Monday, September 13, 2010

किताबों की दुनिया - 37

'वाशी', याने नवी मुंबई का एक जाना पहचाना नाम, मेरे घर से लगभग पैंतालीस की.मी. दूर है , मेरा ड्राइवर मज़े से कार चलाते हुए अमूमन ये रास्ता करीब चालीस मिनट में तय कर लेता है, लेकिन जिस दिन उसकी अपनी बीवी से खटपट हो या कोई और तनाव हो,उस दिन ये रास्ता मात्र तीस मिनट में निपटा देता है. घर के तनाव को वो तेज़ कार चला कर ही उतारना जानता है.याने वो घर के तनाव को, तेज़ कार चला कर ओवर टेक करता है. ये उसका तरीका है जो जोखिम भरा और गलत है. एक तनाव को दूसरे और अधिक तनाव से कम नहीं किया जा सकता.

अब बिना तनाव के ज़िन्दगी जीना असंभव है, हर एक व्यक्ति अपने तनाव से मुक्त होने या उसके स्तर को कम करने का तरीका खुद ढूंढ लेता है. मैं अपने खुद के इजाद किये तरीके से तनाव मुक्त तो होता ही हूँ बल्कि मेरे आस पड़ौस बैठने उठने वालों के तनाव को भी दूर करने में सहायता करता हूँ. वो तरीका है शायरी की किताबें पढना. मेरे पास शायरी की इतनी किताबों से ये अंदाज़ा मत लगा लीजियेगा के मेरी ज़िन्दगी में बहुत तनाव हैं बल्कि ये सोचिये के मेरे पास तनाव करीब न फटकने देने के इतने कारण हैं.

'वाशी' के एक बड़े से हाल में पिछले सात सालों से चल रही किताबों की प्रदर्शनी पर पचास प्रतिशत छूट का बोर्ड लगा हुआ है. मैं जब जब उसमें गया मुझे निराशा ही हाथ लगी, क्यूँ की वहां सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी की किताबें ही मुझे नज़र आयीं. मैं जब भी मिष्टी के लिए कोई रंग भरो या वर्क बुक टाइप किताब देखने के लिए जाता तो हमेशा काउंटर पर कान खुजलाते बुजुर्ग से पूछता के क्या कभी हिंदी की किताबें भी यहाँ आएँगी और वो गर्दन हिला कर बताता "नहीं". इस बार आदतन जब मैं इस हाल में गया तो काउंटर वाले बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुए मुझे एक कोने की और इशारा किया जिसमें तीस चालीस किताबों का ढेर बेतरतीब पड़ा था. ढेर में पाक शास्त्र, हर रोग का आसान घरेलू इलाज़, कैसे करें बागबानी, स्वास्थ्य और योग, सफलता के सूत्र आदि किताबों के बीच दबी झांकती शायरी की एक किताब नज़र आ गयी. ये मेरे लिए गहरे समंदर में मोती मिलने से कम करिश्मा नहीं था.

आज हम शायरी की उसी किताब का जिक्र करेंगे जिसे पेंगुइन बुक्स वालों ने आकर्षक कलेवर के साथ " अंगारों पर नंगे पाँव " के शीर्षक से छापा है. शायर हैं जनाब "माधव कौशिक".


उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं

हँसते-हँसते ही हटा दे सबके चेहरों से नक़ाब
ऐसा लगता है शहर में सिरफिरा कोई नहीं

मेरी बस्ती के सभी लोगों को जाने क्या हुआ
देखते रहते हैं सारे बोलता कोई नहीं

मैं तो अपनी कहता हूँ, मैंने माधव कौशिक जी की शायरी पहले कभी नहीं पढ़ी थी, शायरी क्या उनका नाम भी नहीं सुना था. हैरत की बात है दुनिया में ऐसे कितने नायाब खजाने छुपे हुए हैं जिनका हमें अंदाज़ा ही नहीं होता और जो किस्मत वालों को ही नसीब होते हैं. इस मामले में तो आप मेरी किस्मत पर रश्क कर सकते हैं, जो मैंने इनकी किताब ढूंढ निकाली . इनके बारे में जो जितना जाना है वो सब इसी किताब की मार्फ़त जाना है. एक नवम्बर 1954 को भिवानी (हरियाणा ) में जन्मे, पंजाब विश्व विद्द्यालय से एम्.ऐ.( हिंदी) और बी.एड किये माधव कौशिक जी सन 2005 में हरियाणा साहित्य अकादमी के 'बाबू बाल मुकुंद सम्मान से , सन 2006 में राष्ट्रिय स्तर के 'बलराज साहनी' पुरूस्कार से तथा हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग द्वारा 'राज भाषा रत्न' से सम्मानित हो चुके हैं .आपकी अभी बीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें नौ ग़ज़ल संग्रह मुख्य हैं. माधव जी पंजाब साहित्य अकादमी के सचिव पद पर कार्यरत हैं और चण्डीगढ़ में रहते है.

निहथ्थे आदमी के हाथ में हिम्मत ही काफी है
हवा का रुख़ बदलने के लिए चाहत ही काफी है

ज़रुरत ही नहीं अहसास को अलफ़ाज़ की कोई
समन्दर की तरह अहसास में शिद्दत ही काफी है

बड़े हथियार लेकर जंग में शामिल हुए लोगों
बुराई से निपटने के लिए क़ुदरत ही काफी है

माधव जी की शायरी में हमें आम इंसान की सोच,उसके अहसास और उसके दर्द रूबरू होते हैं . उनकी शायरी शहरों की तरफ भागती ज़िन्दगी पर एक कटाक्ष हैं, वहीँ समाज की हक़ीक़त को बेपर्दा भी करती हैं.

छप नहीं सकता किसी भी पत्रिका के पृष्ठ पर
आपका किस्सा बहुत सच्चा है, सम्मोहक नहीं

राजपथ से दूर गन्दी बस्तियों के बीच में
एक जनपथ है जहाँ पर कोई अवरोधक नहीं

चाहे वो धर्मों के हों, दुनिया के या तहज़ीब के
आदमी बंधन में भी कहता है मैं बंधक नहीं

जैसा के मैं बता चुका हूँ मेरे लिए माधव जी का नाम आज से पहले अनजान था, इसका कारण माधव जी का स्वयं को बाज़ार से दूर रखना हो सकता है. आज के युग में दो मिसरे लिखने वाले अपने फन की शान में ज़मीन आसमान एक कर देते हैं वहीँ माधव जी जैसे शायर सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए लिखते हैं. उनका मानना है के हर रचनाकार को अपना मुक़ाम देर सवेर से ही सही, मिल जाता है. उनके लिए चुपचाप घर बैठ कर लिखने पढने के आनंद के सामने हर तरह की इश्तिहार बाज़ी बेमानी है.

तुमने तो घर के आँगन में नागफनी उगवा ली है
तुम्हीं बताओ कहाँ उगायें पौधे अपनी तुलसी के

नज़र वक़्त की छू कर उनको जाने कब मशहूर करे
सदियों से गुमनाम पड़े हैं लाल हज़ारों गुदड़ी के

सिवा राम के यह सच्चाई किसे समझ में आएगी
जूठे होकर भी सच्चे हैं बेर समय की शबरी के

इस पुस्तक की भूमिका में माधव जी ने लिखा है " इन ग़ज़लों में समय की काली पृष्ठ भूमि में उजास की गहरी लकीरें अधिक दिखाई देंगीं. जीवन को खूबसूरत बनाने के लिए सपनो के इन्द्रधनुषी रंग आपको ' अंगारों पर नंगे पाँव ' चलने के लिए प्रेरित करते रहेंगे.

