Monday, July 14, 2008

आओ चलें खोपोली-परलोक सवारें



मेरी ये मेल उन ब्लॉगर भाई बहनों के लिए है जो जीवन की आपाधापी से ऊबकर प्रभु शरण में शान्ति चाहते हैं. जिन्हें गिरते झरनों के गायन और आंखों को ठंडक पहुँचने वाली हरियाली से कोई लेना देना नहीं रह जाता. जो ये समझते हैं की संसार मिथ्या है और शरीर नाशवान है. जिनको शरीर के नाश होने से पहले आत्म शुद्धी के लिए प्रभु दर्शन करना अनिवार्य लगता है. ये उनके लिए भी है पाप रूपी भोजन को पचाने के लिए भगवान रुपी चूरन की फांकी लेना चाहते हैं. ये पोस्ट उनके लिए भी है जो एक तीर से दो शिकार करने में विश्वाश रखते हैं यानि प्रभु भक्ति के साथ साथ प्रकृति का आनंद भी उठाना चाहते हैं. या जिनको ये भान हो गया है की "आए थे हरी भजन को लिखने लगे हैं ब्लॉग" अतः अब हरी भजन कर लिया जाए.

जीवन के टाट पर मखमल का पैबंद लगाने के लिए खोपोली भ्रमण से उत्तम कोई विकल्प नहीं है. मेरे इस कथन को याद रखें और मेरे साथ खोपोली भ्रमण के अन्तिम चरण की और बढ़ें...भगवान् आप का भला करेंगे.



खोपोली अगर बस या ट्रेन से आयेंगे तो सबसे पहले आपको बाण गंगा नदी के दर्शन होंगे. इस नदी का बाण या गंगा से कोई रिश्ता नहीं है ये एक नाम है जैसे की मेरा "गोस्वामी" जिसका तुलसी दास जी से कोई रिश्ता नहीं है. अस्तु, ये नदी लोनावला पर बने एक बाँध से प्रवाहित होती है और इसे "टाटा" वालों की मर्जी अनुसार बहना होता है. याने टाटा वाले बिजली बनाने के लिए इसे जब मन करता है तब प्रवाहित करते हैं. जब ये प्रवाहित होती है तब बहुत दर्शनीय होती है और जब नहीं तब दूषित. हर हाल में ये खोपोली की आन बान शान है.



पूरे रायगड जिले में आपको शिवाजी महाराज घोडे पर बैठे हाथ में तलवार लिए दिखाई देंगे और चूँकि खोपोली रायगड जिले में आता है इसलिए अपवाद नहीं है.



ये है यहाँ का रुक्मणि-विट्ठल याने राधा कृष्ण जी का मन्दिर जो एक छोटी से पहाड़ी पर बना है. नवम्बर माह में यहाँ पन्द्रह दिनों तक मेला लगता है जिसे हम हमारे यहाँ आने वाले विदेशी मेहमानों को दिखाना अपना कर्तव्य समझते हैं. मेले में भीडभाड के अलावा बड़ा सा गोल घूमने वाला झूला और "मौत का कुआँ" जिसमें चार मोटर साईकल और एक मारुती कार एक साथ चक्कर लगाती है विशेष आकर्षण के केन्द्र होते हैं. हमारे विदेशी मेहमान इसके चित्र उतारते और हैरानी से मुंह खोलते बंद करते, नहीं थकते.



ऊपरी खोपोली, याने की जहाँ से लोनावला के लिए पहाड़ी चढाई शुरू होती है, में एक बहुत पुराना शिव मन्दिर है. कहते हैं यहाँ आने वाले को एक अजीब सा कम्पन महसूस होता है और मन को अथाह शान्ति मिलती है. ये शिव मन्दिर कोई ढेढ़ सो साल या उस से भी अधिक, पुराना है और एक तालाब के किनारे बना हुआ है.



ये तालाब खोपोली का सबसे बड़ा तालाब है और गणेश चतुर्थी पर गणेश जी के विसर्जन के काम आता है. इस तालाब के किनारे बहुत सारी लाईटें लगा दी गयी हैं जो रात में नयनाभिराम दृश्य उपस्तिथ करती हैं. खोपोली में बिजली की समस्या है इसलिए अक्सर शाम को इस तालाब के पास आप को अँधेरा पसरा मिलेगा.



