Saturday, June 21, 2008

आओ चलें खोपोली - एकता की आवाज़





आओ चलें खोपोली" …..ब्लॉगर ने पत्नी से कहा..."क्यों चलें ? क्यों ? क्यों चलें?" ब्लॉगर की पत्नी ने पूछा. सवाल सीधा था ब्लॉगर घबराए फ़िर बोले
"अरे वो अपने नीरज भाई हैं ना उन्होंने अपने ब्लॉग पर खोपोली के बारे में बहुत कुछ लिखा है चलो देख आते हैं"…
"पैसे क्या तुम्हारे नीरज भाई देंगे? पत्नी ने सवाल दागा.
पत्नीयां और कुछ करें या ना करें लेकिन सवाल दागने के मामले में किसी से पीछे नहीं रहती.ब्लॉगर ने समझाया
भागवान वे क्यों देंगे,एक तो बुला रहे हैं ये क्या कम है? रहने और खाने का इन्तेजाम कर रहे हैं और क्या करेंअब शरीफ इंसान की जान थोड़े ही ले लोगी तुम.”
पत्नी ने तिरछी मुस्कराहट चेहरे पर लाते हुए कहातुम तो रहे सदा के बौड़मये तो मैं ही हूँ जो तुमसे निभा रही हूँ वरना तुमको इंसान पहचानने की अक्ल कहाँ".
ब्लॉगर ने सोचा होगा कीभागवान अगर अक्ल होती तो क्या तुमसे शादी करता?”
लेकिन जैसा होता है चुप रह गया होगा बेचारा.
"देखो जी तुमको जाना है तो तुम जाओ मुझे कहीं नहीं जाना,अरे छोटी मोटी बरसात में तो हमारे घर के सामने वाले कूड़े के ढेर से झरने चल निकलते हैंखाली जगह पर हरियाली उग आती है, तुम भी किसी अच्छे कैमरे से फोटो खींच के देखो लगेगा जैसे कश्मीर की छवि खींच लाये हो"
"पता लगाओ जरूर दाल में कुछ कला है तभी बुला रहे हैं तुमको. तुम्हारे नीरज भाई ने लगता है ऐसे ही बस फोटो खींच के तुमको उल्लू बनाया है, वहां ऐसा कुछ नहीं है जैसा वो लिखते हैं" पत्नी ने आखरी हथियार चला दिया.
ब्लॉगर सच्चा इंसान था उसे गुस्सा आया बोला "तुमने पढ़ा है उनका ब्लॉग?"
पत्नी फंस गयी इस सवाल से अगर हाँ बोलती तो ब्लॉगर पूछ सकता था की फ़िर हमारा ब्लॉग क्यों नहीं पढ़ती हो.पत्नी होशियार थी,सबकी होती है,ये ही त्रासदी है,बोली "नहीं हम क्यों पढेंगे वो तो हमारी मुम्बई वाली सहेली फोन कर के बता रही थी की एक जने ने खोपोली के बारे में बहुत कुछ लिखा है तुम्हारे पति ब्लॉगर हैं कहीं झांसे में ना आजायें."

पत्नीयां मैंने देखा है कभी कभी सच बोलती हैंहमारे ब्लॉगर बंधू की पत्नी जिसका जिक्र ऊपर कर चुका हूँ,इस बार गलती से सही बोल रही थी.हमें सच ही किसी को बुलाने का कोई शौक नहीं था.आख़िर हम पिछले 5 साल से खोपोली में हैं और याद कीजिये कभी किसी को खोपोली आने को कहे हों. सच बात तो ये है की हमारे साथ कुछ ऐसा हादसा हो गया जिस से आप लोगों को बुलाने की जुगत बिठानी पढ़ रही है.

हुआ यूँ की हमारे एक मित्र हैं,जिन्हें मित्र कहना " बैल मुझे मार" कहने जैसा है. मित्रता करना उनका शौक है वो चाहे जिसके मित्र बन जाते हैं यहाँ तक की जबरदस्ती करके भी. उनके पास अनोखे शेरों और ग़ज़लों का अथाह भण्डार है जिसे, उनके कहे अनुसार उन्होंने ने दिव्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद ख़ुद लिखा है, लेकिन जिनका कोई श्रोता नहीं है.सो वो जनाब पहले मित्र बनते हैं फ़िर उसे अपनी रचनाएँ सुनाते हैं.खोपोली में डाक्टरों का धंदा उनकी मेहरबानी से खूब फल फूल रहा है.उनकी रचनाएँ सुनने के बाद अक्सर लोग जंगल की तरफ़ लोटा लिए जाते या सर पकड़ कर रोते हुए,पाये जाते हैं.उनके दुखों का अंत डाक्टर के दर पर जा कर भरती होने पर ही होता है.