भीड़ पथराव करके लौट गयी
चौक पर दम गरीब का निकला

सारी बदसूरती उभर आई
मेरी बस्ती में चाँद क्या निकला

ओस मेहँदी रचा गयी होती
धूप का हाथ खुरदुरा निकला

लगभग सौ पृष्ठों में फैली माधव जी की शायरी के अलग अलग रंग आपको इस किताब में बिखरे दिखाई देंगे. उत्कृष्ट कागज़ पर की गयी प्रिंटिंग, किताब पढने का मज़ा दोगुना कर देती है. पहले पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक की ये यात्रा आप कभी भूल नहीं पाएंगे और उनके कुछ एक शेर तो हो सकता है किताब ख़तम करने के बाद हमेशा के लिए आपके साथ ही चल दें. पुस्तक प्राप्ति के लिए अगर आस पास के पुस्तक भण्डार वाले आपकी मदद न कर पायें तो सीधे पैगुइन बुक्स वालों की साईट www.penguinbooksindia.com पर जा कर उन्हें लिखें और घर बैठे मंगवा लें. किताब आपको निराश नहीं करेगी ये पक्का है.

कल तलक जिनकी इबादत वक़्त करता था बहुत
अब उन्हीं लोगों के बुत शहरों से हटवाने पड़े

मेरे अन्दर के पयम्बर फूट कर तब रो दिये
जब ख़ुदा के सामने भी हाथ फैलाने पड़े

हादसों के दौर में इक हादसा यह भी हुआ
क़ातिलों को अपने दिल के ज़ख्म दिखलाने पड़े

आप नंगे पाँव या फिर कोई चप्पल जूता पहन कर इस किताब को ढूढने की सोचिये तब तक हम निकलते हैं आपके लिए ऐसी ही किसी और किताब की खोज में....पढ़ते रहिये...पढने से बेहतर कुछ भी नहीं...सच्ची.

51 comments:

Shah Nawaz said...

माधव कौशिक जी से रु-बरु करवाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

कातिलो को अपने दिल के जख्म दिख्लाने पडे .
क्या बात है . एक और कवि से मिलवाने का शुक्रिया

vandana gupta said...

नीरज जी,
कमाल करते है आप्………………कहाँ कहाँ से ऐसे नायाब मोती निकाल कर लाते हैं अब इसमे से कौन सा शेर ऐसा है कि जिसकी तारीफ़ की जाये और कौन सा ऐसा है जिसे छोडा जाये………………मुरीद हो गयी हूँ। हर शेर सच ऐसा ही है जो साथ साथ चल दे ………………।बहुत बहुत शुक्रिया।

seema gupta said...

ओस मेहँदी रचा गयी होती
धूप का हाथ खुरदुरा निकला
"माधव कौशिक". जी की अंगारों पर नंगे पाँव " किताब से रूबरू कराने का आभार
regards

संजय @ मो सम कौन... said...

सही कर रहे हैं आप, पढ़ने से बेहतर कुछ नहीं।

RAJ SINH said...

हमेशा की तरह .
क्या क्या नायाब मोती , गहरे जा , ढूंढ लाते हैं नीरज भाई !

बस यूं ही संवारते रहिये ' मोगरे की डाली ' .

Majaal said...

जिंदगी के बारें में कम ही शायार लिखते है, ज्यादातर को तो रूमानी तबियत से फुर्सत नहीं मिलती .. कभी reality show की तर्ज़ पर शायरों का भी पता लगाया जाए तो न जाने कितने हुनर मिल जाएंगे ..परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया ...

दीपक बाबा said...

नीरज जी, आपके हाथ में वो हुनर है - जो नदी किनार बैठ कर इन्तेज़ार नहीं करने देता - वो हुनर आपको बहुत गहेरे गोता लगाने को मजबूर कर देता है - अमूल्य मोती के लिए.

आपकी तनाव दूर करने कि फिलोसोफी अच्छी लगी..... हम भी कोशिश करेंगे. ........

दिगम्बर नासवा said...

उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं

आपने तो पहला शेर ही इतना कमाल का लिया है ..... बिना रुके पढ़ता गया सारे शेर माधव जी के ....
बहुत जबरदस्त नगीना निकाला है आपने आज .... बहुत बहुत शुक्रिया ...

rashmi ravija said...

