Monday, November 17, 2008

बदलता रंग गिरगट सा




कभी वो देवता या फिर,कभी शैतान होता है
बदलता रंग गिरगट सा ,अज़ब इंसान होता है

भले हो शान से बिकता, बड़े होटल या ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है

गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है

जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है

उमंगें ही उमंगें हों, अगरचे लक्ष्य पाने की
सफर जीवन का तब यारो बड़ा आसान होता है

न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है

कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है



(आदरणीय प्राण साहेब की रहनुमाई में लिखी ग़ज़ल)

55 comments:

Smart Indian said...

नीरज जी, पुनः एक लाजवाब प्रस्तुति के लिए बधाई. [एक गुस्ताखी कर रहा हूँ - मुझे लगता है कि "बदलता रंग गिरगट से" की जगह "बदलता रंग गिरगट सा" ज़्यादा व्याकरण-सम्मत है - देख लीजिये]

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

"उमंगें ही उमंगें हों, अगरचे लक्ष्य पाने की
सफर जीवन का तब यारो बड़ा आसान होता है"

बस यही फ़लसफ़ा है हमारी ज़िंदगी का भी...पीछे मुड़ के कभी नहीं देखा है...आगे देखने के लिये इतना कुछ है...

Anil Pusadkar said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
बहुत बढिया नीरज जी,आपकी गज़ल मे तो पूरी ज़िंदगी का सामान है।

Alpana Verma said...

कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है
wah Neeraj ji bahut dino baad aap ko padha.[link kho gaya tha]..har sher daad ke qabil hai..sheron mein saralta aur sahjta se kah di gayi baaten dil ko chuu gayeen---dhnywaad.

!!अक्षय-मन!! said...

गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है
bahut khub ........
kya baat likhi hai aapne......
sach mai aisa hota hai.....
zindagi jiske sath kaat di wo abhi ajnabi sa hai....
maut ke baad bhi nahi pata ki wo aansu bahayega k bhi nahi..akshay-mann

aapka swagat hai....
"बदले-बदले से कुछ पहलू"
http://akshaya-mann-vijay.blogspot.com/

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,
आपने आज के अर्थ तंत्र में उन्नति के मार्ग पर चल रहे प्रगति शील इन्सान की जो तस्वीर निम्न शेर में पेश की है ..............
कभी वो देवता या फिर, कभी शैतान होता है
बदलता रंग गिरगट से, अज़ब इंसान होता है

एवं जो अजब पण पेश किया है , उसी का जवाब भी अपने अपने निम्न शेर .........
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
में पलक जपकते ही पेश कर दिया है.

यही तो खास बात है आज की दुनिया में कि सब अविश्वासी हैं पर फिर भी सब पर यकीन करना पड़ता है तथा जो विश्वासी हैं उन पर अविश्वास करना पड़ता है.

चन्द्र मोहन गुप्त

Dr. Amar Jyoti said...

'जहां दो वक़्त की रोटी…'
शानदार अभिव्यक्ति। अदम गोंडवी की याद आ गई।
'चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को।'
बधाई।

haidabadi said...

मुझे तो बस यह कहना है के नीरज की
गज़लें जलते हुए चिराग की मानिंद हैं
जो अपनी सोंधी सोंधी आंच से पाठकों के
के दिल में उतर कर हरारत पैदा कर जातीं हैं
और उसकी सोचें चांदनी की पाज़ेब पहन कर
जब वीराने में पांव रखती हैं तो गुले गुलज़ार हो जाता है
नीरज के नाम मेरा यह कहना है के
तेरी बला को मैं अपनी बला समझता हूँ
तू क्या समझता है तुझको में क्या समझता हूँ


चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क

कंचन सिंह चौहान said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है

गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है

जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है

विशेष भाईं...!

पारुल "पुखराज" said...

कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है--



दुआयें/बना रहे ये साजो सामान सदा …

seema gupta said...

जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
" again words and great thought to decsribe various phases of real life..."

Regards

कुश said...

पहला ही शेर जानलेवा है.. धांसु ग़ज़ल

Gyan Dutt Pandey said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है

-----
वाह, वाह, वाह!!!

pallavi trivedi said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है

गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है

जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है

waah waah...ek aur umda peshkash.

admin said...

गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है


जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है


न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है।

दिल को छू लेने वाले शेर हैं, बधाई।

दिगम्बर नासवा said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है

नीरज जी

एक और बेहतरीन ग़ज़ल
आपकी कलम मैं जादू है

फूल की पंखुडी की तरह खिलती हुई है आपकी ग़ज़ल

Shiv said...

