Tuesday, June 10, 2008

आओ चलें खोपोली - 2

आओ चलें खोपोली - 2
मुझे मालूम था की खोपोली के बारे में लोग प्रेम से पढेंगे जरूर लेकिन आयेंगे नहीं.....ऐसा होता है हम पढ़ तो लेते हैं किसी जगह के बारे में फ़िर कहते हैं..."देखेंगे...", सोचेंगे... " "चलेंगे...","कैसे जायें?"..."बड़ी दूर जगह है यार" "बड़ा मुश्किल काम है..." बच्चों के स्कूल खुलने वाले हैं..."" शेयर मार्केट ठीक नहीं है... " यार वाईफ की तबियत ढीली है..." अभी पिछली पोस्ट की टिप्पणियां भी पूरी तरह से नहीं आयीं..." " क्या करें अपना बॉस बड़ा खुडुस है (किसका नहीं होता...), छुट्टी मांगो तो काटने दौड़ता है...." याने ना जाने के हजारों बहाने....और जब बात किसी अनजान जगह की हो तो ये बहाने दस गुना बढ़ जाते हैं...आप जैसों के लिए एक शेर है सुनिए..
" धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो,
जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो"

खोपोली में इन दिनों धूप का मौसम नहीं है. घटाओं में नहाने का है. मुम्बई से लोग सिर्फ़ भीगने और घटाओं में नहाने के लिए यहाँ दौडे चले आते हैं...ऐसा नहीं की मुम्बई में बरसात नहीं हो रही...हो रही है लेकिन उस बरसात से कीचड और गंदगी का साम्राज्य स्थापित हो जाता है. हमारे घर के ब्लोक की छत से देखिये घटायें कैसे नजर आती है....


घर की बाल्कोनी से लोनावला और खंडाला की पहाडियों पर उड़ते बादल दिखाई देते हैं, थोडी ही देर में बरसात शुरू हो जाती है और पता भी नहीं चलता...अगर आप को इस शेर
" गुनगुनाती हुई गिरती हैं फलक से बूँदें,
कोई बदली तेरी पाजेब से टकराई है"

का सही मतलब समझना है तो खोपोली आना ही होगा.


हलकी सी बरसात के बाद खोपोली की पहाडियाँ से झरनों के स्वर मुखर हो उठते हैं, कहीं एकल तो कहीं झरनों का समूह गान शुरू हो जाता है. अभी तो बारिश की शुरुआत है और देखिये ना ये झरना कहीं अलग ही अपनी मस्ती में धीमे धीमे आलाप ले रहा है...


और कहीं अल्हड़ लड़कियों के समूह की तरह एक साथ खिलखिलाते हुए झरने अलग ही समां बांधते हैं. आप लाख अपने कदम बढ़ने की कोशिश करें लेकिन इन झरनों की आवाजें आप को ठिठकने पर मजबूर कर देती हैं. आप रुकते हैं मुस्कुराते हैं और आगे बढ़ जाते है....लेकिन मन वहीं ठिठका रह जाता है...


खोपोली की खास बात ये है की आप इन दिनों जिधर नजर घुमायेंगे वहीं आप की आँखें उधर ही चिपक जाएँगी. प्रकृति के ये नज़ारे किसी भी बस्ती के इतनी पास मिलना इतना आसान नहीं होता. खोपोली का अर्थ है कटोरा याने ये स्थान एक कटोरे की तरह है जिसके चारों और पहाड़ हैं. इन पहाडों पर चड़े बिना आप पुणे नहीं जा सकते. खोपोली तलहटी में बसा हुआ है, इसीलिए ऐसे खूबसूरत दृश्य देखने को मिलते हैं:


समंदर खोपोली से ज्यादा नहीं येही कोई ६०-७० की.मी. दूर होगा बस...घटायें यहाँ की पहाड़ियों से टकरा कर बरसती हैं और पानी बन कर समंदर में जा मिलती हैं. छोटा सा रूट है इनका , जरा ये शेर सुनिए
"जुदा हो कर घटायें फ़िर तुझे रो रो के मिलती हैं,
समंदर आब( पानी) तेरा फ़िर ये कैसे मीठा हो तो कैसे हो"



अब ऐसा भी नहीं है की हर एक को खोपोली पसंद ही हो. बारिशें हैं सीलन है सब कुछ गीला गीला है और तो और सूरज देवता के दर्शन कभी कभी तो ४-५ दिनों तक ना होना बड़ी आम सी बात है, हर वक्त शाम का सा एहसास रहता है याने

:" घटा में कैद है सूरज सवेरा हो तो कैसे हो,
हुकूमत है अंधेरों की उजाला हो तो कैसे हो"


वाला हिसाब रहता है.