शिव मन्दिर से कुछ कदम की दूरी पर "गगन गिरी महाराज" का आश्रम है. ये खोपोली का सबसे बड़ा आकर्षण है. गगन गिरी महाराज एक योगी और तपस्वी थे जिन्होंने वर्षों इस स्थान पर पूजा की और कई सिद्धियाँ हासिल कीं. महाराज पानी में बैठकर समाधी लगाते थे और ये समाधी इतनी गहन होती थी की मछलियाँ उनके पाँव की उँगलियाँ कुतर डालती थीं और उन्हें पता भी नहीं चलता था. महाराज को देखने और नमस्कार करने सौभाग्य मुझे प्राप्त हो चुका है. इनका निधन अभी कुछ माह पूर्व ही हुआ था. गुरु पूर्णिमा के दिन आश्रम में प्रवेश और महाराज के दर्शनों के लिए दूर दूर के गाँव से लोग आते हैं और रात से ही कई किलोमीटर लम्बी लाइन लगनी शुरू हो जाती है.



आश्रम में बहती बाण गंगा का दृश्य आप को हरिद्वार की हरकी पैडी की याद दिला देगा. गगन गिरी महाराज एक पहाड़ी की गुफा में रहा करते थे, कोई १५-२० मिनट की चढाई के बाद आप उस गुफा में पहुँच सकते हैं वहां ध्यान मग्न महाराज की आदमकद मूर्ती रखी हुई है.बरसात के दिनों में इस आश्रम के चारों और बहते झरने देखना एक ऐसा अनुभव है जिसे आप कभी भूल नहीं पाएंगे.



आश्रम से आधा की.मी. पहले पहाडियों के बीच बिरला जी ने एक फैक्ट्री डाली पाईप बनाने की,नाम रखा "जेनिथ पाईप" यहाँ उन्होंने एक खूबसूरत मन्दिर भी बनवाया जिसमें विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया.



इस मन्दिर के पीछे बरसातों में खोपोली का सबसे विशाल झरना गिरता है जिसे "जेनिथ फाल" कहते हैं. इस झरने की आवाज आप एक की.मी. दूर से सुन सकते हैं. सप्ताहांत में मुंबई और आप पास के इलाकों से हजारों लोग इसके नीचे नहाने का लुत्फ़ लेने आते हैं.



भूषण स्टील जब 2003 में बनी तब यहाँ भी एक मन्दिर बनवाया गया, जिसमें मुख्या रूप से गणेश प्रतिमा को स्थापित किया गया. जयपुर से मंगवाई गयी शिव, हनुमान , बालाजी और गणेश जी की प्रतिमाएँ देखते ही बनती हैं।



इसके अलावा खोपोली से 4 की.मी. पहले महद नमक स्थान पर अष्टविनायक में से एक विनायक स्थापित हैं तो कोई 25 की.मी. दूर दूसरे विनायक पाली नामक गाँव में हैं. खोपोली से पाली तक का रास्ता हरियाली पहाडों से बहते झरनों से भरा पढ़ा है यहाँ गरम पानी के कुण्ड भी हैं जिसमें नहा कर आप चमड़ी के रोगों से मुक्त हो सकते हैं ( ऐसी मान्यता है)।

आख़िर में मैं आप सब याने शिव कुमार मिश्रा जी, ज्ञान भईया, पंकज सुबीर जी, महावीर शर्मा जी, रंजू भाटिया जी, समीर लाल जी, कुश जी,अशोक पांडे जी , डा.अनुराग जी, डा. चंद्र कुमार जैन जी, महेंद्र मिश्रा जी,अल्पना वर्मा जी, योगेन्द्र मुदगिल जी, ममता जी, युनुस जी, प्रियंकर जी, दीपांशु गोयल जी, विमल वर्मा जी, विजय गौड़ जी, हरी मोहन सिंह जी, यू.पी.सिंह जी, अशोक पाण्डेय जी, अभिषेक ओझा जी, मिनाक्षी जी, हर्ष वर्धन जी, पंकज अवधिया जी, महामंत्री तस्लीम जी,अरुण जी, मनीष जी, डा.प्रवीण चोपडा जी, द्विज जी , चंद्र मोहन गुप्ता जी और बालकिशन जी, का तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ जिन्होंने खोपोली श्रृखला की सभी कड़ियों को पढ़ा और सराहा.

