Monday, August 2, 2010

जो न समझे नज़र की भाषा को

एक निहायत सीधी सादी मासूम सी ग़ज़ल जिसके हुस्न को संवारा है गुरुदेव पंकज सुबीर जी ने




आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्‍मनी हुई तब से

आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से

पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से

जो न समझे नज़र की भाषा को
क्‍या कहा जाये फिर उसे लब से

शाम होते ही जाम ढलने लगे
होश में भी मिला करो शब से

हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?

शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से

तुम अकेले तो हो नहीं 'नीरज'
ज़िन्दगी किसकी कट सकी ढब से ?

60 comments:

वाणी गीत said...

पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से

जो न समझे नज़र की भाषा को
क्‍या कहा जाये फिर उसे लब से ...

आँखों की जुबां वो समझ नहीं पाते ...
लब खामोश है कुछ कह नहीं पाते ...!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत गज़ल....

kshama said...

Is sadagi bhari khoobsoortee ne phir ekbaar nishabd kar diya!

इस्मत ज़ैदी said...

पारम्परिक ग़ज़ल के तक़ाज़ों को पूरा करती हुई ग़ज़ल

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय भाई साहब नीरज जी
सबसे पहले तो कबरी आंखों वाली ख़ूबसूरत हसीना की फोटो के लिए शुक्रिया कहूं , बधाई दूं … समझ नहीं आता !

हा हा हा …

आपकी बड़प्पन की प्रवृति पर बहुत प्यार आता है ।
एक से एक प्यारे शे'र लिखे हैं आपने

हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?


पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से


वल्लाह ! क्या शे'र निकाले हैं !
देखिए , कुछ कु्छ होने लग जाएगा , तो फिर मत कहिएगा ।

आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्‍मनी हुई तब से

शुरू से ले'कर आख़िर तक ग़ज़ल दिलो - दिमाग पर छा गई है …
वाह !
वाह !!
वाह !!!

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आपकी ग़ज़ल ... हमेशा मन मोह लेती है.... बहुत अच्छा लगता है आपको पढना.... हर शे' र मन को भाते हैं...

बहुत ही सुंदर और नायाब ग़ज़ल...

शारदा अरोरा said...

वाह सुन्दर ग़ज़ल , डुबकियाँ लगा के आना पड़ता है , तब कहीं ऐसे अशआर निकलते हैं लब से ...

राजेश उत्‍साही said...

नीरज जी इसमें कोई शक नहीं कि सचमुच सीधी और सादी ग़ज़ल है। पर प्रभावशाली भी। क्‍या ही अच्‍छा होता कि आप अपनी मूल रचना भी साथ में देते ताकि समझ आता कि पंकज जी ने कहां उसे तराशा है। कभी एक ऐसा प्रयोग करके भी देखें। हम सीखने वालों को मदद मिलेगी।

सुशीला पुरी said...

हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?
उफ ! क्या कहूँ ये हुआ कब से ?

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

वाह नीरज जी...वाह
सच कितनी ’सादा और मासूम’ ग़ज़ल कही है..
सुबहान अल्लाह
आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
.......कितना मासूम सा सवाल है...

पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
..............क्या सादगी है जनाब.....
जो न समझे नज़र की भाषा को
क्‍या कहा जाये फिर उसे लब से
.......बिल्कुल सही कहा...
शाम होते ही जाम ढलने लगे
होश में भी मिला करो शब से
........हासिले-ग़ज़ल शेर
हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?
...ये हुई मासूमियत की हद.
नीरज जी...
भा गई आपकी ये सादगी.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...


नीरज जी, बहुत दिनों के बाद एक अच्छी गजल पढ रहा हूँ। बधाई स्वीकारें।

…………..
स्टोनहेंज के रहस्यमय पत्थर।
क्या यह एक मुश्किल पहेली है?

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब सुरत गजल जी धन्यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

नीरज गोस्वामी said...

E-mail received from Kanchan Chauhan:-


पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से

ये शेर लग रहा जुदा सबसे
पढ़े जाती हूँ मैं इसे कब से
:)

सादर
कंचन

Alpana Verma said...

हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?

क्या बात है!ये तो बेरुखी की इन्तहा हो गयी!

बहुत खूब कही है गज़ल आप ने..


किशोर दा को सौरभ श्रीवास्तव की स्वरांजलि

vandana gupta said...

हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?

वाह कितनी सादगी से कत्ल किया है।

जो न समझे नज़र की भाषा को
क्‍या कहा जाये फिर उसे लब से

सही तो कहा है नज़रें तो बिन कहे भी बतिया लेती हैं और कहना पड जाये तो ये तो मोहब्बत की तौहीन हुयी।

आपका तो हमेशा ही अन्दाज़ ज़ुदा होता है और गज़ल मे तो महारत हासिल है ।

Pawan Kumar said...

