Monday, May 5, 2008

काश, कौधे नहीं कभी बिजली



कौन उस सा फकीर होता है
जो भी दिल का अमीर होता है

उस को क्या खौफ है ज़माने का
साफ जिसका ज़मीर होता है

ताना हर बात पर नहीं देते
पार दिल के ये तीर होता है

काश, कौधे नहीं कभी बिजली
फूल सा मन अधीर होता है

वैसा ही होता है मिजाज़ उस का
जिसका जैसा ज़मीर होता है

लोग पत्थर से ही नहीं होते
सबकी आंखों में नीर होता है

"प्राण" सदियाँ ही बीत जाती हैं
पैदा कब नित कबीर होता है.

(प्राण शर्मा जी की ये ग़ज़ल उनकी किताब " ग़ज़ल कहता हूँ " से साभार ली गयी है. ज़बान की सादगी और कलाम का बांकपन देखिये और उनको मुबारकबाद दीजिये)

13 comments:

Shiv said...

बहुत बढ़िया गजल है..प्राण साहब की गजलें सरल होती हैं, अच्छी होती हैं और मानवीय संवेदनाओं को बखूबी बयान करती हैं.

प्राण साहब को धन्यवाद लिखने के लिए और भइया आपको धन्यवाद इसे प्रस्तुत करने के लिए.

बालकिशन said...

बहुत दिनों से नदारद था.
माफ़ी चाहता हूँ.
एक बार फ़िर प्राण साहब कि जबरदस्त और मस्त गजल पढाने के लिए धन्यवाद.

उम्मीद है माफ़ी मिल जायेगी.

Abhishek Ojha said...

लोग पत्थर से नहीं होते
सबकी आंखों में नीर होता है.


क्या बात है !

Dr. Chandra Kumar Jain said...

जो भी दिल का अमीर होता है
सिर्फ़ उसका ज़मीर होता है
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न वो भाला, न तीर होता है
आदमी हो के वो पीर होता है
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वह किसी नीड़ को न छेड़ेगा
जिसकी आँखों में नीर होता है
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प्राण सा दर्द जिसमें ज़िंदा हो
प्रेम का वह कबीर होता है .
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शुभकामनाएँ प्राण साहब को
दिल को छूने वाली ग़ज़ल के लिए
शुक्रिया आपका नीरज जी दिल से
चुनी गई इस सौगात की खातिर.

आपका
डा.चंद्रकुमार जैन

राजीव रंजन प्रसाद said...

ताना हर बात पर नहीं देते
पार दिल के ये तीर होता है

काश, कौधे नहीं कभी बिजली
फूल सा मन अधीर होता है

नीरज जी, इतनी बेहतरीन गज़ल से परिचित कराने का आभार...

***राजीव रंजन प्रसाद

अमिताभ मीत said...

बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी, इतनी बढ़िया ग़ज़ल पढ़वाने के लिए. बहुत अच्छे शेर, वाह !
"काश, कौधे नहीं कभी बिजली
फूल सा मन अधीर होता है"
हर शेर बहुत अच्छा है लेकिन ये शेर तो बस ... लाजवाब है.

पारुल "पुखराज" said...

वैसा ही होता है मिजाज़ उस का
जिसका जैसा ज़मीर होता है
bahut khuub...neeraj ji..hum tak pahunchaaney ka aabhaar...

Manish Kumar said...

behad sundar rachna padhwane ka shukriya!

Udan Tashtari said...

अच्छी लगी प्राण साहब की गजल की यह प्रस्तुति.

Ghost Buster said...

बहुत सुंदर गजल है. शुक्रिया.

डॉ .अनुराग said...

वैसा ही होता है मिजाज़ उस का
जिसका जैसा ज़मीर होता है
सुभान अल्लाह क्या सादगी से सारी बात कह दी .......

योगेन्द्र मौदगिल said...

नीरज जी मजा आ गया बढिया रचना थी प्राण जी ने कलमदंश के लिये भी रचनाएं भेजी जिन्हें हमने सादर प्रकाशित किया और अंक भेजा था इस गजल के बहाने वो याद भी ताजा हो गयी उनका नेट संपर्क भेजें

समयचक्र said...

लोग पत्थर से ही नहीं होते
सबकी आंखों में नीर होता है

bahut manabhavan neeraj ji bahut abhari hun jo apne rachana sabhi ke liye prastut ki hai .dhanyawaad