लगातार होती बरसात से दरो दीवार पर सब्ज़ा उग आता है..जिसको देख कर चाचा ग़ालिब ने कहा था " हम बियाबां में हैं और घर में बाहर आयी है..." मुझे लगता है की मशहूर शायर एहमद फ़राज़ शायद खोपोली आ कर रहे होंगे तभी उन्होंने कहा है की
" इन बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं फ़राज़,
कच्चा तेरा मकान है कुछ तो ख्याल कर"



कभी कभी ऐसा होता है की बारिश के बाद मौसम खुल जाता है तब ऐसे में सूर्यास्त देखना भी एक सुखद अनुभव है, यूँ लोनावला में याने मेरे घर से कोई १८-१९ की.मी दूर एक पॉइंट है जहाँ से सूरज को डूबते देखना लोगों को बहुत अच्छा लगता है लेकिन अपने घर से देखने जैसे तो कोई बात ही नहीं होती ना.


अभी तो सिर्फ़ खोपोली के पहाडों और झरनों का जिक्र किया है खोपोली कुछ दर्शानिये स्थलों से भी भरी पड़ी है खास तौर पर श्रधालुओं के लिए यहाँ बहुत कुछ है. मेरे घर से ५ की.मी. दूर आठ अष्टविनायक में से एक गणपति का मन्दिर है तो दूसरे अष्टविनायक पाली याने मेरे यहाँ से कोई २० की.मी दूर स्तिथ हैं , २०० साल पुराना शिव मन्दिर और गगन गिरी आश्रम के बारे में अगली किश्त में..अगर आप जानना चाहेंगे तो...जरूर बताऊंगा.
चलते चलते मेरी भविष्य में पोस्ट पर आने वाली ग़ज़ल का एक शेर सुनाता चलता हूँ:

खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए


तो श्रीमान, मेहरबान, कदरदान...सोच क्या रहे हैं? खिड़कियों से झांकना है या बारिशों में भीगना है.... ? ? ? ?

23 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

इतने रमणीक दृष्य! खिड़कियों से झांकने में यह आनन्द है तो बारिश में भीगने का तो सुख ही कुछ और होगा!
अभी तो कर्नल बैंसला की टीम जो रेल की पटरियां उखाड़ रही है - से निपट लें। अभी तो नर्क और स्वर्ग सब यहीं है!

हरिमोहन सिंह said...

खिडकी से जो नजारा आप करवा रहे है वो भी कम नही

विजय गौड़ said...

नीरज जी आप बुलाकर ही मानोगे किसी न किसी को तो. आपकी आत्मीयता किसी न किसी को तो मजबूर कर ही देगी. वैसे इंतजार करें, वर्ष भर के भीतर कभी न कभी कोई ब्लागर साथी भटकता हुआ पहुंच ही जायेगा. यदि समय की कोई निश्चित सीमा नही कि कब तक तो तय मानिये आपका खपोली अपने को भी लुभा रहा है.

डॉ .अनुराग said...

आपको कही से जलने की बू आ रही है.....अब आने लगेगी....कहते है की शायर आदमी को आप कही भी भेजो कम्बख्त वहां से भी दो चार शेर ढूंढ लेता है.....जितने खूबसूरत बादल है उतने ही खूबसूरत शेर है..आपके आखिरी पर ........

छोडिये दुश्मनी अब इन बादलों से
कभी तो इन्हे गले से लगाकर देखिये

VIMAL VERMA said...

बहुत खूब लगता है खपोली से रिश्ता बनाना ही पड़ेगा...सारे शेर और तस्वीरे मन मोहक हैं....बहुत अच्छा विवरण दिया है आपने दिल वाकई बाग बाग हो गया...पिछले दिनों मैं खारघर में था वहां पर इसका थोड़ा नमूना देख आया हूँ...कभी लोनावाला की याद अभी भी पलकों पर जमीं हुई है....ओह क्या ओस में भीगे दिन थे...आपका खपोली हम सबका हो यही आशा करता हूँ..बहुत बहुत शुक्रिया

बालकिशन said...

बहुते ललचा रहें है हमको, भइया आप तो.
क्या कहें बहाने तो सारे आपने ऊपर बखान ही दिए हैं.
पर एक बात है बेजोड़ जोड़ बनाया है इन तस्वीरों और शायरी का. बहुत ही उम्दा.

रंजू भाटिया said...

बहुत रोचक ..जितनी सुंदर जगह है उतने ही सुंदर शेर कहे हैं आपने
खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए

और यह भी सही कहा भीग जाने को किस का दिल नही चाहेगा .पर ज़िंदगी में परन्तु ..किंतु तो साथ साथ चलते हैं :) अभी आपके लिखे लेख से ही घूम लेते हैं ..अगले अंक का इंतज़ार रहेगा

दीपान्शु गोयल said...

मस्त, खूबसूरत और दिव्य

mamta said...

खूबसूरत फोटो और बढ़िया विवरण ।

Yunus Khan said...

ओहो ।
इस शहर के जाल में कै़द हैं हम ।
खोपोली छत से दिखता है पर एक ही है ग़म ।।अब आपने दिल में चाहत जगा दी है ।
देखते हैं कब वहां तक पहुंच पाते हैं हम ।

Priyankar said...

बेहद सुंदर और नयनाभिराम दृश्य और उतना ही सरस वर्णन . मन को मोहता हुआ . अभी तो दुनियादारी में लिप्त हैं,वही सब जिनकी तरफ़ आप शुरुआत में ही इशारा कर चुके हैं . किताबों को हटा भी दें तो भी जिंदगी में वही दिखाई देगा . सो फिलहाल लालच को विराम और इच्छाओं को आराम देते हैं . आगे की आगे देखेंगे .