इस अन्तिम कड़ी में मैं आप सब को धन्यवाद देना चाहता हूँ क्यूँ की आपने अपना बटुआ, पति/पत्नी का मूड, बच्चों का स्कूल, नौकरी, छुटियाँ, स्वास्थय आदि को देखते हुए खोपोली आने का प्रोग्राम खारिज कर दिया.

उम्मीद करता हूँ की उपरोक्त कारणों को मध्ये नजर रखते हुए आप इस पोस्ट को पढ़ कर भी खोपोली नहीं पधारेंगे और अपने अपने घर पर प्रसन्न रहेंगे. चलिए, असली ना सही चित्रों के माध्यम से ही सही जो मिला उसे अधिक समझ कर उपयुक्त समय का इन्तेजार करें क्यूँ की ना तो कहीं खोपोली जाने वाली है और ना ही आप.



आप नहीं आए या नहीं आ पाए कोई बात नहीं कम से कम इस गलती के लिए अपने कान ही पकड़ लीजिये, शायद इश्वर आप को माफ़ कर दे, क्यूँ की आप नहीं जानते आप ने यहाँ नहीं आ कर क्या खोया है.

जय हो...खोपोली ना आने के कारण...हे ब्लॉगर भाई बहनों आप की सदा ही जय हो.

47 comments:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

वाह भाई,
आज तो ख़ास रोचक
अंदाज़ में पेश आए हैं आप.
कान पकड़कर बधाई......!
लेकिन
मिष्टी की तरह सुंदर और निर्दोष छवि
गर मिल जाए तो फिर क्या कहना
माफ़ करने वाला भी धन्य हो जाए.
==============================
आपका चित्र-चयन और चित्रण चारु हैं
और चित्ताकर्षक भी !
आभार सहित आपका
चन्द्रकुमार

Ashok Pande said...

आपकी भी जय हो साहब! कान भी पकड़ लिए!

मुझे तो ये नाम खोपोली ही इस क़दर आकर्षक लगता है. देखिये, कब ...

तस्वीरें भी सुन्दर हैं.

रंजू भाटिया said...

आपकी इस पोस्ट ने यह इरादा पक्का कर दिया है कि एक बार वहां आना अवश्य है |.कारण आपने ख़ुद ही अभी बता दिए हैं अपने अंतर्ज्ञान से :) और अभी कान पकड़ कर माफ़ी मांग ली है हमने :) उम्मीद पर दुनिया कायम है हम खोएंगे नही इस मोके को..अभी शुक्रिया इतनी सुंदर जानकारी देने के लिए ..कोई और वहां का ऐसा अछुता कोना हो तो अपने लेख के माध्यम से सैर करवाए ..शुकिया

मीनाक्षी said...

नीरजजी...हमने मिष्ठी की खातिर दस बार कान पकड़ कर उठक बैठक भी कर ली.. जब भी आना होगा...मिष्ठी को देखकर जो खोया ..उससे ज़्यादा पा लेंगे...खोपोली से जुड़ी हर कड़ी नायाब ....इसे अंतिम कड़ी न कहें.. अलग अलग ऋतुओं के रूप का वर्णन करते रहें... मिष्ठी को खूब सारा प्यार और आशीर्वाद...

Arun Arora said...

देखिएय जी हमने सराहा वराहा कुछ नही है हम तो जल रहे है कि आप इतनी शानदार जगह रहते है और हम आमंत्रण के बावजूद आ नही पा रहे है , मुफ़्त की चीज मिल रही हो और हम ना ले पाये तो दिल तो जलेगा ही ना :)

Sanjeet Tripathi said...

सबसे पहले तो मैने कान इस बात के लिए पकड़े कि मैने पहले क्यों नही पढ़ी यह श्रृंखला।
फ़िर आप का शुक्रिया खोपोली घुमाने के लिए!

Shiv said...

बहुत शानदार एपिसोड है.