मैं पोस्ट पढ़ते हुए यही सोच रही थी...यहाँ भी पुस्तक- मेला अक्सर लगती है ५०% छूट वाली....पर हिंदी की किताबों के तो दर्शन दुर्लभ ही रहते हैं....अब हम भी बार बार पूछेंगे तो शायद प्रदर्शनी में शामिल करनी शुरू कर दें...और आपकी तरह हमें भी एकाध पुस्तक मिल जाए...

पर इतने अच्छे ढंग से किसी शायर और उसकी शायरी से रु-ब-रु करवाने का हुनर आपके ही पास हैं.

शुक्रिया 'माधव कौशिक' जी से मिलवाने का

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लेख, माधव कौशिक जी से परिचय करवाने के लिये आप का धन्यवाद, मै जब भी भारत से हबाई जहाज मै चढता हुं तो,ठीक चढने से पहले हमे किताबे ओर समाचार पत्र मिलते है, सब के सब अग्रेजी मै, मै हर बार हिन्दी का समाचार पत्र मांगता हुं तो वो सब से नीचे कोने मै पडा होता है, लेकिन जब यहां से भारत जाता हुं, तो जर्मन के सारे समाचार पत्र ओर पत्रिका सब से ऊपर पडी होती है, ओर अग्रेजी के समाचर पत्र नीचे कोने मै पडे होते है.... जिस दिन यह फ़र्क हमारी समझ मै आ जाये गा आप को वहां सब से ज्यादा हिन्दी की पुस्तके ही मिलेगी

shikha varshney said...

मेरे अन्दर के पयम्बर फूट कर तब रो दिये
जब ख़ुदा के सामने भी हाथ फैलाने पड़े
bahut hi sundar.
bahut shukriya is gyaanvardhak post ka..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

कल तलक जिनकी इबादत वक़्त करता था बहुत
अब उन्हीं लोगों के बुत शहरों से हटवाने पड़े

मेरे अन्दर के पयम्बर फूट कर तब रो दिये
जब ख़ुदा के सामने भी हाथ फैलाने पड़े

हादसों के दौर में इक हादसा यह भी हुआ
क़ातिलों को अपने दिल के ज़ख्म दिखलाने पड़े

सुन्दर प्रस्तुती नीरज जी, बहुत खूब !!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं
कमाल की शायरी है...
’अंगारों पर नंगे पांव’ और माधव कौशिक जी से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया नीरज जी.

Shardula said...

ज़ेहन पे छाप छोड़तीं गज़लें. एक शेर पढ़ा, फ़िर रुका नहीं गया अंत तक. माधव जी को बधाई और आपका आभार इस प्रस्तुति के लिए.
नीचे देखा आपकी दो-सौवीं पोस्ट और तीन साल के बारे में...आपको बधाई और शुभकामनाएं...सादर शार्दुला

डिम्पल मल्होत्रा said...

माधव कौशिक की किताब की जानकारी तो अच्छी लगी(हमेशा की तरह)..चुने हुए शे,र भी बढ़िया थे...ये ब्लॉग किताबो के बारे में लिखता है सो प्रिय ब्लॉग है...एक बात सबसे सही लगी--पढने से बेहतर कुछ भी नहीं...सच्ची.

नीरज गोस्वामी said...

इ-मेल द्वारा प्राप्त गिरीश पंकज जी की टिप्पणी:-

aapka blog khula hinahee, isliye apne email box se hi zavab de raha hoo. madhav kaushik ji keegazale main parhee hai. ham dono sahity akademy , dilli ke hindi bord ke sadasy bhi hai. unkee ghazale adbhut hai. unka charcha bahut adhik nahee hua magar ab lagata hai mahaul banegaa. aapne sarthak charcha jo kar dee hai. log parhenge madhav ji ko...is nisvarth seva ke liye aap badhai k patr hai.

तिलक राज कपूर said...

हर बार आपका किताबों की दुनिया में ले जाना एक नया अनुभव होता है। इस बार फिर आपने नायाब शाइर के कलाम से मुलाकात कराई।
आभार ही आभार।
छप नहीं सकता किसी भी पत्रिका के पृष्ठ पर
आपका किस्सा बहुत सच्चा है, सम्मोहक नहीं।
माधव जी की शाइरी सच्‍ची भी है और सम्‍मोहक भी।

डॉ टी एस दराल said...

