Monday, September 1, 2008

नींद आंखों की उड़ाता कौन है



( सलाम करता हूँ भाई पंकज सुबीर जी को जिनके इशारे से ग़ज़ल की खामियां दूर कर पाया हूँ , प्रस्तुत है संशोधित ग़ज़ल)

नींद आंखों की उड़ाता कौन है
रात भर मुझको जगाता कौन है

भूल जाना चाहता हूं मैं जिसे
याद उसकी ही दिलाता कौन है

ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन पाता है लुटाता कौन है

प्यार के गुल रौंद मेरे मुल्क में
खार नफरत के उगाता कौन है

शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
गीत मेरा गुनगुनाता कौन है

किसको फुर्सत आज के इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है

मोल अपने आसुंओं का जानिये
मोतियों को यूं लुटाता कौन है

राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन है

हम किसे आवाज दें ‘नीरज’ बता
देख कर बदहाल आता कौन है

47 comments:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

वाह ! क्या बात है !!
आँखों में ख्वाब-सी सजी
भूली-भूली-सी यादो की याद दिलाती
प्रेम की सच्ची प्यास जगाती
फिर भी
दुनियादारी की तल्खी का एहसास दिलाती हुई
आँखों के रास्ते दिल में उतर जाने वाली ग़ज़ल !
====================================
बधाई नीरज भाई.
चन्द्रकुमार

कुश said...

मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है

ye sher bahut hi badhiya ban pada hai.. warna tippani dene aata kaun hai.. :)

seema gupta said...

मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है
" wonderful, very sensitvly composed, each word has a deep meaning"

" hum to feejaon mey firteyn hain khyalon kee treh,
humare tarunum ko gungunata kaun hai..."

Regards

जितेन्द़ भगत said...

आप नायाब अंदाज से गंभीर बातें भी छोड़ जाते हैं-

गुल बिछाता हूँ मैं उसकी राह में
खार नफरत के उगाता कौन है
साथ्‍ा ही,

है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है

डॉ .अनुराग said...

है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है


ये शेर बहुत पसंद आया....

रंजन (Ranjan) said...

गुल बिछाता हूँ मैं उसकी राह में
खार नफरत के उगाता कौन है


रंजन
aadityaranjan.blogspot.com

सुशील छौक्कर said...

बहुत गहरी गहरी बातें कहते शब्द।

है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है

बहुत खूब वाह।

Abhishek Ojha said...

"है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है

मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है"

अपनी कहानी लगी नीरज जी! और जब अपनी कहानी लगे तो ये कहने की जरुरत नहीं की कैसी पंक्तियाँ है !

ताऊ रामपुरिया said...

है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है


नीरज जी कविता की समझ मुझको बहुत
कम ही है ! पर जैसे मिठाई के स्वाद के लिए
मिठाई बनाना आना जरुरी नही है ! आपकी
रचनाए पढ़ने में आनंद के साथ और भी रसों
की प्राप्ति होती है ! बहुत धन्यवाद आपको !
सुन्दरतम !

Nitish Raj said...

नीरज जी वाह बहुत ही बढ़िया
देख के बदहाल आता कौन है
वाह
ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन देता और पाता कौन है
अपने में ही पूरी लाइन हैं ये

पारुल "पुखराज" said...

है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है

bahut khuub!!

Dr. Amar Jyoti said...

'रूठ जाने पर मनाता कौन है'
बहुत ख़ूब! क़ैफ़ी आज़मी की नज़्म-'मैं ये सोच कर उसके दर से उठा था…'की याद ताज़ा हो गई। वही बात इतने कम शब्दों में कह दी। मान गये।

रंजन गोरखपुरी said...

है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है

शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है

वाह!! क्या बात है साहब!! बहुत सुन्दर लब्जों में खूबसूरत ग़ज़ल कही है!!

anilpandey said...

BAHUT HI achchha Neeraj ji . sahi kaha apane . darasl ye dunia hi aisi hoti hai jisamen pahunch janen ke bad tow shikawe hi shikawe hote hain .

L.Goswami said...

sudar likhaa hai aapne..

mere blog par tippni ka dhanyawad.

रंजू भाटिया said...

भूलना तो चाहता हूँ मैं उसे
याद उसकी पर दिलाता कौन है

बहुत खूब

है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है

सही कहा कोई नही मनाता ..हर कोई ख़ुद में ही उलझा है :)

अमिताभ मीत said...

छा गए हैं सर. क्या बह्र है, क्या लय है ...... क्या बात है. वाह !

शोभा said...

गुल बिछाता हूँ मैं उसकी राह में
खार नफरत के उगाता कौन है

है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है

मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है

शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ

Puja Upadhyay said...

waah...behtarin,poori gazal lajawab.
mujhe sabse accha ye sher laga
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है

महेन्द्र मिश्र said...

गुल बिछाता हूँ मैं उसकी राह में
खार नफरत के उगाता कौन है.
वाह,खूबसूरत ग़ज़ल है.

Gyan Dutt Pandey said...

शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है
*********
नीरज जी इतनी अच्छी कविता पर लोगों का आपको याद करना और आपको हिचकियां आना लाजमी है।

डा. अमर कुमार said...

.


मेरी नज़र कमजोर है...
या यह मेरी नज़रों का कुसूर, बता नहीं सकता..
एक ब्लागर की दृष्टि में..

