Monday, November 16, 2009

छोटी सी मुस्कान भिडू


मुंबई के लोग जितने दिलचस्प हैं उतनी ही दिलचस्प है उनकी भाषा. ये भाषा जो न मराठी है और ना ही हिंदी ये अजीब सी भाषा है, जिसका भारतीय संविधान में दी गयी भाषा सूची में कोई जिक्र नहीं है लेकिन इसे बोलने सुनने में जो आनंद मिलता है उसे बयां नहीं किया जा सकता. ये दिल से बोली जाती है और दिल से ही सुनी जाती है.

आज की ग़ज़ल उसी भाषा में कही गयी है ,जिसे मुंबई वाले दिन रात बोलते नहीं थकते. उम्मीद है भाषा विद इस प्रयोग से नाराज़ नहीं होंगे, क्यूँ की ग़ज़ल की भाषा अगर रोज मर्रा वाली हो तो उसका मजा ही कुछ और है. जो लोग भाषा का आनंद नहीं उठाना चाहते वो ग़ज़ल में कही गयी बातों का आनंद लें. मतलब आनंद लेने से है जैसे भी हो लें.
.
रदीफ़ में भिडू शब्द प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ है दोस्त, मित्र, सखा...


बे-मतलब इन्सान भिडू
होता है हलकान भिडू

अख्खा लाइफ मच मच में
काटे वो, नादान भिडू


प्यार अगर लफड़ा है तो
ये लफड़ा वरदान भिडू


कैसे हम बिन्दास रहें
ग़म लाखों, इक जान भिडू


बात अपुन की सिंपल है
दे, फिर ले सम्मान भिडू


जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू

फुल टू मस्ती में गा रे
तू जीवन का गान भिडू


सब झगडे खल्लास करे
छोटी सी मुस्कान भिडू

जीवन है सूखी रोटी
तू 'मस्का-बन' मान भिडू

'मस्का-बन' मुंबई वासियों का बहुत प्रिय आहार है...इसमें दो पाव के बीच, जिसे 'बन' कहते हैं खूब सारा मख्खन (मस्का) लगा के खाया जाता है...मुंबई के हर गली नुक्कड़ पर आपको इसका ठेला मिल जायेगा....

'खोखा' 'पेटी' ले डूबी
हम सब का ईमान भिडू

('खोखा' 'पेटी' मुम्बईया जबान में एक करोड़ रूपये और एक लाख रूपये के लिए प्रयुक्त प्रचिलित शब्द हैं.)

'नीरज' उसकी वाट लगा
जो दिखलाये शान भिडू



(इस ग़ज़ल को गुरुदेव पंकज सुबीर का आर्शीवाद प्राप्त है)

74 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मुंबई के लोग जितने दिलचस्प हैं उतनी ही दिलचस्प है उनकी भाषा. ये भाषा जो न मराठी है और ना ही हिंदी ये अजीब सी भाषा है, जिसका भारतीय संविधान में दी गयी भाषा सूची में कोई जिक्र नहीं है लेकिन इसे बोलने सुनने में जो आनंद मिलता है उसे बयां नहीं किया जा सकता. ये दिल से बोली जाती है और दिल से ही सुनी जाती है.

yeh baat aapne bilkul sahi kahi....

Mumbaiya bhaasha mein aapki ghazal bahut achchi lagi....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर कविता भिडू, अरे नहीं नीरजी जी .. क्षमा करे, :) क्या है कि मुंबई में देश के हर कोने का निवासी राकर ठहरता है इसलिए भाषा गडबडा गई, मैं भी जब ५-७ रोज के लिए बोम्बे (जानबूझ कर लिखा ) जाता हूँ तो वहा टैक्सी द्रीवारो के साथ बोलते बोलते ऐसी आदत पद जाती है कि दो-तीन दिन वापस थिखाने पर पहुच कर भी उन्ही शब्दों को इस्तेमाल करता हूँ !

Kusum Thakur said...

वाह नीरज जी अपने तो बम्बइया भाषा में एक अलग ही जान डाल दी है !!! अति सुन्दर !!!

Urmi said...

बेहद सुंदर लगा आपका ये पोस्ट ! कुछ अलग सा बिल्कुल मुंबई की भाषा में आपने बड़े ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है ! बधाई !

Sanjay Grover said...

जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू
achchha hai.

prayog hote rahne chaahiye.

अजय कुमार said...

बिंदास लिखेला है भिडू , बोले तो एकदम मस्त

कंचन सिंह चौहान said...

जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू

aha satyavachan sir.....!!!

Himanshu Pandey said...

