Monday, May 30, 2011

किताबों की दुनिया - 53

पिछली बार आपको एक पेंटर शायर से मिलवाया आज मिलिए एक इंजिनीयर शायर से. वैसे इंसान दिल से शायर होता है पेशे से नहीं इसीलिए आज शायरी के आकाश पर चमकने वाले अधिकांश सितारे किसी न किसी ऐसे पेशे से जुड़े हुए हैं जिनका शायरी से दूर दूर तक का नाता नहीं है. कहने का सीधा सा मतलब है के वो दिन अब लद गए जब मियां ग़ालिब जैसे पाए दार शायर सिर्फ और सिर्फ शायरी ही किया करते थे, तब शायरी पेशा था अब शौक है. आज का शायर चूँकि ज़मीन से जुड़ा हुआ है इसी कारण आज की शायरी में जामो-मीना, हुस्नो-इश्क की जगह इंसानी जद्दोजहद ने ले ली है. आज का शायर अपनी और अपने जैसे दूसरों की तकलीफें और खुशियाँ अपनी शायरी में ढालता है इसी कारण आज की शायरी अवाम की अपनी दास्ताँ है.

इस तरह कब तक हंसेगा- गायेगा
एक दिन बच्चा बड़ा हो जाएगा

फाइलें यदि मेज़ पर ठहरें नहीं
दफ्तरों के हाथ क्या लग पायेगा

'रेस' जीतेंगी यहाँ बैसाखियाँ
पाँव वाला दौड़ता रह जाएगा

हमारे आज के शायर हैं जनाब ओम प्रकाश 'यती' जी, जो उत्तर प्रदेश सिचाईं विभाग में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत हैं. खास बात ये है के 'यती' जी ने सिर्फ सिविल इंजिनीयरिंग ही नहीं की बल्कि विधि में स्नातक और हिंदी साहित्य में एम्.ऐ. भी किया है जो अपने आप में एक विलक्षण बात है. उनका एक ग़ज़ल संग्रह "बाहर छाया भीतर धूप" सन १९९७ में छप चुका है और दूसरा जिसकी हम आज बात करेंगे "सच कहूँ तो" अभी हाल ही में प्रकशित हुआ है.



मन में मेरे उत्सव जैसा हो जाता है
तुमसे मिलकर खुद से मिलना हो जाता है

भीड़ बहुत ज्यादा दिखती है यूँ देखो तो
लेकिन जब चल दो तो रस्ता हो जाता है

जब आते हैं घर में मेरे माँ-बाबूजी
मेरा मन फिर से इक बच्चा हो जाता है

माँ-बाप के सामने फिर से बच्चा बन जाने की बात मन को कहीं भीतर से छू जाती है और येही शायरी की खूबी है. दो मिसरों में वो बात कह दी जाती है जिसे कहने में दूसरी विधा में शायद ग्रन्थ लिखने पड़ें . एक और शायर मन से बच्चा बनने की बात करता है और दूसरी और बड़े होने के बाद की दुश्वारियों की भी चर्चा बहुत सार्थक ढंग से करता है. ओम जी की शायरी में ये विविधता देखते ही बनती है.

हमें मालूम है फिर भी नहीं हम खिलखिला पाते
बहुत से रोग तो केवल हंसी से भाग जाते हैं

निभाने हैं गृहस्थी के कठिन दायित्व हम को ही
मगर कुछ लोग इस रस्साकशी से भाग जाते हैं

यहाँ इक रोज़ हड्डी रीढ़ की हो जायेगी गायब
चलो ऐसा करें इस नौकरी से भाग जाते हैं

इस आखरी शेर में यती जी ने लाखों करोड़ों नौकरी पेशा लोगों की दुखती रग पर हाथ रख दिया है. ऐसे शेर कहना आसान काम नहीं इसीलिए ये बड़ी मुश्किल से नज़र आते हैं. श्री बाल स्वरुप राही जी ने इस पुस्तक की भूमिका में तभी कहा है कि "ओम जी के बारे में अगर मैं सच कहूँ तो यही कहूँगा कि इन्होने हिंदी-ग़ज़ल को अलग पहचान दी है. इनकी हर ग़ज़ल का अपना रंग है जो आजकल थोक में लिखी जा रही ग़ज़लों से अलग है. इनकी ग़ज़लों में हिंदी मुहावरों का सटीक प्रयोग है. 'यती' जी के एक-एक शेर में हिंदी कविता के संस्कार विधमान हैं."