नीरज भी अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ने को मिली....
आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्‍मनी हुई तब से
अच्छा ख्याल है....छोटे बहार में कमाल किया है आपने !

पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
और ये है वाकई शेर (बब्बर शेर....)


जो न समझे नज़र की भाषा को
क्‍या कहा जाये फिर उसे लब से
आहा ....क्या खूब कहा..!


शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से
ये है हासिले ग़ज़ल शेर.....वाह वाह !

संजय कुमार चौरसिया said...

SUNDAR GAZAL

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

जो न समझे नज़र की भाषा को
क्‍या कहा जाये फिर उसे लब से



पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से


वाह!! वाह!! क्या बात है..छा गये. बेहतरीन शेर लगे!!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
..सबकुछ तो दे दिया रब ने..!..वाह! क्या बात है. शेष तो हमें खुद ही जुटाना पड़ेगा.

Avinash Chandra said...

बहुत सादा पर बहुत ही ख़ूबसूरत...खासकर ये दोनों, कमाल!

आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से

शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से

डॉ टी एस दराल said...

जो न समझे नज़र की भाषा को
क्‍या कहा जाये फिर उसे लब से

लब तो दिख नहीं रहे , किन्तु आँखें तो रानी मुखर्जी की लगती हैं ।

जितनी खूसूरत आँखें , उतनी खूबसूरत रचना ।
बहुत खूब ।

प्रवीण पाण्डेय said...

बस
गजब से।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही बढ़िया गजल है!
--
इसके अल्फ़ाज़ बहुत ही खूबसूरत हैं!

तिलक राज कपूर said...

ईद की रात किसी ने ग़ालिब साहब से पूछा कि मियॉं रोज़े रखे, उन्‍होंने कहा 'एक नहीं'। लोगों ने सोचा कि चलो बाकी तो रखे, एक नहीं भी रखा तो क्‍या हुआ। कफछ ऐसा ही आपकी ग़ज़ल पर है कि कोई पूछे कि इस ग़ज़ल में कितने शेर कमज़ोर हैं तो मैं कहूँगा कि 'एक नहीं'। अब समझने वाले समझा करें अपनी तो टिप्‍पणी हो गयी।

ताऊ रामपुरिया said...

शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से


बहुत ही सुंदरतम.

रामराम

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
कुछ नहीं चाहिए रब से गुरुदेव... हमरा त रब से एक्के बातचीत होता है
जानकर ये ख़ुदा से कुछ न कहा
वो मिरा हाल जानता होगा.
बाकि त आपका गज़ल के बरे में हम पहिलहिं कह दिए हैं ई गजल खाली सब्द बइठाने से नहीं आता है..जीने से आता है... अऊर हर सेर हमरा बात का सचाई का गवाह है!

शोभना चौरे said...

आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्‍मनी हुई तब से

हमारे तो मन में बस गया है ये शेर अबसे |
बहुत बहुत अच्छी रचना |

दीपक 'मशाल' said...

पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
क्या खूब बनाया.. आपको और गुरुदेव दोनों को नमन.. और इन मैडम ने क्या सनसिल्क शैम्पू किया है क्या बालों में? :P

राम त्यागी said...

नीरज जी , बहुत बढ़िया गजल प्रस्तुत की है आपने

Abhishek Ojha said...

गजल के साथ साथ इस बार फोटू भी चकाचक है :)

Arvind Mishra said...

सजीव चित्र और अल्फाज की जुगलबंदी मन मोह गयी

अमिताभ मीत said...

ओह ! निहायत ही सीधी सादी और मासूम सी ग़ज़ल !!

कि बेहद मुश्किल और कातिल ग़ज़ल ?

विनोद कुमार पांडेय said...

जो न समझे नज़र की भाषा को
क्‍या कहा जाये फिर उसे लब से

एक सुंदर एहसास भरी ग़ज़ल..प्रेम में तो आँखो की भाषा चलती है..जो वो समझ ना पाए उसे क्या समझाएँ..नीरज जी धन्यवाद बढ़िया ग़ज़ल पढ़वायी आपने...आभार

sanu shukla said...

बहुत ही सुंदर और बेहतरीन ग़ज़ल हैं भाईसाहब...!!

रचना दीक्षित said...

शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से

तुम अकेले तो हो नहीं 'नीरज'
ज़िन्दगी किसकी कट सकी ढब से

बहुत खूबसूरत गज़ल

haidabadi said...

नीरज साहिब
आपकी छोटे बहर में ग़ज़ल देखी बहुत अच्छी लगी
मासूम ने मायूस नहीं किया
खास कर यह शेर आप की जात पर ख़ूब उतरता है

पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से

चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क

सुशील छौक्कर said...

