Monday, February 16, 2009

घटाओं की तरह छाये



भला करता है जो सबका, नहीं बदले में कुछ पाये,
कहां पेड़ों को मिलते हैं, कभी ठंडे घने साये

रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये

करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये

खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये

तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये

किया जब याद दिल से तब, यही चाहा कि वो "नीरज"
बहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये

( गुरुदेव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से सुधारी गई ग़ज़ल )

64 comments:

seema gupta said...

तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे

सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये

" अति सुंदर.....आज की ग़ज़ल और इस मनमोहक चित्र ने तो मन ही मोह लिया.....जिन्दगी के नेक कर्मो की तरफत इशारा करती ये ग़ज़ल बेजुबान कर गयी..."

Regards

रंजू भाटिया said...

रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये

नीरज जी आप के लिखे में जीवन का मर्म होता है ..बेहद खूबसूरत लिखा है आपने

Smart Indian said...

नीरज जी, कमाल कर दिया आपने! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल, बधाई!

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है अपने, मतला और मक्ता तो गज़ब ढा रहे हैं.
और ये दो शेर मुझे बहुत पसंद आए.......
"करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये"

"जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये"

Vinay said...

क्या बढ़िया ग़ज़ल कही है! वाह!

Ashutosh said...

bahut hi acchi kavita likhi hai aapne!

निर्मला कपिला said...

कर्म जिसने किया मुझ पर यकीनन गैर ही होगा
हुयी ये सोछ तब पुख्ता सितम अपनों ने जब ढाये
बहुत हे खूब सुरत अभिव्यक्ति है बधै

Shiv said...

गजल का हर एक शेर कितना कुछ कहता है. बहुत खूबसूरत गजल है.

खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये

शानदार!

रंजन (Ranjan) said...

"खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये"

बहुत सुन्दर..

Mumukshh Ki Rachanain said...

क्या खूब लिखा है.........
तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये

भाई आज इन्टरनेट का जमाना है, सो व्यक्तिगत रूप से न पंहुच पाने के कारण प्रेम से चावल के स्थान पर सप्रेम टिप्पणी पेश कर रहे हैं, कबूल फरमायें और यदि अधिक कुछ न हो सके तो कम से कम अपनी टिप्पणियों से तो नवाजें.

चन्द्र मोहन गुप्त

mehek said...

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको

पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
wah bahut hi badhiya,lajawaab.

समीर सृज़न said...

तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये
किया जब याद दिल से तब, यही चाहा कि वो "नीरज"
बहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये..
हमेशा की बहुत अच्छी रचना है..वैसे तो मैं कविता के शब्द कम ही समझ पता हूँ.लेकिन इस रचना मे वाकई कुछ है..बधाई..

Unknown said...

bahut sundar neeraj jee....

vandana gupta said...

gazal ke har sher ne rongte khade kar diye..............aisi sundar gazal jaise mala mein moti piro diye hon kisi ne.
waah ...........kya kahne.

ताऊ रामपुरिया said...

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये

बहुत शानदार और साथ ही शिक्षा प्रद भी.

रामराम.

कंचन सिंह चौहान said...

वाह वाह वाह वाह वाह वाह...! हर शेर मुकम्मल...! बहुत खूब ....

रश्मि प्रभा... said...

खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में

अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये

......kya baat kahi hai,waakai ise bayan karna mumkin nahi......

अभिषेक आर्जव said...

"रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये"
सुंदर भाव, श्रेष्ठ अभिव्यक्ति !

डॉ .अनुराग said...

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये

bahut achhe .neeraj ji.

ilesh said...

करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये

किया जब याद दिल से तब, यही चाहा कि वो "नीरज"
बहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये

Bahot khub Niraj ji....

सतपाल ख़याल said...

खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक ही कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये
बहुत उम्दा ग़ज़ल नीरज जी.

Dr. Amar Jyoti said...

'जिधर देखे उधर…'
बहुत ख़ूब!

Alpana Verma said...

चित्र तो बहुत खुबसूरत लाये हैं आप..यह तो एक कविता ख़ुद में समाये हुए है..

तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये
bahut hi sundar!
ग़ज़ल उम्दा लगी.

पंकज सुबीर said...

और हम भी एक कोने में बैठे तालियां ठोंक रहे हैं -तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़
नीरज जी मुझे तो ऐसा लगता है कि आप इतनी अच्‍छी ग़ज़लें बाबा रामदेव के सा‍थ कोई सांठ गांठ के कारण लिखते हैं क्‍योंकि उनका भी ये ही कहना है कि तालियां बजाने से आदमी निरोगी रहता है और आप भी सभी ब्‍लागरों को निरोगी रखना चाहते हैं ताकि वे ताली बजायं खूब बजायें और निरोगी रहें ।

स्वाति said...

"रखा महफूज़ अपने ही लिये, तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये"
उम्दा ग़ज़ल ...

Rahul kundra said...

करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये

bahut khub

Abhishek Ojha said...

'जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये'

कुछ ऐसा ही ख्याल आता है... अपने ऑफिस के आस-पास देखकर. शानदार !

Shastri JC Philip said...

मर्मस्पर्शी, भावनाओं से भरपूर!!

सस्नेह -- शास्त्री

सुशील छौक्कर said...

नीरज जी आप सच्ची बहुत सुन्दर लिखतें हैं। आप अपने अनुभवों को बडे ही सुन्दर और साधाहरण शब्दों से लिखते है जो मेरे दिल के करीब हो जाते हैं।
करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये

वाह।

Gyan Dutt Pandey said...

सदा की तरह बहुत उम्दा। मुझे तो यह पंक्तियां बहुत भाईं -
जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये

गौतम राजऋषि said...

अब नये शब्द-कोश कहाँ से लायें हम नीरज जी इस नायाब गज़ल की तारीफ़ में.....इससे पहले तो मैंने बगैर रदीफ़ वाली इतनी सुंदर गज़ल नहीं पढ़ी है
हर शेर लाजवाब
काश कि मैं नये तरीके से कुछ कह पाता

राजीव तनेजा said...

करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये

गज़ब के शेर...कमाल की गज़ल....

अब और क्या कहें?

बवाल said...

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
क्या बात है नीरज जी मान गए आपको भी और उस्ताद सुबीर जी को भी। बहुत बहुत बहुत आला लहजा ग़ज़ल पढ़ गए हैं आज आप। जिस दिन मुलाक़ात होगी, इस ग़ज़ल के लिए मिठाई आपसे छीन कर खाई जावेगी। हा हा। बहुत बधाई और आभार आपका इस ग़ज़ल के लिए।

राज भाटिय़ा said...

नीरज जी आप ने तो इस कविता मै भावनायो को हवा दे दी, बहुत सुंदर, यह चित्र भी बहुत सुंदर है,यह नोर्ध पोल के आसपास का चित्र है.
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये

-दिल में उतर गई पूरी ये गज़ल...बहुत खूब!!!

vijay kumar sappatti said...

aadarniya neeraj ji

namaskar

तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये

ab aapne itna accha likha hai ki taarif ke liye koi shabd nahi hai ..
maine bade dil se teen baar padh liya hai .. aur abhi bhi man ke honthon par aapki gazal ka swaad ahi .. wah ji wah

aapko dil se badhai

Preeti tailor said...

insaan ki ichchhaonki koi sima nahin hoti hai isi liye nadike kinare vah pyaasa hi rah jaata hai..
ati sundar bhav

Hari Joshi said...

छा गए आप भाईजान।

admin said...

भला करता है जो सबका, नहीं बदले में कुछ पाये,
कहां पेड़ों को मिलते हैं, कभी ठंडे घने साये


करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये

खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये


बहुत ही दिलकश शेर कहे हैं आपने, मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।

RAJ SINH said...

NEERAJ BHYEE,

INTEZAR TO KARWATE HAIN.......PAR KITANEE SAADGEE SE .......KOYAL KAHAAN GAYE ! KITNAA KAH JATE HAIN.

PANKAJ JEE SE THODA SA ASAHMAT.

AAPKO TO PADH YEK HAANTH TO DIL PE HEE DHARA RAH JATA HAI, AUR SIRF EK HAANTH SE MAIN TO TALEE NAHEEN BAJA PAATA........SIRF AAPKEE SHAAN ME ,SALAAM HEE KAR PATA HOON !

BAS AISE HEE MAUKE DETE RAHIYE !

NAMASKAR !

admin said...

रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये


खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये


बहुत दिलकश शेर कहे हैं आपने, मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।

हरकीरत ' हीर' said...

नीरज जी,
किसकी तारीफ करुँ और किसकी न करूँ...? कहाँ से लाते हैं ये खजाना ?

रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये

कमाल.....!!

खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये

गज़ब के शेर......!!

Sanjeev Mishra said...

करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये

bahut sundar ,shrman.
aaj bahut dinon baad aapke blog par aana hua or ghazal padh kar aisa laga ki aana saarthak ho gaya.
har sher apne men dohraane yogya.
dhanyvaad.

समयचक्र said...

खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में
अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये
मुबारकबाद,धन्यवाद.

अनुपम अग्रवाल said...

किया जब याद दिल से तब, यही चाहा कि वो "नीरज"

बहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये

तुम जब भी याद आये ,हुआ ये कि वो ''नीरज''
लिखा था जो तुमने दिल से, वो दिल पे गज़ब ढाये

roushan said...

एक एक शेर शानदार है
बहुत खूब

Manish Kumar said...

बढ़िया जनाब हर शेर पसंद आया...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

दिल से निकली,
दिल को छूने वाली
भाव पूर्ण ग़ज़ल.
नीरज जी,
हम तो हर बार सुदामा का
चावल ही लेकर आते हैं आपके ब्लाग पर
और आप भी कभी निराश नहीं करते.
आप सचमुच मन से, मन मोह लेने वाली रचना करते हैं.
==================================
शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Mansoor ali Hashmi said...