मुझे तो लगता है, इस भाषा की पहली खूबसूरत गजल । शानदार । एक दूसरा ही आयाम ।

Rajeysha said...

फुल टू मस्ती में गा रे
तू जीवन का गान भिडू

......................
कमेंट तो इसमें शामि‍ल ही है।

rashmi ravija said...

हा हा ...पहली बार इन शब्दों को एन्जॉय कर रही हूँ....वरना हमेशा बच्चों को डांटती रहती हूँ,ऐसे शब्दों के प्रयोग पे....बहुत ही अच्छी तरह पिरोया है इन शब्दों को...ग़ज़ल भी अर्थपूर्ण है

Pratik Maheshwari said...

वाह भिडू.. क्या लिखा है.. अक्खा ग़ज़ल में छाया रहा भिडू.. बाकी सब ग़ज़ल को तो खल्लास ही कर दिया.. :)

रंजन (Ranjan) said...

मस्त है भिडू.. झकास..

Prem said...

नीरज भाई बहुत बढ़िया ,ग़ज़ल में भाषा का यह प्रयोग प्रशंसनीय है । आपके नए नए अंदाज़ हमें तो खूब भाते हैं .शुभकामनायें ।

Abhishek Ojha said...

रापचिक :)

दिगम्बर नासवा said...

आप जो नये नये प्रयोग करते हैं वो कमाल के होते हैं नीरज जी ......... आम लोगों को जोड़ते हैं रचना के माध्यम से ...


प्यार अगर लफड़ा है तो
ये लफड़ा वरदान भिडू

वाह .... क्या बात है नीरज जी ...... प्यार में लफडा तो होना ही है ..... मुंबई या जहाँ कहीं

बात अपुन की सिंपल है
दे, फिर ले सम्मान भिडू

ये भी सच है एक हाथ ले .... एक हाथ दे ........ कमाल की बात कही है आपने शेरो में .......

सागर said...

मुन्ना भाई जैसे चलते शेर है भिडू... नयी गजल लग रही है भिडू...

vandana gupta said...

prayog karte rahna chahiye.........aakhir prayog karne par hi to avishkar hote hain..........ye tarika bhi bahut hi pasand aaya.

अर्कजेश said...

वाह वाह मजा आ गया ।

क्‍या झक्‍कास गजल लिखी है
मस्‍त हो गई जान भिडू

ghughutibasuti said...

वाह,गजब! यह तो किसी फिल्म का गाना हो सकता था !
घुघूती बासूती

"अर्श" said...

ये तेवर और नया रूप , ऊपर से तरह तरह के प्रयोग बस आपके बस की ही बात है नीरज जी भिडू वाली बात बहुत जची...
कमाल करने में आप किस तरह माहिर हैं वो दिख रहा है ... हर शे'र उम्दा है... बहुत बहुत बढ़ाई कुबूल करें... आप


आपका
अर्श

Ankit said...

नमस्ते नीरज जी,
ऐ भिडू क्या रापचिक ग़ज़ल चिपकाया है,
मज़ा आ गया, कुछ शेर तो छु गए जैसे
अख्खा लाइफ मच मच में
काटे वो, नादान भिडू

प्यार अगर लफड़ा है तो
ये लफड़ा वरदान भिडू

सब झगडे खल्लास करे
छोटी सी मुस्कान भिडू

रश्मि प्रभा... said...

bhai ne likha hota to kahti -
kya mast likha hai bhidu

निर्मला कपिला said...

जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू

सब झगडे खल्लास करे
छोटी सी मुस्कान भिडू
क्या रंग जमाया है भिडू ने कमाल है बधाई भिडू जी को

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भिड़न्त चालीसा बहुत बढ़िया रही!

मनोज कुमार said...

आपकी मुम्बइया(व्यावहारिक) सूझ-बूझ की दाद देनी पड़ेगी, यह रचना आम लोगों के साथ-साथ खास लोगों में भी जगह बना लेगी और वो खास लोग बोलेंगे .. 'क्या झक्कास लिखेला है, भीड़ू, तूने तो आज सबकी वाट्ट लगा दी !!!'

सुशील छौक्कर said...

सबसे पहले तो नीरज जी मुस्कराया तो नही बस जमकर खिलखिलाया। जब हँसी रुकी तब जाकर आपकी नए स्टाईल की रचना पढी। वाह गजब की है। उसके जरिए एक सही संदेश दिया। अजीब उलझन में हूँ कि अपनी पसंद की कौन सी लाईन के बारें में बताऊँ। हर लाईन बेहतरीन और गजब की है। सच पूछिए तो दिल खुश हो गया। और हाँ नैना बेटी तो इस फोटो को देखकर खूब खुश होगी।

Udan Tashtari said...