हम भी खुश थे जब वो जीते, लेना एक न देना दो
भाग रहे थे तुम भी पीछे , लेना एक न देना दो

उनको तो मंदिर-मस्जिद से वोट की खेती करनी थी
हम आपस में लड़ना सीखे, लेना एक न देना दो

क्यूँ देते हो राय किसी को, पूछ रहा है क्या कोई ?
बोले मुझसे मेरे बेटे, लेना एक न देना दो

'यती' जी की अधिकांश ग़ज़लों का वातावरण पारिवारिक है. परिवार के बिखरने और बुजुर्गों के हाशिये पर चले जाने की पीड़ा उनकी शायरी में उभर कर आई है. जिस पारिवारिक एकता की हम विश्व भर में एक मिसाल थे आज उसकी चर्चा करने मात्र से हम कतराते हैं. हम आधुनिकता की आंधी में अपने परिवार को छिन्न भिन्न होता देख रहे हैं लेकिन उसे बचाने के प्रयास में कुछ कर नहीं रहे. हमारे यहाँ के बुजुर्ग भी आधुनिक विकसित देशों के बुजुर्गों की तरह अकेले या उपेक्षित जीवन जीने को विवश हैं. इस पीड़ा को 'यती' जी ने अपनी शायरी में बहुत सशक्त शब्द दिए हैं.

कुर्ता, धोती, गमछा, टोपी सब जुट पाना मुश्किल था
पर बच्चों की फीस समय से भरते आये बाबूजी

बडकी की शादी से लेकर फूलमती के गौने तक
जान सरीखी धरती गिरवी धरते आये बाबूजी

नाती-पोते वाले होकर अब भी गाँव में तनहा हैं
वो परिवार कहाँ हैं जिस पर मरते आये बाबूजी

इसी पीड़ा को एक और ग़ज़ल में किस तरह से 'यती' जी ने ढाला है इसकी भी बानगी देखिये. इन ग़ज़लों में इश्वर न करे आपको अपने घर परिवार की छवि दिखाई दे., क्यूँ की इनकी पीड़ा को एक भुक्त भोगी बहुत गहरे से समझ सकता है. अगर आपके घर परिवार में ऐसा है तो कृपया इसे सुधारने की और कदम बढायें क्यूँ की परिवार के टूटने या बुजुर्गों की अवहेलना करने के नतीजे फलदायी नहीं होते.

हंसी को और खुशियों को हमारे साथ रहने दो
अभी कुछ देर सपनों को हमारे साथ रहने दो

तुम्हें फुर्सत नहीं तो जाओ बेटा आज ही जाओ
मगर कुछ रोज़ बच्चों को हमारे साथ रहने दो

ये जंगल कट गए तो किसके साए में गुज़र होगी
हमेशा इन बुजुर्गों को हमारे साथ रहने दो

अविचल प्रकाशन -बिजनौर द्वारा प्रकाशित इस किताब की प्राप्ति के लिए आप उन्हें ई-मेल avichalprakashan@yahoo.in कर सकते हैं या फिर 03142-263659 पर फोन भी कर सकते हैं. सबसे आसान और तर्क संगत बात तो ये होगी यदि आप ओम जी को उनके मोबाइल न. 09410476193 पर पहले उन्हें इन खूबसूरत ग़ज़लों के गुलदस्ते के लिए बधाई दें और फिर इस किताब की प्राप्ति का आसान रास्ता पूछें. आप चाहें तो ओम जी को yatiom@gmail.com मेल भी कर सकते हैं. आईये एक बार फिर हम ओम जी के माध्यम से उस सुनहरी पलों को जी लें जिनकी यादें अब सिर्फ गिनती के लोगों के पास ही बचीं हैं.

खेतों खलियानों की फसलों की खुशबू
लाते हैं बाबूजी गाँवों की खुशबू

गठरी में तिलवा है, चिवड़ा है, गुड है
लिपटी है अम्मा के हाथों की खुशबू

बाहर हैं भैय्या की मीठी फटकारें
घर में है भाभी की बातों की खुशबू

मंगरू भी चाचा हैं, बुधिया भी चाची,
गाँवों में जिंदा है रिश्तों की खुशबू

खिचड़ी है, बहुरा है, पिंडिया है, छठ है
गाँवों में हरदम त्योंहारों की खुशबू

49 comments:

डॉ टी एस दराल said...

