Tuesday, July 1, 2008

तुम जो ये क़हक़हे लगाते हो




बेसबब जो सफ़ाई देता है
दोष उसमें दिखाई देता है

वो जकड़ता नहीं है बंधन में
प्यार सच्चा रिहाई देता है

आँखों—आँखों में बात हो जब भी
अनकहा भी सुनाई देता है

यार बहरे बसे जहाँ सारे
क्यूँ वहाँ तू दुहाई देता है

बिन भरोसे अगर किया जाये
प्यार दिल को खटाई देता है

तुम जो ये क़हक़हे लगाते हो
राज़ गहरा दिखाई देता है

गालियाँ खा के मुस्कुरा "नीरज"
कौन किसको बधाई देता है

(ग़ज़ल की नोक पलक भाई द्विज जी ने अपने हुनर से संवार दी है उमर में छोटे हैं लेकिन गुण में बड़े इसलिए उन्हें सलाम करता हूँ)

19 comments:

अमिताभ मीत said...

तुम जो ये क़हक़हे लगाते हो
राज़ गहरा दिखाई देता है

बहुत बढ़िया शेर. बहुत अच्छी ग़ज़ल नीरज भाई.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी,
मैं इस बार भी कहूँगा कि
आपकी ग़ज़ल में ज़िंदगी है
लेकिन
अंत में ग़ज़ल की नोक के
सिलसिले में आपने जो कहा है
वह ज़िंदगी की ग़ज़ल से कम नहीं है.
सहयोग....सहभागिता....सरोकार
और
शुक्राने में जीना सचमुच बड़ी बात है.
============================
बधाई...बधाई....बधाई........
चन्द्रकुमार

Alpana Verma said...

तुम जो ये क़हक़हे लगाते हो
राज़ गहरा दिखाई देता है..Wah!
bahut achcha lagi yah ghazal,
dhnywaad

Ghost Buster said...

कमाल की गजल है. बधाई देते हैं. सच्ची में.

सुशील छौक्कर said...

आँखों—आँखों में बात हो जब भी
अनकहा भी सुनाई देता है

जी बहुत सुन्दर। और फोटो भी सुन्दर।

रंजू भाटिया said...

तुम जो ये क़हक़हे लगाते हो
राज़ गहरा दिखाई देता है

बेहद खुबसूरत बात लिखी है ..

Gyan Dutt Pandey said...

बिना भरोसे क्या प्यार - यह तो वास्तव में आज की हकीकत है और अप्रिय हकीकत।
शब्दों की जादूगरी कोई आपसे सीखे। हमारे दिमाग में ये शब्द क्यों नहीं आते?!

डॉ .अनुराग said...

ye sher .....
आँखों—आँखों में बात हो जब भी
अनकहा भी सुनाई देता है
aor ye bhi....

तुम जो ये क़हक़हे लगाते हो
राज़ गहरा दिखाई देता है

khare lage ...aor khoob lage.....

Shiv said...

बहुत शानदार गजल है. पहले भी कहा है, जिंदगी जीने का तरीका यहीं आकर सीखते हैं.

शोभा said...

नीरज जी
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,
लंबे और कर्मठ जीवन के हर एक क्षण में अपनी संवेदनशीलता से आपने जितने अनुभवों को आत्मसात किया है उससे लगता है, अब आपका उदर इतना ज्यादा भर चुका है कि डकार भी लेतें हैं , तो ग़ज़ल बन जाती है.
आपकी हर ग़ज़ल काबिले तारिफ है, कारण कि हर एक संवेदनशील इन्सान इसमें कंही न कंही अपनापन पाता है और फिर जब
आँखों—आँखों में बात हो जब भी
अनकहा भी सुनाई देता है
तो फिर भला मिलते से विचार आकर्षण का केन्द्र क्यो न बने, सुनने -सुनाने का दौर कड़ी दर कड़ी क्यों न चल पड़े.
आपकी निम्न गजल
वो जकड़ता नहीं है बंधन में
प्यार सच्चा रिहाई देता है
पढ़ कर मुझे अपनी भी "श्रद्धा" की कुछ कडियाँ याद आ गई, जो आपको नज़रे इनायत है :

श्रद्धा
(२४)
अगर बंधोंगे माया - मोहों में
बन्धन से तो विस्तार रुकेगा
अगर डरोगे तुम गिरने से तो
डर से रह-रह हर बार गिरेगा
"जीना" दुनियाँ में व्यापार बना है
"सब देना" कुछ पाने का द्वार बना है
पर बंधने पर श्रद्धा के बन्धन में
न खोने-पाने का संस्कार बनेगा