हम तो कहेंगे कि निजलोक को छोड़कर हमलोग 'सबलोक', परलोक, हरलोक संवारना चाहते हैं. परलोक के चक्कर में तो हम जरूर ही खोपोली जायेंगे. अब चाहे माँ रूठे या बाबा यारा हमने तो हाँ कर दी के तर्ज पर.

हमें तो टाटा जी द्बारा कंट्रोल की जाने वाले नदी के दर्शन करने हैं. साथ में जेनिथ मन्दिर सॉरी बिरला मन्दिर के भी. गगन गिरी महाराज अब नहीं रहे ये जानकर बहुत दुःख हुआ. साल २००५ में आपने पहली बार बताया था महाराज के बारे में. खैर, ईश्वर महाराज की आत्मा को इतनी ताकत दे कि वे स्वर्ग में बैठे बैतरनी नदी में अपनी ध्यान साधना करें. वहां मछलियाँ उनके पैर को नहीं काटेंगी बल्कि सहलायेंगी. आख़िर स्वर्ग है न.

हम तो आ रहे हैं. दस दिन और इंतजार कीजिये भइया...

Ghost Buster said...

एक-एक चित्र ऐसा मनोरम है कि मन डगमग डोल उठा. ऊपर से आपका प्रभावशाली वर्णन. अब तो पहुंचना ही पड़ेगा खोपोली.

बहुत ही शानदार ब्लॉग पोस्ट है.

Arun Arora said...

माफ़ कीजीयेगा मै पहले कहना भूल गया था ये दूसरो की सजा मिष्टी को कयो ?
शिव जी अपनी पलटन के साथ पधार रहे है सारा खाना मत खिला दीजीयेगा . हम भी है लाईन मे

नीरज गोस्वामी said...

अरुण जी
मिष्टी को भला सजा कौन दे सकता है? मिष्टी तो सिखा रही है की कान कैसे पकड़ने हैं.:)
नीरज

Anita kumar said...

नीरज जी सबसे पहले तो कान पकड़ कर माफ़ी मांग रही हूँ कि मैं ने इस श्रंखला की पहली कड़ियां नहीं पढ़ीं।
हमारा ध्यान इस ओर खीचने का मतलब हम आमंत्रण ही समझ रहे हैं। ऐसी मनोरम जगह और बरसात का मौसम, आप का निमंत्रण(है न?), भला मन कैसे नहीं ललचायेगा। हम आ रहे हैं ,शिव भैया को आने दो और भगवान करे तब तक खूब बरसात हो, झरने खूब बहें।
टाटा के विधुत्त प्लांट में हम गये थे और उस बांध को देखा था जिससे ये पानी रोक लेते हैं , तब ये नहीं पता था यही बाण गंगा है। उस नदी में एक मछली होती है जो अंडे देने के लिए धारा की उल्टी दिशा में जाती है लेकिन अब बांध बन जाने से उस की प्रजनन क्रिया में खलल पड़ रहा है और उस मछली की प्रजाति लुप्त हो रही है। उसे बचाने के लिए टाटा वालों ने उस मछली का पालन करना शुरु किया है। उस मछली की फ़ोटो आप को दिखा रही हूँ। बाकि मान न मान मैं तेरा मेहमान की तर्ज पे आप हमें महीने के आखिरी शनिवार या इतवार वहीं पायेगें……:)फ़ोटो टिप्पणी में संलग्न करना नहीं आता इस लिए ई-मेल में भेज रही हूँ…।:)

vipinkizindagi said...

शानदार प्रस्तुति, आपको बधाई
मेरा ब्लॉग भी आप देख कर मुझे अनुग्रहित करे

Kavi Kulwant said...

bahut achcha laga..
aapke saath waha ghumane ka man kar aaya...

अजित वडनेरकर said...

नीरज जी इस श्रंखला की अंतिम कड़ी की ही आपने हमें सूचना दी। ग़लती हमारी थी कि हमने ही बहुत दिनों से ब्लागजगत का फेरा नहीं लगाया है । लीजिए कान हमने भी पकड़े :)
सुंदर प्रस्तुति। यात्रावृत्त तो हमें वैसे भी खूब पसंद हैं खुद घूमने की फुर्सत चाहे मिले या न मिले। उत्तरांचल से रिश्ता होने के नाते पर्वतीय सौन्दर्य ही ज्यादा भाता है।
शुक्रिया । पुरानी कड़ियां खोज कर पढ़ता हूं।

दीपान्शु गोयल said...