वो एक दिन हमें खोपोली के एक बड़े नेता के पास मिलवाने ले गए.हमने लाख कहा की भाई हमें किसी नेता-वेता से मिलने में कोई ईन्ट्रेस्ट नहीं है लेकिन वो नहीं माने बोलेनेताजी को मेरी तरह साहित्य से बहुत प्रेम हैतुमसे मिल कर बहुत खुश होंगेहमने लाख हाथ पाँव मारे लेकिन उनपे कोई असर नहीं हुआ.वो जबरदस्ती हमें ले गए. नेता जी जिनको सब भाऊ कहते हैं कोई 70-75 साल के होंगे, जो ऊंचा सुनते थे सफ़ेद गाँधी टोपी पहने अपने दोनों पैर मूडे पर चढ़ा के हुक्के का सेवन कर रहे थे. हमारे मित्र और हमने प्रणाम किया उन्होंने जवाब में जोर से एक कश खींचा और धुआं हमारे मुह पर उन्ढेल दिया. ये उनकी सत्कार करने की एक अदा थी.

मित्र बोलेभाऊ ये नीरज गोस्वामी हैं"...भाऊ ने ऊपर देखा..मित्र आगे बोले " शायर हैं "...भाऊ मुह बिचकाते हुए कान पर हाथ रखते हुए बोले "क्या कहा???टायर" ??
"टायर नहीं भाऊ शायर, शायर" मित्र को अपनी आवाज़ तेज़ करनी पढ़ी
भाऊ मुस्कुराये, बोले " एक ही बात है, एक ही बात है."
"एक बात कैसे?" मैं पूछ बैठा.
"देखो भाई, जो भी तुम्हारा नाम है, टायर और शायर दोनों को सहारा चाहिए दोनों ही बिना सहारे बेकार हैं, टायर को गाड़ी का और शायर को श्रोता का सहारा चाहिए " भाऊ ने हुक्के से काश खींचा.
"जय हो जय हो, सत्य वचन, सत्य वचन " सारे चमचे जो आसपास बैठे थे एक स्वर में बोले.
हमारे मित्र खिसियाये और बात बदलते हुए बोले "भाऊ ये ब्लॉगर भी हैं "
"कौन हैं? बेग्गर??" भाऊ ने पूछा
मित्र पानी पानी होते हुए बोले "बेग्गर नहीं ब्लोगर ,ब्लोगर, जो ब्लॉग लिखते हैं "
भाऊ फ़िर मुस्कुराये, बोले " एक ही बात है, एक ही बात है."
"एक बात कैसे?" मैं फ़िर पूछ बैठा.
"देखो भाई, जो भी तुम्हारा नाम है, बेग्गर और ब्लोगर दोनों ही मांगते हैं, एक पैसा मांगता है दूसरा टिप्पणी" भाऊ ने गर्व से चमचों की तरफ़ देखा.
"जय हो जय हो, सत्य वचन, सत्य वचन " सारे चमचे एक स्वर में बोले.
"इनको यहाँ किसलिए लाये हो?" भाऊ ने हमारे मित्र से पूछा
"ऐसे ही आप साहित्यकारों का सम्मान करते हैं ना इसलिए" मित्र बोले
"पर ये तो बेग्गर हैं...ओह हो ब्लोगर हैं, ये साहित्यकार थोड़े ही हैं." भाऊ ने शंका व्यक्त की, फ़िर मेरी और देख के पूछा क्यूँ भाई जो भी तुम्हारा नाम है,.क्या तुम सम्मान के लिए ये सब करते हो?"
"नहीं भाऊ मैं आत्म सम्मान के लिए करता हूँ" मैंने छाती फुला कर कहा.
भाऊ ने हँसते हुए कहा " आत्म सम्मान?? ये क्या होता है?"
सारे चमचे भी ये बात सुन के हंसने लगे.
मुझे समझ गया भाऊ सच में नेता हैं क्यूँ की एक नेता ही ये प्रश्न पूछ सकता है.
"भाऊ मैं ही नहीं सारे ब्लोगर सिर्फ़ अपने आत्म सम्मान और संतुष्टि के लिए लिखते हैं और हमारे इस समाज में इतनी एकता है की एक आवाज़ पर इकठ्ठा हो सकते हैं"
भाऊ को मेरी हालत देख के मजा आने लगा था. उन्होंने एक कागज पर कुछ लिखा और मेरे मित्र को देते हुए बोले "अच्छा? ये लोग एक आवाज़ पर इकठ्ठा हो सकते हैं? इनको, जो भी इनका नाम है, कहो की ये अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिख कर अगर एक भी ब्लोगर को, जो इन शर्तों के अंतर्गत आता हो, बुला के हमारे सामने ले आयें तो हम नेता गिरी छोड़ देंगे."
मैंने कागज पर लिखी शर्तों को पढ़ा, समझा और मित्र से कहा " भाऊ से पूछो की ये अपनी जबान से फ़िर तो नहीं जायेंगे?"
भाऊ ताव में गए, चमचों ने कमीज की बाहें ऊपर उठा लीं.माहौल गरम हो गया.
भाऊ दहाड़े" हम सबके सामने कहते हैं अगर तुमने किसी को बिना नाम लिए ब्लॉग के जरिये बुला लिया और हमें मालूम भी पड़ गया तो हम नेता गिरी छोड़ के सन्यासी हो जायेंगे"
मैंने तुंरत वापस के "आओ चलें खोपोली-" वाली पोस्ट लिखी, मैं जीवन में कम से एक नेता के अपने आप सन्यासी बनने का कारण जरूर बनना चाहता था."
मैंने पहले पूरी खोपोली छान मारी, कोई एक लाख से ऊपर की आबादी है,उसमें मेरे अलावा कोई दूसरा ब्लॉगर नहीं मिला. मुझे भाऊ के सामने उनकी दी हुई शर्तों के अनुसार ये सिद्ध करना था की :