यति जी की ग़ज़लों में ज़मीं से जुड़े होने का अहसास है तो कहीं यथार्थ से ।
घर की बातें भी हैं , ऑफिस की भी ।
लेकिन सब हैं आम आदमी की जिंदगी से जुडी ।

बहुत सुन्दर ग़ज़लें लिखी हैं ए इ साहब ने ।
सुन्दर परिचय ।

Rajeev Bharol said...

नीरज जी, इतने सुंदर अशआर पढवाने के लिए धन्यवाद..

Rajeev Bharol said...

नीरज जी,
ओम जी से फोन पर बात भी हो गई.. 9999 वाला नंबर शायद गलत है. दूसरे वाला नंबर ही मिल पाया.

नीरज गोस्वामी said...

राजीव जी मैं आपका बहुत आभारी हूँ. शायर की हौसला अफजाही होनी ही चाहिए. आपने ओम जी से बात कर के एक बहुत ही अच्छे पाठक होने का सबूत दिया है. गलत वाला नंबर मैंने हटा दिया है.
नीरज

मनोज कुमार said...

कुर्ता, धोती, गमछा, टोपी सब जुट पाना मुश्किल था
पर बच्चों की फीस समय से भरते आये बाबूजी

बडकी की शादी से लेकर फूलमती के गौने तक
जान सरीखी धरती गिरवी धरते आये बाबूजी

नाती-पोते वाले होकर अब भी गाँव में तनहा हैं
वो परिवार कहाँ हैं जिस पर मरते आये बाबूजी
नीरज जी, सच में आंखें भर आईं। आपकी बेहतरीन समीक्षा और लाजवाब ग़ज़लों का संग्रह।

दीपक बाबा said...

यहाँ इक रोज़ हड्डी रीढ़ की हो जायेगी गायब
चलो ऐसा करें इस नौकरी से भाग जाते हैं


neeraj ji, namaskaar.
shayari kee duniya ke nayab heeron ko aap ham tak pahunchate hai... aabhari hai iske liye or kayal hai - apki nazaron ke.

सदा said...

मन में मेरे उत्सव जैसा हो जाता है
तुमसे मिलकर खुद से मिलना हो जाता है

भीड़ बहुत ज्यादा दिखती है यूँ देखो तो
लेकिन जब चल दो तो रस्ता हो जाता है

वाह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति, आपका बहुत-बहुत आभार यति जी को पढ़वाने के लिये ।

डॉ .अनुराग said...

इन दिनों लिखना जैसे जमीर को एक सहारा देना है ...तसल्ली देकर रखना के भीतर कुछ है जो जिंदा है साँस ले रहा है .इसलिए अलग अ लग पेशे के लोग आजकल इसे स्ट्रेस बस्टर के तरीके से ले रहे है ....बाबूजी वाले शेर दिल से लिखे है ...

स्वाति said...

कुर्ता, धोती, गमछा, टोपी सब जुट पाना मुश्किल था
पर बच्चों की फीस समय से भरते आये बाबूजी

बेहतरीन समीक्षा, बेहतरीन ग़ज़ल ...

Gyan Dutt Pandey said...

आप इतनी बढ़िया बढ़िया गज़ल/कवितायें लिखने वालों से कैसे मिलते हैं नीरज जी?!

हमें तो जवाहिर लाल, पण्डा, गोजर और कुकुर ही मिलते हैं। :(

Gyan Dutt Pandey said...

I found his earlier book - "बाहर छाया भीतर धूप" on Flipkart and have purchased it!

vandana gupta said...

जब आते हैं घर में मेरे माँ-बाबूजी
मेरा मन फिर से इक बच्चा हो जाता है
नाती-पोते वाले होकर अब भी गाँव में तनहा हैं
वो परिवार कहाँ हैं जिस पर मरते आये बाबूजी

यति जी से मिलवाने और उनके संकलन की इतनी उम्दा शायरी पढवाने के लिये आपकी हार्दिक आभारी हूँ…………हमेशा की तरह नायाब मोती।

अशोक सलूजा said...

बीते समय की खूबसूरत सोच ...सुंदर अलफाज़ !

Anonymous said...

