Monday, March 15, 2010

लगा के ठुमके तेरी गली में



"फागुन" याने हंसी ख़ुशी और उल्ल्हास का महीना...फाग धमाल का महीना...आज फागुन एक बरस के लिए हमसे विदा ले रहा है और ऐसे महीने की विदाई हमें हँसते हुए करनी चाहिए . ये ही सोच कर मैंने अपनी हज़ल, जो गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर हुए तरही मुशायरे में शिरकत कर चुकी है, को आज अपनी ब्लॉग पोस्ट के लिए चुना है. उम्मीद है सुधि पाठक जो उसे वहां नहीं पढ़ पाए इसका आनंद यहाँ उठाएंगे और जिन्होंने वहां पढ़ा है वो इसे यहाँ दुबारा पढ़ कर मुस्कुराएंगे.


कमीने, पाजी, हरामी, अहमक, टपोरी सारे, तेरी गली में
रकीब* बन कर मुझे डराते मैं आऊँ कैसे, तेरी गली में
रकीब* = प्रतिद्वंदी

खडूस बापू, मुटल्ली अम्मा, निकम्मे भाई, छिछोरी बहनें
बजाएं मुझको समझ नगाड़ा ये सारे मिल के, तेरी गली में

हमारी मूंछो, को काट देना, जो हमने होली, के दिन ही आके
न भांग छानी, न गटकी दारू, न खाये गुझिये,तेरी गली में

अकड़ रहे थे ये सोच कर हम,जरा भी मजनू से कम नहीं हैं
उतर गया है, बुखार सारा, पड़े वो जूते, तेरी गली में

तमाम रस्‍ता कि जैसे कीचड़, कहीं पे गढ्ढा कहीं पे गोबर
तेरी मुहब्‍बत में डूबकर हम मगर हैं आये तेरी गली में

किसी को मामा किसी को नाना किसी को चाचा किसी को ताऊ
बनाये हमने तुम्हारी खातिर ये फ़र्ज़ी रिश्ते तेरी गली में

भुला दी अपनी उमर तो देखो ये हाल इसका हुआ है लोगों
पड़ा हुआ है जमीं पे 'नीरज' लगा के ठुमके तेरी गली में

53 comments:

संजय भास्‍कर said...

dhamake daar parastuti...

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

Astrologer Sidharth said...

फ्लो में ही आ रहा था सो यहां चिपका रहा हूं होली की मौज के साथ ही...

गम खा के आखिर हमने भी
दिया एक कमेंट तेरी गली में

मजा आ गया खुद कसम
लुटते देख तुझे उसकी गली में

अजित वडनेरकर said...

क्या बात है। गली भर के लोगों से मिलवा दिया आपने। बढ़िया है...

kshama said...

Ha,ha,ha...aaj waqayi hansi kee zaroorat mahsoos ho rahi thi..man kisi karan udas ho raha tha...

डॉ .अनुराग said...

आईला.....इत्ती गाली....गन्दी बात

vandana gupta said...

bahut sundar prastuti.......pankaj ji ke blog par bhi padhi thi.

ताऊ रामपुरिया said...

हे परमात्मा, इस गली मे तो ताऊ जाया करता था. आप क्या करने आगये थे इस गली में?:)

बहुत सुपरहिट गजल. बस आपकी आवाज मे पोडकास्ट कर देते तो आनंद आजाता.

रामराम.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत आनन्द आया!
चोला प्रसन्न हो गया!

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया :)

अमिताभ मीत said...

क्या बात है नीरज जी !! मस्त रंग हैं ये भी ..... भई वाह !

समयचक्र said...

सुन्दर प्रस्तुति ..आनंद आ गया

Apanatva said...

bahut mazedar.....

डॉ. मनोज मिश्र said...

कमीने, पाजी, हरामी, अहमक, टपोरी सारे, तेरी गली में
रकीब* बन कर मुझे डराते मैं आऊँ कैसे, तेरी गली में..
वाह जी वाह..

pallavi trivedi said...

वाह वाह...आनंद आ गया पढ़ के! होली की शानदार पेशकश है!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या कहूं? यहां तो लाइन लगा दी आपने....

Shiv said...

हा हा हा...बहुत मजेदार. लगा जैसे होली वापस आ गई.