प्यार अगर लफड़ा है तो
ये लफड़ा वरदान भिडू


-ऐसा!! बहुत सही भिडू...मजाक मजाक में गहरी चोट करते हो भाई!!

रंजू भाटिया said...

बढ़िया सुन्दर प्रयोग ...सच कहा है इस में सभी शेर बहुत सुन्दर बन पड़े हैं ..शुक्रिया

Anonymous said...

क्या झक्कास ग़ज़ल है.. बोले तो एक दम रापचिक :)

देवेन्द्र पाण्डेय said...

क्या मस्त गज़ल लिक्खा तूने
इसमें तो है जान भिड़ू

मेरा अंदेशा पक्का है
बनेगा फिल्मी गान भिड़ू

देवेन्द्र पाण्डेय said...

प्राचीन शहरों की बोलचाल की भाषा में जो मिठास है उसका ज़वाब नहीं
जैसे बनारस की काशिका बोली में इसकी दाद देनी हो
तो कहूंगा-
"आज नीरज भैया ऐसन गज़ल लिखले हौवन की मजा आ गयल
पढ़बा तऽ तू हौ हिले लगबाऽ
हाँ राजा, मजा आ गयल, चौचक दर्शन छिपल हौ एहमें! झकास...!

अपूर्व said...

जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू

कमाल है..कमाल है..इसे कहते हैं ग़ज़ल !!!
हम तो यही कहेंगे कि...
फ़ुल-टू नशा चढ़ेला है
और जरा सी छान भिड़ू

डॉ टी एस दराल said...

जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू

बहुत सही बात कही है.
और ये अंदाज़ तो बहुत भाया, भाया (भैया).

शोभित जैन said...

मस्त ग़ज़ल अब्बी पढ़ा तो,
तबियत हुआ झक्कास भिडू

वाह वाह ... नीरज जी ...अंदाज़ पसंद आया

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मजा आ गया भिडू .
नीरज जी की यह अदा भी झक्कास

हरकीरत ' हीर' said...

ये कैसी भाष लिख मारी
मै तो हूँ हैरान रे भिडू

क्या क्या रंग दिखाता है
तू कितना शैतान रे भिडू

वाह ....तेरे जलवे नित नए
मैं तो हूँ नतमस्तक रे भिडू

राज भाटिय़ा said...

नीरज भिंडू जी यह लिये आप की इस सुंदर पोस्ट के बदले एक मस्का भरी टिपण्णी वाट लगा के.
वेसे मुझे भिंडू ओर वाट का अर्थ मालूम नही आप ने लिखा है तो जरुर अच्छा ही होगा.
धन्यवाद

प्रवीण said...

.
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.
नीरज जी,
आपकी यह गज़ल पाठकों को लम्बे अर्से तक याद रहेगी...
और हाँ... नहीं कर रहा मैं मजाक भिड़ू!

Anita kumar said...

रापचिक भिडू

Alpana Verma said...

ha ha ha!
kya gazal likhi hai..waah!
mumbayee bahsha mein Jhakkas!

us par yah chitr bhi!

pran sharma said...

MUMBAEEYA HINDI ZABAAN MEIN AAPKEE
GAZAL MUN MEIN GUDGUDEE PAIDA KAR
GAYEE HAI.BAHUT KHOOB.

Asha Joglekar said...

क्या गज़ल कह डाली रे
तुझको रख्खे राम भिडू ।

भिडू पार्टनर को भी बोलते हैं ताश या कैरम के खेल मे ।

रविकांत पाण्डेय said...

आदरणीय नीरज जी,
गज़ल ने मन में आनंद की सरिता बहा दी। जन-भाषा की गज़ल ही सच्ची गज़ल हो सकती है। शेर ऐसे हैं कि एक बार जुबान पर चढ़े तो उतरने का नाम नहीं लेते। बहुत-बहुत बधाई।

पंकज सुबीर said...

