गोस्वामी said...

Msg received on e-mail:-

Neeraj ji namaskaram
behatreen gazal ke liye badhai
sajeevan mayank

तिलक राज कपूर said...

हुज़ूर कमर यूं ही तो कमरा नहीं बन जाती है!इसके पीछे भाभी जी की बरसों की म्हणत है!

उसे मालूम क्या जो प्यार से हलवा खिलाती है
कमर मेरी बनी कमरा कहाँ जलवा दिखाती है!

दिगम्बर नासवा said...

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है ...

नीरज जी आपने तो दुखती रक् पे हाथ रख दिया ... पेट कम करना पड़ेगा अब ... हा हा .... मज़ा आ गया पूरी गज़ल पढ़ के ... धमाल किया है आपने ...

Pratik Maheshwari said...

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
hahaha! shaandaar...

kanu..... said...

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
waha bhi padhi thi yaha fir padh li...:)

प्रवीण पाण्डेय said...

कमरें कमरा कब बन जाती हैं, पता ही नहीं चलता है।

Dr Xitija Singh said...

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है

:)))

ऋता शेखर 'मधु' said...

बहुत बढ़िया!

दर्शन कौर धनोय said...

holi ke rang .....aapke sang ..bahut hi badhiya ....

शिवम् मिश्रा said...

अपना भी पसंदीदा शेर यही है ...
"दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है"

इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कब तक अस्तिनो में सांप पालते रहेंगे ?? - ब्लॉग बुलेटिन

हरकीरत ' हीर' said...

उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है

ओये होए .....:))
सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
ये ठीक नहीं ....
स्त्री की तकदीर तो पुरुष के साथ जुडी होती है ....

बदल दूंगा मैं इसका रंग, कह कर देखिये नेता
बुरे हालात सी हर भैंस पर उबटन लगाता है

बहुत खूब ....
इस सोच पर सलाम .....!!
बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
उसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है

कैसे ..?

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
हा...हा...हा.....
लाजवाब.....:))

Anju (Anu) Chaudhary said...

बहुत मटक मटक हो गई जी .......बहुत खूब

Vaanbhatt said...

बहुत गहरे तीर मारे हैं...हुजूर ने...मज़ा आ गया...हर शेर चुनिन्दा...ज़बरदस्त...

How do we know said...

bahut, bahut maza aaya is ko padh kar!! din ban gaya!

How do we know said...

bhains ko ubatan lagata hai.. ye upma hindi mein hi ho sakti hai.. :-)

Rachana said...

उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो गुलाबी होता जाता है

kya baat hai bahut khub
rachana

Onkar said...

wah, mazaa aa gaya

Saras said...

सुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
तू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता है....waah bahut khoob!

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर ....मस्त भाव..

Udan Tashtari said...

हा हा!! ये मस्ति!! बहुत खूब!

Bharat Bhushan said...

सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
बहुत मस्त ग़ज़ल है.

SATISH said...

आदरणीय नीरज जी,
बहुत खूबसूरत हज़ल कही है वाह वाह... मज़ा आ
गया पढ़कर...

सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
....कितना दर्द है इस शे'र में

दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
हा..हा...हा क्या कहने...

इस उम्दा कलाम के लिए दिली मुबारकबाद और ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

रचना दीक्षित said...

बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
उसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है


दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है


क्या बेजोड़ प्रस्तुति है. हर एक शेर लाजवाब

Rajput said...

बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
उसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है

:) बहुत खूब!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई....

sushila said...

लाजवाब ! बहुत बधाई आपको इन गज़ब के शेरों के लिए!
"सुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
तू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता है"
वाह ! जानते हुए भी दिल कहाँ मानता है!

Sonroopa Vishal said...

वाह ...मजा आ गया ......फील फ्रेश !

M VERMA said...

बहुत खूब .. मजेदार

ganesh parte said...

kya bat hai neraj je