वाह नीरज जी। नजर की भाषा को क्या खूब लिखा है।
आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्‍मनी हुई तब से

अतिसुन्दर।

Himanshu Mohan said...

बहुत सुन्दर!
अभी दो चार बार पढ़ लूँ - जी नहीं भर रहा…

अर्चना तिवारी said...

पहले लगता था वो भी औरों सा
दिल मिला तो लगा जुदा सब से....बहुत खूबसूरत गज़ल

Manish Kumar said...

नीरज भाई अच्छा लिखा है पर वो मज़ा नहीं आया जो अक्सर आपकी ग़ज़लों को पढ़ने में आता है।

Milind Phanse said...

बहुत सुंदर गज़ल कही है आपने.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

बाऊ जी,
ये बिल्लोरी आँखों वाली मैडम का पता बता दीजिये.....
चलिए, नहीं तो इन्हें मेरा पता बता दीजिये.....
ग़ज़ल उम्दा, कल के ब्लोगर्स लाजवाब, और मधुबाला............ ह्म्म्मम्म्म्म!!!!
सादर
आशीष :)

sumant said...

बहुत सुन्दर गज़ल्। दिल को छू गई।

अनामिका की सदायें ...... said...

शुक्रिया इस गज़ल को पेश करने के लिए.

www.dakbabu.blogspot.com said...

बहुत खूबसूरत गज़ल..दिल को छू गई।
कभी 'डाकिया डाक लाया' पर भी आयें...

डॉ .अनुराग said...

हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से ?

जालिम सवाल है.....ओर कैफियत भी...

Rajeev Bharol said...

नीरज जी,
आपकी गज़ल पढ़ कर मन खुश हो जाता है.

"शाम होते ही जाम ढलने लगे
होश में भी मिला करो शब से"

वाह.

daanish said...

हमेशा ही की तरह
खूबसूरत , मुरस्सा , और असरदार ग़ज़ल ....
आपके फन को उजागर करती हुई
कामयाब रचना .... वाह !
आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्‍मनी हुई तब से
मतले के शेर से आगे बढ़ पाऊँ तो कुछ कहूं
और
आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
जीवन-दर्शन से जुदा उम्दा बयान ....
इसके बाद
शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से
एक पैगाम ,,
एक आह्वान की तरह गरजता हुआ शेर
आपकी ग़ज़लों का दीवाना हूँ जनाब !!
मुबारकबाद

daanish said...

टंकण में त्रुटि हुई,,,, सो,,,,
ऊपर टिप्पणी में .....
जीवन-दर्शन से (जुदा) उम्दा बयान की जगह
जीवन-दर्शन से (जुड़ा) उम्दा बयान पढ़ें ....

Archana Chaoji said...

गा चुकी मै ------रहा ही नहीं गया-----

नीरज गोस्वामी said...

अर्चना जी ने बड़ी ख़ूबसूरती से इस ग़ज़ल को गाया है आप भी इस लिंक पर जा कर उन्हें सुन सकते हैं...आपकी जानकारी के लिए बता दूं के अर्चना जी शौकिया गायिका हैं ....


http://sanskaardhani.blogspot.com/2010/08/blog-post_5444.html

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

Her शेर दिल-फरेब है नीरज जी! किस एक की तारीफ करूँ. बस एक लफ्ज़ है कहने को..'लाजवाब'wah aur sirf wah!

Shiv said...

शाम होते ही जाम ढलने लगे
होश में भी मिला करो शब से

शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से

तुम अकेले तो हो नहीं 'नीरज'
ज़िन्दगी किसकी कट सकी ढब से ?

अद्भुत!
हर एक शेर कुछ न कुछ सिखा देता है.

सुनीता शानू said...

किस शेर की तारीफ़ की जाये नीरज जी, आप हमेशा ही खूबसूरत लिखते हैं और जब उसपर नज़र सुबीर भाई की पड़ जाये तो क्या कहने! और हाँ केक खाने से अधिक कविता सुन के वाह वाह कहने का शुक्रिया।

सुनीता शानू

Prem Farukhabadi said...

बहुत सुंदर गज़ल!

शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से

हर्षिता said...

बहुत सुन्दर गज़ल है।

डिम्पल मल्होत्रा said...

हो गया इश्क आप से जानम
जब कहा, पूछने लगे कब से...gazab...

hem pandey said...

'शुभ मुहूरत की राह मत देखो
मन में ठानी है तो करो अब से'
- हौसलापरस्त.

गौतम राजऋषि said...

"जब कहा, पूछने लगे कब से"...वल्लाह! दुनिया भर की मासूमियत महज दो मिस्रों में???