बहुत-बहुत खूब!
हमेशा की तरह.

shama said...

"....eemaan ka bachna, samajh vardaan hotaa hai!"
Kya khoob kaha ! Bhare pet eemanki baten karna aur hota hai aur mushkil halaat, tangee inse vabasta ho, apne eemanko sambhalke rakhna kuchh aur....ye maine jiya hai, bade faqrke saath kahungee...aur apne dada daadee ko jeete hue dekha hai !
Aap behad vinamr wyakti hain....jis tarahse aapne "rehnumaee" ka zikr kiya, mujhe aapse rubaru hote hue ek aseem khushee mil rahee hai !
Aur ek baat kahun ? Jo bhee likh rahee hun, wo aaplogonkee hausal afzaaeeke karan hai...likhneke peechhe ek vishishth hetu tha..jo mai bhoolee nahee hun ! Apna dard ujagar karna, ya usme beh nikalnaa, mankaa gubaar nikalna ye uddisht bilkul nahee hai. Ye jatana chahtee hun ki apne maa baapke bartaaw asar aanewaalee nslpe kistarah door door tak hota hai...aur kayee baar parinaam us wyaktiko bhugatne padte hain jo nishaap ho !
Aap himmat bandhaye rakhen...apne maqsadme shayad safal ho jaun !Zyada se zyada logontak pohonch paaun....do logon ne to padhkar apne aapko gunahgaar bata diya hai, aur mere samne qubool kiya hai...mai iseeme apne lekhanki safalta mantee hun ! Do hee sahee...dersehee sahee par ehsaas to hua...!

विवेक सिंह said...

हाय मधुबाला गज़ब कर डाला :)

डॉ .अनुराग said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है


क्या बात कही है नीरज जी.....आप इतने दिन गायब न रहा करिए ...मुस्कान जैसे गायब सी हो जाती है.......कभी मुनव्वर राणा जी को पढिये .....मां पर उन्होंने बहुत खूब लिखा है

अमिताभ मीत said...

कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है

एकदम बजा फ़रमाते है भाई आप .... अनोखी होती है आप की ग़ज़लें.

रश्मि प्रभा... said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
...........
सच को कितने सरल ढंग से कहा,अच्छा लगा

राज भाटिय़ा said...

जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
बहुत ही खुब बहुत ही गहरी बात कह दी आप ने, आप का यह शेर पढ कर मुझे फ़िल्म *मदर इन्डिया* का एक सीन याद आ गया.
धन्यवाद

Ankit said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है

जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है

न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है

कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है

वाह-वाह
कितने खूबसूरत शेर कहे है आपने, हर शेर अपने अपने आप हर एक से बड़कर मगर कोई भी कमतर नही. इतनी आसन लफ्जों में इतनी गहरी बात कहने का हुनर आपका लाजवाब है.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी,
आप सचमुच डूबकर लिखते हैं
और
बहा ले जाते हैं हम सब को
ज़ज्बातों की लहरों पर बिठाकर
सोच-समझ के सुलझे हुए ठिकानों तक.
ग़ज़ल को जिंदगी के बहुत करीब लाने
फनकारों में मुझे आप बहुत ऊंचाई पर नज़र आते हैं
प्राण साहब और वे सब जिनसे जुड़कर
आप सधी हुई रचनाओं का ऐसा संसार साझा करते हैं
बेशक साधुवाद के पात्र हैं...परन्तु आपकी विनम्रता
और कृतज्ञता के गुणों से ही ऐसी रचनाओं का जन्म सम्भव है....
यह मेरी सहज
तथा सच्ची अभिव्यक्ति है =============================

साभार....
आपका...चन्द्रकुमार जैन

Abhishek Ojha said...

साड़ी लेने कमाल हैं लेकिन ये रोज महसूस होता है :
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है

Ratan said...

No. 1
भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है....

No. 2
न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है...

Uncle, I think this can easily be converted into a song, It is rhyming so well.

Mera to manana hai ki aapko sach mein koshish karni chahiye aapni kala ko filmo aur sangeet ke jariya jyada se jyada logon tak pahuchane ki..

Regards,
Ratan

अनूप शुक्ल said...

बहुत सुन्दर!

डॉ. मनोज मिश्र said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है......
इन लाइनों में जो बात है उसे कहा नहीं जा सकता .आप इसी तरह से लिखते रहें और हम इसी तरह पढ़ते रहें .