नीरज जी , आपकी पारखी नज़रों का भी ज़वाब नहीं । कहाँ कहाँ ढूंढ लेते हैं शायरी के खजाने को । बेशक , माधव कौशिक जैसे जाने कितने शायर गुमनामी की जिंदगी जी रहे होंगे ।
आभार इस नायाब शायर से परिचय कराने का ।

वीरेंद्र सिंह said...

ज्ञानबर्धक आलेख ....
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति .
आभार ....

अजित गुप्ता का कोना said...

आप सच कह रहे हैं तनाव को साहित्‍य ही दूर करता है। माधवजी से परिचय कराने का आभार।

संजीव गौतम said...

चाहे वो धर्मों के हों, दुनिया के या तहज़ीब के
आदमी बंधन में भी कहता है मैं बंधक नहीं
kya sher hai. is par bahut kuchh kurbaan.
madhav kaushik ji ke umda ashaaron ko padhavaane ka shukriya.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

नीरज जी.. आपही के तरह हम भी जब कभी परेसान होते हैं त लफ्ज़ का पुराना अंक सब निकालकर पढने लगते हैं अऊर अगर नेट पर हुए त कबिता कोश खोलकर बईठ जाते हैं... ऐसहीं अनजाने में एक दिन माधव कौशिक जी से भी भेंट हो गया...परेसानी कहाँ गायब हो गया मत पूछिए अऊर उनका कुछ किताब का बारे में भी पता चला...
करीब नौ संकलन देखाई दिया हमको..आपका कहा हुआ गजल संग्रह त बेजोड़ होता ही है... माधव जी का एक और पुस्तक “सूरज के उगने तक” का ई लाइन हमको बहुत पसंद हैः

चलो अब हाथ की सारी लकीरों को मिटा डालें,
मुकद्दर में लिखी यह बेबसी देखी नहीं जाती।

वीरेंद्र सिंह said...

इस नारे के साथ कि...... चलो हिन्दी अपनाएँ
आप सभी को हिन्दी दिवस पर शुभकामनाएँ

देवेन्द्र पाण्डेय said...

ओस मेहँदी रचा गयी होती
धूप का हाथ खुरदुरा निकला
....बहुत सुंदर। आपका भी ज़वाब नहीं।

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

बहुत सुन्दर ...परिचय के लिए बहुत बहुत धन्यवाद| माधव जी को कविता कोष पर पढ़ना प्रारंभ कर दिया है|

Abhishek Ojha said...

पढने से बेहतर कुछ भी नहीं, ये तो बिलकुल सही बात कर दी आपने. भगवान करे आपको ऐसे नए नए मोती मिलते रहे और हम उनके बार में पढ़ते रहे. हिंदी किताबों के बारे में पुणे में भी अपना यही अनुभव रहा है. बड़ी मुश्किल होती थी.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नीरज जी ,

आज कि पेशकश बहुत अच्छी लगी ....पुस्तक के ऐसे अंश चुन कर पढवाते हैं कि मन होता है कि यह पुस्तक अभी क्यों नहीं है पढने के लिए ,,,बहुत अच्छी समीक्षा ..

रचना दीक्षित said...

बहुत ही बढ़िया पढ़ने से बेहतर कुछ नहीं।माधव कौशिक की किताब की जानकारी शेर भी बढ़िया ज्ञानबर्धक आलेख

Udan Tashtari said...

बहुत आभार इस पुस्तक के विहय में बताने का. वैसे तो टेंशन आपकी पर्सनाल्टि देखकर भी पास न आये..हँसमुख लोगों से वो जरा दूर ही रहता है. :)


हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

मोहन वशिष्‍ठ said...

bahut sunder maadhav ji se rubaru karwane ke liye dhanyawad

Khushdeep Sehgal said...

नीरज जी,
तनाव पास न फटकने देने पर अपने स्टाइल की एक बात याद आई...