1.सभी ब्लॉगर शायर नहीं होते ,इंसान भी होते हैं.
2.सभी ब्लॉगर टिपण्णी के लिए नहीं तरसते ,कुछ ब्लोग्गेर्स की पोस्ट पर टिप्पणियां आने के लिए ख़ुद कतार में खड़ी रहती हैं.
3.सभी ब्लॉगर ऐसे मेरी तरह नहीं दिखते , जिनको देख कर चाचा डार्विन के इस सिधांतहमारे पूर्वज बन्दर थेकी पुष्टि होती है. ब्लॉगर सुंदर भी होते हैं.
4.सभी ब्लॉगर मेरी तरह मंद बुद्धि ,अनर्गल प्रलाप करने वाले नहीं होते , बहुत समझदारी की बातें करने वाले भी होते हैं.
5. सभी ब्लॉगर मेरी तरह दूसरों की रचनाएँ अपनी पोस्ट पर नहीं लगाते उनके ख़ुद के पास इतनी सामग्री होती है की अकेले ही दो दो तीन तीन या चार पाँच ब्लॉग में अपनी बात कहते

लेकिन जो हालात बन रहे हैं उस से लगता है की मुझे भाऊ को खिलखिला कर हुक्का पीते हुए चमचों के बीच छोड़ कर खोपोली से अलविदा लेनी होगी.
मैंने अपनी कहानी सुना दी है, अगली पोस्ट में खोपोली की वो जानकारी दूँगा जो पर्यटकों को तो नहीं बल्कि धर्मभीरु ब्लोगरों को यहाँ तक शायद खींच लाने में सफल हो जाए.

17 comments:

पंकज सुबीर said...

नीरज जी आनंद ला दिया आपने तो हा हा हा एक तो ये भीगी भीगी सी बरसात और उस पर आपका ये लेख आनंद आ ही गया । इन दिनों कुछ दूर हूं और एक काम में लगा हूं जल्‍द ही मिलेंगें

Shiv said...

ई नेता असली नेता नहीं है.. रहेगा कईसे? ई भाऊ टाइप नेता अभी बिहार का नेता नहीं देखा है...का पूछे? हम ईसा काहे कह रहे हैं?...ई नेतवा हार जायेगा..जल्दी ही एक चिट्ठाकार कम मानव खोपोली पंहुच रहे हैं....

(लीजिये, हम ये लिख रहे हैं और हमरे आस-पास बैठे लघु मानव (मतलब चमचे) सत्य वचन, सत्य वचन कह रहे हैं..:-)

कुश said...

हम तो बोरिया बिस्तर बाँध दिए है.. एक ब्लॉगर की बात ख़ाली नही जाने देंगे... तो मित्रो "आओ चले खोपोली "

Ashok Pande said...

उत्तम निष्कर्ष निकाले हैं खोपोली के बहाने साहब! और बढ़िया पानी में भिगो के जूता दिया है आपने हमारे स्वनामधन्य ब्लॉग जगत को.

बहुत सुन्दर है यह पोस्ट. लिखते रहें. शुभ!