पारुल "पुखराज" said...

तब नही पढ़ी...अब पढ़ी ...बहुत बहुत मुश्किल है इस तरह लिखना :)

सुशील छौक्कर said...

कमाल की गली है जी। जिदंगी की इस गली में भी घूम आए। बहुत प्यारा अलग सा लिखा है। लगा होली दुबारा खेल ली हमने।

Udan Tashtari said...

दुबारा पढ़्कर मुस्कराये. :)

तिलक राज कपूर said...

इस उम्र में ऐसी दुष्‍टता भरे ख़याल, हे राम, ये ज़माना कहॉं जा रहा है। मोहल्‍ले वालों ने पढ़ ली तो? मुंबई में शरीफ़ लोग बसते होंगे वरना यहॉं भोपाल में तो ऐसी बातें करने वाले को आसपास सात मोहल्‍लों तक न रहने दें लोग।
अय-हय अब आपका क्‍या किया जाये?

Abhishek Ojha said...

तेरी गली में तो अब बचा ही नहीं कुछ करने को :)

डॉ टी एस दराल said...

नीरज जी , होली की मस्ती चल ही रही है अभी । चलिए अब तो पूरे साल इंतज़ार करना है।

पंकज सुबीर said...

और ये राज भी जान लें सब कि ये ग़ज़ल नीरज जी ने एक ही सिटिंग में लिख डाली है । होली की परूी मस्‍ती भरी है इस ग़ज़ल में । इस ग़ज़ल को देखकर ही भभ्‍भड़ कवि भटियारे ने हथियार डाल दिये कि अब मैं क्‍या लिखूं सब कुछ तो नीरज जी ने ही लिख दिया ।

Mansoor ali Hashmi said...

रंगीली-भंगीली शायरी....

डरे,बजे भी पिटे,चढ़े फिर गिरे तो देखा कि हमने नीरज,
कमल है कीचड़ के बीच में भी,पड़े हुए है तेरी गली में.
-MANSOOR ALI HASHMI
http://aatm-manthan.com

Chandan Kumar Jha said...

तौबा-तौबा उस गली में न जाना ।

राज भाटिय़ा said...

कमीने, पाजी, हरामी, अहमक, टपोरी सारे, तेरी गली में
रकीब* बन कर मुझे डराते मैं आऊँ कैसे, तेरी गली में
अरे भिखारी का रुप धारण कर के जाये.... कोई नही पकड पायेगा आजमाया हुआ तरीखा.
बहुत सुंदर लिखा आप ने, अब जरा उस गली का अत पत भी लिख दो हम तो उस गली से दस गलिया दुर से भी ना निकले जी

Renu goel said...

तभी तो समझाया था कि होली के दिन घर से बाहर मत निकलना ...अब भुगतो ....

M VERMA said...

तमाम रस्‍ता कि जैसे कीचड़, कहीं पे गढ्ढा कहीं पे गोबर
तेरी मुहब्‍बत में डूबकर हम मगर हैं आये तेरी गली में

गली का नाम और नम्बर बताइए
अगली बार आप मत जाइए

बहुत खूब

Yogesh Verma Swapn said...

mast.

मनोज कुमार said...

बेहतरीन। लाजवाब।

"अर्श" said...

अहमक नई गाली सिख ली इसी बहाने आखिर बड़ों से कुछ ना कुछ तो सीखने ही चाहिए... हज़ल
उस्तादाना है ... बधाई हो फिर से ...


अर्श

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आपने सच ही कहा है...और साबित भी कर दिया कि हंसना हंसाना आपकी फ़ितरत है.....

मेरे चार मिसरे शायद आपने जज़्बात पर पढ़े होंगे-
वफ़ा मुहब्बत ख़ुलूस जिनमें हैं रंग सारे तेरी गली में
मेरे भी कूचे में फूल महकें तो खुशबू जाये तेरी गली में
मैं भाईचारे के गीत लिखूं तू अपनी आवाज़ से सजा दे
हों मेरे लब पर तेरी सदाएं, मेरे तराने तेरी गली में.

शरद कोकास said...

हमेशा गुजरते रहे यहाँ से ।

अनूप शुक्ल said...

जय हो!

