Monday, December 22, 2008

हाथ में फूल


हाथ में फूल दिल में गाली है
ये सियासत बड़ी निराली है

छीन लेती है नींद आंखों से
याद तेरी सनम मवाली है

भूलता है इमानदारी को
पेट जिसका जनाब खाली है

तोडिये मोह का जरा बंधन
फ़िर दिवाले में भी दिवाली है

आप की चाह आप की बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है

भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है

अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक उसकी टाली है

43 comments:

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
बहुत अच्छी ग़ज़ल है वाह-वाह.
ये दो शेर मुझे बहुत अच्छे लगे..............
आप की चाह आप की बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है

भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है

Gyan Dutt Pandey said...

मुंह में राम बगल में छूरी के टक्कर की पंक्ति है हाथ में फूल और दिल में गाली!
और दोनो कहावतें राजनीति पर सटीक हैं!

कंचन सिंह चौहान said...

kis sher kee tareef karu.n....! sabhi ek se badh kar ek...!

Vinay said...

एक बार फिर आपने कमाल कर दिया, क्या लिखा है वाह!


----------------------
http://prajapativinay.blogspot.com/

पंकज सुबीर said...

हूं नीरज जी ये तो ग़लत बात है ऊंट की चोरी न्‍योरे न्‍योरे .... हा हा हा ।
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है
बढि़या ग़ज़ल है । आप को एक काम दे रखा है उसका याद रखें । तरही मुशायरा आज पूरा हो चका है अब आपके निर्णय की प्रतिक्षा चल रही है ।

ताऊ रामपुरिया said...

सही है जब तक बात मानो तब तक ही अपना है ! बेहद खूबसुरत अल्फ़ाज ! बधाई !

रामराम !

स्वाति said...

हाथ में फूल दिल में गाली है
ये सियासत बड़ी निराली है

bahut khoob, bahut badhia.

डॉ .अनुराग said...

अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है


जिंदगी से उठाये गए लम्हे है....अब इन्हे शेर कहे या कुछ ओर....

दिगम्बर नासवा said...

भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है

अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है

नीरज जी
सारे के सारे शेर लाजवाब हैं, इन दो शेरों ने तो दिल छीन लिया है
क्या गज़ब ढाते हैं आप

निर्मला कपिला said...

apna ban kar raha hai vo neeraj baat jab tak na uski tali hai ---kya khoob kaha hai

रश्मि प्रभा... said...

हाथ में फूल दिल में गाली है
ये सियासत बड़ी निराली है
........
neerajji ki yah baat bhi niraali hai,
bahut jabardast andaaje bayaan hai

निर्मला कपिला said...

lajvab likhte hain aap

सुशील छौक्कर said...

आज की हकीकत कह दी जी। हर शेर मेरी पसंद का है।बहुत खूब। पर ये दौर बदलना चाहिए जी।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है

वाह!

संगीता पुरी said...

हाथ में फूल दिल में गाली है
ये सियासत बड़ी निराली है
बहुत सुंदर।

गौतम राजऋषि said...

वाह नीरज जी...ये तो जुदा ही अंदाज था
छीन लेती है नींद आंखों से
याद तेरी सनम मवाली है

बहुत खूब सर..बहुत खूब

Ashok Pandey said...

बहुत सुंदर है नीरज भाई...बेहतरीन गजल।

Alpana Verma said...

बेहद उम्दा ख्याल लिए सभी शेर बहुत सुंदर हैं..

राज भाटिय़ा said...

हाथ में फूल दिल में गाली है
ये सियासत बड़ी निराली है
वाह नीरज जी क्या बात है मजा आ गया आप की कविता पढ कर, बिलकुल सही लिखा आप ने मने देखा है अकसर ऎसे हालात.... मुस्कुरा कर फ़ुल देते है..... ओर मन ही मन...
धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

" नीरज
बात जब तक न उसकी टाली है"
अरे आपकी बात कौन टालेगा जी ? :)
बहुत खूब
लिखते रहेँ इसी भाँति ~~~`

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर ।
घुघूती बासूती

Smart Indian said...

बहुत ही सुंदर - मगर नीचे की दो लाइनें ख़ास अच्छी लगीं:
आप की चाह आप की बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है

और यह दो लाइनें तो जैसे मेरे दिल की ही बात हैं:
भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है

Dr. Amar Jyoti said...

'आपकी चाह,आपकी बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है।'
बहुत ख़ूब। शक़ील की याद ताज़ा कर दी आपने।
बधाई।

akshaya gawarikar said...

भूलता है इमानदारी को
पेट जिसका जनाब खाली है

Ye pakka nahin hai!!
:)

निर्मला कपिला said...

neeraji smaaj ki sachi tasbeer dikhai hai is tasveer ko badalne ke nuskhe bhe sujhaeye bahut 2 bdhaai

vijay kumar sappatti said...

sir,

ab kya tareef karun , har sher apne aap mein ek mukkammal kahani hai ...
aapne zindagi ki kahani ko kya alfaaz diye hai ..

bahut bahut badhai ..


vijay

कुश said...

अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है

आपने तो सच का लिबास फाड़कर रख दिया... धारधार शेर

seema gupta said...

भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है
"बेहद खूबसुरत , सारे के सारे शेर लाजवाब हैं"
Regards

पारुल "पुखराज" said...

आप की चाह आप की बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है..bahut acchhey

श्रुति अग्रवाल said...

बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ। आखरी लाइनें जिंदगी के गूढ़ भाव बड़ी सरलता से बताती हैं।

हरकीरत ' हीर' said...

हाथ में फूल दिल में गाली है
ये सियासत बड़ी निराली है

बेहद खूबसूरत ...
Gyan Dutt aur Anurag ji ki bat se sahmat hun.

रंजू भाटिया said...

आप की चाह आप की बातें
ज़िन्दगी इसमें ही निकाली है

बहुत खूब ..बहुत बढ़िया लिखा है आपने नीरज जी ..

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,

आपकी उम्दा ग़ज़ल के लगभग सारे शेर तो गज़ब ढा रहे हैं और ज़िंदगी की सच्चाइयों पर प्रकश डाल रहे है, इसकी बधाई स्वीकार करें

पर इस उम्दा ग़ज़ल का निम्न शेर.........
भूलता है इमानदारी को
पेट जिसका जनाब खाली है
कम से कम मुझे न तो उचित प्रतीत होता है और साथ ही हर उस गरीब, भुखमरी के कगार पर भी पहुचने के बाद इमानदारी न त्यागने वालों के मुंह पर तमाचा सा प्रतीत हो रहा है.

वस्तुतः इमानदारी का त्याग कमज़ोर इक्षाशक्ति रखने वाले धन के लोभी ही होते है.
आज इमानदारी कहाँ दृष्टिगत हो रही है, इसका मतलब ये नही की सब के पेट खाली है.

बईमानी करने को कौन प्रेरित करता है ?
अहम् प्रश्न यह है.
इसके जवाब में जो भी उत्तर है उनसे हार स्वीकार करने वाला ही बईमानी को उद्धत होता है.

यदि मेरे विचार आप को आघात पहुँचा रहे है तो क्षमा प्रार्थी हूँ.

वैसे आपको बता दूँ की प्रसिद्ध साहित्यकार माननीय अमरकांत जी इन दिनों गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं और धनाभाव से पुख्ता इलाज भी नही करा पा रहे hain , इन्ही अमर कान्त जी अपनी जवानी के दिनों में कितने लाचार लोगों का इलाज अपने पैसे से करवाया था तो क्या आज अमरकांत जी भी ........................हो गए होंगे. शायद नही, वो उस कमज़ोर मिट्टी के नही बने है.

विचार कटु होने की अनुभूति से एक बार फ़िर से मैं क्षमा याचना करता हूँ. किंतु जैसी अनुभूति हुई उसे बयां करने से भी मैं स्वयं को न रोक सका.
आशा है अन्यथा न लेंगें.

चन्द्र मोहन गुप्त

"अर्श" said...

भूलता है इमानदारी को
पेट जिसका जनाब खाली है

तोडिये मोह का जरा बंधन
फ़िर दिवाले में भी दिवाली है

बहोत खूब नीरज जी बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली... ढेरो बधाई स्वीकारें ..

अर्श

Shiv said...

जब भी लिखते हैं, खूब लिखते हैं...कैसे तारीफ़ करूं?...एक-एक शेर शानदार.

अनूप शुक्ल said...

गजनट!

रविकांत पाण्डेय said...

भीड़ से जब अलग किया ख़ुद को
हो गयी हर नज़र सवाली है
अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है

अतिसुंदर! आपके ब्लाग पर आकर हमेंशा सुखद अनुभूति होती है।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी,
दुनियादारी की तल्ख़ हक़ीकत
बता दी आपने इस सुलझी हुई
पेशकश में....वरना बात रखने
और उसे टाल देने के बीच बनते-बिगड़ते
रिश्तों की ऐसी खूबसूरत पड़ताल आसान नहीं है !
==================================
शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

www.dakbabu.blogspot.com said...

बेहद सुंदर कविता. आपकी लेखनी में दम है.इस ब्लॉग पर आकर प्रसन्नता का अनुभव हुआ. कभी आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें !!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत खूब्!लाजवाब,हर शेर उम्दा

सच्चाई को शब्दों में बाखूबी पिरोया आपने.

Tapashwani Kumar Anand said...

अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है|

bahut hi sahi baat kahi hai.

!!अक्षय-मन!! said...

अपना बनकर रहा है वो "नीरज"
बात जब तक न उसकी टाली है
क्या बात कहे दी सर जी कमाल का लिखा है बहुत ही गहरा ....
सही बात हैं सभी की सभी सारे के सारे शेर लाजवाब हैं....

अक्षय-मन