आपकी निम्न ग़ज़ल
बिन भरोसे अगर किया जाये
प्यार दिल को खटाई देता है
पढ़ कर मुझे अपनी भी "श्रद्धा" की कुछ कडियाँ याद आ गई, जो आपको नज़रे इनायत है :
श्रद्धा
(११)
धूं - धूं कर जल रहा ह्रदय
विखंडित प्रेम - ज्वाला से
नित ही भुला रहे इसकी पीड़ा
पी - पी कर विषमय हाला से
क्षण को विस्मृत भले करे , पर
फिर उभरेगी, ज्यों उतरेगी ये हाला
प्यार तराशा होता यदि श्रद्धा में
हर हाल बचाती पीड़ा - ज्वाला से

आपकी निम्न ग़ज़ल
बेसबब जो सफ़ाई देता है
दोष उसमें दिखाई देता है
यार बहरे बसे जहाँ सारे
क्यूँ वहाँ तू दुहाई देता है

पढ़ कर मुझे अपनी भी "श्रद्धा" की कुछ कडियाँ याद आ गई, जो आपको नज़रे इनायत है :
श्रद्धा
(३५)
गहन विचारों में है जाता कौंन
सतही बातें ही होती रहती है
गैरों के दर्दों को है किसने समझा
अपनी तो जान निकलती रहती है
थोड़े पल को तो करो मुक्त,
खो जाने को, गैरों के अहसासों में
श्रद्धा स्वयं अवतरित होगी मन में
'मानवता' नहीं अनजानी रहती है

आपकी निम्न ग़ज़ल
तुम जो ये क़हक़हे लगाते हो
राज़ गहरा दिखाई देता है
गालियाँ खा के मुस्कुरा "नीरज"
कौन किसको बधाई देता है

पढ़ कर मुझे अपनी भी "श्रद्धा" की कुछ कडियाँ याद आ गई, जो आपको नज़रे इनायत है :
श्रद्धा
(३४)
कर्म करोगे हैवानों सद्रश्य
तो सबकी गाली खानी होगी
पा प्रतिस्पर्धा चरम दौर में
गला काटने की ठानी होगी
मिला है जीवन इंसानों का तो
कुछ इंसानों सा कर दिखलाओ
रमे श्रद्धा से सेवा-भावों में तो
इंसानियत नहीं अनजानी होगी

लगता है कडियाँ काफी लम्बी हो चली है , शेष फिर कभी, पर अभी तो दिल को छू लेने वाली ग़ज़लों से रूबरू कराने के लिए बधाई तो स्वीकार करें अन्यथा आप फिर कहेंगें कि
" कौन किसको बधाई देता है "

चन्द्र मोहन गुप्ता
जयपुर

समयचक्र said...

बहुत ही बढ़िया बधाई.

Udan Tashtari said...

वाह वाह!! क्या बात है नीरज बाबू...गजब! आप छा गये महाराज.

pallavi trivedi said...

यार बहरे बसे जहाँ सारे
क्यूँ वहाँ तू दुहाई देता है

kya baat hai..bahut umda ghazal.

डा० अमर कुमार said...

अरे ! इतना अच्छा सत्संग यहाँ होता है, यह आज जाना ।
अब अगली बैठक की प्रतीक्षा है ।

कुश said...

वाह क्या बात है... बढ़िया ग़ज़ल कही आपने

seema gupta said...

आँखों�आँखों में बात हो जब भी
अनकहा भी सुनाई देता है
"khubsuret sher"

Ratan said...

आज का दिन सफल होता लग रहा है, क्यूंकि जबसे देश आया हूँ बहुत हीं ज्यादा बोरियत महसूस कर रहा था. वजह मेरे सारे दोस्त "दिल्ली से दफा" हो चुके हैं, सो आज सोचा आपकी कुछ रचनाएँ पढ़ कर आपना मन बहलाता हूँ, और वाकई में मन प्रस्सन हो उठा.

"गालियाँ खा के मुस्कुरा "नीरज"
कौन किसको बधाई देता है.. "

नीरज अंकल आपका एक निराला अंदाज़ है कविताओं की समाप्ति का, जो की मुझे बेहद पसंद आता है.

आप धन्य हो और आशा है की सदा ऐसे ही मेरा दिन सफल होते रहे आपके कवितायों का लुत्फ़ उठा kar.

-रतन

Arvind k said...

A Well Written Poem !!


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