’ है किसे फुर्सत बता इस दौर में
पोस्ट लिखने पर टिपियाता कौन है


... ही पढ़ पा रहा हूँ

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेहतरीन नीरज भाई ...वाह वाह !

PREETI BARTHWAL said...

वाह-वाह बहुत खूब।
ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन देता और पाता कौन है
बिलकुल सही दिल को छू गई ये लाइने

Shiv said...

बहुत खूबसूरत गजल. हमेशा की तरह.

राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन है

लेकिन इस शेर पर खतरा मंडरा रहा है. रागी, विरागी, अनुरागी, सारे ब्लॉगर आपकी हर गजल पढ़कर आपकी पीठ थपथपा कर जाते हैं......:-)

बालकिशन said...

वाह! वाह!
वड्डे पापाजी, कमाल कर दिया आपने. एक-एक शेर 'भारतीय' है. अद्भुत रचना है.

art said...

sach ab ye hai,ki aapki post se jyada intzaar mai mishti ki nai tasveer ka karti hu....mai kabhi na kabhi to mishti se milne jaroor aungi, apni kuku ke saath

vipinkizindagi said...

सुंदर,..........

बेहतरीन,.......

Anonymous said...

भूलना तो चाहता हूँ मैं उसे
याद उसकी पर दिलाता कौन है

Neeraj ji, bahut achchhi line lagi yah.
Badhai

Smart Indian said...

नीरज जी,
बहुत ही सुंदर रचना. एक एक लाइन कमाल की है, धन्यवाद!

Asha Joglekar said...

राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन
waise to aapki bat sahi hai par aapke blogger mitr to thapthapate hain. Api dafliyan bhi bajate hain, par kadr dan bhi to hain ana.

KHOOBSURAT KAVITA.

Harshad Jangla said...

निरजभाई
बहुत खूब
बधाइयां
हर्षद जांगला
एटलांटा युएसऐ

कंचन सिंह चौहान said...

है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है

मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है

शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है

waah neeraj ji

योगेन्द्र मौदगिल said...

मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है

शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है
WAH..Wah
नीरज जी,
क्या बात है...
गजल कही है आपने..... गजल....
साधुवाद..

admin said...

छोटे बहर और आमफहम शब्दावली में बहुत खूब कहा है आपने। मुबारकबाद स्वीकारें।

pallavi trivedi said...

ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन देता और पाता कौन है

kya baat hai...ek aur umda ghazal.

रश्मि प्रभा... said...

शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है.......

kis tarah yah mann jane kya kya sochta hai.....
bahut badhiyaa

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर कविता हमेशा की तरह से...
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है.......
धन्यवाद

Pawan Kumar said...

शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है
राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन है
नीरज जी क्या बात है. आगे भी ऐसी ही रचनाओं का इन्तिज़ार रहेगा

Akhilesh Soni said...

नीरज जी आपकी ग़ज़लों ने तो वाकई मुझे दीवाना बना दिया है खास तौर पर आपकी पंच लाइन ने तो मुझे बहुत ही प्रभावित किया : शायरी मेरी तुम्हारे ज़िक्र से मोगरे की यार डाली हो गयी।
आपकी ग़ज़ल का एक ये शेर जो मुझे बहुत ही पसंद आया : मोल अपने आंसुओं का जानिए मोतियों को यूँ लुटाता कौन है. वाकई में काबिल-ए-तारीफ है। बधाई स्वीकार कीजिये ।

Satish Saxena said...

पीठ दूजी थपथपाता कौन है
यथार्थ वर्णन किया है जीवन का नीरज जी !

वीनस केसरी said...

बहुत बेहतरीन गजल है
एक एक शेर मासूमियत से ख़ुद को प्रस्तुत करते है
बहुत अच्छा निभाया है आपने काफिया को बधाई स्वीकार करें

वीनस केसरी

shelley said...

ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन खोता और पाता कौन है

प्यार के गुल रौंद मेरे मुल्क में
खार नफरत के उगाता कौन है

शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
गीत मेरा गुनगुनाता कौन है

kavita pasan aai. kafi achchhi hai

Omnivocal Loser said...

हमेशा की तरह उम्दा

बवाल said...

राग अपना और अपनी ढपलीयाँ
पीठ दूजी थपथपता कौन है ?
बहुत ही खूब है नीरज जी क्या बात है.

लीजिए इस पर शेर है किन्ही शायर का -

ग़ैर काहे को सुनेंगे तेरा दुखड़ा बिस्मिल ?
उनको फ़ुर्सत ही नहीं, अपनी ग़ज़ल गाने से !

ललितमोहन त्रिवेदी said...

ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन खोता और पाता कौन है
राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन है

क्या कहने है नीरज जी ! बहुत खूबसूरत ख्याल है !मुझे तो लगता है प्यार में सिर्फ़ पाते ही पाते है खोते कुछ भी नहीं !आपकी ग़ज़ल पढ़कर मन एक सुखद अनुभूति से भर गया ! सच कहूँ तो बहुत भटकने के बाद ब्लॉग पर इतनी अच्छी ग़ज़ल पढ़ने को मिली है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें !

श्यामल सुमन said...

मोल अपने आसुंओं का जानिये
मोतियों को यूं लुटाता कौन है

भाई बहुत खूब। मजा आ गया।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com