Friday, June 6, 2008

आओ चलें खोपोली - 1

आओ चलें खोपोली
बारिश आने को है...ऐसे में सोचा आप को नयी ग़ज़ल सुनाने से बेहतर है खोपोली के बारे में बता दूँ जो ख़ुद बारिशों में मीर की ग़ज़ल सी दिलकश हो जाती है. मुम्बई की भीड़ भाड़ से सिर्फ़ ७६ की.मी दूर पहाडों की तलहटी में बसा है खोपोली. जहाँ ये खाकसार रहता है. आप पूछेंगे की खोपोली के बारे में क्यों बता रहा हूँ, तो जवाब है ऐसे ही अब किसी अच्छी जगह के बारे में बताना गुनाह थोड़े ही है. आप फ़िर पूछेंगे की भाई हम खोपोली क्यों आयें? जवाब होगा: घूमने. आप फ़िर पूछेंगे, क्यों की पूछना इंसान का स्वाभाव है, की सुविधा क्या मिलेगी? तो जनाब इसका जवाब इतना सीधा नहीं है...सुविधा इस बात पर मिलेगी की आप क्या हैं? आप माथे पे सल डाल के पूछेंगे की क्या हैं से मतलब? तो जो हम जवाब देंगे वो कुछ इसतरह का होगा:

१. यदि आप ब्लॉगर हैं तो आप को खोपोली कैसे आना है इसकी मुफ्त जान कारी मिलेगी

२. यदि आप ब्लॉगर हैं और मेरे ब्लॉग को पढ़ते हैं तो आप को मेरे घर नाश्ता मिलेगा.

३.यदि आप ब्लॉगर हैं और मेरे ब्लॉग को पढ़ कर टिप्पणी भी करते हैं तो मेरी कार में खोपोली भ्रमण के अलावा सुबह का नाश्ता और लंच भी हमारे घर मिलेगा.

४.यदि आप ब्लॉगर नहीं हैं और फ़िर भी मेरा ब्लॉग पढ़ते हैं तो आप का मुफ्त खोपोली भ्रमण, हमारे साथ भोजन सुबह और रात दोनों समय का मिलेगा.

५.यदि आप ब्लॉगर नहीं हैं और फ़िर भी मेरा ब्लॉग पढ़ कर टिप्पणी करते हैं तो मुफ्त खोपोली भ्रमण, तीन समय के भोजन के अलावा हमारे घर रहने की भी सुविधा मिलेगी.

( मेरे ब्लॉग के नियमित पाठक और टिप्पणी करने वालों के लिए विशेष सेवाओं का प्रावधान भी है तथा ऊपर दिए नियमों में ढ़िलायी भी सम्भव है)

तो शुरू करें वाशी याने नवी मुम्बई के बाद का सफर, समंदर पार करने के बाद :

मुम्बई से नवीं मुम्बई आने के लिए समंदर पे बना हुआ पुल पार करना पढता है उसी को पार करने के बाद का चित्र है। उसके बाद वाशी, खारघर जहाँ नया एयर पोर्ट भी आ रहा है और पनवेल पार करने के बाद आता है एक्स प्रेस हाई वे. यहाँ से शहर की भीड़ भाड़ से निजात मिलती है और प्रकृति के दर्शन शुरू होते हैं...साथ ही सुरंग याने बोगदा याने टनल से गुजरने का पहला अनुभव भी मिलता है...



टनल आने के कुछ ही देर पहले अपनी कार से लिया गया चित्र है ये
खोपोली तक के रस्ते में ऐसी दो टनल आती हैं एक कोई एक किलोमीटर से अधिक लम्बी और दूसरी अपेक्षा कृत छोटी. लेकिन इस रास्ते के दोनों तरफ़ के दृश्य टकटकी लगा कर देखने को विवश करते हैं



एक तरफ़ माथेरान के पहाड़ आप का मन मोहते हैं तो दूसरी तरफ़ हरियाली आप को रुकने के लिए कहती है. बरसात के दिनों में पहाडों पर से गिरते झरने जो समां बांधते हैं उन्हें शब्दों में नहीं बताया जा सकता.