विनोद कुमार पांडेय said...

bahut badhiya koi baat nahi kabhi kabhi aisa ho jata hai aasan nahi hota kisi ke gali me kisi se mil pana ...badhiya rachana badhai

Khushdeep Sehgal said...

तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद,
होली पर तो घर से भी न निकलेंगे आज के बाद...

जय हिंद...

नीरज गोस्वामी said...

E-Mail received from Sh.Chaand Shukla, Denmark :

Neeraj bhai jan
kamal kartay ho aap!

Bat karengay

Chaand

नीरज गोस्वामी said...

Wah ji.. wah.. bahut khoob Neeraj Uncle.. Maja aaya gaya..
Abb kabhi hamari gali mein bhi aa jaao... yaar.. :-)

Love..

Deepika & Ratan

देवमणि पांडेय Devmani Pandey said...

लगे चमकने चाँदी चाहे बालों पर
रहे थिरकता मन मस्ती की तालों पर
इसी भावना से हम आज लगाते हैं
आदर सहित गुलाल आपके गालों पर

बहुत मज़ेदार हज़ल है ! ख़ुश रहो! आपकी गली में दिलदार लोगों की बड़ी भीड़ है। कुछ को मेरी गली का भी पता दीजिए।

Puja Upadhyay said...

इधर आये बहुत वक्त गुज़र गया था मुझे, इस हज़ल ने तो हंसा हंसा कर एक ही दिन में काम तमाम कर दिया :)
सजाब कि लिखी है नीरज जी...इतने दिन बाद भी हम होली कि फगुनाहट में भीग गए.

Roshani said...

ha ha ha..
Majedar prastuti Neeraj ji.
maf kariye deri se comment karne ke liye.

सीमा रानी said...

आदरनीय नीरज जी ,
सबसे पहले तो आपको नवसम्वत्सर की शुभकामनाये .इस साल भी और साल दर साल आप हम सबको nai nai पुस्तकों से रूबरू करते रहें ,हँसाते रहें .कविता किरण जी की शायरी से परिचित करवाने के लिए बहुत बहुत आभार .फागुन की बिदाई के लिए लिखी हज़ल भी पसंद आई .धन्यवाद

Urmi said...

वाह वाह क्या बात है! बहुत ही बढ़िया और सुन्दर प्रस्तुती!

वीनस केसरी said...

इस गजल में क्या नशा है क्या बताएँ आपको
दिल तो करता है कि ले के लोट जाएँ आपको

हा हा हा

होली का नशा अब उतारिये भी नीरज जी होली तो हो ली :):):)

हरकीरत ' हीर' said...

कमीने, पाजी, हरामी, अहमक, टपोरी सारे, तेरी गली में
रकीब* बन कर मुझे डराते मैं आऊँ कैसे, तेरी गली में

वल्लाह .....गलियों से सजे शे'र पहली बार देखे .........

किसी को मामा किसी को नाना किसी को चाचा किसी को ताऊ
बनाये हमने तुम्हारी खातिर ये फ़र्ज़ी रिश्ते तेरी गली में

आपने जवानी में जरुर ऐसा ही किया होगा तभी ये आडिया आया ......है न .......????

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
धमाकेदार हज़ल है, ठुमके आप ही नहीं हज़ल भी लगा रही है और लुभा रही है

सुनील गज्जाणी said...

छिछोरी बहनें
बजाएं मुझको समझ नगाड़ा ये सारे मिल के, तेरी गली में

नीरज जी
मैं अब तक गंभीर रचनाये ही होली की लिखा करता था , आप को पढ़ने के बाद लगा की जो हंसा हंसा कर लोट पोत करदे वो भी लिखना चाहिए,
saadar

सुशीला पुरी said...

मुस्कान से कुछ आगे चली गई !!!!!!!!!

BrijmohanShrivastava said...

मै इसे शोहरत कहूं या मेरी बदनामी कहूं | मेरे आने से पहले मेरे अफ़साने पहुंचे ' तेरी गली में '

Alpana Verma said...

वाह !क्या बात है! :)
मज़ेदार हज़ल.

SomeOne said...

lga ke thumke teri gali me...


Wonderful........

Unknown said...

पड़ा हुआ है जमीं पे 'नीरज' लगा के ठुमके तेरी गली में
वाह साब मजा आ गया। ईश्वर ने बहुत ही खूब नेमत बख्शी है आपको।