Thursday, February 7, 2008

ऐ खुशी तू शम्‍अ सी है


(प्राण साहेब की एक छोटी बहर की ग़ज़ल)

तुमसे दिल में रोशनी है
ऐ खुशी तू शम्‍अ सी है

छोड़ जाती है सभी को
ज़िंदगी किसकी सगी है

आप की सांगत है प्यारी
गोया गुड़ की चाशनी है

बारिशों की नेमतें हैं
सूखी नदिया भी बही है

मिटटी के घर हों सलामत
कब से बारिश हो रही है

नाज़ क्योंकर हो किसी को
कुछ न कुछ सबमें कमी है

कौन अब ढ़ूढ़े किसी को
गुमशुदा हर आदमी है

बांट दे खुशियाँ खुदाया
तुझको कोई क्या कमी है

5 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

नीरज जी, आपके लेखन में जो उन्मुक्त प्रसन्नता है, उसमें तो कोई कमी ढ़ूंढे भी न मिलेगी।
यह आपकी प्रत्येक पोस्ट से परिलक्षित होता है।
आपका ब्लॉग और आपका सम्पर्क - दोनो हमारी उपलब्धियां हैं।

अमिताभ मीत said...

शमः जलती रहे सर जी. आप इसी तरह ये शमः जलाते रहें. बाज़ दफ़ा बहुत ज़रूरत महसूस होती है इस शमः की. हर शेर बाकमाल है.

पारुल "पुखराज" said...

नाज़ क्योंकर हो किसी को
कुछ न कुछ सबमें कमी है
sacchi aur acchi baat...

Tarun said...

kya bhavpurn aur sundar gazal hai

महावीर said...

नीरज जी
आदरणीय प्राण साहेब की ग़ज़ल पर टिप्पणी देना तो ऐसा लगेगा जैसे सूरज के सामने टिमटिमाता हुआ दिया रख दिया हो। मैं ने प्राण साहेब की एक बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल 'कादम्बिनी' के अगस्त १९९६ में पढ़ी थी जो आज भी मेरे पास है। उन दिनों वे
यहां कवेन्ट्री में रहते थे। ग़ज़ल का नाम था - 'वतन को छोड़ आया हूं।'
उनकी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।