बहुत खूब लिखा है आपने। आप इतनी खूबसूरत जगह पर रहते हैं और चाहते हैं कि हम ना आयें ये तो हो नहीं सकता। मैं जरुर आउँगा हां देर हो सकती है। खोपोली की पूरी सैर कराने का शुक्रिया। मैं अभी कश्मीर हो कर आया हूँ यात्रा विवरण ब्लाग पर लिख रहा हूँ पढियेगा।

सुशील छौक्कर said...

नीरज जी मैने इसकी पहली कडिया नही पढी। पर ये पढी। फोटो आँखो को भा गई। वर्णन सकुन सा दे गया। दोनो ने इच्छा जगा दी। देखते है कब जाते है। प्यारी सुन्दर बेटी को प्यार और आर्शीवाद हमारी तरफ से।

अनुराग अन्वेषी said...

ये दृश्य दिखा कर प्यास बढ़ा दी। बढ़िया लगा इस एपिसोड को देखकर। बाकी भी देखता हूं जल्द ही।

vipinkizindagi said...

हॉंसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

Udan Tashtari said...

Kuch galatfahmi ho gai dikhe hai. Hum to aa hi raha hu agali yatra ke douran. Ab lakh mafi mango..kuch nahi badlne wala. :)

राज भाटिय़ा said...

नीरज जी, मे तो तब तक कान नही छोडुगा जब तक आप यह ना बता दे की अगस्त महीने मे यहां आना केसा रहेगा,हमारा प्रोगराम २००९ मे भारत आने का हे ओर आप ने यहां के बारे इतने प्यार से लिखा हे, ओर इतने सुन्दर चित्र दिये हे, ओर चेतावनी के रुप मे बिटिया रानी के कान भी पकडवा दिये, तो दिल मचल उठा हे, पुरी दुनिया देख ली लेकिन अपना भारत नही देखा, अब धीरे धीरे आप सब के लेखो से पता चलता हे हमारा भारत भी खुब सुरत हे तो मन भी करता हे इन सब को देखने ओर बच्चो को दिखाने को, बस थोडा जुलाई ओर अगस्त के मोसम के बारे जरुर बताये, आप का धन्यवाद

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, आपकी कृपा से खपोली की छवि देख ली और मिष्टी की छवि से कान पकड़ना सीख लिया।
बहुत काम की पोस्ट!

पंकज सुबीर said...

शिव कुमार मिश्रा जी, ज्ञान भईया, पंकज सुबीर जी, महावीर शर्मा जी, रंजू भाटिया जी, समीर लाल जी, कुश जी,अशोक पांडे जी , डा.अनुराग जी, डा. चंद्र कुमार जैन जी, महेंद्र मिश्रा जी,अल्पना वर्मा जी, योगेन्द्र मुदगिल जी, ममता जी, युनुस जी, प्रियंकर जी, दीपांशु गोयल जी, विमल वर्मा जी, विजय गौड़ जी, हरी मोहन सिंह जी, यू.पी.सिंह जी, अशोक पाण्डेय जी, अभिषेक ओझा जी, मिनाक्षी जी, हर्ष वर्धन जी, पंकज अवधिया जी, महामंत्री तस्लीम जी,अरुण जी, मनीष जी, डा.प्रवीण चोपडा जी, द्विज जी , चंद्र मोहन गुप्ता जी और बालकिशन जी, ये सारे लोग एक साथ ही आने का इरादा रख रहे हैं हा हा हा

डॉ .अनुराग said...

लगता है खपोली वाले आपको भरी discount दे रहे है...पहले तो हम नाराज है आपसे .अपने हमारी छुटकी के कान क्यों पकड़वाए .?फोटो काफी जीवंत है सचमुच मन करता है इस आपाधापी से दूर भागकर वहां आ जायूं ...कल ही मैंने अपने मुंबई के दोस्त को ब्रेक लेने के लिये खपोली के लिये ही कहा था .......is bar aana hi padega sar ji...