Vinay said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है

हर्फ़-हर्फ़ हम कायल हुए जाते हैं...

Manish Kumar said...

बेहद प्यारी ग़ज़ल लिखी है आपने...

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज" यही सामान होता है

नीरज भाई साहब
बहुत ख़ूब.
अल्लाह करे ज़ोरे-कलम और ज़ियादा.
सादर
द्विज

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

नीरज जी,बधाई...आपको इस ग़ज़ल पर ९७.४५ नंबर मिल गए हैं....अब मिठाई भी खिलाईये ना...प्लीज़....

महावीर said...

बहुत सुंदर!
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है

Harshad Jangla said...

निरजभाई
पढ़ी कितनी ग़ज़लें कईयों के ब्लॉग्गिंग में
"नीरज" की गज़लोमे फ़िर भी जी जान होता है |
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए

गौतम राजऋषि said...

इतनी तारिफ़ों के बाद कुछ कहना शेष रह गया है क्या?

तेरे शेरों को सुन-सुन कर अजब ये हाल है अपना
कहूँ जो मैं जरा कुछ भी,कहाँ आसान होता है

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नीरज भाईजी,
क्या उम्दा शब्दोँ मेँ
पिरोया है
गज़ल के मुक्ताहार को आपने....
एक एक शेर पर
वाह वाह कहने को
जी चाहता है
स्नेह,
- लावण्या

योगेन्द्र मौदगिल said...

Neeraj ji
बेहतरीन........

राहुल सि‍द्धार्थ said...

ईमान,बच्चे की किलकारी,मॉ,दुआऍ य़ॆ सब कितने छोटे-छोटे शब्द हैं लेकिन कितना सुकून देता है.संवेदना की सुन्दर लडी के लिए धन्यवाद....

राहुल सि‍द्धार्थ said...

संवेदना की सुन्दर लडी के लिए धन्यवाद.सचमुच ये छोटे-छोटे शब्द मॉ,ईमान,दुआऍ,बच्चों की किलकारी कितने बडे अर्थ संम्प्रेषित करते हैं....

अनुपम अग्रवाल said...

न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है

कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है

इसीलिए आपकी ग़ज़लों का सम्मान होता है

स्वाति said...

भले ही शान से बिकता हो, अच्छे-अच्छे ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है

wah wah neeraj jee, mahsoos to sabhi karte hai par ese likhne aur pathko ke dil ko chhoo lene ka hunar sirf aapke hi pas hai.

Parul kanani said...

jeevant lekhni!!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गजल है।बधाई।

जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है

Tapashwani Kumar Anand said...

जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है

बहुत ही सच्ची रचना है |

Dr. Nazar Mahmood said...

कभी वो देवता या फिर,कभी शैतान होता है
बदलता रंग गिरगट सा ,अज़ब इंसान होता है

बेहतरीन

PREETI BARTHWAL said...

भले हो शान से बिकता, बड़े होटल या ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
नीरज जी बहुत सुन्दर रचना।

Satish Saxena said...

बहुत बढ़िया मज़ा आगया !

रविकांत पाण्डेय said...

आपकी लेखनी के सम्मोहन से बचना कठिन है। सारे शेर पसंद आए।

बवाल said...

क्या बात है नीरज जी अहा. मज़ा आ गया. एक बहुत लाजवाब ख़याल आईने की शक्ल लेकर सामने आया. और ग़ज़ल के मक्ते ने तो दिल ही जीत लिया सरजी. सुबह राकेश जी रचना और शाम आपकी ग़ज़ल पढ़कर आनंद की सीमा नहीं रही मेरी. वाह वाह !

हरकीरत ' हीर' said...

भले हो शान से बिकता, बड़े होटल या ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है

ये शे'र सबसे बढिया लगा नीरज जी...

"Nira" said...

न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है

हमारे सर पर बुजुर्गों का हाथ ना हो तो सब बेकार है
बहुत अछि लगी आपकी रचना
दाद कबूल फरमायें

BrijmohanShrivastava said...

शैतान इंसान पकवान अनजान वरदान आसान धनवान और इन शब्दों का औचित्य अति सुंदर

"अर्श" said...

न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है

बहोत खूब लिखा है आपने वाह आनंद आगया .. आप मेरे ब्लॉग पे आए इसका शुक्रिया तो शब्दों में नही कर सकता यही उम्मीद करता हूँ आपका स्नेह निरंतर बना रहे...

अर्श

रंजीत/ Ranjit said...

baya ke is anuthe andaz ko salam.

bahut khoob
ranjit