Shiv said...

नीरज भइया,
ई जो चाय का दुकान है, हम वहाँ खड़ा हूँ...यहाँ से किधर जाना है...ई चाय दुकान के पास में जो इंटरनेट कैफे है वही से टिपण्णी कर रहा हूँ...जल्दी से टिपण्णी देखें और रास्ता बतायें..आपका फ़ोन बहुत देर से इंगेज आ रहा है.....:-)

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी,
पढ़ते-पढ़ते तन-मन भीग गया.
खोपोली पर आपने, घटाओं की मानिंद
झूमकर बरसते हुए लिखा है....दिल से.
...और शे'रों का चयन !...बहुत-बहुत खूब !
==================================
पाज़ेब से टकराई बिजली के असर से
पैदा हुई रुनझुन ही है यह पोस्ट.
शुक्रिया
डा.चंद्रकुमार जैन

Abhishek Ojha said...

बहुत खूबसूरत तसवीरें हैं... मैं एक बार खोपोली हो आया हूँ पर उस समय गर्मी थी... बस बरसात का इंतज़ार था... अब जल्दी ही आने वाला हूँ.

मीनाक्षी said...

दीवानावर से हम कभी अपने यहाँ
और कभी आपके वहाँ देखते हैं......

यहाँ तो धरा का रेतीला दामन है
वहाँ हरियाला मखमली आँचल है...

यहाँ नभ की सांसों सी गर्म हवायें हैं
वहाँ तो प्रेम की प्यारी घनघोर घटायें हैं ....

पंकज सुबीर said...

छोडि़ये नीरज जी ग़ज़ल को आप तो यात्रा वृतांत लिखिये आप तो शब्‍दों से चित्र खींचने के जादूगर हैं । लगता है कि बारिश पड़ते ही पहला काम ये करना है कि मुम्‍बई आने का कार्यक्रम बनाना है । देखिये अब आप इतना ललचाएंगें तो मेहमानों का ढेर भी झेलना होगा

Udan Tashtari said...

वाह!! जन्नत का नज़ारा. अब आप ललचवा रहे हैं. अति रमणीक दृष्य. पक्का ही मानें हमारा आना तो.

Udan Tashtari said...

अरे हाँ, शेर सभी बहुत उम्दा हैं.चार चाँद लगाते हुए.

Batangad said...

मन बहका दिया सर आपने। बहुत कुछ ऊटपटांग न हुआ तो, अगले हफ्ते आपके घर और फिर बादलों के संग उड़ने का कार्यक्रम पक्का ।

Pankaj Oudhia said...

क्या उम्दा लिखा है और चित्रो से सजाया है। अगली बार थोडा वनस्पतियो पर भी फोकस करियेगा। :)

admin said...

बहुत सुन्दर जगह है। अब तो जाने बिना दिल नहीं मानेगा।

समयचक्र said...

Umda khapoli ke sachitr darashan karane ke liye .dhanyawaad

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,
टिप्पणियों में निम्न टिपण्णी

नीरज भइया,
ई जो चाय का दुकान है, हम वहाँ खड़ा हूँ...यहाँ से किधर जाना है...ई चाय दुकान के पास में जो इंटरनेट कैफे है वही से टिपण्णी कर रहा हूँ...जल्दी से टिपण्णी देखें और रास्ता बतायें..आपका फ़ोन बहुत देर से इंगेज आ रहा है.....:-)

करने वाले का क्या हश्र रहा, जानना चाहता हूँ , क्योंकि कहीं निम्न शेर

खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए
की तरह खिड़कियों से ही नज़ारा देखते तो नही रह गए, शायद फोन बारिश के रिम- जिम टोन को सुनने में बिजी रहा होगा.

खैर जिस तरह हमारे देश के कुछ लेखक नेताओं की महानता का बखान उनकी जीवनियाँ लिख कर करते हैं कुछ उसी तरह आपने भी छुटकी औद्योगिक नगरी की सौन्दर्यता का जो सचित्र प्रस्तुतीकरण किया है वह निश्चित ही खोपोली को भी महाराष्ट्र के रमणीक पर्यटक स्थलों में एक स्थान जरूर दिला जाएगा, जिसका सम्पूर्ण श्रेय आपको ही प्राप्त होगा.

वस्तुतः सौन्दर्यता की परख कोई सुन्दरता का पारखी पुजारी ही कर सकता है, इश्वर आपकी तपस्या पर प्रसन्न हो अवश्य ही आशीर्वाद देंगे, ऐसा मेरा विश्वास है.

ये ही वो कर्म हैं जिनसे धनोपार्जन तो नहीं होता , पर अमूल्य कृतियों के नाम से जानी जाती है. ऐसे रचनाकारों का कोई खडूस बॉस नहीं होता, जिससे छुट्टियाँ मांगना पड़े .

आपका
चंद्र मोहन गुप्ता "मुमुक्षु"