डॉ .अनुराग said...

लगता है अब खोपाली आना ही पड़ेगा ..खाना -पीना?मुफ्त ?वो भी शायर की तरफ़ से ?पर हमने तो सुना था की शायर बेचारे भूखे होते है.....ओह पर लगता है ब्लोग्गर्स शायर की बात जरा अलग है.....खपोली का प्रोग्राम बनाये उससे पहले सुन ले की अभी ओर कौन से राज से परदा उठाना है ...

रंजू भाटिया said...

:).आप तो ललचा रहे हैं सबको वहां आने के लिए ..ब्लोगेर्स वाली बात बहुत ही मजेदार लगी आपकी ..हंसा हंसा कर सेंटी कर दिया आपके इस लेख ने :)

समयचक्र said...

जल्‍द ही मिलेंगें

Dr. Chandra Kumar Jain said...

वाह !
आज तो बेहद ख़ुश मिजाज़ी का
आलम लेकर पेश आए हैं आप.
नीरज जी !
यकीन मानिए आज
ब्लागर से इंसान होते-होते
बाल-बाल बच गया !
वरना ये टिप्पणी कैसे भेजता ?
==========================
खोपोली के बहाने ये सिरीज़ तो
बहुत रोचक बनती जा रही है.
आपकी शैली का कमाल है.

बधाई...आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन

HBMedia said...

bahut achha laga ...umda aur utkrisht

Ashok Pandey said...

हां, मित्रो... सब चलें खोपोली। नीरज भाई की बात तो माननी ही है।

महावीर said...

वाह। पढ़ने में आनन्द आ गया। भाऊ से मिल
कर बड़ी खुशी हुई। नीरज जी, आपके लिखने की कला को सलाम करता हूं। ऐसे ही लिखते रहिए और
हम इसी तरह आनंद लेते रहें।

Alpana Verma said...

Lekh rochak hai--aur naam--KHOPALI---bahut hi dilchasp!
lekin ye kya kaha??
1.सभी ब्लॉगर शायर नहीं होते ,इंसान भी होते हैं.'
ab paata chala ki shayar INSAN nahin hota---:)--badiya hai--tabhi kush rah payega--
**by the way phir wo hota kya hai??**

योगेन्द्र मौदगिल said...

मजेदार नित कथा सुनाएं नीरज भैय्या खोपोली
हाथ हिला कर पास बुलाएं नीरज भैय्या खोपोली

सारे ब्लागर सेच रहे हैं अब तो जाना ही होगा
पोस्ट-पोस्ट में ख्वाब दिखाएं नीरज भैय्या खोपोली

रोटी पानी सोना रहना कविताबाज़ी भी प्यारे
हाय हमारे दिन बहुराएं नीरज भैय्या खोपोली

सारी टाउनशिप देखेगी नीरज जी के बंगले को
हाय नमूने छांट मंगाएं नीरज भैय्या खोपोली

दाढ़ी सहलाते सहलाते मुदगिल जी ने गजल कही
नये नये किस्से पढ़वाएं नीरज भैय्या खोपोली

Mumukshh Ki Rachanain said...

"आओ चलें खोपोली" से तो भाया
था नीरज भैया ने सबको ललचाया

था राज छिपा इसके पीछे क्या कुछ
ख़ुद हो बेफिक्र सब कुछ बतलाया

बन गाइड शायर-काया ने, मस्त, मुफ्त
बैठे-ठाले खोपोली-दर्शन तो करवाया

चाहे संजों कर रखो इन चित्रों को या
फिर इनसे अपनों का दिल बहलाना

पकड़ "नीरज" भाषा-शैली को तुम भी
अपनी नगरी की भी कुछ बतलाना

चंद्र मोहन गुप्ता

Anita kumar said...

ब्लोगर एकता जिंदाबाद, आप हुकुम करें जी उस नेता की तो ऐसी की तेसी, जब कहेगें हम हाजिर हो जाएगें बस भाभी जी से खीर जरुर बनवा लिजिएगा…।:)

seema gupta said...

very interesting to read about this epesode of journey, really enjoyed it.

Regards

Ratan said...

अरे वह नीरज अंकल क्या लिखा है. तारीफ़ के लिए मेरे पास वैसे भी हिन्दी भाषा के शब्द कम हैं और उनमे से कोई यहाँ पर पुरी तरह से उपयुक्त नहीं लग रहा है, पर सच में मज़ा आ रहा है पढ़ कर आपकी सारी रचनाएँ.

साथ में बैठ कर पापा भी इनका आनंद उठा रहे हैं.

-रतन