एक-एक शेर उम्दा है....सामाजिक परिवेश में कहे गए शेरोन की बात ही निराली है.....शुक्रिया आपका|

Rajeysha said...

नौकरी से भाग जाने की बड़ी ही सशक्‍त वजह बताई गई है।

प्रवीण पाण्डेय said...

हर शेर में झन्नाट व्यंग है।

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

ओम प्रकाश यती जी का परिचय और उन की ग़ज़लें दोनो ही प्रभावित करती हैं| नीरज भाई आप को बहुत बहुत धन्यवाद, अपनी गाँठ से खर्च कर किताबों को खरीद कर उन के बारे में दूसरों लोगों के साथ बतियाने के लिए|

Puja Upadhyay said...

गज़लें पढ़ कर आँखें भर आयीं...गाँव की कितनी ही यादें ताज़ा हो गयीं...
यति जी को जान कर बहुत अच्छा लगा. आपका बहुत शुक्रिया.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

यति जी की इन पंक्तियों को पढते पढते जैसे मैं खो गया ... इनमें आम जिंदगी, आजके समाज की छवि है ... और उनकी दृष्टि मुझे इतनी साफ़ लगी कि जैसे मैं पारदर्शी कांच के सामने खड़ा हूँ ...
इस बेहतरीन शख्सियत और उनके कृतियों से मुलाकात करवाने के लिए शुक्रिया !

pallavi trivedi said...

यहाँ इक रोज़ हड्डी रीढ़ की हो जायेगी गायब
चलो ऐसा करें इस नौकरी से भाग जाते हैं

वाह ... बेहतरीन !यति जी से मुलाकात करवाने के लिए शुक्रिया !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

ओम प्रकाश यती जी को पढ़कर लगा कि आप सिंचाई विभाग में नहीं, सामाज के उस परिवेश की इंजिनियरिंग किये हैं जिसमें सच्चा भारत बसता है।
शुरू मे हल्के में पढ़ रहा था लेकिन यहां तक आते-आते आँखें भर आयीं....

कुर्ता, धोती, गमछा, टोपी सब जुट पाना मुश्किल था
पर बच्चों की फीस समय से भरते आये बाबूजी

बडकी की शादी से लेकर फूलमती के गौने तक
जान सरीखी धरती गिरवी धरते आये बाबूजी

नाती-पोते वाले होकर अब भी गाँव में तनहा हैं
वो परिवार कहाँ हैं जिस पर मरते आये बाबूजी
....आभार आपका।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

हंसी को और खुशियों को हमारे साथ रहने दो
अभी कुछ देर सपनों को हमारे साथ रहने दो

तुम्हें फुर्सत नहीं तो जाओ बेटा आज ही जाओ
मगर कुछ रोज़ बच्चों को हमारे साथ रहने दो

नीरज जी, ऐसा कलाम पढ़कर कुछ कहने की स्थिति नहीं होती, बस पाठक इसमें डूब जाते हैं...
ऐसे दिल को छुने वाले कलाम के लिए यति जी को, और पेश करने के लिए आपको बधाई.

Kailash Sharma said...

ज़मीन से जुड़े इतने सुन्दर व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय कराने के लिये आभार....हरेक शेर अपने से लगते हैं..

Anupama Tripathi said...

यती जी को बधाई और नीरज जी आपका आभार ...इतनी सुंदर शायरी पढवाने के लिए ...

Unknown said...

पढ़ के बहुत अच्छा लगा. कभी इन् विषयों पर ग़ज़ल या शेर नहीं पढ़े थे.
समीक्षा और यति जी का परिचय करने के लिए आभार!

Udan Tashtari said...

ओम प्रकाश 'यती' जी का परिचय करवाने और उन्हें पढ़वाने के लिए आभार.....आनन्द आ गया...

बाबू जी वाले तो गूँज उठे.....वाह!

तिलक राज कपूर said...