मक्खन खाली बैठा तालियां बजा रहा था...
ढक्कन ने पूछा...तालियां क्यों बजा रहा है...
मक्खन...तालियां बजाने से भूत पास नहीं फटकते...
ढक्कन...लेकिन यहां तो कोई भूत नहीं है...
मक्खन...अबे, यही तो है मेरी तालियों का असर...

जय हिंद...

नीरज गोस्वामी said...

श्री सुलभ जायसवाल जी का इ-मेल पर मिला कमेन्ट:-

आज की पोस्ट पर मैं क्या कहूँ.... आज बड़े दिनों बाद रात्री के ११-१२ बजे शायर और शायरी से परिचय हुआ.
आज की तन्हाई में ये पोस्ट मुझ जैसे सरफिरे के लिए चांदनी रात का ताज महल है.

माधव कौशिक जी को प्रणाम शायरी की किताब और उनके शांत व्यक्तित्व के लिए.

नीरज सर ऐसा लग रहा है आप मेरे सामने बैठ कर पुस्तक समीक्षा के साथ साथ कुछ और अनुभव के मोती भी लुटा रहे हैं.

जल्द ही मिलते हैं फिर...

आपका
सुलभ

नीरज गोस्वामी said...

श्री ओम सपरा जी का इ-मेल से मिला कमेन्ट:-

good shri neeraj jinamastey
wah maja aa gaya.
tanav ko door karne ke aapke tarikee abhhe hain
madhav kaushik ke itni achhi jankaari dene ke liye dhanya vaad
aapka
om sapra, delhi=9

हरकीरत ' हीर' said...

वाह ....!!
सचमुच बहुत ही नायब खजाना हाथ लगा है नीरज जी .....बहुत ही गहरे शे'र हैं .....कमाल ही है ये ....
देखिये न कितने अच्छा लिखने वाले हैं जिन्हें हम जानते ही नहीं ....
आप तो फिर भी ढूंढ ही लेते हैं कहीं न कहीं से ....मैं तो तरसती रह जाती हूँ कोई ढंग की पुस्तक हाथ लगे ....
यहाँ तो आस पास फटकती तक नहीं .....

शारदा अरोरा said...

उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं

वाह , कितने कम शब्दों में आदमी की सही तस्वीर पेश की है । शुक्रिया माधव कौशिक जी की पुस्तक से मिलवाने का ।

क्या खूब लिखा है ....ये यात्रा आप कभी भूल नहीं पाएंगे और उनके कुछ एक शेर तो हो सकता है किताब ख़तम करने के बाद हमेशा के लिए आपके साथ ही चल दें । नीरज जी , तनाव ख़त्म करने के लिये अपने शौक वाले काम से बढ़कर दूसरा कोई इलाज नहीं है ...अपने आप तनाव को विकल्प मिल जाता है ।

चाहे वो धर्मों के हों, दुनिया के या तहज़ीब के

आदमी बंधन में भी कहता है मैं बंधक नहीं

तो क्या करे आदमी , खुशफहमियां रखने में आदमी का जवाब नहीं ...

कभी लिखा था मैंने ...
उगा लेता है सब्जबाग भी
कब्र-गाहों पर ,
ये आदमी का हौसला है कि चुन लेता है फूल
सीने में सब दफ़न कर के ...

प्रवीण पाण्डेय said...

माधव कौशिक जी का परिचय कराने का आभार।

Shiv said...

अद्भुत लिखते हैं माधव जी.
भीड़ पथराव करके लौट गयी
चौक पर दम गरीब का निकला

सारी बदसूरती उभर आई
मेरी बस्ती में चाँद क्या निकला

ओस मेहँदी रचा गयी होती
धूप का हाथ खुरदुरा निकला

क्या खूब किताब के बारे में जानने को मिला.

निर्मला कपिला said...

दोबारा आती हूँ एक काम आगया पूरानहीं पढा। आभार।

राजेश उत्‍साही said...