नीरज जी जानते हैं जब तुलसीदास जनभाषा में रामचरित मानस लिख रहे थे तो संस्‍कृत की ओर से बहुत हंगामा मचाया गया था । तुलसीकृत मानस की प्रतियां तक नष्‍ट करने की कोशिश की गई थी । किन्‍तु आज समय ने बताया कि आम आदमी की भाषा में मानस की रचना का निर्णय लेकर तुलसी ने कितना सही काम किया था 1 हम सब एक ही बात गाते हैं लोग साहित्‍य से दूर हो रहे हैं । किन्‍तु ये नहीं देखते कि उनको साहित्‍य से दूर कौन कर रहा है । हम ही तो कर रहे हैं इतना क्लिष्‍ट साहित्‍य रच कर हम ही तो है जो जन को साहित्‍य से दूर कर रहे हैं । आपकी इस प्रकार की ग़ज़लों का मैं हमेशा से प्रशंसक रहा हूं । इसलिये कि ये बोली की काव्‍य है । भाषा का अंग होती है बोली । बोली के शब्‍द भाषा में टहलते हुए आते हैं । और रच पच जाते हैं । मुम्‍बइया बोली में भी एक प्रकार का लास्‍य है । वो भले ही कुछ सीधी और सपाट है किन्‍तु उसका भी अपना आनंद हैं । ये भी सच है कि ग़ज़ल की नाजुकता और नफासत के हिसाब से ये बोली कहीं से भी उपयुक्‍त नहीं है किन्‍तु ग़ज़ल भी तो अपना चोला बदल चुकी है । अब वो केवल महबूबा की नहीं रही अब तो वो आम आदमी की हो गई है और यदि आम आदमी की हो गई है तो उसको आम आदमी की ही भाषा में बात करना होगा । आपकी बहुत अच्‍छी समझ है इस बोली को लेकर । इसलिये आपकी ग़ज़लों में ये बोली आकर चार चांद की तरह जगमगा उठती है । कुछ शेर बहुत अच्‍छे बन पड़े हैं जैसे सब झगड़े खल्‍लास करे छेटी सी मुस्‍कान भिड़ू । आप जानते हैं आपसे प्रेरणा लेकर मैं भी इसी प्रकार के एक रदीफ पर काम कर रहा हूं । रदीफ में दो अंग्रेजी के और एक मुम्‍बइया शब्‍द है । आखिर को मैं भी साल भर रहा हूं वहां मुम्‍बई में ।
खैर एक अच्‍छी ग़ज़ल के लिये बधाई ।

Dr. Amar Jyoti said...

बोलचाल की सहज-सरल भाषा में गहरी बातें।
बधाई।

नीरज गोस्वामी said...

E-mail received from Om Sapra Ji

shri neeraj ji
good,
very interesting.
-om sapra, delhi-9

Sudhir (सुधीर) said...

हंसती -हंसाती परन्तु गहरी बात करती हुई ग़ज़ल. आपकी प्रयोगधर्मिता बड़ी आनंददाई अभिव्यक्ति निकाली है :) चंद शेर तो लाजबाब है...

बात अपुन की सिंपल है
दे, फिर ले सम्मान भिडू

जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू

कुश said...

एक आध जयपुरिया ग़ज़ल भी ठोकी जाए भीडू..

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

वाह भाई वाह!! ये भाषा तो हीट है.
आपकी ग़ज़ल सुपर हीट है.

डॉ .अनुराग said...

नीरज' उसकी वाट लगा
जो दिखलाये शान भिडू


एक शोट अपनी ओर से भी........

Science Bloggers Association said...

गजब शायरी कही भिडू।
लो टिप्पणियाँ ढेर भिडू।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Roshani said...

bahut badiya...

गौतम राजऋषि said...

अक्खा लाइफ मच मच में काते वो नादान भिडू

या फिर

रब तो है इक डान भिडू

...उफ़्फ़्फ़, नीरज जी..क्या कहें! इससे पहले वाला प्रयोग भी जबरदस्त था और ये तो माशल्लाह है गुरूवर!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बंबई -- में आज भी अपनी जान बसी है :०
आपका बिंदास अंदाज़ -- वाह क्या खूब कहा !!

- लावण्या

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

aapki ye mumbaiya gazal to bahot jhakkas hai baap! apun bhi bahot enjoy kiya.lage raho munnabhai.
yahi nikalta hai munh se.bahut achhe.

Devi Nangrani said...

Meri Mumbai mujhe bahut pyaari hai aur usmein shamil ye shayari kya baat hai Neeraj is achoote radeef ke liye jo khoob sahaj sahaj kaam mein laya hai

Devi nangrani

योगेन्द्र मौदगिल said...

भाई जी,
क्या ग़ज़ल कही है आपने... इस जनभाषा में..
बधाई........

'प्यार अगर लफड़ा है तो,
ये लफड़ा वरदान भिडू..

गजब....

मेरी स्मृति ठीक-ठाक है तो एक-दो बार पहले भी इसी ज़बान में आपकी ग़ज़ले इसी ब्लाग में दर्ज़ हैं

सदा said...