एक और इंजीनियर शायर। मेरे दोस्‍त कहते हैं इंजीनियर शायरी करने लगे इसका विपरीत प्रभाव कार्यों पर पड़ रहा है। मैं कहता हूँ कि आप सही हैं, पहले हम ग़ल़त दिशा में जा रहे थे, विपरीत दिशा में जाने से सही दिशा में प्रगति हो रही है।
इंजीनियर (तार्किक) और शायर (चिंतक) मिल जायें तो सही दिशा प्राप्‍त होगी ही। दोनों गुण एक साथ मिलना तो एक सकारात्‍मक स्थिति है, स्‍वीकार करें।
बहरहाल, यती जी की शायरी की सोच उनके कार्यों पर भी प्रभाव डालती होगी, ऐसा उनके मित्र प्रमाणित कर सकते हैं। मैं तो ग़ज़लें देखकर यही कह सकता हूँ कि अच्‍छे शायर हैं।

Jyoti Mishra said...

very very beautiful !!!
I was mesmerized after reading this.

ओमप्रकाश यती said...

shee daral ji,manoj ji,deepak ji,sada ji,anurag ji,swati ji,gyandutt pande ji,vandana ji,imran ji,raje_sha ji,pravin pande ji,navin c chaturvrdi ji,puja upadhyay ji,indraneel ji,pallavi trivedi ji devendra pande ji,kailash sharma ji,anupama ji,jyoti ji,tilak raj kapoor ji,udan tashtari ji, aap sabko sheron par pratikriya ke liye bahut-bahut dhanyavad.................omprakash yati

ओमप्रकाश यती said...

bhai neeraj goswami ji,
mere ghazal-sangrah ki sameeksha kar use desh-duniya tak pahuchane ke liye aapka aabhaari hoon.........rajiv ji ko mera mobile 9999075942 kisi karan nahi mil paya hoga .wo number bhi theek hai ....omprakash yati

Abhishek Ojha said...

गाँव वाली यादें बहुत अच्छी समेटी हैं यति साहब ने. ज्ञान भैया के सवाल का ज़वाब दिया जाय ?

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

नीरज जी, यती साहब की गज़लें प्रतिक्रया देने से ज़्यादा, कुछ सोचने की बात करती है, यादों की रेट्रोस्पेक्टिव जर्नी की बातें करती हैं.. क्या खोया है उसका एहसास कराती है..
रही बात इंजीनियर और शायर की तो मेरे बेटर हाफ ("संवेदना के स्वर" के चैतन्य भी इंजीनियर हैं) स्वयं इसका सबूत हैं!!
बड़े भाई, कुछ कहना संभव नहीं!!

रजनीश तिवारी said...

बिलकुल सरल शब्दों में लिखे यति जी के सभी शेर बेहद प्रभावशाली और जमीन से जुड़े हुए मिले। बड़ी बड़ी बातें एकदम आसानी से कह जाना बहुत कठिन काम है और यति जी पारंगत हैं इसमें । एक उम्दा लेखक के इस परिचय के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद । शुभकामनाएँ ।

Pawan Kumar said...

नीरज भाई... नमस्कार
एक बार फिर वही आपके तेवर... माशा अल्लाह!!!!!
यति जी का परिचय और उनकी ग़ज़लों को परोसने का आभार.
आपकी पोस्ट का शिद्दत से इन्तिज़ार रहता है... नागिनो को खोज निकलने और उनको हम तक पहुँचाने का बहुत बहुत शुक्रिया.ye

ये दो शेर यति जी के कृतित्व का परिचय करा जाते हैं.
हमें मालूम है फिर भी नहीं हम खिलखिला पाते
बहुत से रोग तो केवल हंसी से भाग जाते हैं


निभाने हैं गृहस्थी के कठिन दायित्व हम को ही
मगर कुछ लोग इस रस्साकशी से भाग जाते हैं

Pawan Kumar said...

नीरज भाई... नमस्कार
एक बार फिर वही आपके तेवर... माशा अल्लाह!!!!!
यति जी का परिचय और उनकी ग़ज़लों को परोसने का आभार.
आपकी पोस्ट का शिद्दत से इन्तिज़ार रहता है... नगीनों को खोज निकालने और उनको हम तक पहुँचाने का बहुत बहुत शुक्रिया.
ये दो शेर यति जी के कृतित्व का परिचय करा जाते हैं.
हमें मालूम है फिर भी नहीं हम खिलखिला पाते
बहुत से रोग तो केवल हंसी से भाग जाते हैं


निभाने हैं गृहस्थी के कठिन दायित्व हम को ही
मगर कुछ लोग इस रस्साकशी से भाग जाते हैं
*****(दुबारा इसलिए क्योंकि ट्रांसलिट्रेसन की वज़ह से कुछ गलत हो गया था.)

nareshhindi said...

yati ji ki ghazalen ek dam hat ke hain. itni badhia kitab ke liye yati ji ko badhai. sameeksha vaakai bahut prabhavi hai ....Naresh Shandilya

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर परिचय .....बहुत सुन्दर प्रयास...