आकाश पर उड़ते बादल आप का पीछा करते हैं...रिमझिम फुहारों से तन मन को भिगोते हैं...बादल कभी इतने करीब आ जाते हैं की लगता आप उन्ही में घिर गए हैं.....



इन खूबसूरत वादियों से गुजरने के बाद आता है टोल प्लाजा जिसे पार करते ही दिखाई देती है भूषण स्टील.


इसके सामने ही है भूषण गार्डन याने भूषण कर्मचारियों की कोलोनी जिसमें आप का ये अदना सा ब्लोगिया भी रहता है. जिसके घर की बाल्कोनी से सूर्योदय का दृश्य देखने वाले को बाँध लेता है।



आप यकीन नहीं करेंगे...कोई नहीं करता...ब्लॉग लिखने वालों का कोई यकीन नहीं करता...प्रमाण देना पढता है...तो लीजिये हाथ कंगन को आरसी क्या और पढे लिखे को फारसी क्या. अब यदि चित्र पर भरोसा नहीं है तो जेब ढीली कीजिये मुम्बई चले आयीये और उसके बाद की जिम्मेदारी हम पे छोड़ दीजिये:


ये तो हुई खोपोली तक की याने मेरे घर तक की यात्रा अब अगले अंक या पोस्ट में आप देखेंगे खोपोली की खूबसूरती. याने असली चित्र जिसे देख कर आप अपने आप को रोक नहीं पाएंगे. खोपोली में पुराने शिव मन्दिर, गगन गिरी आश्रम और बाण गंगा की मचलती लहरें की छवि आप के दिन का चैन और रातों की नींद हराम कर देगी और फ़िर चलेंगे लोना वाला खंडाला की यात्रा पर....एक छोटे से ब्रेक के बाद....टन ट ना...

20 comments:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी,
आप तो बड़ी खूबसूरत जगह में रहते हैं.
खोपोली के सुंदर चित्रों और रोचक वर्णन से
बारिश से पहले ही लगा कि झूमकर
बरस पड़े हैं बादल.
वैसे इस वक़्त जब मैं यह टिप्पणी
लिखने की तैयारी में हूँ
यहाँ भी कजरारे बादल मंडरा रहे हैं.
शायद आपकी इस पोस्ट के इंतज़ार में थे.
दिल कह रहा है कि अब बरसेंगे ये ज़रूर.
आपका शुक्रिया..... जानकारी के लिए.
और सुविधा का क्या कहें ?
समझिए घर बैठे लुत्फ ऊठा लिया.
==========================
आपका
चंद्रकुमार

Arun Arora said...

देखिये अंकल मै अपने पापा की आई डी से टिप्पणी कर रहा हू इसका साफ़ मतलब है कि मै ब्लोगर नही हू.तो मै मेरी और मेरी मम्मी पापा तथा एक छोटे भाई के साथ पंद्रह दिन के लिये खोपरा आ रहा हू.उम्मीद है आप स्वादिष्ट भॊजन नाश्ते के साथ
घुमाने के लिये तैयार मिलेगे.
थैक्यू अंकल

रंजू भाटिया said...

वाह इतना अच्छा मोका कौन छोड़ना चाहेगा ...आप की जानकारी की लिए बता दूँ कि मैं आपकी नियमित पाठक हूँ :) आप अगली पोस्ट करिये हम अगली ट्रेन से अपनी टिकट बुक करवाते हैं :) वैसे सही ब्लॉग लिखने वाले पर कोई यकीन नही करता है :)
मैंने यह नाम पहली बार सुना है ..अच्छा रोचक सा लग रहा है अब तक आपके बताये वर्णन के द्वारा .लिखते रहे

डॉ .अनुराग said...

aap bada hi satvik bhojan karte hai sahab....khair hame yatra me maja aaya...

विजय गौड़ said...

अंदाज पसंद आया.

Manish Kumar said...

sundar chitra ..vivran dete rahiye kam se kam door se hi darshan kar lein. Waise bhi Bhoosan wale SAIL ke logon ko andan aane thodi hi denge:)

दीपान्शु गोयल said...