सब झगडे खल्लास करे
छोटी सी मुस्कान भिडू

बहुत ही लाजवाब प्रस्‍तुति ।

Pawan Kumar said...

नीरज जी .........
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गयी!
....मराठी कल्चर को जी दिया आपने अपनी इस ग़ज़ल में...गज़ब की अभिव्यक्ति.... क्या बात हिया भिडू.....बहुत बहुत सुन्दर!

शोभना चौरे said...

लगता है भाईजी आपपर मुंबई अपना खासा असर छोडती जा रही है \मुंबई है ही ऐसी जगह जो सबको आकर्षित करती है
ये अलग बात है की कुछ इसको खम्खा अपनी जागीर समझते है |खैर
बहुत उम्दा गजल
भावनाओ की अभिव्यक्ति में भाषा का विज्ञान जरुरी नही |

Smart Indian said...

क्या मस्त लिखा है भिडू!

कडुवासच said...

जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू
... झक्कास है भिडु !!!!!

Apanatva said...

जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू

bahut hee prashansneey prayas raha aapka.aur sabhee ko bahut bhaya. comments kee lambee list gavah hai is baat kee. Badhai .

RAJ SINH said...

भिडू ,
अपन तो ऐसीच बोली बोलते पैदा हुआ .बाद में सीखा बचेला माल.

वाट लगा दी राज वाज की
तूने तो इस बार भिडू.

आपुन लोगों का चल जाये
तो खुजलाये ' राज ' भिडू. [ ठाकरे :) ]

कसम आपुन भी लेगा .'चुनकर'
तेरा ही अंदाज़ भिडू

फिर देखेंगा डान कौन है
देगा कान पे एक भिडू .

लोग समझ रहेला है की ये आपका पैला ' मुम्बैया ' है . पहले वाले का बी लिंक ठोक दे न भिडू ! बताना मत भूलना की अपुन ने बहुत पैलेच ऐसा लिखने के वास्ते तेरे को ' मस्का ' बी मारा था :) .
बोले तो आप ने एक कम्प्लेंट किया था अपन के पोस्ट पर की अपुन है किदर .अपन बी हाजिर हो गयेला है ,इदर बी उदर बी .देख लेना भिडू !

शरद कोकास said...

हम तो तुमको भाई बोला
तुम हमकू बोला भाईजान भीड़ू

प्रकाश पाखी said...

इस रचना में मौलिकता कूट कूट कर भरी हुई है...और सुन्दरता बेपनाह है....गुरुदेव का आशीर्वाद है तो फिर किसी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं रह जाती है...बधाई ..बड़े भाई!

ankur goswamy said...

maFt...

पंकज said...

यही भाषा का जीवन चक्र है, जब कुछ लोग हिन्दी मराठी को लेकर भिडे पडे हैं, वहाँ एक नयी भाषा पनप चुकी है और उन लडाकों की लडाई बेमानी है. और लीजिये, अब तो नीरज जी ने इस भाषा में साहित्य स्रजन भी शुरु कर दिया.

Prem Farukhabadi said...

bahut hi behtareen ghazal hai aapki.badhai!

श्याम जुनेजा said...

नीरज भाई यह आपकी गजल है ! भाई कमाल है भिडू ! बड़ी देर में खबर लग पाई ...

श्याम जुनेजा said...

sach mein kafi badi samajhdani hai apne bhidoo ki.. chitranjan se koi khas hi engin nikla hai

Shiv said...

गजल तो कमाल की है ही लेकिन इस गजल पर अंकुर की टिप्पणी ने गजल को चार चाँद लगा दिया है. एक झक्कास गजल पर ऐसी झक्कास टिप्पणी, बोले तो कमेन्ट, कभी-कभी ही मिलती है. बोले तो सोलिड जुगलबंदी.

सोलिड गजल को मिलती है
लैंग्वेज से पहचान भीडू

jogeshwar garg said...

इतनी झक्कास ग़ज़ल पर अपुन वैसे च टिप्पणी मार देते नीरज जी ! गुरूजी का नाम लेकर काहे को धमका रहेला ?

मुम्बईया इस बोली में
खूब डाल दी जान भिडू

वाह ! खूब मज़ा आ रहेला भिडू !

स्वप्निल तिवारी said...

kasam se...aisi ghazal na dekhi na suni......... tad tad tad tad tad tad tad......ek ek sher par taliyaan bajio hain meri janib se.... itna umda radeef...aur zabaan aisi ki ..bas maska.....heheh...ek dum qatal ghazal hai ..... :)


sadar