नीरज गोस्वामी said...

Msag received on e-mail:-

Bhai neeraj ji
namastey
very good collection of poems of om parkash yati ji,
congrats,

regds.
-om sapra, deli-9
9818180932

Ankit said...

फाइलें यदि मेज़ पर ठहरें नहीं
दफ्तरों के हाथ क्या लग पायेगा

रेस' जीतेंगी यहाँ बैसाखियाँ
पाँव वाला दौड़ता रह जाएगा

नाती-पोते वाले होकर अब भी गाँव में तनहा हैं
वो परिवार कहाँ हैं जिस पर मरते आये बाबूजी

ओमप्रकाश यती जी के शेर अपने आप में बहुत कुछ कह रहे हैं, उन्हें ढेरों बधाइयाँ.

सुनील गज्जाणी said...

namaskaar !
neeraj jee , yati saab !

yati saab ka kalaam achcha laga . ek aadmi ke sher ek aam jeevan me rache base sheron ko har aadmi tak ye ashaar pahucte hai . yaa yuhi kahe to bhi galt nahi hogaa ki aam shabdo me aam aadmi ki baat umdaa sheron me . mubaarak baad yati saab ko naye gazal sangrah ke liye . umdaa shero ke liye badhai , shukariyaa ,aabhar
saadar !

Manish Kumar said...

सीधी सच्ची जुबान के मालिक हैं यति साहब ! इंजिनियरिंग की नौकरी और शायरी का ये सामंजस्य वे आगे भी बिठाकर लिखते रहें ये शुभकामना है।

अशोक सलूजा said...

जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_1808.html

शुभकामनाएँ!

Asha Joglekar said...

Neeraj jee har bar aapke blog par aao to ek naya hee aanand aa jta hai. Is bar ke shayar Engineer Yati jee ko milwane ka abhar.
'रेस' जीतेंगी यहाँ बैसाखियाँ
पाँव वाला दौड़ता रह जाएगा

हमें मालूम है फिर भी नहीं हम खिलखिला पाते
बहुत से रोग तो केवल हंसी से भाग जाते हैं

निभाने हैं गृहस्थी के कठिन दायित्व हम को ही
मगर कुछ लोग इस रस्साकशी से भाग जाते हैं

यहाँ इक रोज़ हड्डी रीढ़ की हो जायेगी गायब
चलो ऐसा करें इस नौकरी से भाग जाते हैं
aur kitane hee hain jo dil choo gaye jaise Amma Babuji ke ghar aane par man ka bachcha ho jana.
Bahut Dhanyawad.

Kunwar Kusumesh said...

बढ़िया समीक्षा. यति जी से और उनकी क़लम/कलाम से परिचय मनभावन है.

सहज साहित्य said...

भाई यति जी आपसे एक बार भेंट हुई थी , कुछ अधूरी-सी ; क्योंकि अधिक समय नहीं मिला पाया / आपकी ज़ज़लों की गहराई और अशआर की सादगी और ऊँचाई देखकर दिल खुश हुआ । समीक्षक की पारखी नज़र ने यह नज़राना और खूबसूरत बना दिया ।

Amrita Tanmay said...

अनुभव के निकष पर ही ऐसा यथार्थ लिखा जा सकता है..सुन्दर परिचय

ओमप्रकाश यती said...

मित्रो,
ग़ज़ल-संग्रह की गज़लों पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.....ओमप्रकाश यती

KRANT M.L.Verma said...

डॉ.ओमप्रकाश यती जी की इस पुस्तक को इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती दिल्ली द्वारा "यशपाल जैन सम्मान-" आगामी ३ मार्च २०१३ को "हिन्दी भवन" नई दिल्ली में दिया जायेगा.
मेरी ओर से उन्हें इस उपलब्धि के लिये हार्दिक बधाई!

के० पी० अनमोल said...

यती जी का लेखन वाकई कमाल है। बेहतरीन लिखते हैं। आपने समीक्षा भी लाजवाब की है। बहुत अच्छा लगा पढ़कर।