ऐसा लगता है कि आप असली स्वर्ग में रह रहे हैं। इलाका वाकई खूवसूरत है। मैं तो हूँ कि पक्का यायावर तो मैं आ रहा हूँ आपके यहां।

Udan Tashtari said...

तो बात तय रही. ढ़िलाई बरतने की. बम्बई पहुँचने के बहुत पहले ही आपको सूचित कर दिया जायेगा.

मजा आया इस निराले अंदाज का भी.

Gyan Dutt Pandey said...

चित्र दिखा कर ललचा रहे हैं आप!

Dr Parveen Chopra said...

नीरज जी, इतनी बढ़िया पोस्ट के लिये आभार।

Pankaj Oudhia said...

कंसल्टेंसी के चक्कर मे महिने-दो महिने मे आपकी कालोनी के सामने से गुजरते है पर क्लाइंट कही रुकने नही देते है।

चलिये अब आपकी आँखो से ही देख लेंगे सब कुछ। अगली बार गद्य के साथ पद्य का समावेश भी करे। हम पढ रहे है।

पंकज सुबीर said...

ये तो एक सुखद लालच है जिसमें हर कोई फंसना चाहेगा । आपके घर की छत पर ढलते सूरज के सामने एक छोटी सी नशिश्‍त हो तो कया बात है ।

Shiv said...

हम आपका ब्लॉग पढ़ते हैं. हम आपकी पोस्ट पर टिपण्णी करते हैं. हम टिपण्णी करने के बाद आपको सूचित भी करते हैं कि हमने टिपण्णी कर दी है.....(सूचित करते हैं? नहीं ये थोड़ा ज्यादा हो गया.)

मेरे कहने का मतलब ये कि हम रहने, तीन 'टेम' खाने, खोपोली घूमने के साथ-साथ आपकी गजलें सुनने के लिए क्वालिफाई करते हैं. इस महीने के अंत में हम खोपोली पधारने का कार्यक्रम बना रहे हैं. अगली पोस्ट में पब्लिश होनेवाली तस्वीरों में से कुछ हमारे पास पिछले डेढ़ साल से हैं. जब भी देखता हूँ तो लगता है जैसे कह रही हैं;

सुंदर दृश्य खोपोली माहीं
किंतु आलसी देखत नाहीं

mamta said...

वाह !

आपने सच कहा है एक्सप्रेस हाई वे मे ड्राइव का मजा ही कुछ और है। पिछले साल पहले हम गए थे।
लीजिये हमने भी टिपण्णी कर दी यानी कुछ सहूलियतें हमे भी मिल जायेंगी। :)

बालकिशन said...

हम ब्लोगर हैं, आपकी पोस्ट पढ़कर टिपियाते भी हैं.
एंड अबभ आल
आप हमारे वड्डे वाप्पाजी भी हो सो हमारे लिए कोई पेशल ऑफर होना चाहिए.
क्या पेशल आप सोचो?
और हाँ ये प्रार्थना है कि भाई को दी हुई सुपारी वापस ले लीजिये.

योगेन्द्र मौदगिल said...

कमाल कर दिया प्रभु, पूरे परिवार का जुगाड़.. चिन्ता ना करें.. खोपोली को धन्य करना ही पड़ेगा.

समयचक्र said...

सचित्र खापोली भ्रमण कराने के लिए खापोली दर्शन अच्छा लगा धन्यवाद .

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

आदरणीय भाई नीरज जी
खोपोली की सैर का तो मज़ा आ गया.
तस्वीरें देखकर
साहिर लुधियानवी साहब की नज़्म,
“दूर वादी में दूधिया बादल
झुक के पर्वत को प्यार करते हैं
दिल में नाकाम हसरतें लेकर
हम तेरा इन्तज़ार करते है.”
बहुत याद आई

और याद आया अपना भी एक शे`र:
“रोक रास्ता उनका हाल जब कभी पूछा
बादलों को दे दी है नग़्मगी पहाड़ों ने”
खोपोली जल्दी आ रहा हूँ और वो भी सपरिवार.
सादर
द्विज

ghughutibasuti said...

लगता है कि खोपोली दर्शन करना ही पड़ेगा।
घुघूती बासूती

NAVAL said...

BAHUT KHUBSURAT HAI