नीरज जी, मुझे तो माधव जी की ग़ज़लें पढ़ते हुए दुष्‍यंत याद आए। वह तल्‍खी है उनकी शायरी में।
आप ऐसे शायरों और उनकी शायरी से मिलवा रहे हैं कि आप पर सौ पचास ब्‍लाग न्‍यौछावर करने का मन होता है। सचमुच आपके ब्‍लाग पर आकर लगता है चलो दिन भर भटकने के बाद कुछ तो ऐसा मिला जिसे हम पढ़ना चाहतें हैं। शुभकामनाएं।

रंजन (Ranjan) said...

वंडरफुल!!

Roshani said...

शानदार नीरज जी...माधव कौशिक जी के शायराना अंदाज़ को भी सलाम. हीरे की तलाश खदानों में ही करनी पड़ती है और बड़ी मेहनत से इन्हें खोजकर लाने वालों को भी सलाम!

Anonymous said...

बहुत ही उम्दा शेर हैं कौशिक साहब के .............और आप के इस प्रयास के लिए मैं आपको सलाम करता हूँ|

Asha Joglekar said...

माधव कौशिक जी से परिचय करवाने का आभार । आप ऐसे ही नायाब हीरे लाते रहें और हमे से परिचय कराते रहें ।
बहुत कमाल की शायरी है ।

SATYA said...

माधव जी का परिचय कराने का आभार,

यहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...

Akshitaa (Pakhi) said...

आपके ब्लॉग पर तो ढेर सारी पुस्तकों से परिचय होता है...
_____________________________
'पाखी की दुनिया' - बच्चों के ब्लॉगस की चर्चा 'हिंदुस्तान' अख़बार में भी.

कविता रावत said...

उससे क्या उम्मीद रखे अब कोई बंदानवाज़
आदमी जितना है उतना खोखला कोई नहीं
हँसते-हँसते ही हटा दे सबके चेहरों से नक़ाब
ऐसा लगता है शहर में सिरफिरा कोई नहीं
और
छप नहीं सकता किसी भी पत्रिका के पृष्ठ पर
आपका किस्सा बहुत सच्चा है, सम्मोहक नहीं
राजपथ से दूर गन्दी बस्तियों के बीच में
एक जनपथ है जहाँ पर कोई अवरोधक नहीं
...माधव कौशिक जी से परिचय और साथ में उम्दा शायरी बेहद अच्छी और सच्ची लगी ...
........सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद

डॉ. मोनिका शर्मा said...

माधवजी से परिचय कराने का आभार....बहुत कमाल की शायरी है.... धन्यवाद

Nipun Pandey said...

नीरज जी!
एक और बेहतरीन तोहफा देने के लिए शुक्रिया!
नियमित तो नही रह पता पर जब आता हूँ तो सारे पोस्ट पढ़ जाता हूँ आपके और सच मानिये बहुत बहुत आननद मिलता है !
आपके ब्लॉग से ही कई शायरों से रूबरू होने का मौका मिला ! बहुत कुछ नया जाना और बहुत कुछ पढ़ा :):)

ऐसे ही नए नए नायब मोती खोज के हमें भी बताते रहिये ! बहुत बहुत शुक्रिया ! :)

Dr.R.Ramkumar said...

बड़े हथियार लेकर जंग में शामिल हुए लोगों
बुराई से निपटने के लिए क़ुदरत ही काफी है




बहुत सुन्दर!!

Ankit said...

इस दुकां में मैंने भी पहले खोज बीन की थी मगर कुछ हासिल ना हुआ, अब एक बार फिर से जाता हूँ.
ये कार वाली बात, आप विजय जी की कर रहे हैं या भगवान् जी की, क्योंकि शायद विजय जी की तो शादी नहीं हुई और जब भगवान् साथ में हों तो डर किस बात का.

कितने बेहतरीन शेर, अशआर इस दुनिया में बिखरे हुए हैं, और आप उन सभी को एक जगह पे ला रहे हैं, इससे अच्छा काम और क्या होगा....

मेरी बस्ती के सभी लोगों को जाने क्या हुआ
देखते रहते हैं सारे बोलता कोई नहीं

माधव कौशिक जी का नाम पहली बार मैंने सुना है मगर ऐसा लग रहा है उनके शेर तो पहले से जुड़े हुए हैं