Wednesday, March 5, 2008

वो ही काशी है वो ही मक्‍का है


देखने में मकां जो पक्का है
दर हकीकत बड़ा ही कच्चा है

ज़िंदगी कैसे प्यारे जी जाए
ये सिखाता हरेक बच्चा है

छाँव मिलती जहाँ दुपहरी में
वो ही काशी है वो ही मक्का है

जो अकेले खड़ा भी मुस्काये
वो बशर यार सबसे सच्चा है

जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है

आप रब से छुपायेंगे कैसे
जो छुपा कर जहाँ से रख्खा है

जब चले राह सच की हम "नीरज"
हर कोई देख हक्का बक्का है

{ग़ज़ल पर इस्लाह के लिए भाई पंकज सुबीर को धन्यवाद}

14 comments:

Ashish Maharishi said...

बहुत खूब। नीरज जी मिष्टी कौन है

Dr. Chandra Kumar Jain said...

BADEE DER KAR DEE MEHRBAN
SUKRA HAI PHIR TUM AAYE TO.
AAS NE DIL KA SAATH NIBHAYAA
VAISE HAM GHABRAYE TO....

AAPKEE LAZAVAAB TAZAA GAZAL MEIN EK MISARA MEREE ZANIB SE KUBOOL HO...
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USNE DUNIYA KA NOOR PAYAA HAI
JISKE DIL KA ZAHAAN SACHCHA HAI
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अमिताभ मीत said...

बहुत अच्छा है सर जी.

राज भाटिय़ा said...

जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है
नीरज जी बहुत खुब,बहुत ही उम्दा कविता हे, एक सच्चई हे उपर की पक्तियो मे

Gyan Dutt Pandey said...

सच की राह वास्तव में बहुत सरल पर आश्चर्य से युक्त होती है। जब सरल सी चीज - जैसे यह गज़ल, सामाने आती है तो लगता है कि कितनी जटिलता में हम व्यर्थ सिर मारते रहे।
यह पोस्ट पढ़ कर यही अहसास हुआ। पता नहीं आपके क्या भाव रहे होंगे!

Shiv said...

बहुत बढ़िया...हमेशा की तरह ही.

Unknown said...

ऊपर शिव जी के कमेन्ट का रिपीट और सादर -
आप जो जिस तरह से कहते हैं
वो ही साझा है सच से अच्छा है
rgds - manish

Udan Tashtari said...

वाह वाह!!! बहुत खूब,,,,ऐसा ही उम्दा लेखन जारी रहे, शुभकामना. लौटने की बम्बई से फ्लाईट है, मुलाकात हो सकती है..२६ अप्रेल की.

Batangad said...

मजा आ गया। बहुत जबरदस्त है नीरजजी।

haidabadi said...

मोहतरम नीरज साहिब
आदाब
किसने पत्थर फैंक कर हलचल मचा दी झील में
झिलमिलाते "चाँद" की तस्वीर धुँधली हो गई
ग़ज़ल की जुल्फ तुम संवारोगे
तेरे दिल का इरादा पक्का है
देख के तेरी ग़ज़ल ऐ नीरज
चाँद भी अबके हक्का बक्का है
इससे पहले के बद नज़र असर कर जाए
आ तेरे चाँद से चेहरे की बलाएँ ले लूँ
देर न कर सबरंग पर आ
ना अब इतनी देर लगा
चाँद हदियाबादी डेनमार्क

सुनीता शानू said...

जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है
नीरज भाई बहुत उम्दा गज़ल है..और फ़िर सुबीर भाई को भी धन्यवाद...

Naveen Joshi said...

Behatareen

Alpana Verma said...

bahut hi khuubsurat ghazalen hain aap ki neeraj ji--

Omnivocal Loser said...

बेहतरीन ग़ज़ल.....