Wah! bhai Neera, aapto....

बहारों की तरह आये, घटाओं की तरह छाये

m.hashmi

नीरज गोस्वामी said...

dear neeraj ji
namastey,
Thanks forsending this beautiful poem giving credit to GURU DEV pankaj subbeer ji for its best possible format and shape.
Particularly following lines are more impressive and really most beautiful. again thanks and congratulations for the same:-

खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में

अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये

with regards
-Om Sapra,
N-22, Dr. Mukherji Nagar, delhi-9
981818 0932

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बेहतरीन गज़ल है।बधाई।

अभिषेक मिश्र said...

रखा महफूज़ अपने ही, लिये तो खाक है जीवन
बहुत अनमोल है मिट कर, किसी के काम गर आये
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति.

shama said...

Gazab rachnaa hai aapki...iski ekhi pankti kafee hai...jiskaa matitarth hai," pedonko kab ghanee chhanv miltee hai..!"
Kitnaa sahee hai...jo auronko thandak, aaram yaa chhanv dete hain, wo khud kitnee takleef paate hain..kisne jaana??

Meree postpe tipaneeke leye shukrguzaar hun.
Uspe aadharit kahanee post karni shuru kee hai,"kahanee" blogpe....transliteration aur conection itnaa slow hai yahanpe( mai out of stn hun), warna shayad aaj likhke pooree kar detee.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत बढिया लगी आपकी कविता नीरज भाई

दिगम्बर नासवा said...

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
तुझे दूँगा सभी कुछ आज, बोला कृष्ण ने हमसे
सुदामा की तरह चावल, अगर तू प्रेम से लाये


नीरज जी
बहुत ही अनोखे अंदाज़ की ग़ज़ल, नए विचार, नए शब्दों को संजो कर बेहतरीन लिखा है.
गुरु जी का आशीष तो हमेशा है ही आपके साथ.

ये दोनों शेर मुझे बहुत ही अच्छे लगे.

आप पिछले कुछ दिनों से मेरे ब्लॉग पर नही आ रहे, कुछ गलती हो तो माफ़ करें. आपकी चर्चा बहुत मायने रखती है मेरे लिए

pallavi trivedi said...

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको

पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये



खुशी उसकी बयां करना, बहुत मुश्किल है लफ्जों में

अचानक से कोई दुश्‍मन,गले जिसको लगा जाये

bahut sundar ghazal likhi hai aapne....bahut din baad aaj blogjagat mein aana ho paya. aate hi badhiya ghazal padhne ko mil gayi.

Science Bloggers Association said...

LAA-JAWAAB.

प्रदीप मानोरिया said...

जिधर देखे उधर सीमेंट का जंगल दिखे उसको
पड़ी है सोच में कोयल, कहां वो बैठ कर गाये
नीरज जी आपकी ग़ज़ल में गोपाल दस नीरज जी जैसी रवानी है .. आप वास्तव में साहित्य सरोवर के महकते नीरज हैं

समयचक्र said...

समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा है .

hem pandey said...

अति सुंदर रचना. हर एक पद उत्कृष्ट है. साधुवाद.

Prakash Badal said...

नीरज भाई, आपकी लेखनी और व्यक्तित्व दोनो का कायल हो गया हूँ। इतनी शानदार ग़ज़ल के सामने भला अब क्या कहूँ। वाह!!!!!!!!!वाह!!!!बहुत अच्छे एक- एक शेर सलीके से कहा गया । बधाई!

haidabadi said...

जनाबे नीरज साहिब
आपकी यह ग़ज़ल दिलो दिमाग़ पे छा गई है
ऐसा एहसास होता है के कलम बोल रही हो जैसे
कुछ न कुछ जलाया ही होगा आपने वर्ना रौशनी
कैसे हो गई . मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है के मंदी के
इस दौर में खुशबूओं के इस कारोबार में आप कामयाब हैं
और माशा अल्लाह हाथों हाथ मकबूल हो रहे हो हिंदी
ग़ज़ल की जुल्फें संवार रहे हो आप मुबारिकबाद के मुस्तहिक हैं
आपका यह ज़ज्बाये अफ़कार बुलुंद रहे यह मेरी दुआ है

चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क

Omnivocal Loser said...

Fantastic as usual!

निर्झर'नीर said...

"करम जिसने किया मुझ पर, यकीनन गैर ही होगा
हुई ये सोच तब पुख्ता, सितम अपनों ने जब ढाये"

kya khoobsurat gazal pesh ki hai neeraj jii
bandhai ho aapko bhi or aapke guruji ko bhii
be:shaq rang roop or gun ka ek bejod sangam..subiir ji ne yakinan aapki gazal ko dulhan ki tarah sazaya hai.
ek saar garbhit utkrisht rachna