Friday, September 21, 2007

उसी की बात होती है


मजे की बात है जिनका, हमेशा ध्यान रखते हैं
वोही अपने निशाने पर, हमारी जान रखते हैं

मुहब्बत, फूल, खुशियाँ,पोटली भर के दुआओं की
सदा हम साथ में अपने, यही सामान रखते हैं

यही सच्ची वजह है, मेरे तन मन के महकने की
जलाये दिल में तेरी याद का, लोबान रखते हैं

पथिक पाते वही मंजिल, भले हों खार राहों में
जो तीखे दर्द में लब पर, मधुर मुस्कान रखते हैं

मिलेगी ही नही थोड़ी जगह, दिल में कभी उनके
तिजोरी है भरी जिनकी, जो झूटी शान रखते हैं

उसी की बात होती है, उसी को पूजती दुनिया
जो भारी भीड़ में अपनी, अलग पहचान रखते हैं

गुलाबों से मुहब्बत है जिसे, उसको ख़बर कर दो
चुभा करते वो कांटे भी, बहुत अरमान रखते हैं

बहारों के ही हम आशिक नहीं, ये जान लो 'नीरज'
खिजाओं के लिये दिल में, बहुत सम्मान रखते हैं

4 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

मुझे तो इस बात पर बड़ी प्रसन्नता है कि आपने ब्लॉग पर पदार्पण किया. अब लोगों को बताने का काम करना है.
आप के ब्लॉग पर आने पर लगता है कि किसी महनगर में अपने गांव का कोई मिल गया हो!

रंजना said...

प्रणाम !
प्रतिक्रिया देने को व्यग्र हूँ ,पर सटीक शब्द नही खोज पा रही.
सबसे पहले तो भगवानजी को प्रणाम ,जिन्होंने आपको ऐसा बनाया और सुंदर मन के सुंदर सोच को इतने सुंदर ढंग से अभिव्यक्त करने का सामर्थ्य प्रदान किया.फ़िर उन सभी लोगों,परिस्थितियों को धन्यवाद,जो आपकी प्रेरनाश्रोत बनते हैं अच्छी सोच और रचना के लिए और फ़िर शिव जी को कोटिशः धन्यवाद् जिन्होंने आपको खींचकर पन्ने पर लाने का उपक्रम किया.

इश्वर करें आप इसी तरह लिखते रहें और कडोरों लोगों को अपनी सोच को सुंदर बनाये रखने के लिए प्रेरित करते रहें.
मेरा निवेदन है की अपनी सभी रचनाएं इसपर प्रेषित करें साथ ही दूसरों के द्वारा रचित जो रचनाएं आपको प्रभावित करती हैं उन्हें भी उदृत करें.तो एकसाथ हमारे दोनों हाथों मे लड्डू होंगे.एक ओर तो आपकी रचनायें पढने का सौभाग्य मिलेगा और दूसरी ओर आपकी प्रेरणा के दिग्दर्शन के भी अवसर मिलेंगे.
पारस के साथ रहते रहते क्या पता हम भी कभी कंचन बन जायें.
अनंत शुभकामना के साथ
रंजना

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बहुत ख़ूब.

Neelam said...

Bahut khoob. aapkii lekhni bahut pasand aayi.
गुलाबों से मुहब्बत है जिन्हे उनको ख़बर कर दो
चुभा करते वो कांटे भी बहुत अरमान रखते हैं