समयचक्र said...

फोटो जीवंत है खोपोली इस क़दर आकर्षक लगता है.खोपोली की पूरी सैर कराने का शुक्रिया.

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर ,शानदार पोस्ट!

Charroo said...

लीजिये, ये क्या, हमारे आते ही महफ़िल उठने लगी. :)

ऎसी खुराफातें करते रहिये पर बीच - बीच में भी सूचित किया करें, अब तो श्रृंखला ही ख़तम हो गई. वही बात अब तो खोज-खोज कर पढ़ना पड़ेगा.

pallavi trivedi said...

pahle ki kadiyaan bhi maine padhi hain...ek to sundar foto oopar se aapki atyant rochak bhasha.....aanand aaya padhkar.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भाई साहब्, स विस्तार्, बढिया pictures के साथ आपने लिखा - खपोली हमारी कई बार यात्रा हो चुकीँ हैँ एक बार तो तो वहाँ का स्पेशल "बटाटा वडा " खाकर बीमार भी हुई थी -
कई साल हुए उसको भी !
- सब दुबारा याद आ गया -
मिष्टी बहुत प्यारी है :)
-उसे ढेरोँ आशिष व घर पर
सभी को
स स्नेह नमस्कार कहियेगा -
स स्नेह,
- लावण्या

Satyendra Tripathi said...

अरे अभी और लिखिये। जेनिथ फाल पर एक अलग पोस्ट होनी चाहिये। वैसे मजा आ गया।

मेरी और पंकज जी की ओर से यह टिप्पणी है। पंकज जी अपने जंगल के दौरो मे व्यस्त है। वे शीघ्र ही आपको मेल भेजेंगे। उन्होने आपको प्रणाम कहा है।

अभय

राकेश खंडेलवाल said...

लगता है अगली बार का चिट्ठाकार सम्मेलन खोपोलीमे ं ही होगा.

अब ये चित्र कइतनी उत्सुकता जगा रहे हैं, यह तो आप भी जानते हैं

बालकिशन said...

BAAKI SAB TO BAHUT BADHIYA HAI.
MAN KO LALCHATA HUA AUR LUBHATA HUA HAMESHA KI TARAH.
PAR EK BAAT SE BADI JALAN HO RAHI HAI SHIV KA NAAM SABSE PAHLE AUR MERA SABSE ANT MAIN?
AAKHIR KYON?

admin said...

बहुत खूबसूरत जगह है, देख कर ही मन ललचा रहा है। देखिए, पर कब जाना हो पाता है।

अमिताभ said...

आदरणीय सर ,
खोपोली के दर्शन कराने हेतु सादर साधुवाद . मनुष्य जीवन की मोह माया का ही फेर है ,कि मनुष्य अपने इर्द गिर्द दीवारों को नाहक ही बना लेता है . खोपोली जैसे स्थान यकीनन उस ईश की मौजूदगी को महसूस करने का बेहतर माध्यम हैं . ऐसे मनोरम स्थल पर सैर करवाने के लिए एक बार पुन्हः साधुवाद . मिष्टी को स्नेह !!
सादर
आपका अनुज
अमिताभ

Abhishek Ojha said...

अरे नीरज जी हम तो हो आए हैं... पर ये जगहें तो हमने देखी ही नहीं... अगर आना हुआ तो बताता हूँ आपको. एक बार फिर आऊंगा मैं... कब तक नहीं पता इसलिए अभी कान पकड़ता हूँ !

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,
सुंदर- सजीव सचित्र वर्णन के बारे में ज्यादा कुछ न कह कर बस इतना ही कहना चाहूँगा की अब हमें आपका यह ब्लॉग महारास्ट्र टूरिज्म डेवेलपमेंट बोर्ड को प्रेषित करना ही पड़ेगा, ताकि वे खोपोली को भी टूरिज्म प्लेस में स्थान दे कर यात्रियों को आकर्षित कर सकें. साथ ही आप पे अनावश्यक आर्थिक भार भी न पड़े, लोंगो को ठहराने, खिलाने-पिलाने में.

सुंदर मन, सुंदर भाव ने खोपोली को कितना दर्शनीय बना दिया है, इसे हर पाठक महसूस कर रहा है.
बधाई स्वीकार करें.

चन्द्र मोहन गुप्त

Harshad Jangla said...

Neerajbhai

You have taken a real pain to prepare this write up.Very nice and detailed description.
When I visit Mumbai next time, I will not miss this wonderful place.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

परमजीत सिहँ बाली said...

नीरज जी,आप ने तो सचित्र खपोली के दर्शन करा दिए आभार।अब तो हमे कभी मौका मिला तो हम भी पहुँचेगें वहाँ।

rakhshanda said...

main to badi der mein aayi aapki mahfil mein lekin yahan aakar dukh huaa ki pahle kyon nahi aayi...itne khoobsoorat photos...or likhne ka itna pyara andaz....dil moh liya aapne ..khapoli aane ka dil karne laga hai....

seema gupta said...

Thanks for such a wonderful article, while reading i felt that i have visited this place in reality. the way u have describe it and presented with picture its like live to me. thanks once again

Regards

योगेन्द्र मौदगिल said...

Bhai Neeraj ji, kya baat hai, aakhir KHOPOLI ghuma hi diya aapne, Lekin sashareer aane ka bhi programme hai apna. Mishti ko pyaar.

योगेन्द्र मौदगिल said...

खोपोली को देख कर, हुई प्रसन्नता यार.
मानो हम ही कैमरे, पर थे स्वयं सवार.
पर थे स्वयं सवार, कि अद्भुत सभी नजारे.
नीरज जी, अब तो, खोपोली पर दिल हारे.
मैं समझा हूं, कान पकड़ मिष्टी यों बोली-
मुदगिल दद्दू कान पकड़ आना खोपोली...

Sadhuwaad,
Saadar
--YM

महावीर said...

सारी कड़ियां तो नहीं पढ़ीं लेकिन अब सारी कड़ियों को पढ़ने की उत्कण्ठा अवश्य हो
गई है। प्रस्तुति का जावाब नहीं! फ़ोटो और साथ में यात्रा-वर्णन - बड़ा सजीव चित्रण है। जाना तो हो नहीं पाया और आगे भी जाने के लिए गुंजाईश नहीं है, सो कान पकड़ कर माफ़ी मांग लेते हैं।
पढते हुए दिव्यानंद की स्थिति हो रही थी।
बधाई!

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

Thank you very much for this fantabulous presentation.
Dwij

डा. अमर कुमार said...

आशा है नवम्बर में दशन होंगे,
आगे हरि इच्छा !

कुश said...

बड़ी गहरी तलब जगा दी है आपने.. सोच रहे है सब छोड़ छाड़ के खोपोली चले.. एक सुंदर श्रंखला का सुंदरतम अंत.. परंतु इसे अंत मत समझिएगा.. खोपोली आकर ही इस श्रंखला का अंत करेंगे

Saee_K said...

haalaki ham khopoli jaa chuke hai..banganga ke kinaar ghoom chuke hai..sab mandiro ka darshan kar chuke hai..par jitni khoobsoorat jagah hai wo..aapke varnan mein alaukik hi lagi..
laga.ek aur baar ghoom aaye...

baantne ke liye shukriya...

Ratan said...

अंकल सच बताऊँ तो मुझे आपकी लेखनी पढने में तो आपकी कवितायों से भी ज्यादा मज़ा आता है.

निम्न पंक्तियों को पढ़ मैं आपनी हँसी ना रोक पाया

१." .... इस नदी का बाण या गंगा से कोई रिश्ता नहीं है ये एक नाम है जैसे की मेरा "गोस्वामी" जिसका तुलसी दास जी से कोई रिश्ता नहीं है..."

२."...
इस अन्तिम कड़ी में मैं आप सब को धन्यवाद देना चाहता हूँ क्यूँ की आपने अपना बटुआ, पति/पत्नी का मूड, बच्चों का स्कूल, नौकरी, छुटियाँ, स्वास्थय आदि को देखते हुए खोपोली आने का प्रोग्राम खारिज कर दिया...."

और आख़िर में आपनी प्यारी सी मिष्टी कान पकडे हुए इतनी मासूम लग रही है.


-रतन